खाद्य सुरक्षा पर प्रधानमंत्री के उद्गार


विश्व इस समय जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और प्राकृतिक आपदाओं के बारे में चिंतित है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय मानव विकास और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता के बीच बेहतर सामंजस्य बनाने की जरूरत तभी समझ गए थे और प्राकृतिक संसाधनों के दुरुपयोग को लेकर काफी सतर्क थे। मानव जाति अब जाकर प्रकृति पर हमारे भौतिक विकास के खतरनाक प्रभाव को समझी है।

- वर्तमान कृषि परिदृश्य में खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिये भारत को उन आपूर्तियों पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा जोकि गरीबों को समय पर अबाधित और वाजिब दामों पर उपलब्ध कराई जा सकें।

- हमारे वैज्ञानिकों ने देश के पर्यावरण के अनुकूल 131 से अधिक किस्में विकसित की हैं। ये किस्में प्रति हेक्टेयर उत्पादन और क्वालिटी बढ़ाएँगी।

- हमने किसानों को बेहद कम प्रीमियम पर अधिकतम गारंटी प्रदान की है। हमने 15 लाख टन उत्पादन की सुरक्षा के लिये अतिरिक्त गोदाम बनाए हैं।

- किसानों के लिये ई-मंंडी योजना शुरू की गई है ताकि किसान देशभर में किसी भी बाजार में ऑनलाइन अपने उत्पाद को बेच सकें। आज वह अपने खेत से 10 किमी की दूरी पर सस्ती कीमत पर कड़ी मेहनत से पैदा किए अपने उत्पाद बेचने के लिये मजबूर नहीं हैं।

- पहली हरितक्रांति की पहली आवश्यकता थी कि देश को अन्न बाहर से न लाना पड़े, देश का पेट भरे। दूसरी हरितक्रांति का इतना मतलब नहीं हो सकता, इसका मकसद कुछ और भी हो सकता है। क्यों न हमारे देश के कृषि अर्थशास्त्री, हमारे देश के कृषि तकनीशियन, हमारे देश के कृषि वैज्ञानिक, खाद्य सुरक्षा से जुड़े वैज्ञानिक, ये सब मिलकर विचार-विमर्श करें कि दूसरी हरितक्रांति का मॉडल क्या हो, उसकी प्राथमिकताएँ क्या हो, हमें किन चीजों का उत्पादन करना चाहिए...।

- हमारे किसानों को फायदा पहुँचाने के लिये सरकार खाद्य प्रसंस्करण और 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहन दे रही है। इससे कृषि-आधारित उद्योगों को फायदा होगा और 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने के मेरे सपने को पूरा करने में भी मदद मिलेगी।

- खाद की कमी अब पुरानी बात हो गई है। हम खाद का उत्पादन बढ़ाने में सफल हुए हैं। उत्पादन बढ़ने की वजह से किसानों को समय पर खाद मिलने की सम्भावना बढ़ गई है।

- विश्व इस समय जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और प्राकृतिक आपदाओं के बारे में चिंतित है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय मानव विकास और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता के बीच बेहतर सामंजस्य बनाने की जरूरत तभी समझ गए थे और प्राकृतिक संसाधनों के दुरुपयोग को लेकर काफी सतर्क थे। मानव जाति अब जाकर प्रकृति पर हमारे भौतिक विकास के खतरनाक प्रभाव को समझी है।

- ऐसे समय में जब देश दालों की उपलब्धता की कमी से जूझ रहा है, किसानों को दालों की बुवाई एक बार में डेढ़ गुना बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिए। पहले एक समय में किसान अन्य फसलों के उत्पादन की तरफ बढ़ गए जिससे आम आदमी की तरफ से दालों की माँग बढ़ गई थी। अब दालों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर दिया गया है। दालों के लिये बोनस की घोषणा भी की गई है। दालों की खरीद के लिये बेहतर प्रणाली की आवश्यकता है इसीलिये किसानों को ज्यादा आमदनी के लिये दालें उगाने के लिये बढ़ावा दिया जा रहा है।

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