खुले में शौच पर करोड़ों खर्च पर नतीजा सिफर

मोबाइल शौच
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भारत में आज 50 फीसदी से ज्यादा भारतीय लोगों के पास शौचालय नहीं है, विश्व में खुले में शौच जाने वाले सभी लोगों में 60 फीसदी लोग भारत में रहते हैं। भारत की यह समस्या खासकर ग्रामीण इलाकों में केंद्रित है, क्योंकि वहां की 60 फीसदी आबादी खुले में शौच करती है। इतनी संख्या में लोगों के खुले में शौच जाने से वातावरण में रोगाणु मिल जाते हैं, इससे बढ़ रहे और विकसित हो रहे बच्चे बीमार होते हैं।

भारत खुले में शौच जाने की आदत को खत्म करने में, अपने बराबर प्रति व्यक्ति आय वाले देशों से आज काफी पीछे है। आज पाकिस्तान में 23 फीसदी, स्विटजरलैंड में 14 फीसदी, रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो में 8 फीसदी और वियतनाम में 2 फीसदी लोग ही खुले में शौच के लिए जाते हैं। अफगानिस्तान में 15 फीसदी, जांबिया में 16 फीसदी और बांग्लादेश और बुरुंडी जैसे गरीब देशों में भी मात्र 3 फीसदी लोग ही खुले में शौच जाते हैं।

चौपट हुई सरकारी नीतियां


खुले में शौच जाने की समस्या से निपटने के लिए भारत सरकार ने, 1986 में केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम शुरू किया था। इस कार्यक्रम के तहत लोगों के लिए शौचालय तो बनाए गए पर खुले में शौच जाने वाले लोगों की तादाद में कमी बहुत कम आई। निर्मल भारत अभियान के दिशा-निर्देशों में भी लिखा गया कि सरकारी नीतियों लोगों को शौचालय की जरूरत समझाने पर जोर दें पर असल में आज तक सरकार शौचालय बनाने पर ही जोर देती चली आ रही है।

उदाहरण के लिए वर्ष 2013-14 में भारत सरकार ने शौचालय बनाने पर 2500 करोड़ रुपए और लोगों में जागरूकता लाने के लिए मात्र 208 करोड़ रुपए ही खर्च किए। हाल ही में पूरे हुए स्कवैट (सेनिटेशन, क्वॉलिटी, यूज, एक्सेस और ट्रेंड) सर्वे के परिणामों में पता चला है कि भारत में बहुत से लोग शौचालय होने के बाद भी बाहर खुले में ही शौच करने जाते हैं। यद्यपि, भारत में शौचालय की उपलब्धता होने पर महिलाएं, पुरुषों की अपेक्षा, उसका इस्तेमाल ज्यादा करतीं हैं, पर फिर भी भारतीय महिलाओं का शौचालय की उपलब्धता के बाद उसे इस्तेमाल करने का ये औसत, दुनिया के कई गरीब देशों में खुले में शौच जाने वाले सभी लोगों के औसत से कम है।

सोच बदलनी होगी


गांवों में बहुत से लोगों का यह मानना है कि खुले में शौच जाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। असल में शौचालय लोगों की जरूरत नहीं, बल्कि दिक्कत के समय काम आने वाला एक विकल्प है। यही कारण है कि सरकार द्वारा बनाए गए ज्यादातर शौचालय या तो खत्म हो चुके हैं या उसे परिवार के सभी लोग रोज़ाना इस्तेमाल नहीं करते हैं।

कैसे पूरा होगा 2019 का लक्ष्य


सरकार अगर महात्मा गांधी के 150वें जन्मदिन पर उन्हें एक स्वच्छ भारत देना चाहती है तो स्वच्छता मिशन में शौचालय बनाने के कार्यक्रम पर जोर देने की बजाए उसे लोगों की सोच बदलने और उन्हें जागरूक करने पर अधिक शक्ति खर्च करनी चाहिए, तभी यह लक्ष्य प्राप्त हो सकेगा।

सरकारी स्कूलों में बालिकाओं के लिए टॉयलेट नहीं


देश में एक लाख से अधिक सरकारी स्कूलों में बालिकाओं के लिए टायलेट नहीं है। इसके अतिरिक्त 87,900 स्कूल ऐसे हैं, जहां बालिका शौचालय बने हुए तो हैं लेकिन काम में आने लायक नहीं है। उत्तर भारतीय राज्यों की अपेक्षा दक्षिण के राज्यों में हालात ठीक हैं।

राज्य

बालिका शौचालय नहीं

बालिका शौचालय काम का नहीं

बालकों के लिए नहीं

बिहार

17,982

9,225

19,422

पश्चिम बंगाल

13,608

9,087

12,858

मध्य प्रदेश

9,130

9,271

9,443

आंध्र प्रदेश

9,11

8,329

19,275

ओडिशा

8,196

12,520

13,452

तेलंगाना

7,945

7,881

14,884

असम

6,890

3,956

16,255

जम्मू-कश्मीर

6,294

2,797

7,822

झारखंड

4,736

3,979

5,484

छत्तीसगढ़

2,355

5,971

4,634

उत्तर प्रदेश

2,355

5,971

4,634

राजस्थान

2,224

2,990

3,788

 



स्वंतंत्रता दिवस पर लाल किले से प्रधानमंत्री के आह्वान के बाद मानव संसाधन मंत्रालय ने शौचालय रहित विद्यालयों की सूची जारी कर दानदाताओं से सहयोग की अपील की है। डाइस 2013 को आधार बनाकर ब्लॉक स्तर तक के आंकड़े और संपर्क सूत्र दिए गए हैं।

राजस्थान


राजस्थान में कुल 5,214 सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहां बालिकाओं के लिए शौचालय नहीं है या फिर काम आने लायक नहीं हैं।

सर्वाधिक इन जिलों में


उदयपुर

717

बीकानेर

456

बांसवाड़ा

553

भरतपुर

339

बाड़मेर

537

सिरोही

337

 



छत्तीसगढ़


छत्तीसगढ़ में कुल 6,420 सरकारी स्कूलें ऐसी हैं जहां बालिकाओं के लिए शौचालय नहीं हैं या फिर काम आने लायक नही हैं।

सर्वाधिक इन जिलों में


गरियाबंद

839

बस्तर

593

सूरजपुर

723

सरगुजा

450

रायपुर

661

बेमतरा

369

 



मध्य प्रदेश


मध्य प्रदेश में कुल 18,401 सरकारी स्कूलें ऐसी हैं जहां बालिकाओं के लिए शौचालय नहीं हैं या फिर काम आने लायक नहीं हैं।

सर्वाधिक इन जिलों में


सिंगरोली

1292

विदिशा

1003

राजगढ़

1382

अलीराजपुर

956

मंडला

1050

सिधी

911

 



खुले में शौच करने वाली ग्रामीण आबादी


झारखंड

90.5%

ओडिशा

81.3%

मध्य प्रदेश

79%

छत्तीसगढ़

76.7%

उत्तर प्रदेश

75.3%

राजस्थान

73%

बिहार

72.8%

कर्नाटक

70.8%

तमिलनाडु

66.4%

गुजरात

58.7%

निर्मल अभियान पर खर्च राशि

(लाख रु. में)

केंद्र से मिली राशि में से सिर्फ 81% ही खर्च कर पाए राज्य

1,44,059.07 (2011-12)

2,43,846.51 (2012-13)

2,19,028.37 (2013-14)

 



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