मेघ पाईन अभियान की कुछ झलकियां

बिहार के कोशी क्षेत्र के प्राय: हैण्डपम्पों के पानी में आयरन की अधिकता होती है। इससे लोगों को कई बीमारियाँ झेलनी पड़ती है। कभी परम्परागत ज्ञान के बदौलत कई ढंग से आयरन शुद्ध करने के प्रयास किये जाते थे।

मेघ पाईन अभियान ने जब बिहार के सुपौल जिला के सुपौल प्रखंड के 5 पंचायतों में जल मुद्दे पर कार्य आरंभ किया तब जल संबंधी एक बड़ी समस्या आयरनयुक्त पानी ही था। 2005 से अभियान ने यहाँ पर स्थानीय संगठन ग्राम्यशील की अगुवाई में इस दिशा में समस्या के निदान हेतु सोचना आरंभ किया। और परिणामस्वरूप स्थानीय संसाधन, हुनर आधारित मटका फिल्टर नामक आयरन शुद्धिकरण उपकरण विकसित किया गया। लेकिन जमीनी स्तर पर प्रचार व व्यवहार आसान नहीं है।

मेघ पाईन अभियान के दूसरे चरण जो 2007 से आरम्भ हुआ पंचायत के सभी टोले में गतिविधियां हुईं। लेकिन पंचायत के एक टोला नरहा टोला के लोग अभियान की बात सुनने तक को तैयार नहीं थे। इसका मुख्य कारण अभियान के प्रति अरुचि, लोगों का आपसी विवाद व झगड़ा था। टोला के बगल में एक नवसृजित विद्यालय है जहां ग्राम्यशील कार्यकर्ताओं द्वारा मटका फिल्टर 2008 में लगाया गया। अभियान द्वारा कुआं के महत्व पर जागरूकता लाने के उपरान्त नरहा के रामकिसुन साह के आग्रह पर फरवरी 09 में कुआं की उड़ाही हुई। संयोग वश उसी टोला के 35 वर्षीय सीता देवी पति सत्यनारायण साह ने ग्राम्यशील कार्यकर्ता के समझाने पर स्वंय के साधन से मटका फिल्टर लगाया। सीता देवी अपने मिलनसार व मृदुल व्यवहार से ग्राम्यशील कार्यकर्ताओं को लेकर अपने गांव गई। जिस गांव में समझाने पर भी कोई भी बात सुनने को तैयार नहीं था। उस गांव में 50 से 60 लोगों को इकट्ठे देखकर ग्राम्यशील कार्यकर्ता चकित थे। सीता देवी ने उसी नरहा वासियों को मटका फिल्टर के बारे में लोगों को समझाया। जल विकास समिति गठित की गई। सीता देवी समिति की अध्यक्षा हैं। आज सीता देवी की अगुवाई में नरहा के प्राय: घरों में मटका फिल्टर का व्यवहार हो रहा है। लोग आयरन मुक्त पानी पीकर इससें होने वाले लाभों का गुणगान करते हुए नहीं थकते।
 

वर्षा जल प्रचारक

बिहार के सुपौल के सुपौल प्रंखड के 26 पंचायत में से 7 पंचायत कोशी तटबंध के बीच आते हैं। बलवा नामक पंचायत भी कोशी तटबंध के मध्य हैं। पिपराहरी बांध उत्तर टोला में रामनाथ यादव नामक व्यक्ति ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं। वे बर्षों से गैस्टीक बीमारी से परेशान थे। मेघ पाईन अभियान द्वारा वर्षाजल के उपयोग की ओर उनका ध्यान गया और उन्होंने 2009 की बरसात में एक निजी वर्षाजल संग्रहण शेड लगाकर उसका संग्रहण कर उपयोग किया। थोड़े ही दिन में उनकी गैस्टिक बीमारी उनसे दूर होती चली गई।

ग्राम्यशील से जुड़े एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता का अपना एक क्लीनिक ऐतिहासिक जगह बैरिया मंच पर है। जहां वे प्राय: रोगी को रोग भगाने का एक उपाय वर्षाजल का उपयोग बताते हैं।
 

बिना खाये मत जाना

अर्ध्यम, बंगलुरू के सहयोग से मेघ पाईन अभियान द्वारा फरवरी 2009 में रामदत्तापट्टी पंचायत के रामपुर नौबाद टोले में सुखदेव साह के कुओं की ग्रामीण सहयोग से उड़ाही हो रही थी। तीन चार लोग लगातार गंदा पानी कचरा निकाल कर थक चुके थे। थककर उन्होंने उड़ाही कार्य बीच में ही छोड़ दिया। अभियान कार्यकर्ता के आग्रह पर उन्होंने पुन उड़ाही कार्य किया और कुऐं की उड़ाही पूरी हुई। उड़ाही कार्य में 65 वर्षीय रामवती देवी का 30 वर्षीय बेटा रामचन्द्र साह भी योगदान कर रहा था। उड़ाही उपरान्त अभियान कार्यकर्ताओं द्वारा खाना हेतु जो पैसे दिये गये उस पर रामवती देवी ने शोर मचाया। उन्होंने ग्रामीणों को इकट्ठा कर यह कहना आरम्भ किया कि ये सरकार के पैसे को बचाकर फोकट में अपना कार्य करवाना चाहते हैं। अभियान के कार्यकर्ताओं ने रामवती देवी की अगुवाई में ग्रामीणों के भीड़ को गंभीरतापूर्वक समझाया। कुआं उड़ाही के महत्व व श्रमदान को समझाया। उसी वक्त भीड़ से रामावती देवी ने खाना का पैसा वापस करते हुए बोलीं कि यह तो धर्म का कार्य है। आज तक वे अभियान को सरकार का कार्य समझती थीं लेकिन ये लोग तो समाज का उपकार करते हैं। उनसे न समझने का भूल हुई। अब वे अभियान के कार्यकर्ताओं को सदैव अपने घर में ही खाना खिलायेंगी। अब जब अभियान के कार्यकर्ता रामवती देवी के आंखो के सामने नजर आते हैं तो वह कहती हैं “बाबू बिना खैने नहि जाइह” ( बिना खाए मत जाना ) ।
 

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