लखवाड़ डैम निर्माण, पर्यावरण संरक्षण नियमों का मखौल

4 Sep 2018
0 mins read
लखवाड़ डैम
लखवाड़ डैम

लखवाड़ डैम (फोटो साभार - गूगल मैप)28 अगस्त 2018 को विश्व में पर्यावरणीय सरोकार से जुड़े दो महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गए। पहला, भारत में यमुना नदी के ऊपरी बहाव क्षेत्र में 204 मीटर ऊँचाई वाले लखवाड़ डैम के निर्माण के लिये केन्द्र सरकार की स्वीकृति। दूसरा, फ्रांस के पर्यावरण मंत्री निकोलस हलोट का पद से इस्तीफा। पहले निर्णय में पर्यावरणीय सरोकार को अहमियत नहीं दी गई। वहीं, दूसरे निर्णय में हलोट के इस्तीफे की वजह, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन के नेतृत्व वाली सरकार का समकालीन पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति सजग न होना बताया जा रहा है। इन दोनों ही निर्णयों में कितना विरोधाभास है।

विकास की अन्धी दौड़ में विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र में जन सरोकार जो पर्यावरण से जुड़ा है बौना साबित हो रहा है। जबकि दूसरे देश में पर्यावरण, विकास के केन्द्र बिन्दु में है। “लखवाड़ डैम का निर्माण यमुना के अस्तित्व के लिये बड़ा खतरा है। भूकम्प की दृष्टि से अतिसंवेदनशील हिस्से में इनका निर्माण भविष्य में किसी बड़े खतरे को आमंत्रण देने जैसा है” हिमांशु ठक्कर, साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रीवर्स एंड पीपुल, सैंड्रप (South Asia Network on Dams, Rivers and People, SANDRP)।

यमुना देश की प्रमुख नदी है जिसकी लम्बाई 1376 किलोमीटर है। नदी का उद्गम स्थल हिमालय क्षेत्र के बन्दरपूँछ चोटी के दक्षिण-पश्चिम ढलान पर स्थित यमुनोत्री ग्लेशियर है। यह ग्लेशियर उत्तराखण्ड की सीमा रेखा में है जिसकी ऊँचाई 6,387 मीटर है। यमुना मूलतः उत्तराखण्ड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली से होकर गुजरती है और इलाहाबाद में गंगा में मिल जाती है।

यमुना की दो बड़ी सहायक नदियाँ टोंस और चम्बल हैं। टोंस, उत्तराखण्ड से निकलती है और हिमाचल के कुछ भागों को छूती हुई देहरादून जिले के कालसी के पास यमुना में मिल जाती है वहीं, चम्बल मध्य प्रदेश के विन्ध्य क्षेत्र से निकलती है और राजस्थान को पार करती हुई उत्तर प्रदेश में यमुना में मिल जाती है।

गौरतलब है कि परियोजना को स्वीकृति लखवाड़-व्यासी नाम से 42 वर्ष पूर्व 1976 में योजना आयोग ने दिया था। इसके तहत दो डैमों लखवाड़ और व्यासी का निर्माण किया जाना था। लखवाड़ डैम का निर्माण 1987 में शुरू हुआ लेकिन पैसे की कमी के कारण 1992 में इसे रोक दिया गया। इस समय तक डैम के 30 प्रतिशत हिस्से का निर्माण हो चुका था।

1994 में यमुना बहाव क्षेत्र में पड़ने वाले राज्यों के बीच केन्द्र सरकार की सहमति से पानी के बँटवारे के लिये एक समझौता हुआ। इसके तहत यह निश्चित हुआ कि डैम के जलाशय पर “यमुना रिवर बोर्ड” का नियंत्रण होगा।

फिर 15 वर्षों तक यह मुद्दा ठंडे बस्ते में पड़ा रहा और 2009 में केन्द्र की यूपीए सरकार ने इसे राष्ट्रीय योजना घोषित कर दिया। जिसके तहत इस बहुद्देशीय परियोजना पर आने वाले खर्च का 90 प्रतिशत हिस्सा केन्द्र सरकार द्वारा वहन करना निश्चित हुआ। इसी समय व्यासी परियोजना को लखवाड़ से अलग कर दिया गया।

