लूट पानी की

पानी जीवन, जीविका और प्रकृति चक्र का प्रमुख आधार है जो प्राकृतिक रूप से सर्वत्र उपलब्ध है और सजीव सृष्टि के लिए हवा और धूप की तरह ही प्रकृति ने उसे सबके लिए उपलब्ध कराया है, वह पानी, भारत में बाजार की वस्तु बन चुका है। अब यहां सतही जल और भूमि जल पर मालिकाना हक प्राप्त किया सकता है और उस हक को खरीदा-बेचा जा सकता है। अब की व्यापारी/कंपनी किसी नदी, जलाशय या भूमिजल का हक खरीद सकता है, उसका मालिक बन सकता है और उस हक को बेच सकता है। ग़ुलाम भारत की लूट की कहानी हम जानते ही हैं। अँग्रेज़ व्यापार करने के नाम से आये और भारत को ग़ुलाम बनाकर लूट करते रहे। आज़ादी की लड़ाई ने लोगों के मन में यह उम्मीद जगाई थी कि अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के बाद यह लूट समाप्त होगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। भारत आज़ाद हुआ, लेकिन लूट जारी है, उसमें दिन-प्रतिदिन बढ़ोत्तरी ही हो रही है। इस लूट के स्वरूप में कुछ बदलाव हुआ है। लूट के लिए नए-नए रास्ते खोजे जा रहे हैं। श्रम के शोषण, औद्योगिक उत्पादन और सेवा उद्योग के माध्यम से की जानी वाली लूट के साथ-साथ अब देश के नैसर्गिक संसाधनों की खुली लूट भी की जा रही है। कोयला, खनिज, पेट्रोलियम, गैस, पानी, ज़मीन, जैव विविधता, जंगल आदि जैसी प्रकृति की देने को ही अब लूटा जा रहा है। इनमें से कई ऐसे स्रोत हैं, जिसके दोहन से वह हमेशा के लिए समाप्त होंगे।

पानी जो जीवन, जीविका और प्रकृति चक्र का प्रमुख आधार है जो प्राकृतिक रूप से सर्वत्र उपलब्ध है और सजीव सृष्टि के लिए हवा और धूप की तरह ही प्रकृति ने उसे सबके लिए उपलब्ध कराया है, वह पानी, भारत में बाजार की वस्तु बन चुका है। अब यहां सतही जल और भूमि जल पर मालिकाना हक प्राप्त किया सकता है और उस हक को खरीदा-बेचा जा सकता है। अब की व्यापारी/कंपनी किसी नदी, जलाशय या भूमिजल का हक खरीद सकता है, उसका मालिक बन सकता है और उस हक को बेच सकता है। या फिर अपने मालिकाना हक प्राप्त पानी से सिंचाई पेय व घरेलू जल आपूर्ति, उद्योग, व्यवसाय, मछली उत्पादन, पन बिजली, मनोरंजन आदि सभी प्रकार के उपयोग के लिए पानी बेच सकता है। समुद्री मछली उत्पादन व नमक उत्पादन के लिए पानी के हक और पानी बेचा जा सकता है। अक्सर हम पानी बेचने का उल्लेख बोतलबंद पानी बेचने के संदर्भ में ही करते हैं। लेकिन अब उपरोक्त सभी कामों के लिए पानी बेचा जाएगा। देश में एक नया पानी उद्योग खड़ा हो रहा है। इस देश में ज़मीन तो पहले से ही बाजार की वस्तु बनी हुई है, ज़मीन पर मालिकाना हक ने जमींदारों को जन्म दिया और अब ज़मीन के कारपोरेटीकरण को आसान बनाया। इसी तरह पानी को भी बाजार की वस्तु बना दिया गया है। पानी पर मलिकाना हक से नई प्रकार की पानीदारी खड़ी होगी और पानी का कारपोरेटीकरण आसान होगा। पानी के कारपोरेटीकरण के लिए ऊपर से नीचे तक एक कानूनी व्यवस्था स्थापित की गई है, देश के अनेक राज्यों में जल नीति और कानून बनाए गए हैं और अन्य राज्यों में बनाए जा रहे हैं।

