मदद की उम्मीद में बाढ़ प्रभावित

9 Dec 2014
0 mins read
पुंछ जिले में बाढ़ की वजह से 27 लोगों की जानें गईं थी तो वहीं राज्य में बाढ़ के प्रकोप ने न जाने कितने लोगों को हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया। बाढ़ के बाद जो जिन्दा बचे उनकी जिन्दगी नर्क से बदतर बनी हुई है। बर्फबारी शुरू हो गई है और अभी भी ऐसे लोगों की एक बड़ी तादाद है जिनके सर पर अभी भी छत का साया नहीं है। इसके अलावा खेती-बाड़ी के बर्बाद होने और माल-मवेशियों के मरने की वजह से लोगों के पास आजीविका का कोई साधन नहीं बचा है। बाढ़ प्रभावित जम्मू एवं कश्मीर में द्वितीय चरण के मतदान के तहत 18 विधानसभा सीटों के लिए 71 प्रतिशत वोट डाले गए। रियासी में 80 फीसद, उधमपुर में 76 फीसद और पुंछ में 75 प्रतिशत, कुपवाड़ा में 68 फीसद, कुलगाम में 60 फीसद वोट पड़े। सितम्बर माह में आई बाढ़ का कोई खास असर चुनाव मतदान प्रतिशत पर दिखाई नहीं दिया। वोट के लिए चन्द सप्ताह पहले आई बाढ़ त्रासदी को शायद लोग यह समझकर भूल गए कि आने वाली सरकार राज्य में बाढ़ प्रभावितों के पुनर्वास के लिए बेहतर ढंग से काम करेगी।

जम्मू एवं कश्मीर राज्य में आज भी ऐसे लोगों की एक बड़ी तादाद है जिनकी जिन्दगी बाढ़ के बाद अभी तक पटरी पर नहीं लौट सकी है। सितम्बर माह में आई बाढ़ ने धरती के स्वर्ग का नक्शा ही बदल कर रख दिया है। बाढ़ ने सीमावर्ती जिला पुंछ में भी भारी तबाही मचाई। कहीं ज़मीन खिसकने की वजह से तो कहीं नदी-नालों व तूफानी बारिश की वजह से लोगों ने अपने घर-बार और अपनों को खोया है।

जहाँ कल मकान हुआ करते थे वहाँ आज नदी-नाले बह रहे हैं या मिट्टी का ढेर पड़ा हुआ है। जहाँ कल तक पर्यटक सैर करने के लिए आते थे वहाँ से आज वहीं के शहरी भाग रहे हैं। कुल मिलाकर राज्य के लोग अपना घर-बार सब खोकर खानाबदोशों जैसी जिंदगी गुज़ारने को मजबूर हैं।

पुंछ जिले में बाढ़ की वजह से 27 लोगों की जानें गईं थी तो वहीं राज्य में बाढ़ के प्रकोप ने न जाने कितने लोगों को हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया। बाढ़ के बाद जो जिन्दा बचे उनकी जिन्दगी नर्क से बदतर बनी हुई है। बर्फबारी शुरू हो गई है और अभी भी ऐसे लोगों की एक बड़ी तादाद है जिनके सर पर अभी भी छत का साया नहीं है। इसके अलावा खेती-बाड़ी के बर्बाद होने और माल-मवेशियों के मरने की वजह से लोगों के पास आजीविका का कोई साधन नहीं बचा है।

यहाँ के लोगों की समझ में नहीं आ रहा है कि इन परिस्थितियों में वह करें तो क्या करें? बाढ़ के बाद हालत कुछ इस तरह के हो गए हैं कि लोगों के पास घर बनाने के लिए न पैसा है और न भूमि। पुंछ समेत पूरे राज्य में प्रकृति ने ज़बरदस्त कोहराम मचाया। बाढ़ ने पुंछ जिले की तहसील मेंढर के कालाबन में भी ज़बरदस्त तबाही मचाई। कालाबन के स्थानीय निवासी ज़ुल्फेकार अली से जब पूछा गया कि यह घर किसका है तो मायूसी के साथ उन्होंने जबाब देते हुए कहा कि यह घर तो मेरा ही है लेकिन अब मैं इसे अपना घर मानने से इंकार करता हूँ।

बाढ़ के बाद आधे टूटे और आधे खुले घर को मैं घर कहूँ या आधी खुली कब्र। घर तो वह होता जिसमें पूरे दिन काम करने के बाद रात को एक मज़दूर को आराम से नींद आती है। रहने का कोई ठिकाना न होने की वजह से यहाँ रहना बस हमारे लिए एक मजबूरी बन चुका है। यहाँ न तो दिन का सुकून है और न रात का चैन। वह आगे कहते हैं कि सरकारी और गैर सरकारी संगठनों से न जाने कितना पैसा आया, वह पैसा भी पता नहीं कहाँ गया? उन्होंने आगे बताया कि हमने मदद के लिए आवेदन तो दिया है। पटवारी भी मौके पर आया था। लेकिन जिस तरह बच्चे को लोरी सुनाकर बहला दिया जाता है उसी तरह वह भी हमें बहलाकर चला गया।

हमें अभी भी मदद की ज़रूरत है। हमारा हाल-चाल जानने और सुनने के लिए, अब कोई नहीं आ रहा है। वह आगे कहते हैं कि हम जैसे लोगों की एक बड़ी तादाद है जिनके पास खुले आसमान के नीचे रहने के लिए भी सुरक्षित जगह नहीं बची है। खेती-बाड़ी, फसलें, और बाग सब कुछ बर्बाद हो गए। इसलिए हमारे पास जीने के लिए आजीविका का कोई खास साधन नहीं बचा है। समझ में नहीं आ रहा है कि जिन्दगी आगे कैस कटेगी।

कालाबन में बाढ़ के प्रकोप का जायज़ा लेने के लिए जब करामत हुसैन, नज़ीर हुसैन, नसीब मोहम्मद, मोहम्मद असलम आदि से बातचीत की गई तो सभी ने मायूसी के साथ अपने दर्द की कहानी सुनाई। अपना दर्द बयान करते हुए करामत हुसैन ने बताया कि बाढ़ में मेरा घर बह गया और मैं अब इस काबिल नहीं हूँ कि सर छुपाने के लिए कोई झोपड़ीं बना सकूँ। पिछले दो महीनों से मैं किसी के घर में ठहरा हुआ हूँ। सरकार की ओर से अभी तक हमें किसी तरह की कोेई मदद नहीं मिली है।

मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं कहाँ जाऊँ क्योंकि किसी के घर में इतना लम्बा ठहरना ठीक नहीं है। देखने में तो हमारे मकान खड़े हुए हैं लेकिन यह आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हैं। हमारी जान उस दिन तो किसी तरह बच गई थी, लेकिन अब हम इन क्षतिग्रस्त मकानों में हम दोबारा नहीं जा सकते, क्योंकि यही अब हमारी मौत का कारण बन सकते हैं। हमारे घर अब भी ज़मीन खिसकने के खतरे से जूझ रहे हैं।

पुंछ समेत पूरे राज्य में बाढ़ प्रभावितों का हाल कुछ इसी तरह का है। इन लोगों को 23 दिसम्बर को काउंटिंग के बाद राज्य में बनने वाली नई सरकार से बड़ी उम्मीदें हैं। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि नई सरकार, नए साल में बाढ़ प्रभावित लोगों के पुनर्वास और उनकी जिन्दगी को पटरी पर लाने के लिए क्या कदम उठाती है?

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading