मौसम से तालमेल में छुपा है बुन्देलखण्ड के संकट का समाधान


बरसात के मामले में बुन्देलखण्ड अंचल कतई गरीब नहीं है। बुन्देलखण्ड में लगभग 95 सेंटीमीटर बारिश होती है। यह मात्रा राजस्थान के मरुस्थली इलाकों, मराठवाड़ा या विदर्भ की तुलना में काफी अधिक है। यह अनन्तपुर या कालाहांडी इलाके में होने वाली बरसात से भी ज्यादा है। मौसम भी खेती के लिये कभी बुरा नहीं रहा इसलिये, जरूरी है कि उन कारणों की पड़ताल हो जो बुन्देलखण्ड की बदहाली के लिये जिम्मेदार हैं।

बुन्देलखण्ड में बार-बार पड़ने वाले सूखे पर काफी चिन्तन-मनन हुआ है। बहुत सारे सुझाव, योजनाएँ और पैकेज आये हैं पर बुन्देलखण्ड का सूखा, अंगद का पैर बना बैठा है। पिछली नाकामियों या अस्थायी सफलताओं के कारण, नदियों को जोड़ने की बात हो रही है लेकिन उस योजना के हानि-लाभ को लेकर देश का एक वर्ग आश्वस्त नहीं है। उसका सोचना है कि जल परम्पराओं से समृद्ध बुन्देलखण्ड में पानी पर काम करने वाला विभाग, सीमित समझ वाला विभाग, नहीं हो सकता।

उस वर्ग का यह भी मानना है कि बुन्देलखण्ड में पानी पर काम करने वाली ऐजेंसियों में बेहतर समझ और नवाचारी प्रयोगों को लेने का दमखम होना चाहिए। चन्देला और बुन्देलाकालीन संरचनाओं से जुड़ा अनुभव बताता है कि उनमें जल सहेजकर तथा उसका प्रबन्ध कर सूखे से निपटने की कालजयी समझ थी। इन उदाहरणों के बावजूद यदि बुन्देलखण्ड अंचल में सूखा है तो वह कहीं गलत विकल्पों के चयन का परिणाम तो नहीं है।

पिछले लगभग दो सौ सालों से भारत में मुख्यतः अंग्रेजों द्वारा अपनाए मौसम विज्ञान और जलविज्ञान के आधार पर काम हो रहा है इसलिये सबसे पहले चर्चा इंग्लैंड और बुन्देलखण्ड के मौसम की तुलना से। लन्दन में हर साल लगभग 60 सेंटीमीटर पानी बरसता है। बुन्देलखण्ड में यह मात्रा लगभग 95 सेंटीमीटर है। यह बारिश, लन्दन की बारिश से 160 प्रतिशत अधिक है। लन्दन में हर माह लगभग 8 से 11 दिन बारिश होती है अर्थात लगभग 107 दिन पानी बरसता है या बर्फ गिरती है।

बुन्देलखण्ड में बारिश के दिनों की कुल संख्या 40 है। इसमें 30 दिन जून से सितम्बर के बीच और बाकी 10 दिन आठ माहों में होती है। दूसरे शब्दों में, लन्दन की तुलना में बुन्देलखण्ड में बहुत कम दिन पानी बरसता है। बारिश की तीसरी विशेषता उसकी बूँदों की औसत साइज है। लन्दन की बूँदों की औसत साइज 0.6 मिलीमीटर होती है। बुन्देलखण्ड में बारिश की बूँदों की औसत साइज दो से तीन मिलीमीटर है जो लंदन की बूँदों की साइज की तुलना में लगभग तीन से पाँच गुना अधिक बड़ी हैं। इसके अलावा, बुन्देलखण्ड का तापमान, लन्दन की तुलना में बहुत अधिक है।