जलचक्र से बारिश होती है, जिससे हर साल एक निश्चित मात्रा में सतही जल और भूमिजल उपलब्ध होता है और इस प्रकार एक बड़ा विशाल जल भंडार हर साल उपलब्ध होता है। भारत वर्ष में प्रतिवर्ष औसतन लगभग 4000 बिलियन घनमीटर (BCM-बीसीएम) वर्षा होती है। इसमें से प्राकृतिक वाष्पीकरण-वाष्पोत्सर्जन के बाद नदियों एवं जलभृतों के माध्यम से औसतन वार्षिक प्राकृतिक प्रवाह 1869 बीसीएम है। इसमें से वर्तमान कार्यनीतियों से सतही जल 690 बीसीएम और भूमिगत 433 बीसीएम मिलाकर कुल केवल 1123 बीसीएम जल उपयोग योग्य है। इस प्रकार उपयोग योग्य जल की सीमित मात्रा है। भारत में इस समय कुल 6.2 करोड़ हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई हो रही है। इस सिंचाई के लिए 688 बीसीएम पानी, पेयजल के लिए 56 बीसीएम पानी, तथा उद्योग, ऊर्जा व अन्य क्षेत्र में 69 बीसीएम पानी, कुल मिलाकर 813 बीसीएम पानी का उपयोग किया जा रहा है। परन्तु जनसंख्या वृद्धि, तेजी से हो रहे शहरीकऱण, जीवनशैली में परिवर्तन, उद्योगिकरण और आर्थिक विकास के कारण जल की मांग में तेजी से वृद्धि हो रही है। भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार सिंचाई, पेयजल व घरेलू जल आपूर्ति, उद्योग, ऊर्जा व अन्य उपयोग के लिए जल की कुल मांग 2010 में 813 बीसीएम, 2025 में 1093 बीसीएम और 2050 में 1447 बीसीएम रहेगी और प्रतिव्यक्ति जल उपलब्धता 2001 में 1820 घनमीटर थी, अब 2010 में 1588 घनमीटर, 2025 में 1341 घनमीटर और 2050 में 1140 घनमीटर रहेगी। नदी बेसिन के हिसाब से प्रतिवर्ष जल उपलब्धता अलग-अलग बेसिनों में अलग-अलग 300 घनमीटर से 13,393 घनमीटर है।

तालिका-1


पानी की उपलब्धता
नदी घाटियों में उपयोग लायक पानी के स्रोत (अरब घन मीटर) (Billion Cuibic Meter)

क्र.सं.

नदी घाटी का नाम

जल ग्रहण क्षेत्र (वर्ग किमी.)

औसत जल स्रोत सम्भावित (बीसीएम)

उपयोग लायक सतह जल स्रोत (बीसीएम)

1.

सिंधु (सीमा तक)

321289

73.31

46.0

2.

(क) गंगा

861452

525.02

250.0

 

(ख) ब्रह्मपुत्र

194413

537.24

24.0

 

(ग) बरक और अन्य

41723

48.36

-

3.

गोदावरी

312812

110.54

76.3

4.

कृष्णा

258948

78.12

58.0

5.

कावेरी

81155

21.36

19.0

6.

स्वर्णरेखा

29196

12.37

6.8

7.

ब्राह्मणी और बैतरणी

51822

28.48

18.3

8.

महानदी

141589

66.88

50.0

9.

पेन्नार

55213

6.32

6.9

10.

माही

34842

11.02

3.1

11.

साबरमती

21674

3.81

1.9

12.

नर्मदा

98764

45.64

34.5

13.

तापी

65145

14.88

14.5

14.

पश्चिम की तरफ बहने वाली नदियां तापी से ताद्री तक

55940

87.41

11.9

15.

पश्चिम की तरफ बहने वाली नदियां ताद्री से कन्या कुमारी

56177

113.53

24.3

16.

