मेघ बीजन

मेघ बीजन का उपयोग केवल वर्षा कराने के लिए ही नहीं किया जाता है, बल्कि इसका प्रयोग ओलावृष्टि रोकने और धुंध हटाने में भी किया जाता है। आस्ट्रेलिया और पूर्वी यूरोप में ओलावृष्टि काफी अधिक मात्रा में होती है, इसीलिए वहां मेघ बीजन का उपयोग काफी बड़े पैमाने पर किया जाता है। मेघ बीजन की विधि विकसित होने से पूर्व आस्ट्रेलिया और पूर्वी यूरोप में ओलावृष्टि से भारी क्षति उठानी पड़ती थी। मेघ बीजन से इन क्षेत्रों में काफी राहत मिली है। मेघ बीजन एक ऐसी कृत्रिम विधि है जिसका प्रयोग इच्छानुसार वर्षा कराने के लिए किया जाता है। इस विधि का सर्वप्रथम प्रयोग संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1940 के दशक में कुछ विशेष क्षेत्रों में वर्षा कराने के लिए किया था। समुद्र आदि अतिविशाल जल स्रोतों से उठकर आकाश में पहुंची जल वाष्प संघनित होकर अति सूक्ष्म वाष्प कणों में बदलने लगती है। जल वाष्प का यही रूप बादल कहलाता है, जो हवा के साथ इधर से उधर बढ़ते उड़ते जाते हैं। सूर्य के प्रकाश की किरणों के अपवर्तन, परावर्तन के कारण यही बाद रंग-बिरंगे दीख पड़ते हैं। बादलों में स्थित वाष्पकरण घने होकर एक दूसरे से संयुक्त होकर नन्हीं-नन्हीं बूंदों को जन्म देते हैं। यही नन्हीं-नन्हीं बूंदें जब सघन होती जाती हैं तो बड़ी बूंदें बनने लगती हैं। ये बड़ी बूंदें वायुमंडल में विलंबित नहीं रह पातीं और अपने भार यानी गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव की वजह से नीचे गिरने लगती हैं। इसी को हम वर्षा कहते हैं।

आकाश में विलंबित वाष्पकरण प्राकृतिक रूप से बड़ी वर्षा की बूंदों में बदलने में कभी-कभी काफी समय ले जाते हैं जिससे वर्षा होने में देरी होती है। साथ ही जब तक बादलों में स्थिति वाष्पकरण वर्षा की बूंदों में बदलते हैं तब तक हवाओं के साथ-साथ वे आगे बढ़ते रहते हैं। यह प्रक्रिया जहां पूर्ण होती है, वहीं वर्षा हो जाती है।

प्राकृतिक रूप से होने वाली वर्षा कभी देर से और कभी अनावश्यक क्षेत्रों में जाकर होती है और जहां वर्षा की आवश्यकता होती है वहां सूखा रह जाता है। ऐसी स्थिति में जब यह देखते हैं कि हवाओं के साथ बादल बिना बरसे आगे बढ़ जाते हैं, तब उन क्षेत्रों में बारिश कराने के लिए मेघ बीजन का सहारा लिया जाता है। मेघ बीजन से वाष्पीकरण शीघ्रता से वर्षा की बड़ी-बड़ी बूंदों में परिवर्तित हो जाते हैं और बरस पड़ते हैं। इसके लिए बादलों में बीजकारक पदार्थों को बिखेरा और छिड़का जाता है। बीजकारक पदार्थ के रूप में प्रायः सूखी बर्फ (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड) सिल्वर अयोडाइड और अमोनियम नाइट्रेट और यूरिया से मुक्त द्रावक प्रयोग में लाए जाते हैं। मेघ बीजन की धरती की सतह से भी किया जा सकता है और आकाश में बादलों के बीच जाकर भी किया जा सकता है। ज़मीन पर से मेघ बीजन करने के लिए खुले में अंगारों के ऊपर सिल्वर आयोडाइड के स्फटिक (क्रिस्टल) रखकर गर्म किए जाते हैं। स्फटिक गर्म होकर वाष्परूप में ऊपर उठते हैं और हवा के साथ बादलों तक पहुंच जाते हैं। बीजकारक की वाष्प बादलों में पहुंचकर वर्षा की बूंदें बनने की प्रक्रिया को काफी शीघ्रता से संपन्न कराते हैं और जल्दी ही वर्षा होने लगती है।

अगर मेघ बीजन तुरंत कराना हो तो आकाश में पहुँचकर ही यह प्रक्रिया संपन्न कराई जाती है। इसके लिए बड़े-बड़े हवाई जहाज़ों की मदद ली जाती है। इन हवाई जहाज़ों में सूखी बर्फ (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड) अथवा सिल्वर आयोडाइड के स्फटिकों को बादलों में ले जाकर छिड़क दिया जाता है। इसके लिए हवाई जहाज़ों को बादलों से ऊपर पहुंचना होता है। अगर जहाज़ों को बादलों के ऊपर पहुंचाना संभव न हो तो बीजकारक पदार्थ अमोनियम नाइट्रेट और यूरिया की फुहार जहाज़ों में नीचे से ही बादलों पर छोड़ी जाती है। इससे बादलों के वाष्पकरण बूंदों में परिवर्तित होने आरंभ हो जाते हैं और वर्षा हो जाती है।

मेघ बीजन का उपयोग केवल वर्षा कराने के लिए ही नहीं किया जाता है, बल्कि इसका प्रयोग ओलावृष्टि रोकने और धुंध हटाने में भी किया जाता है। आस्ट्रेलिया और पूर्वी यूरोप में ओलावृष्टि काफी अधिक मात्रा में होती है, इसीलिए वहां मेघ बीजन का उपयोग काफी बड़े पैमाने पर किया जाता है। मेघ बीजन की विधि विकसित होने से पूर्व आस्ट्रेलिया और पूर्वी यूरोप में ओलावृष्टि से भारी क्षति उठानी पड़ती थी। मेघ बीजन से इन क्षेत्रों में काफी राहत मिली है। हवाई अड्डों पर छाई धुंध के कारण दुर्घटना होने की आशंका काफी बढ़ जाती है। इसलिए, मेघबीजन से हवाई अड्डों के आस-पास छाई धुंध को हटाया जा सकता है। इस प्रकार मेघ बीजन वर्तमान समय में विज्ञान का एक अच्छा वरदान है।

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