मैली हो गई पतित पावनी सरयू नदी

सरयू नदी अब संकट में
सरयू नदी अब संकट में

अयोध्या-फैजाबाद शहरों को अपने आंचल में समेट, युगों-युगों से लोगों को पुण्य अर्जन कराती सरयू नदी की कोख भी अब मैली हो चली है। सरयू का पवित्र जल तो दूषित हुआ ही, भूजल में भी हानिकारक रसायनों की मात्रा बढ़ती जा रही है। दोनों शहरों के करीब दो दर्जन इंडिया मार्का हैंडपंपों में नाइट्रेट, आयरन आदि तत्वों की अधिकता पाई गई है। पानी में कठोरता और खारापन भी जरूरत से ज्यादा है। उत्तर प्रदेश जल निगम द्वारा पेयजल स्रोतों (इंडिया मार्का हैंडपंप) के पानी की जांच के बाद ये परिणाम सामने आए हैं। अयोध्या में निर्माणाधीन कांशीराम शहरी गरीब आवासीय योजना का इलाका भी जल प्रदूषण की चपेट में है। निगम के अधिशासी अभियंता राम नयन के मुताबिक, कई नलों की जल परीक्षण रिपोर्ट निगेटिव निकलने के बाद अब यहां अंडर ग्राउंड वाटर सप्लाई का काम चल रहा है। अभी भी हजारों लोग इंडिया मार्का हैंडपंपों का दूषित जल पीने के लिए मजबूर हैं, लेकिन अफसरों को कोई उपाय नहीं सूझ रहा है।

निगम की केमिस्ट बृजबाला के मुताबिक, वर्ष 2009-10 के दौरान कुल 2804 जल नमूनों का परीक्षण उनकी लैब में किया गया, जो इंडिया मार्का हैंडपंपों के थे। इनमें से 106 नमूनों में घातक रसायन पाए गए। इसी तरह वर्ष 2010-11 में करीब ढाई हजार परीक्षणों में तीन दर्जन से अधिक नमूने दोषयुक्त निकले। ऐसे नमूनों की संख्या शहरी क्षेत्रों में ज्यादा रही। मुकेरी टोला, कंधारी बाजार, हैदरगंज, कजियाना, कांशीराम आवासीय योजना, जैसिंहपुर मंदिर एवं पठान टोलिया जैसी बस्तियों के पेयजल में नाइट्रेट, आयरन, कठोरता और खारापन की शिकायत पाई गई। कंधारी बाजार और जैसिंहपुर के पानी के नमूनों में नाइट्रेट की मात्रा 70.8 प्रतिशत पाई गई। जबकि सामान्य स्थिति में यह मात्रा 45 प्रतिशत होती है। इसी तरह कजियाना के दो नमूनों में कठोरता सामान्य से अधिक मापी गई।

पानी में हानिकारक तत्वों की मौजूदगी लगातार बढ़ती जा रही है। शहर से सटे मसौधा ब्लॉक में भी पानी में नाइट्रेट की मात्रा काफी बढ़ गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि इंडिया मार्का हैंडपंपों की बोरिंग को और गहराई पर ले जाकर इन हानिकारक तत्वों से बचा जा सकता है, लेकिन यह ऐसा तरीका है, जिसका इस्तेमाल नीतिगत निर्णय के बाद हो सकता है। अमूमन इंडिया मार्का हैंडपंपों की बोरिंग एक निश्चित गहराई तक की जाती है। इसे और गहराई तक ले जाने का निर्णय शासन स्तर पर ही संभव है। विगत कई वर्षों से शहरों में बढ़ती आबादी के दबाव और सीवेज के उचित निस्तारण के अभाव के चलते भूजल दूषित हो रहा है। फैक्ट्रियों से निकाली गंदगी, मलमूत्र और गंदे नालों से रिस-रिसकर नीचे जाते पानी ने भूजल को विषैला बनाने का काम किया है। अनियमित शहरी विकास ने अब धरती की कोख में भी अपनी पैठ बना ली है। कभी अमृत समान और जीवन का पर्याय रहा जल अब खतरा बनता जा रहा है। खेती के लिए इस्तेमाल हो रहे घातक रसायन भी जल को दूषित करने के लिए जिम्मेदार हैं। गनीमत यह है कि अभी अयोध्या एवं फैजाबाद जिले के भूजल में फ्लोराइड और आर्सेनिक जैसे कहीं ज्यादा खतरनाक तत्वों की मौजूदगी नहीं पाई गई है।

 

 