पूर्व की ओर बहने वाली नदियां महानदी और पेन्नार के बीच

86643

22.52

13.1

17.

पूर्व की ओर बहने वाली नदियां पेन्नार और कन्या कुमारी के बीच

100139

16.46

16.5

18.

पश्चिम की ओर बहने वाली नदियां कच्छ और सौराष्ट्र

321851

15.10

15.0

19.

राजस्थान में अंतर्देशीय निकासी क्षेत्र

-

-

-

20.

लघु नदी घाटियां वर्मा और बांग्लादेश में निकलने वाली

36202

31.00

-

 

कुल

 

1869.35

690.1



भारत का विशाल जल भंडार, सीमित जल उपलब्धता और बढ़ती मांग इन सभी स्थिति का लाभ उठाकर कारपोरेट समूह, विश्व बैंक के माध्यम से पानी पर मालिकाना हक प्राप्त करके जल उपयोग के सभी क्षेत्रों में पानी का बड़ा व्यापार खड़ा करना चाहते हैं।

विश्व बैंक की जल संसाधन रणनीति रिपोर्ट में डाब्लिन प्रिंसिपल को आधार बनाकर दुनिया में पानी के निजीकऱण के संदर्भ मे अनेक मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की गई। जिसमें जल क्षेत्र में ढाँचागत सुधार, संस्थागत ढाँचा, पानी को आर्थिक वस्तु, मानकर व्यवहार करना, जल हक (Water right) निर्धारण, पानी की कीमत निर्धारण, सभी जल उपयोग के क्षेत्र के साथ-साथ सिंचाई के लिए भी घनमापन पद्धति का अवलंब, सतही जल और भूमिजल के संदर्भ में एकान्तिक दृष्टि अपनाना, कृषि क्षेत्र में पानी पर सब्सिडी समाप्त करना, सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP), निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना, जल साक्षरता और जल संबंधी आंकड़ों के लिए डाटा बैंक आदि महत्वपूर्ण मुद्दों के संदर्भ में चर्चा करके रणनीति रिपोर्ट में विश्व बैंक की भूमिका के लिए निर्देश दिए गए हैं।

भारत सरकार की जल नीति 2002 से यह स्पष्ट होता है कि भारत की जल-नीति पूर्णतया विश्वबैंक के निर्देशानुसार बनाई गई है। देश की नीतियों में विश्वबैंक के सीधे हस्तक्षेप का यह उत्तम उदाहरण है। विश्व बैंक की एक कोशिश यह भी रही है कि पानी को केंद्रीय सूची में समाविष्ट किया जाए ताकि पूरे देश में एक साथ जल नीति और तत्संबंधित कानून को लागू किया जा सके। लेकिन यह अभी तक संभव नहीं हुआ। चूंकि जल के संबंध में समुचित नीतियाँ, कानून और विनियमन बनाने का अधिकार राज्यों का है। इसलिए देश के 14-15 राज्यों में जलनीति 2002 के आधार पर राज्य जल नीति और उससे संबंधित कानून बनाए हैं। बाकी राज्यों में भी यह काम चल रहा है। इसके लिए विश्व बैंक राज्यों को ड्राफ्टिंग में मदद कर रहा है और कई राज्यों में कर्ज के बदले शर्तें रखकर इसे लागू करवाया गया है।

राज्य जन नीति को लागू करने के लिए तीन प्रमुख कानून बनाए गए हैं-
1. Water Resources Regulatory Authority Act.
जल संसाधन नियमन प्राधिकरण अधिनियम।

2. Management of irrigation system by farmers Act.
सिंचाई प्रबंधन में किसानों की भागीदारी अधिनियम

3. Ground Water Act.
भूमि जल अधिनियम।

जल संसाधन प्राधिकरण का काम पानी के हक बेचना और पानी की दरें निर्धारित करना है। तथा अन्य दोनों क़ानूनों के तहत जल उपयोगकर्ता संघ या जल समिति द्वारा जला-पूर्ति संसाधनों का रखरखाव, ग्राहकों को पानी उपलब्ध कराना और पानी की कीमत वसूलने का काम किया जाएगा।

