कितनी स्वस्थ हैं हमारी नदियां

9 Oct 2020
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झरना
झरना

हमारा परंपरा में नदी को एक संपूर्ण इकाई के रूप में देखा जाता है, जो सामाजिक,सांस्कृतिक और भोगौलिक परिवेश को अपने में समेटे हुए प्रवाहित होती है। नदियां मनुष्य के उस आचार-व्यवहार की साक्षी हैं, जिसके मूल में प्रकृति के साथ साहचर्य का भाव, एक मूल्य के रूप में प्रतिष्ठित रहा। नदियां और उनके किनारे बसने वाले जीव-जंतु, पहाड़, वन, वनवासी, सब मिलकर एक जीवन तंत्र बनाते हैं। यह तंत्र इसलिए है, क्योंकि इसमें एक अनुशासन है। यह अनुशासन थोपा हुआ नहीं, बल्कि स्वाभाविक है। किंतु पिछले कुछ दशकों से जब से समाज ने नदियों और प्राकृतिक संसाधनों को उपभोक्ता की नजर से देखना शुरू किया है, इस जीवन तंत्र की लय टूटने लगी है। प्रकृति के साथ हमारे संबंध की कड़ी साहचर्य न होकर बाजार हो गया है। परिणामस्वरूप नदियां ही नहीं, उनका पूरा परिवेश जिसमें जैव-विविधता, लोक संस्कृति, कृषि, आजीविका इत्यादि शामिल हैं, सभी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। नालों में बदलती या सूखती नदियां, केवल भौगोलिक या जलवायु बदलाव नहीं, बल्कि संस्कृति का रस विहीन शुष्क हो जाना भी एक महत्वपूर्ण कारण है। नदी एक जीवमान इकाई है। उसका स्वास्थ्य भी अच्छा-बुर होता रहता है। नदी में स्वयं को स्वस्थ रखने की वैसी ही शक्ति होती है, जैसे किसी मनुष्य अथवा अन्य जीवों में रोग-प्रतिरोधक क्षमता होती है। उसके विभिन्न तंत्र स्वयं को स्वस्थ रखते हुए संपूर्ण नदी को स्वस्थ बनाए रखते हैं। वह कई कारणों से बीमार भी होती है। लंबे समय तक ध्यान न दिया जाए, तो वह विभिन्न प्रकार के असाध्य रोगों से पीड़ित हो जाती है। अतः मनुष्य की तरह प्रत्येक नदी का भी नियमित स्वास्थ्य परीक्षण होना चाहिए।

नर्मदा समग्र के संस्थापक एवं पूर्व केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री, स्व. अनिल माधव दवे जी द्वारा “नर्मदा नदी स्वास्थ्य सूचकांक' की कल्पना कर वर्ष २०११-१२ में कार्य आरंभ किया था। इसी कड़ी में विद्यार्थियों और समाज को साथ लेकर Community Based Monitoring System आधारित “जल परीक्षण कार्यक्रम” का संचालन संस्था द्वारा वर्ष २०१४-१७ तक किया गया। जिस प्रकार सभ्य समाज में मनुष्य के स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाता है, उसके बीमार होने पर उपचार किया जाता है, बीमारी असाध्य न बने इस हेतु प्रयत्न किए जाते हैं। वैसे ही प्रयासों कि आवश्यकता नदी व उसके जलग्रहण क्षेत्र में भी सतत होती रहनी चाहिए। इसकी पहली आवश्यकता है की उसके स्वास्थ्य की निरंतर निगरानी होती रहे। इस हेतु नर्मदा समग्र ने नर्मदा नदी स्वास्थ्य सूचकांक की रचना की। वर्ष २०११-१२ और २०१४-१७ में उसके विभिन्‍न पहलुओं को परखने और समझने के लिए समाज के साथ मिलकर इस दिशा में कार्य किया। इस कार्य से निकले परिणाम, निष्कर्ष एवं अन्य जानकारियों का संकलन कर रिपोर्ट “[“Developing an Informa- tion Management System for Narmada River Health Index” तैयार की गई है, जिसे  ISBN भी आवंटित हुआ। नर्मदा को मध्य प्रदेश की जीवन रेखा कहा जाता है और इसका जल अन्य कुछ राज्यों के लिए बिजली, कृषि व पेयजल का प्रधान कारण है। बदलते परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए आवश्यकता है कि हम इसके स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें और इसके विभिन्‍न पहलू जैसे जल की मात्रा, गुणवत्ता, जलग्रहण क्षेत्र में मिट्टी का स्वास्थ्य, समाज का व्यवहार, उद्योगों व रासायनिक कृषि से हो रहे दुष्परिणाम, अवैध खनन, वन घनत्व में कमी, जलीय जीवन, जैव-विविधता इत्यादि आयाम जो नदी के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, उनका वैज्ञानिक, सामाजिक और पर्यावरणीय अध्ययन करना चाहिए। नदी स्वास्थ्य सूचकांक को लेकर दुनिया भर में प्रयास व अनुसंधान कार्य चल रहे हैं। नदी तंत्र के सूचकों को लेकर कई प्रकार के अनुसंधान हुए भी हैं, पर ज़्यादातर जल की गुणवत्ता से संबंधित ही हैं। कई अन्य सूचक या नदी परिस्थितिकी के अन्य आयामों पर भी अलग से कार्य हुए हैं और हो भी रहे हैं, लेकिन इन सबको समग्रता से देखने व उस पर कार्य की आवश्यकता है। माननीय प्रधान सेवक श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा देश को स्वच्छ भारत का जो नारा दिया, स्वच्छ भारत अभियान चलाया, यह बहुत ही महत्वपूर्ण है और इसके प्रभाव सबके सामने हैं। लोगों में जागरुकता बढ़ी है, हम सब स्वच्छता बनाए रखने के लिए थोड़ा ही सही, लेकिन प्रयास करने लगे हैं। नर्मदा समग्र द्वारा विगत दस वर्षों से स्वच्छता को लेकर, विशेष करके नदी के किनारों, घाटों पर सफ़ाई को लेकर, लोगों को नदी व उसके आस-पास गंदगी न करने को लेकर कार्य किये जा रहे हैं। इससे इतना तो तय है की जब समाज और सरकार कुछ गतिविधियों को साथ में लेकर चलते हैं, तो वह निश्चित ही सफल होती हैं। और अकेले कार्य करने की जगह जब एक टीम की तरह काम होता है, तो उसके प्रभाव भी अलग ही दिखाई देते हैं। दबे जी कहते थे, “इस महत्वपूर्ण समय में जब सरकार और समाज पानी के काम के लिए साथ आ रहे हैं, हम भी हमारी नदियों को सदानीरा बनाने हेतु अपनी भूमिका तय करें। अपने विचारों की क्रियान्विती हेतु हमें चार स्तरों पर सोचना चाहिए, मैं क्या करूं, हम क्या करें, समाज क्या करे और सरकार क्या करे? इन बिंदुओं पर विमर्श करने से हमें नदियों के प्रति अपने विचार और व्यवहार को बदलने हेतु एक कार्ययोजना अवश्य मिलेगी।” भारत ही नहीं अपितु दुनिया भर में कई लोग, संस्थाएं अपने विवेक-विचार से नदियों और उनके आस-पास के जीवन को संरक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। पर यहह एक बड़ी चुनौती है, जिसे देखते हुए हमें और अधिक लोगों, समुदायों, विशेषज्ञों, जनप्रतिनिधियों और संगठनों को जोड़ना होगा।

लेखक मुख्य कार्यकारी, नर्मदा समग्र न्यास,

भोपाल मे कार्यरत हैं।

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