अधिक तापमान का मतलब खेत की मिट्टी की नमी और जलस्रोतों के पानी का तेजी से गायब होना। मौसम के अन्तर के कारण बुन्देलखण्ड की समस्याओं का हल विलायत या ठंडे मुल्कों के अनुभव के आधार पर लिखी किताबों या उस ज्ञान के आधार पर बनाए बाँधों या स्टापडैमों में नहीं मिल पाया। इसी कारण योजनाओं और पैकेजों से जल स्वावलम्बन नहीं आया। बुन्देलखण्ड में जल स्वावलम्बन हासिल करने के लिये परम्परागत ज्ञान को अपनाना होगा। बरसात के चरित्र, तापमान, भारतीय जल विज्ञान और खेती के अन्तरसम्बन्ध को समझना होगा।

बुन्देलखण्ड में जून से सितम्बर के बीच लगभग 85 सेंटीमीटर पानी बरसता है। यह बारिश 40 दिनों में होती है। उसका आधा हिस्सा, लगभग 20 घंटों में बरस जाता है। हर बार, उसकी अवधि लगभग 15 मिनट से 30 मिनट के बीच होती है। इस दौरान, वर्षा की गति लगभग 3 से 5 सेंटीमीटर प्रति घंटे और बूँदों की साइज दो से तीन मिलीमीटर होती है।

यह बारिश जून से सितम्बर के बीच अनिश्चित तिथियों को होती है। बाकी बचा 10 सेंटीमीटर पानी तो वह अक्टूबर से मई के बीच लगभग 6 दिनों में बरसता है। बुन्देलखण्ड में गर्मी का मौसम अपेक्षाकृत लम्बा है। कई बार, पारा 45 डिग्री सेंटीग्रेड को पार करता है। बांदा, हमीरपुर, महोबा, जालौन, झाँसी, ललितपुर, दतिया, नौगाँव, छतरपुर, खजुराहों में अधिकतम तापमान दर्ज किया जाता है। अंचल के अधिकांश भाग में अधिकतम और न्यूनतम औसत तापमान में बहुत अन्तर है। लू और पाला सामान्य हैं।

बुन्देलखण्ड की बारिश के चरित्र और उसके प्रभाव को ध्यान में रख प्रस्तावित गतिविधियों को निम्न तालिका में दर्शाया गया है-

 

घटक

प्रभाव

प्रस्तावित गतिविधि

कम वर्षा दिवस

बहुत कम मात्रा में भूजल का प्राकृतिक रीचार्ज

भूजल रीचार्ज के लिये अतिरिक्त प्रयास। बुन्देलखण्ड में एक्वीफर कम गहराई पर मिलते हैं। उनका आयतन भी कम है इसलिये कृत्रिम रीचार्ज के लिये अधिकतम प्रयास अनिवार्य।

 

सर्वोत्तम संरचना – छोटे तालाब।

 

गहराई -  वाष्पीकऱण की अधिकता के कारण न्यूनतम गहराई आठ मीटर।

 

संख्या – वाटरशेड की बाहरी सीमा से नाले की ओर समानुपातिक रीचार्ज हेतु अधिक-से-अधिक तालाब निर्माण। कंटूर ट्रेंच भी बनाई जाएँ।

तेज बारिश (बूँदों की औसत साइज दो से तीन मिलीमीटर)

कम अवधि की उग्र बाढ़।

बाढ़ के अधिकतम पानी को जमा करने के लिये तालाब निर्माण।

 

कंटूर ट्रेंचें भी बनाई जाएँ। तालाबों में गाद जमाव का निर्माण।

 

अदिकतम जल संग्रह के लिये तालाबों की शृंखला का निर्माण।

भारी भूमि कटाव।

भूमि कटाव कम करने वाली संरचनाओं का निर्माण।

गर्मी में अधिक तापमान

जलाशयों से साल भर में दो से तीन मीटर तक वाष्पीकरण।

गर्मी तक जल उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु तालाबों की गहराई आठ मीटर या उससे अधिक रखी जाये।