भारत वर्ष में पानी को जीवन कहा जाता है। भारतीय जन-मानस में उसका महत्व पवित्रता और शुद्धता से जोड़ा गया है जो निसर्ग की देन है। सजीव सृष्टि के उपयोग के लिए वह सर्वत्र मुक्त-रूप से प्राप्त है। आज तक जिसके उपयोग के लिए आर्थिक पक्ष सेवा-शुल्क के रूप में ही प्राप्त किया जाता रहा है। उस पानी को बाजार की वस्तु बनाना, उस पर कानूनन मालकियत स्थापित करना और उसका व्यापार खड़ा करना अनांकलणीय और अकल्पित बात है। लेकिन कारपोरेट समूह और विश्व बैंक ने अपने चालबाज तरीकों से यह कर दिखाया है।

पानी के कारपोरेटीकरण के लिए ऊपर से नीचे तक एक कानूनी व्यवस्था स्थापित की गई है। जिसके कारण घरेलू या खेती या अन्य उपयोग के लिए नदी, तालाब, बांध या फिर अपने ही कुओं का पानी घनमापन पद्धति से जल कंपनी द्वारा बेचा जाएगा। उसके लिए प्रत्येक कार्य क्षेत्र में लोगों की सहभागिता का दिखावा करने के लिए जल उपयोगकर्ता संघ या जल समितियां बनाई जा रही हैं, लेकिन उनका काम जल-व्यवस्था का रखरखाव, व्यवस्थापन और लोगों से पानी की कीमत वसूलकर कंपनी को सौंपने का होगा। शुरू में सार्वजनिक-निजी भागीदारी के रूप में इसे आगे बढ़ाकर धीरे-धीरे निजी कंपनियों को सौंपा जाएगा।

और अब विश्व बैंक की नीतियों को और आगे बढ़ाने के लिए जल-नीति 2012 ड्राफ्ट हुई है। साथ ही भूमि जल के कारपोरेटीकरण की सुविधा के लिए भारतीय उपयोगधिकार अधिनियम 1882 (Indian Easement Act-1882) बदलने का प्रयत्न चल रहा है। पानी को राष्ट्रीय संपत्ति करके सरकार पानी के हक बेचने का कानूनी अधिकार प्राप्त करेगी।

भारत वर्ष में पानी को जीवन कहा जाता है। भारतीय जन-मानस में उसका महत्व पवित्रता और शुद्धता से जोड़ा गया है जो निसर्ग की देन है। सजीव सृष्टि के उपयोग के लिए वह सर्वत्र मुक्त-रूप से प्राप्त है। आज तक जिसके उपयोग के लिए आर्थिक पक्ष सेवा-शुल्क के रूप में ही प्राप्त किया जाता रहा है। उस पानी को बाजार की वस्तु बनाना, उस पर कानूनन मालकियत स्थापित करना और उसका व्यापार खड़ा करना अनांकलणीय और अकल्पित बात है। लेकिन कारपोरेट समूह और विश्व बैंक ने अपने चालबाज तरीकों से यह कर दिखाया है। विशेष यह कि भारत में इतने संवेदनशील मुद्दे पर जनता को यह पता तक नहीं चलने दिया गया। भ्रष्ट राजनेता, अधिकारी और कुछ एनजीओ के माध्यम से उन्होंने यह कर दिखाया है। दुनिया में निरंतर विकास और गरीबी दूर करने के लिए काम करना विश्व बैंक का घोषित उद्देश्य है। लेकिन इस घोषित उद्देश्य की आड़ में पूंजीवादी व्यवस्था को मजबूत बनाना और कारपोरेट समूहों का हितरक्षण करने का ही काम वह करती आयी है। विश्व बैंक के व्यक्ति को शीर्षस्थ स्थान पर बिठा-कर, अनैतिक, गैरकानून लूट को कानूनन बनाने के लिए राष्ट्रीय नीतियाँ बनाना और कानून में परिवर्तन करके देश की लूट के रास्ते बनाना यह विश्व बैंक का काम करने का तरीका है। भारत में भी हर क्षेत्र में सीधा हस्तक्षेप करके विश्वबैंक ने इसी पद्धति का इस्तेमाल किया है। पानी के संबंध में विश्व बैंक की रणनीति, उसके आधार पर भारत में नीति और कानून में हुए बदलाव को देखने से यह बात अधिक स्पष्ट होती है।