पेयजल शुद्धिकरण अभियान फ्लॉप


जल प्रदूषण को लेकर चिंताएं चारों तरफ हैं, लेकिन ईमानदारी से इस ओर कोई पहल होती नहीं दिख रही। यूनीसेफ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था के सहयोग एवं सर्व शिक्षा अभियान के भारी-भरकम बजट के सहारे स्कूलों के पेयजल को साफ-सुथरा रखने की पहल हुई तो लेकिन सही ढंग से परवान नहीं चढ़ सकी। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) द्वारा इस काम के लिए जिले भर की न्याय पंचायतों के प्रभारियों को प्रशिक्षित करके फील्ड किट दी गई और सिखाया गया कि किस तरह उन्हें इन किटों के सहारे पानी में मौजूद क्लोराइड, कठोरता, टर्बिडिटी (गंदलापन), अम्लीयता, आयरन, नाइट्रेट, फ्लोराइड एवं शेष बची क्लोरीन का परीक्षण करना है। लेकिन ट्रेनिंग के बाद आगे का कार्यक्रम थम गया। सैकड़ों जल परीक्षण फील्ड किटें डायट में पड़ी धूल खा रही हैं और अभियान टांय-टांय फिस्स हो गया। जल शोधन का दूसरा किस्सा इससे भी ज्यादा निराशाजनक है। जल मणि योजना के तहत जिले के विभिन्न विद्यालयों में वाटर फ्यूरीफिकेशन सिस्टम लगना था। इसके लिए करीब सवा सौ किटें मंगवाई गईं। लगभग तीन दर्जन विद्यालयों में यह किट लगाई भी गई, लेकिन किट जहां-जहां लगी, वहां से कब उखड़ भी गई, यह न विद्यालयों को पता चला और न विभाग को। अब कागजी घोड़े दौड़ रहे हैं। रही परिणाम की बात, ऐसी हालत में उसे तो स़िफर ही होना था।

 

 

 

 

पेयजल स्रोतों में रासायनिक अशुद्धियां स्वीकार्य मात्रा और स्वास्थ्य पर प्रभाव

अशुद्धी का विवरण

अधिकतम स्वीकार्य सीमा

वैकल्पिक स्रोत के अभाव में अनुमन्य सीमा

प्रभाव

गंदलापन अर्थात पारदर्शिता की माप (एनटीयू पैमाने पर)

5

10

पानी का घरेलू एवं औद्योगिक प्रयोग के लिए अनुपयुक्त हो जाना

पीएच

6.5

8.5

इससे अधिक होने पर पानी पाचन तंत्र, श्लेश्मिक, झिल्ली और जलापूर्ति प्रणाली को प्रभावित करता है। पानी को कीटाणुरहित बनाने की क्लोरीन क्षमता भी कम हो जाती है।

जल की कुल कठोरता सीएसीओ-3 के रूप में (मिलीग्राम/ली.)

300

600

जलापूर्ति प्रणाली में पपड़ी जम जाती है और घरेलू प्रयोग, खाना पकाने एवं कपड़े धोने में प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। साबुन का प्रयोग करने पर झाग नहीं बनता और जल का बॉयलिंग पॉइंट बढ़ जाता है।

आयरन एफई के रूप में (मिलीग्राम/ली.

0.3

1.0

सीमा से अधिक होने पर रंग और स्वाद दोनों प्रभावित होते हैं। घरेलू प्रयोग (कपड़ों/ बर्तनों पर दाग लग जाते हैं) और जलापूर्ति प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

क्लोराइड सीएल के रूप में (मिलीग्राम/ली.)

250

1000

सीमा से अधिक होने पर पानी का रूप में स्वाद अच्छा नहीं रह जाता।

अवशिष्ट मुक्त क्लोरिन सीएल (मिलीग्राम/ली.)

0.2

..........

किटाणुओं को प्रभावी रूप से नष्ट सीएल करने के लिए क्लोरीन की समुचित मात्रा जरूरी।

नाइट्रेट एनओ-3 के रूप में सीएल (मिलीग्राम/ली.)

45

45

नाइट्रेट की अत्यधिक मात्रा सामान्य तौर पर प्रदूषण की सूचक है। नाइट्रेट का स्तर अधिक होने पर बच्चों में मैथामेग्लोबीनिया या ब्लू बेबी बीमारी हो जाती है।

फ्लोराइड एफ के रूप में (मिलीग्राम/ली.)

1.0

1.5

क्लोराइड की उच्च सघनता से दांतों एवं हड्डियों को फ्लोरोसिस हो जाती है। 0.6 मिलीग्राम/लीटर से कम हो जाती है।

 

 

 

 

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