मिट्टी से बहुत अधिक मात्रा में वाष्पीकरण।

खेतों में नमी बढ़ाने वाले अधिकतम प्रयास।

चट्टानों का क्षरण। गाद निर्माण।

न्यूनतम गाद जमाव सुनिश्चित करने के लिये तालाबों में पानी की कम मात्रा का संचय।

 

गाद निकासी व्यवस्था अनिवार्य।

ठंड में न्यूनतम तापमान कम

रबी फसल को हानि।

सिंचाई व्यवस्था।

चट्टानों में टूट-फूट के कारण गाद निर्माण।

न्यूनतम गाद जमाव सुनिश्चित करने के लिये तालाबों में पानी की कम मात्रा का संचय। गाद निकासी के लिये स्पिलवे का प्रावधान।

 

बुन्देलखण्ड में जल संकट और सूखे से निजात पाने के लिये निम्न अतिरिक्त कदम भी अनिवार्य रूप से उठाया जाना चाहिए-

1. पक्के घरों, पार्कों, सार्वजनिक भवनों और खेल मैदानों में पक्के टाँकों में बारिश के पानी को जमा करना चाहिए। यह व्यवस्था जल बैंक की तर्ज पर हो। जल बैंक से जानवरों, अधोसंरचना निर्माण कार्यों, वृक्षों, बगीचों और पार्कों को पानी उपलब्ध कराया जाये।

2. पुराने समय में बुन्देलखण्ड के किसान निचले खेतों में लगभग 3 फुट ऊँची बन्धिया बनाकर धान की फसल लेते थे। इस परम्परा को बहाल करने से गाँव में जल उपलब्धता अवधि बढ़ेगी।

3. हर गाँव में कम-से-कम पाँच तालाब (सकल रकबा लगभग 15 हेक्टेयर, सम्भावित जल क्षमता 120 हेक्टेयर मीटर) बनाया जाना चाहिए। तालाबों को बारहमासी बनाने के लिये उनकी न्यूनतम गहराई आठ मीटर होना चाहिए।

4. तालाबों को एक्वीफर मिलने तक खोदा जाना चाहिए। भूजल रीचार्ज के लिये तालाब की तली का एक्वीफर से सीधा सम्पर्क आवश्यक है।

5. तालाबों की तली में गाद के जमा होने से कुछ सालों बाद भूजल रीचार्ज घट सकता है इसलिये तालाबों की तली में कुआँ खोदा जाना चाहिए। कुआ, रीचार्ज व्यवस्था को काफी समय तक प्रतिकूल प्रभाव से मुक्त रखेगा।

6. तालाब निर्माण में स्थानीय भूगोल और जलरोधक चट्टान की भूमिका का ध्यान रखा जाये।

7. नदियों के पानी की कुछ मात्रा को एक से दो किलोमीटर दूर स्थित कुओं में डाला जाना चाहिए। इससे पानी की उपलब्धता अवधि में बढ़ोत्तरी होगी।

8. बुन्देलखण्ड में दो-तीन मीटर वाष्पीकरण होता है इसलिये तालाबों, जलाशयों और स्टापडैमों में संचित पानी की अधिक-से-अधिक मात्रा को भूजल भण्डारों में जमा करने का प्रयास किया जाना चाहिए। यदि प्रयास बरसात बाद किये जाते हैं तो बेहतर परिणाम मिलेंगे।

9. अन्य उपाय जो स्थानीय परिस्थितियों में उपयुक्त प्रतीत हों।

बुन्देलखण्ड के संकट का मुख्य कारण मौसम है इसलिये मौसम के साथ तालमेल बैठाकर ही संकट का समाधान खोजा जा सकता है। यदि यह सम्भव हुआ तो वह जलवायु बदलाव के असर से निपटने तथा बरसात के पानी के कुशल प्रबन्ध की प्रयोगशाला सिद्ध होगा।
 

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