इस प्रकार भारत में एक प्राकृतिक संसाधन पानी पर से जनता के अधिकार को छीना गया है। इतना ही नहीं बल्कि अब उसी पानी को लूट का माध्यम बनाकर जनता की लूट करने की व्यवस्था की गई है। कल तक जिस पानी पर जनता का अधिकार था, कोई व्यक्ति या कंपनी उसका दुरुपयोग करती है तो जनता उस पर कार्रवाई कर सकती थी लेकिन आज जल-हक धारक कंपनी के क्षेत्र में की व्यक्ति, किसान कीमत चुकाए बिना अपनी आवश्यकताओं के लिए भी पानी का उपयोग करता है तो उसे चोरी ठहराकर दंडित करने का प्रावधान कानून में किया गया है। जल संबंधी कानूनों ने स्थिति को उलट दिया है।

विश्व बैंक, केंद्र सरकार और राज्य सरकारें यह जानती हैं कि पानी का निजीकरण एक संवेदनशील मुद्दा है, इसलिए इसे बड़ी चालाकी से लागू करने का प्रयास किया जा रहा है। देश में चुनिंदा महानगरों में घरेलू जल आपूर्ति व्यवस्था को निजी कंपनियों को सौंपा जा रहा है। कृषि सिंचाई के क्षेत्र में भी देश के कुछ राज्यों में विश्व बैंक के प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं। कारपोरेट उद्योगों को बांध, नदी का पानी और उसका हक बेचा जा रहा है। राजनेता और अधिकारियों को दुनियाभर में चल रहे पानी के निजीकरण के प्रयोग दिखाने के लिए विदेश दौरे कराए जा रहे हैं। नदी जोड़ योजना को गति देने का प्रयास चल रहा है। गंगा और अन्य नदियों के शुद्धिकरण के लिए चल रहे जनआंदोलनों का लाभ उठाकर नदियों के पानी पर हक प्राप्त करने की कोशिश जारी है। ताप बिजली, जल ऊर्जा परियोजना के लिए बांध व नदियों का पानी और उसका हक कंपनियों को बेचा जा रहा है। विदर्भ में प्रस्तावित 132 ताप बिजलीघरों में से 55 से अधिक को पानी का हक बेचा जा चुका है। पूरे देश में यही स्थिति है।

तालिका-2


राज्यवार भूमिगत जल और सतह जल की उपलब्धता अरब घन मीटर/प्रतिवर्ष (Billion cubic Meter बीसीएम/year)

क्र.सं.

राज्य

कुल वार्षिक पुनर्भरण योग्य भूमिगत जल स्रोत बीसीएम/वर्ष

उपयोग योग्य सतह जल स्रोत बीसीएम/वर्ष

1.

आंध्र प्रदेश

36.50

77.75

2.

अरुणाचल प्रदेश

2.56

-

3.

असम

27.23

-

4.

बिहार

29.19

-

5.

छत्तीसगढ़

14.93

41.72

6.

दिल्ली

0.30

-

7.

गुजरात

15.81

38.1

8.

गोवा

0.28

-

9.

हरियाणा

9.31

16.77

10.

हिमाचल प्रदेश

0.43

-

11.

जम्मू कश्मीर

2.70

-

12.

झारखंड

5.58

27.73

13.

कर्नाटक

15.93

33.95

14.

केरल

6.84

42.00

15.

मध्य प्रदेश

37.19

56.80

16.