2012 में लखवाड़ परियोजना के लिये फिर से प्रयास शुरू हुए और बिना एन्वायरनमेंटल इम्पैक्ट असेसमेंट (environmental impact assessment), जन सुनवाई आदि के इस प्रोजेक्ट को 1986 में दिये गए एन्वायरनमेंटल क्लीयरेंस के आधार पर हरी झंडी दे दी गई। हालांकि नवम्बर 2010 में आयोजित की गई एक्सपर्ट अप्रेजल कमिटी (Expert Apparaisal Commitee) की मीटिंग में इस परियोजना के सम्बन्ध में कई आपत्तियाँ उठाई गई थीं।

2015 में इस मामले को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में चुनौती दी गई जो अभी विचाराधीन है। इधर 120 मेगावाट वाली व्यासी परियोजना का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है जिसे अगले वर्ष दिसम्बर तक पूरा किया जाना है। इस परियोजना का निर्माण भी यमुना पर कराया जा रहा है जो लखवाड़ के निचले बहाव क्षेत्र में है।

28 अगस्त को केन्द्र सरकार ने लखवाड़ परियोजना को फिर से मंजूरी दे दी। इसी दिन केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने पाँच राज्यों उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और केन्द्र शासित प्रदेश दिल्ली के मुख्यमंत्रियों की उपस्थिति में इस परियोजना को 2023 तक पूरा करने की घोषणा की।

इस योजना का मुख्य उद्देश्य दिल्ली सहित अन्य राज्यों में घरेलू उपयोग, पीने अथवा उद्योगों के लिये बढ़ रही पानी की जरूरतों को पूरा करना है। गडकरी की उपस्थिति में राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने जल बँटवारे के लिये पूर्व में हुए समझौते पर हस्ताक्षर भी किये। इस कंक्रीट डैम की लागत 3966.51 करोड़ रुपए होगी जिसका 90 प्रतिशत भाग केन्द्र सरकार वहन करेगी। बाकी का 10 प्रतिशत हिस्सा राज्यों द्वारा वहन किया जाएगा।

निर्माण पर आने वाले इस खर्च का निर्धारण 2012 के प्रचलित मूल्य के आधार पर किया गया है। डैम का निर्माण उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम द्वारा कराया जाएगा। डैम की कुल विद्युत उत्पादन क्षमता 300 मेगावाट होगी जिस पर केवल उत्तराखण्ड का अधिकार होगा। विद्युत उत्पादन क्षमता के विकास पर आने वाले खर्च की जिम्मेवारी उत्तराखण्ड सरकार की होगी, जो 1388.28 करोड़ रुपए होगा। लखवाड़ परियोजना के लिये अंडरग्राउंड पावर स्टेशन बनाए जाने की योजना है जबकि व्यासी के लिये पावर स्टेशन हथियारी नामक स्थान पर जमीन की सतह पर बनाया जा रहा है। विद्युत उत्पादन के बाद इन दोनों योजनाओं के पावर स्टेशन से निकलने वाले जल को कांटापत्थर में बनाए जाने वाले बैराज में संकलित किये जाने की योजना है।

कांटापत्थर, हथियारी पावर स्टेशन से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर निचले बहाव क्षेत्र में स्थित है। इसी बैराज से दिल्ली तथा अन्य राज्यों को पानी सप्लाई किये जाने की योजना है। उत्तराखण्ड 2013 में आई आपदा पर अलकनंदा, मन्दाकिनी और भागीरथी बेसिन क्षेत्र में बने डैमों के प्रभाव का आकलन करने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने एक एक्सपर्ट पैनल का गठन किया था।

