खरीफ ऋतु में मिश्रित फसलें

(देशी बाजरा + देशी तिल + देशी मूंग + देशी अरहर)

मिश्रित फसलें एक तरफ जहां किसान की खाद्य सुरक्षा व पोषकता को बढ़ाती है, वहीं अलग-अलग जड़ व प्रकृति की होने के कारण मृदा उर्वरता व नमी को संरक्षित करने में भी सहायक होती हैं।

परिचय


मिश्रित खेती सदैव लाभदायक होती है और यदि छोटी जोत हो, तो उस पर सोने पर सुहागा वाली कहावत चरितार्थ होती है, क्योंकि मिश्रित खेती करके किसान कम जोत में अधिक फसल लेकर बाजार पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है। ऐसे क्षेत्र में जहां आमतौर पर सूखा रहता हो, उन स्थानों पर यदि मिश्रित खेती की जाए तो अधिक लाभकर होता है।

मिश्रित खेती में यह भी ध्यान देने योग्य होता है कि जिन फसलों की बुवाई कर रहे हैं, उनमें अनाज. दलहन, तिलहन सभी का प्रतिनिधित्व हो। एक तो यह सभी अलग-अलग समय की फसल होने के कारण किसान के घर में हमेशा कुछ-न-कुछ उपज आती रहेगी और दूसरे अलग-अलग प्रकृति की फसल होने से खेत की उर्वरता व नमी भी बराबर मात्रा में सभी को मिलती रहेगी। बाजरा, तिल, मूंग व अरहर चारों क्रमशः अनाज, तिलहन व दलहन की फसलें हैं, जो कम पानी में हो जाती हैं। यदि देशी प्रजाति की ये फसलें हों, तो सूखा को सहन करने की क्षमता इनके अंदर अधिक होती है। इसके साथ ही ये सभी फसलें किसान की खाद्यान्न आपूर्ति के लिए भी सहायक होती है।

चित्रकुट सूखे बुंदेलखंड का अति पिछड़ा जनपद है। अन्य क्षेत्रों की तरह कम व अनियमित वर्षा, सिंचाई के अभाव में सूखती खेती और बदहाल होता किसान चित्रकूट की भी नियति है। यहीं का एक ग्राम पंचायत है-रैपुरा, जिसके अंतर्गत तीन राजस्व गांव गहोरा खास, गोहारापाही व कैरी कटनाशा हैं। तीनों गांव की कुल आबादी 5794 है, जिसमें लगभग सभी जातियों के लोग निवास करते हैं। मुख्यतः ब्राम्हण, कुर्मी, यादव, कुम्हार, गुप्ता, लोहार, बढ़ई, साहू, मुस्लिम, चमार, नाई जातियां यहां पर निवास करती हैं। यहां के लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत खेती है। परंतु उबड़-खाबड़ ज़मीन एवं सिंचाई के साधनों के अभाव के चलते वर्षा आधारित खेती होने के कारण पिछले 10 वर्षों से सूखा पड़ने की स्थिति में लोगों की आजीविका भी प्रभावित हो रही है।

ऐसी स्थिति में ग्राम गोहरा पाही के कुछ किसानों ने खरीफ के मौसम में मिश्रित खेती करके सूखे का मुकाबला करना का विचार किया।

प्रक्रिया


खेत की तैयारी
सर्वप्रथम माह जून के तीसरे-चौथे सप्ताह तक खेत में पड़ा कूड़ा-करकट साफ कर देते हैं। तत्पश्चात् बारिश होने के बाद खेत की पहली जुताई ट्रैक्टर से कराते हैं। पुनः दो से तीन जुताई हल से अथवा ट्रैक्टर से करते हैं।

फसल चयन


ऐसी फसल बोने को प्राथमिकता देते हैं, जिनमें पानी की आवश्यकता कम हो। साथ ही एक फसल चक्र पूरा होने के बाद दूसरे फसल चक्र में अलग फसलों की बुवाई करते हैं। प्रतिवर्ष फसल बदल-बदल कर बोते हैं, जिससे खेत को पर्याप्त पोषक तत्व व नमी मिलती रहे।

बीज की प्रजाति


घर पर संरक्षित व सुरक्षित देशी बीजों का प्रयोग करते हैं।

बीज की मात्रा


एक एकड़ खेत में मिश्रित बुवाई करने के लिए अरहर 5 किग्रा. बाजरा 2 किग्रा., मूंग 2 किग्रा. व तिल डेढ़ किग्रा. को मिलाकर बुवाई करते हैं।

बुआई का समय व विधि


अगस्त माह के प्रथम सप्ताह में छिटकवा विधि से बुवाई करते हैं। इसके लिए खेत की आखिरी जुताई ट्रैक्टर से करने के पश्चात् 3 से 5 इंच की गहराई पर इसकी बुवाई ट्रैक्टर की सहायता से सीडड्रिल मशीन से ही कराते हैं।

खाद


एक एकड़ हेतु एक ट्राली देशी खाद की आवश्यकता होती है, जिसे पहली जुताई के समय खेत में मिला दिया जाता है।

निराई


फसल की बढ़वार होती रहे, इसके लिए समय-समय पर खेत की निराई की जाती है। इससे एक तरफ तो हमारा खेत साफ रहता है और दूसरी तरफ जानवरों के लिए चारा भी उपलब्ध हो जाता है।

पकने की अवधि


बाजरा, मूंग व तिल के पकने की अवधि 60-90 दिनों की होती है, जबकि अरहर 8-9 महीने की फसल ही है, जो मार्च में पक जाती है।

कटाई का समय व मड़ाई


तिल की फसल की कटाई सितम्बर के अंतिम सप्ताह या फिर अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक हो जाती है। तिल की कटाई करके एक जगह सुखा कर डण्ठल को हिलाकर इसका बीज झाड़ लिया जाता है।
मूंग की एक-एक फली की तुड़ाई की जाती है। यह तुड़ाई सितम्बर के प्रथम सप्ताह से प्रारम्भ हो जाती है। इसकी कुटाई करके बीज निकाला जाता है।
बाजरा की कटाई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह या नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक हो जाती है। बाजरा की मड़ाई बैलों से करते हैं। इसके दाने निकालने के लिए थ्रेसर का प्रयोग भी किया जा सकता है।
मार्च में अरहर पकने के बाद इसकी कटाई कर लेते हैं। अरहर को काटकर सुखाते हैं। तब कुटाई करके इसका बीज निकालते हैं।

उपज


देशी बाजरा : 4 कुन्तल
देशी अरहर : 1 कुन्तल
देशी तिल : 50 किग्रा.
देशी मूंग : 30 किग्रा.

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