महाराष्ट्र

32.96

125.94

17.

मणिपुर

0.38

-

18.

मेघालय

1.15

-

19.

मिजोरम

0.04

-

20.

नागालैंड

0.32

-

21

उड़ीसा

23.09

85.59

22.

पंजाब

23.78

17.93

23.

राजस्थान

11.56

16.50

24.

सिक्किम

0.08

-

25.

तमिलनाडु

23.07

36.00

26.

त्रिपुरा

2.19

-

27.

उत्तर प्रदेश

76.35

161.70

28.

उत्तराखंड

2.37

-

29.

पं. बंगाल

30.36

51.01

30.

अंडमान निकोबार

0.33

-

31.

चंडीगढ़

0.02

-

32.

दमन दीव

0.01

-

33.

दादर नगर हवेली

0.06

-

34.

लक्षदीप

0.01

-

35.

पुडुचेरी

0.16

-

 

कुल

432.94

690.00



(उपयोग योग्य सतही जल के सभी राज्यों के आंकड़े उपलब्ध नहीं है। जिन राज्यों के आंकड़े दिए गए हैं वे राज्यों के दस्तावेज़ से लिए गए हैं। इसके टोटल में अंतर है क्योंकि अंतर-राज्य समझौतों, जल संबंधी विवादों के चलते ये अंतिम आंकड़े नहीं है।)

बारिश का पानी जो ज़मीन, खेती, जंगल और छतों पर गिरा हो और बहते हुए किसी नदी तालाब तक पहुंचा या फिर जलभरण से भूमिजल बना हो। वही पानी जब आपको अपनी आवश्यकताओं के लिए उपयोग करना पड़े तो आपको उसके लिए मनाई की जाए और उसी पानी के लिए सुविधा शुल्क के अलावा पानी की कीमत देकर खरीदने के लिए बाध्य किया जाए और वह भी उस कंपनी से जिसे सरकार ने लोगों के अधिकारों को छीन-कर पानी का हक बेचा हो, जिसका पानी के निर्माण, बहाव या जलभरण में कोई योगदान नहीं है। पानी के व्यापार से देश की जनता की कितनी लूट होगी इसका निश्चित आकलन करना इस समय मुश्किल है। लेकिन कुछ अनुमान लगाया जा सकता है। आज घरेलू जल उपयोग या सिंचाई के लिए जो लोग जल स्रोतों से सीधे पानी लेते है उन्हें पानी की कीमत नहीं चुकानी पड़ती। जहां कहीं यह व्यवस्था सार्वजनिक है वहां सेवा शुल्क के रूप में शुल्क लिया जाता है, जो कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ही बना रहता है। अभी पीने के लिए सेवा शुल्क 1.5 (डेढ़) पैसा प्रति लीटर के आसपास पड़ता है। यह शुल्क कम से कम दो गुना भी बढ़ाया गया तो पीने के लिए जरूरी 56 बीसीएम पानी की कीमत 1 लाख 68 हजार करोड़ रुपए होगी। इसके अलावा बोतलबंद पानी के लिए 12 रु. लीटर, कैन का पानी 1.5 रुपए लीटर बेचा जा रहा है। इसके साथ पेयजल बेचने के कई नए तरीके अपनाए जा रहे हैं। इस तरह पेयजल के माध्यम से प्रतिवर्ष 2 लाख करोड़ रुपए जनता की जेब से कंपनियों के पास पहुँचेंगे। साथ ही उद्योग व अन्य उपयोग के लिए जरूरी 69 बीसीएम पानी की कीमत के रूप में लगभग दो लाख करोड़ कंपनियों के पास अलग से पहुँचेंगे।