कोर्ट ने इस पैनल का हेड पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट, देहरादून (People’s Science Institute, Dehradun) के डायरेक्टर रवि चोपड़ा को नियुक्त किया था। पैनल ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि इन नदियों के बेसिन में बने डैमों का दुष्प्रभाव उस क्षेत्र पर पड़ा था। “डैम का दुष्प्रभाव सम्बन्धित इलाके पर पड़ता है और यह उसके निर्माण के पूर्व से लेकर उसके संचालित होने के बाद तक जारी रहता है।” रवि चोपड़ा

लखवाड़ डैम

कुल लागत  

3966.51 करोड़   

बिजली उत्पादन से सम्बन्धित मशीनरी की लागत (उत्तराखण्ड सरकार वहन करेगी)

1388.28 करोड़  

केन्द्र सरकार का हिस्सा

2320.41 करोड़  

राज्यों का हिस्सा

257.82 करोड़  

विद्युत उत्पादन क्षमता

300 मेगावाट

जमीन की आवश्यकता

1217.18 हेक्टेयर  

जलाशय की क्षमता

330.66 एमसीएम    

ऊँचाई

204 मीटर

सिंचित क्षेत्र

33,780 हेक्टेयर  

निर्माण पूर्ण होने की सम्भावना

दिसम्बर 2023

 

व्यासी डैम

 

कुल लागत

936.23 करोड़  

जमीन की आवश्यकता

135.42 हेक्टेयर  

विद्युत उत्पादन क्षमता

120 मेगावाट

निर्माण पूर्ण होने की सम्भावना

दिसम्बर 2019

 

लखवाड़ और व्यासी परियोजनाओं के अलावा यमुना की सहायक नदी टोंस और गिरी पर भी दो डैम का निर्माण प्रस्तावित है। टोंस पर किशाऊ बहुद्देश्यीय परियोजना का निर्माण किया जाना है जिसकी ऊँचाई 236 मीटर होगी। वहीं, गिरी नदी पर रेणुकाजी डैम का निर्माण किया जाना है। इस डैम की ऊँचाई 148 मीटर होगी। इन दोनों ही परियोजनाओं का निर्माण कार्य आरम्भ हो चुका है लेकिन प्रगति काफी धीमी है। धीमी प्रगति की वजह जमीन अधिग्रहण में आ रही अड़चने हैं। इन दोनों ही परियोजनाओं के निर्माण का उद्देश्य भी दिल्ली को पानी की आपूर्ति किया जाना है।

दिल्ली को इन डैमों से मिलेगा पानी

 

डैमों के नाम

दिल्ली को मिलने वाला पानी

लखवाड़

135 एमजीडी   

रेणुकाजी

275 एमजीडी   

किशाऊ

372 एमजीडी   

 

यमुना नदी के ऊपरी बहाव क्षेत्र में अब तक 12 छोटे डैम बनाए जा चुके हैं। लखवाड़, व्यासी, रेणुकाजी, किशाऊ जैसे स्वीकृत डैमों के अतिरिक्त 31 अन्य डैमों का निर्माण प्रस्तावित है। इन प्रस्तावित डैमों में से कई दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों में बनाए जाने हैं क्योंकि यमुनोत्री से दिल्ली के ओखला बैराज तक का हिस्सा यमुना का ऊपरी बहाव क्षेत्र माना जाता है।

