मौसम अप्राकृतिक होने की पाँच वजहें

ग्लोबल वार्मिंग
ग्लोबल वार्मिंग

भीषण तमतमाती गर्मी, पारा 40-42 डिग्री के आस-पास, झुलसते पेड़-पौधे कि अचानक एक दिन तेज आँधी-तूफान, ओले और भारी बारिश की झड़ी फिर बाढ़ की नौबत आ जाये। पारा एकदम से नीचे गिर जाये। आजकल कुछ इस तरह का मौसम का हाल हो चुका है। मौसम विज्ञानियों के अनुसार मौसम में आ रहे ये तेज गति के बदलाव गम्भीर चेतावनी के सूचक हैं। ऐसा सिर्फ हमारे देश में ही नहीं बल्कि समूची पृथ्वी पर हो रहा है उनके अनुसार 5 कारण इस तरह के बदलावों की वजहें हैं-

ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स सूची के अनुसार, भारत उन दस देशों में शामिल है, जो बदलते प्राकृतिक वातावरण से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। सिर्फ भारत नहीं पूरी दुनिया में मौसम को लेकर अस्थिरता और असमंजस का माहौल बना हुआ है। गर्मियों में तेज बारिश, बारिश में भी तेज उमस, कहीं सूखा, कहीं बाढ़, घटती सर्दियाँ, बढ़ता तापमान ये सब पूरे विश्व के लिये चिन्ता का विषय बने हुए हैं। इसे एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स कहा जाता है।

हवाओं के तापमान में वृद्धि


एयर टेम्परेचर में बढ़ोत्तरी हो रही है। इसी का नतीजा है कि सूखा, गर्म हवाएँ, फसलों की बर्बादी, जंगल में आगजनी की घटनाएँ हो रही हैं। इन हवाओं से अमेरिका के दक्षिणी भाग अधिक प्रभावित हैं। यही हाल समुद्री हवाओं के तापमान बढ़ने का है। गौरतलब है कि दुनिया के 70 फीसदी हिस्से पर समुद्र है। इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन को किस तरह प्रभावित करती है। ये हवाएँ बाढ़ और अनियमित बारिश जैसी घटनाओं का कारण बनती हैं।

आर्कटिक महासागर क्षेत्र का सिकुड़ना


सैटेलाइट इमेज से पता चलता है कि आर्कटिक महासागर में बर्फ से ढका क्षेत्र पिछले कुछ सालों से लगातार सिकुड़ रहा है। ऐसा पिछले 30 सालों से हो रहा है। सितम्बर माह में ये बर्फ अपने सबसे निचले स्तर पर होती है। विभिन्न रिसर्च में कहा गया है कि 2100 तक आते-आते आर्कटिक पूरी बर्फ खो देगा। जबकि कुछ रिसर्च यह कह रही हैं कि टेक्नोलॉजी का बेतहाशा रूप से बढ़ना सम्भवतः इस बर्फ को और पहले खत्म कर दे। इसी तरह ग्लेशियर्स भी लगातार पिघल रहे हैं। यही कारण है कि जलवायु में परिवर्तन पृथ्वी के हर हिस्से में दिखाई देने लगा है।

समुद्री जलस्तर का बढ़ना


ग्लेशियर्स पिघलने से हाल ही के सालों में समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ा है। इसके साथ पानी का तापमान भी बढ़ा है। इसका नतीजा तूफान, बाढ़, भारी बारिश के रूप में देखने को मिल रहा है। गौरतलब है कि दुनिया के 10 बड़े शहरों में आठ समुद्र के किनारे बसे हैं। ये आपदाएँ इन्हें लगातार प्रभावित कर रही हैं। इसी के साथ हवाओं में समुद्री जल के भाप बनकर मिलने से उमस भी बढ़ी है। गर्मियों का मौसम भले ही खत्म हो जाये लेकिन उमस बराबर बनी रहती है।

तापमान का बढ़ना


समुद्री सतह पर जल का तापमान भी अनियमित मौसम का एक बड़ा कारण है। सूर्य की तेज गर्मी से समुद्र के जल का तापमान इस हद तक बढ़ जाता है कि इस ऊष्मा को समुद्र हवाओं और बादलों के रूप में उत्सर्जित कर रहा है। यही वजह कि हवाओं का तापमान भी बढ़ रहा है। गर्म हवाएँ ज्यादा चलने लगी हैं। दरअसल समुद्र में ये ऊष्मा लम्बे समय तक संरक्षित रहती है ये प्रक्रिया जलवायु को स्थिर बनाती हैं। लेकिन बाहरी वातावरण सिस्टम को प्रभावित करता है।

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