सिंचाई के क्षेत्र में 6 करोड़ हेक्टेयर सिंचित खेती के लिए नई दरें लागू हुई तो फल खेती और खाद्यान्न खेती के लिए लगभग एक लाख करोड़ रुपए पड़ेंगे। इस तरह कुल मिलाकर पानी के व्यापार द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख करोड़ रुपए जनता की जेब से कंपनियों के पास पहुँचेंगे। यह कीमत और अधिक हो सकती है. कारपोरेट्स की रुचि निजी पानी के व्यापार से अधिकाधिक लाभ कमाने की होने से पानी के उपयोग का प्राथमिकता क्रम और मात्रा को भी बदला गया है। जहां अधिक लाभ होगा वहीं अधिक मात्रा में पानी बेचा जाएगा। सिंचाई के लिए आरक्षित पानी उद्योग और व्यवसाय के लिए डायवर्ट किया जा रहा है और इसके लिए किसानों को यह कहकर बदनाम करने का प्रयास हो रहा है कि किसान सिंचाई के लिए बड़ी मात्रा में पानी की बर्बादी करते हैं। दूसरी तरफ सिंचाई की आधुनिक पद्धति के लिए स्प्रिंकलर, ड्रिप सिंचाई आदि का बाजार खड़ा किया जा रहा है। इसी के साथ पानी निर्यात भी किया जाएगा। प्रदूषणकारी निर्यातोन्मुखी उद्योगों के लिए पानी के उपयोग द्वारा पानी निर्यात या पानी का सीधा निर्यात।

पानी के कारपोरेटीकरण से एक तरफ पानी पर से जनता का अधिकार छीना गया तो दूसरी तरफ उसी पानी को उन्हें ही बेचा जाएगा। जिनसे पानी का हक छीना गया है। पानी की दरें बढ़ने से देश की जनता जो कठिन परिश्रम करने पर ही दो वक्त की रोटी मुश्किल से प्राप्त कर सकती है उन्हें पानी के लिए भी तरसना पड़ेगा। उसी तरह जैसे आज अनाज के गोदाम भरे होने के बावजूद लोगों को भूखा सोना पड़ता है और अपने बच्चों को कुपोषित होकर मरते देखना पड़ता है।

लेकिन भारत के प्रधानमंत्री और विश्व बैंक के भूतपूर्व नौकर डॉ. मनमोहन सिंह विश्व बैंक की बात को दोहराते हुए यह कह रहे हैं कि पानी की बर्बादी और अकुशल प्रयोग से बचने या उसे नियंत्रित करने के लिए पानी की कीमत लगाना आवश्यक है। लेकिन क्या यह सच है कि देश की ¾ जनता जो अपनी आवश्यकता पूरी करने के लिए रात दिन मेहनत करती हैं वह पानी की बर्बादी करती है या फिर वे लोग जो आर्थिक दृष्टि से संपन्न है और अपने उच्च जीवन शैली को बनाने के लिए पानी की बर्बादी करते हैं? क्या ऐसा कहीं उदाहरण है कि खाद्यान्न हो या जीवन आवश्यक वस्तु या भौतिक सुविधा आदि की अधिक कीमत के कारण धनवान लोगों ने इन चीजों का संयमित इस्तेमाल किया हो? और बर्बादी नहीं की हो।

यहां सवाल यह है कि क्या इस देश को यह स्वीकार करना चाहिए कि बारिश का पानी जो ज़मीन, खेती, जंगल और छतों पर गिरा हो और बहते हुए किसी नदी तालाब तक पहुंचा या फिर जलभरण से भूमिजल बना हो। वही पानी जब आपको अपनी आवश्यकताओं के लिए उपयोग करना पड़े तो आपको उसके लिए मनाई की जाए और उसी पानी के लिए सुविधा शुल्क के अलावा पानी की कीमत देकर खरीदने के लिए बाध्य किया जाए और वह भी उस कंपनी से जिसे सरकार ने लोगों के अधिकारों को छीन-कर पानी का हक बेचा हो, जिसका पानी के निर्माण, बहाव या जलभरण में कोई योगदान नहीं है।

अब समय आ गया है कि देश की जनता नैसर्गिक संसाधनों पर जनता का सामुदायिक हक बनाए रखने के लिए सत्याग्रह करे।

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