अनुमान कीजिए इन डैमों के निर्माण के बाद यमुना की स्थिति क्या होगी जो वर्तमान में ही अपने अस्तित्व को खोने सम्बन्धी खतरों से जूझ रही है। विशेषज्ञों की माने तो यमुना पर डैमों का निर्माण भविष्य के लिये बहुत खतरनाक साबित होगा। “यमुना नदी पर डैमों का निर्माण गंगा पुनरुद्धार के उद्देश्य को बाधित करता है क्योंकि यमुना भी गंगा बेसिन का हिस्सा है। जब यमुना ही नहीं बचेगी तो गंगा का पुनरुद्धार कैसे होगा?” हिमांशु ठक्कर ने कहा।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि अमेरिका, फ्रांस, जापान आदि देशों में नदियों के प्रवाह को पुनर्बहाल करने और पर्यावरण के ह्रास को रोकने के लिये डैमों को तोड़ा जा रहा है। लेकिन, भारत में पर्यावरण ह्रास से सम्बन्धित खतरों की अनदेखी करते हुए डैम निर्माण को लगातार स्वीकृति दी जा रही है। अमेरिका में पिछले 20 वर्षों में 865 डैम तोड़े जा चुके हैं। यूरोपीय देश भी इस रास्ते पर अपना कदम बढ़ा चुके हैं। फ्रांस, स्पेन आदि देशों में छोटे-बड़े डैम को नष्ट किया जा रहा है। जापान में अरासे डैम को हटाने की प्रक्रिया 2014 में ही शुरू कर दी गई थी।

सम्भावित खतरे: (Probable Risks )

मीथेन गैस का स्राव (Release of Methane): डैम के जलाशयों से बड़ी मात्रा में मीथेन गैस का स्राव होता है। इस स्राव का मुख्य कारण जलाशयों की तलहटी में जमा पेड़-पौधों का सड़ना है। अमेरिका के बायोसाइंस जर्नल में 200 से ज्यादा डैमों पर किये गए शोध से सम्बन्धित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि डैम के जलाशयों से विश्व में प्रतिवर्ष लाखों टन मीथेन का स्राव होता है जो मानवजनित मीथेन के कुल स्राव का 1.3 प्रतिशत होता है।

यह गैस कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग के लिये तीन गुना ज्यादा उत्तरदायी है क्योंकि इसका प्रभाव लगभग 20 वर्षों तक वातावरण में बना रहता है। वहीं, कार्बन डाइऑक्साइड पैदा होने के तीन या चार वर्षों के बाद ही समाप्त हो जाता है।

जलाशयों में पैदा होने वाले मीथेन का कुछ हिस्सा कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है वहीं, बचा हुआ हिस्सा बुलबुले के रूप में पानी की सतह पर आता है और वातवरण को प्रभावित करता है। अतः यह साफ है कि डैम अपने आस-पास के क्षेत्रों में हो रहे पर्यावरणीय बदलाव में काफी अहम भूमिका निभाते हैं। इनके प्रभाव से तापमान में वृद्धि के साथ ही अप्रत्याशित मौसमी बदलाव भी सम्भव हैं। विश्व में कुल 57,000 से ज्यादा डैम हैं, जिनमें से 300 ऐसे हैं जिनकी ऊँचाई 150 मीटर या उससे ज्यादा है। भारत में 4300 डैम और जलाशय हैं जिनमें सबसे ज्यादा महाराष्ट्र (1845) में हैं।

ग्लेशियर लेक आउट ब्रस्ट फ्लड (Glacier Lake Outburst Flood): मौसमी बदलाव का ही परिणाम है कि ऐसी आशंका जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में हिमालय में बने प्रत्येक पाँच डैमों में से एक डैम क्षेत्र में ग्लेशियर के अचानक टूटने से बाढ़ की स्थिति पैदा हो सकती है। इसे ग्लेशियर लेक आउट ब्रस्ट फ्लड (Glacier Lake Outburst Flood,GLOF) कहते हैं। इतना ही नहीं इन इलाकों के तापमान में इजाफे के साथ ही वर्षा के पैटर्न में भारी बदलाव देखने को मिल सकता है।

उत्तराखण्ड में हुए पर्यावरणीय विनाश का ही प्रतिफल है कि पूर्व में प्राकृतिक रूप से बहने वाली सैकड़ों जलधाराएँ सूख गई हैं। सरकारी आँकड़े के अनुसार अनियंत्रित निर्माण और वनों की कटाई के कारण राज्य में 11000 से ज्यादा स्प्रिंग विलुप्त हो गए हैं। जलचक्र को भी व्यापक नुकसान पहुँच रहा है।

तलछट का जमाव (Sedimentation): नदियों द्वारा लगातार लाये जाने वाले तलछट का जमाव डैम की तली में होता रहता है जिससे कालान्तर में उसके जल संग्रह क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा बारिश के दिनों में डैम में पानी भर जाने पर उसे छोड़ने से भयावह स्थिति पैदा हो सकती है। इसका उदाहरण केरल की बाढ़ में देखने को मिला है। इडुक्की और मुल्लापेरियार डैम से पानी छोड़ने के कारण केरल में बाढ़ ने और भी विकराल रूप ले लिया था। ये दोनों डैम भी पश्चिमी घाट की तलहटी में पेरियार नदी पर बने हैं।

पानी में रहने वाले जीवों पर प्रभाव (Impact on Aquatic Animals): डैम, पानी में रहने वाले जीवों के आवास को पूरी तरह से छिन्न-भिन्न कर देते हैं। विश्व स्तर पर कराए गए एक अध्ययन के मुताबिक जिन नदियों पर डैम बने हैं उनमें मीठे पानी में रहने वाली मछलियों (fresh water fish) की संख्या में 80 प्रतिशत तक की गिरावट आई है।

डैम के जलाशय द्वारा पैदा किये गए अवरोध के कारण मछलियाँ उनके निचले प्रवाह क्षेत्र तक नहीं पहुँच पाती हैं। इसके अलावा पानी के टरबाइन से गुजरने के कारण उसके मौलिक गुण में भी परिवर्तन हो जाता है। यह पानी मछलियों और अन्य जलीय जीवों के आवास के लिये उतना उपयुक्त नहीं रह जाता है। यमुना के ऊपरी बहाव क्षेत्र में डैमों के निर्माण के कारण ही इस नदी में पाई जाने वाली महासीर मछलियों की संख्या में काफी कमी आ गई है। ये मछलियाँ लगभग विलुप्त प्राय हो चुकी हैं।

भूकम्प की दृष्टि से सक्रिय इलाका (Seismically Active Zone): खासकर उत्तराखण्ड स्थित हिमालय क्षेत्र भूगर्भिक दृष्टि से अन्य हिमालयीय क्षेत्रों की तुलना में कमजोर है। इसका महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि यह हिमालय के अन्य भागों की तुलना में काफी नया है। इसका निर्माण हिमालय में करोड़ों वर्ष पूर्व बहने वाली नदियों द्वारा अपनी तलहटी में जमा किये गए तलछट के विवर्तनिक क्रियाओं द्वारा मुड़ने के कारण हुआ है।

हिमालय का यह हिस्सा सबसे युवा है और निर्माण की अवस्था से गुजर रहा है। यही कारण है कि इस हिमालय क्षेत्र में कई विवर्तनिक फाल्ट जागृत अवस्था में हैं और बड़े भूकम्प का कारण बन सकते हैं। वडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (Wadia Institute of Himalayan Geology) द्वारा हाल में ही जारी किये गए अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखण्ड में कुल 137 फाल्ट सक्रिय हैं।

उत्तराखण्ड के विभिन्न इलाकों में पिछले तीन सालों में भूकम्प के 52 झटके महसूस किये जा चुके हैं जिनकी क्षमता रिक्टर स्केल पर 5 अथवा उससे कम थी। इसके अलावा तलछट यानि मिट्टी, पत्थर के टुकड़ों आदि से निर्मित यह पर्वतीय क्षेत्र कमजोर हैं। यही वजह है कि यहाँ भूस्खलन की घटनाएँ आम हैं। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि पहाड़ी क्षेत्रों में डैमों का निर्माण किसी बड़े खतरे को दावत देने से कम नहीं है।

कचरे का निस्तारण (Muck Disposal): पर्वतीय क्षेत्र में डैम अथवा अन्य निर्माण से पैदा होने वाले कचरे के निस्तारण की व्यवस्था न होना भी एक चिन्तनीय विषय है। यही कारण है कि कचरे को नदियों में फेंक दिया जाता है। इसके कारण नदियों की तलहटी में तलछट का जमाव बढ़ता है और वो उथली हो जाती हैं। इस कारण नदियों के पानी वहन करने की क्षमता में कमी आती है और बाढ़ के दौरान के कचरे भयानक क्षति पहुँचाते हैं।

2013 में उत्तराखण्ड में आई बाढ़ को और मारक बनाने में इनका बहुत बड़ा योगदान था। उल्लेखनीय है कि यमुना नदी की तलहटी में तलछट और गाद के जमाव की दर के बारे में अभी तक कोई अध्ययन नहीं कराया गया है। “ हिमालय में डैम, सड़कों आदि के निर्माण से पैदा हुआ कचरा नदियों में बहाया जाता है जो नदियों की पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।” रवि चोपड़ा

लखवाड़ डैम से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण आपत्तियाँ (Objections Regarding Lakhwar Dams)

1. इस योजना को 1986 में दिये गए एन्वायरनमेंट क्लीयरेंस (Environment Clearance) के आधार पर स्वीकृति दे दी गई है।

2. योजना सम्बन्धी पर्यावरणीय खतरों का भी अध्ययन नहीं कराया गया है। यानि एन्वायरनमेंटल इम्पैक्ट असेसमेंट (Environmental Impact Assessment) नहीं कराया गया है।

3. 2010 में एक्सपर्ट अप्रेजल कमिटी (Expert Appraisal Committee) ने कांटापत्थर बैराज के सम्बन्ध में कुछ आपत्तियाँ उठाई थी जिस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

4. डैम के निर्माण के लिये सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (Central Electricity Authority) से भी अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं लिया गया है।

5. सेन्ट्रल वाटर कमीशन (Central Water Commission) से भी अनापत्ति प्रमाणपत्र नहीं लिया गया है।

6. डैम के निर्माण से प्रभावित होने वाले गाँव के लोगों को अभी तक मुआवजे की रकम नहीं मिली है और न ही उनके पुनर्वास की व्यवस्था की गई है।

 

TAGS

lakhwar dam, vyasi dam, renukaji dam, kishau dam, yamuna river, tons river, giri river, kantapatthar barrage, dehradun,uttarakhand, nicolas hulot, South Asia Network on Dams, Rivers and People, himanshu thakkar, supreme court, expert panel, ravi chopra, People’s Science Institute planning commission of india, demolition of dams in america, demolition of dam in france and spain, demolition of dam in japan, uttarakhand seismically active zone, Wadia Institute of Himalayan Geology, glacier lake outburst flood, GOLF, dam and release of methane, carbon-dioxide, Environment Clearance, Environmental Impact Assessment, Expert Appraisal Committee, Central Electricity Authority, Central Water Commission, freshwater fish, mahaseer, idukki dam, mullaperiyar dam, present condition of yamuna river, essay on yamuna river, yamuna river pollution causes, what are the characteristics of river yamuna, yamuna river in agra, information on pollution of ganga and yamuna rivers, names of yamuna, yamuna river map in haryana, lakhwar dam tender, lakhwar dam in hindi, lakhwar dam on which river, lakhwar dam in news, lakhwar dam project, lakhwar dam is situated, lakhwar dam is situated in which state, vyasi dam, asan barrage distance from dehradun, asan barrage resort, asan barrage paonta sahib, asan barrage birds, asan barrage dam, assan barrage bird sanctuary, asan barrage images, asan barrage water sports resort, peoples science institute dehradun uttarakhand, psi dehradun internship, institute of people's science and technology, environmental ngos in dehradun, science dehradun, how many dams have been removed in the us, dam removal projects 2018, dam removal projects 2017, dam removal video, how to remove a dam, dam removal benefits, which dams are likely to be removed, dam removal consequences, hydroelectric dams greenhouse gas emissions, how do dams release methane, hydroelectric methane emissions, carbon footprint of hydroelectric power, hydropower carbon emissions, hydropower emissions, greenhouse gas emissions from reservoir water surfaces a new global synthesis, dams produce methane.

 

 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading