मेरे आवेदन पर फैसला कैसे किया जाएगा (How will My Application be Judged)


आपके आवेदन पर कार्रवाई करते हुए लोक सूचना अधिकारी को फौरन यह तय करने की जरूरत होगी कि क्या आपके द्वारा निवेदित सूचनाः

(क) कार्यालय में उपलब्ध है, और अगर नहीं, तो उसे आपका आवेदन सम्बन्धित लोक प्राधिकरण को हस्तांतरित करना होगा और आपको लिखित में इसकी सूचना देनी होगी;

(ख) तीसरे पक्ष की गोपनीय सूचना की श्रेणी में आती है और कोई फैसला करने से पहले तीसरे पक्ष से विचार-विमर्श करने की जरूरत है; और

(ग) छूट प्राप्त सूचनाओं की श्रेणी में आती है और क्या उस सूचना को सार्वजनिक करने में कोई जन हित है।

 

अगर सूचना किसी “तीसरे पक्ष” से सम्बन्धित है, तो?

 

आम तौर पर लोग ऐसी सूचनाओं के लिये आवेदन करते हैं जो आवेदन प्राप्त करने वाले लोक प्राधिकरण से सम्बन्धित सरकार द्वारा निर्मित की गई सूचना होती है। ऐसे मामलों में निवेदन प्रक्रिया में केवल दो पक्ष शामिल होते हैं- आवेदक और लोक प्राधिकरण। लेकिन, कभी-कभी आवेदक कोई ऐसी सूचना भी मांगेंगे जो किसी तीसरे पक्ष को भी प्रभावति करती होगी। उदाहरण के लिये, अगर आप किसी प्रतिद्वंदी कम्पनी द्वारा जमा कराये गये टेंडर या अपने सहकर्मी द्वारा आपके सांसद को लिखे गए पत्र को देखना चाहते हैं, तो कम्पनी और आपका सहकर्मी “तीसरा पक्ष” हैं।

 

कभी-कभी, लेकिन हमेशा नहीं, सूचना का अधिकार अधिनियम मांग करता है कि आवेदनों के बारे में तीसरे पक्ष से विचार-विमर्श किया जाये। तीसरे पक्ष से विचार-विमर्श करने की आवश्यकता केवल तब है, जबः

 

- लोक सूचना अधिकारी आवेदक को सूचना उपलब्ध कराने के पक्ष में हो; और

 

- सूचना तीसरे पक्ष से सम्बन्धित हो या तीसरे पक्ष द्वारा “विश्वास” में सार्वजनिक प्राधिकरण को दी गई हो; और

 

- तीसरे पक्ष ने उस सूचना को गोपनीय माना हो।

 

तीसरे पक्ष से विचार-विमर्श करने की जरूरत को तय करने में अंतिम बिन्दु महत्त्वपूर्ण है। बहुत सारी सूचनाएँ तीसरे पक्षों से सम्बन्धित हो सकती हैं, लेकिन ऐसी सूचनाएँ बहुत ही कम होंगी जिन्हें तीसरे पक्ष ने गोपनीय माना हो। अनुदानों या परमिटों के प्राप्तिकर्ताओं की सूची, समितियों को सौंपे गए ज्ञापन या सरकारी अनुबंध जैसी सूचनाओं में हालाँकि तीसरे पक्ष शामिल होते हैं, लेकिन इसमें सूचना तीसरे पक्ष द्वारा गोपनीय की श्रेणी में नहीं मानी जाती और इसलिये तीसरे पक्ष से विचार-विमर्श करने की जरूरत नहीं होती।

 

जहाँ उपरोक्ता तीन शर्तें पूरी होती हों, वहाँ तीसरे पक्ष को अधिकार है कि सूचना को जारी करने का फैसला लेने में उससे विचार-विमर्श किया जाए। लोक सूचना अधिकारी को तीसरे पक्ष  को पाँच दिनों के भीतर नोटिस भेजना होगा कि तीसरा पक्ष सूचना के खुलासे के बारे में अपना पक्ष प्रस्तुत करे।40

 

तीसरे पक्ष के पास अपनी राय प्रस्तुत करने के लिये नोटिस प्राप्त होने की तिथि से दस दिनों का समय होता है।41 भले ही तीसरे पक्ष का जवाब मिले या न मिले, लोक सूचना अधिकारी को आवेदन की प्राप्ति की तिथि के 40 दिनों के भीतर फैसला लेना होता है कि सूचना को दे दिया जाये या नहीं। फैसला लेने से पहले लोक सूचना अधिकारी तीसरे पक्ष के निवेदन पर भी विचार करेगा। लेकिन भले ही तीसरा पक्ष आपत्ति करे, अगर सूचना छूट की श्रेणी में नहीं आती तो लोक सूचना अधिकारी को खुलासे का आदेश देना होगा। ऐसे मामले में, तीसरा पक्ष विभाग के अपील प्राधिकारी और/या सूचना आयोग में अपील कर सकता है (अधिक विवरणों के लिये देखें भाग 8)।

 

अगर लोक सूचना अधिकारी मेरे आवेदन को मंजूर करे तो?


अगर लोक सूचना अधिकारी आपको सूचना देने का फैसला कर लेता है, तो वह आपको तीस दिनों के भीतर अपने निर्णय का नोटिस भेजेगा। नोटिस में कई बातें शामिल होंगी जैसेः आपने जिस सूचना के लिये निवेदन किया है, उसे उपलब्ध करने के लिये, कितना अतिरिक्त शुल्क आपको देना आवश्यक है, और उस निर्णय के विरुद्ध आप कहाँ और कितने दिनों में अपील कर सकते हैं या फिर जिस रूप में सूचना देने के लिये लोक सूचना अधिकारी ने निर्णय लिया है उस निर्णय के विरूद्ध आप कहाँ अपील कर सकते हैं; साथ ही अपीलीय प्राधिकरण के विवरण व पता और अपील के लिये शुल्क की मात्रा (अगर अपील के नियमों में उल्लेखित है43) ध्यान रखें कि अगर लोक सूचना अधिकारी अधिनियम द्वारा निर्धारित समयावधि के भीतर जवाब नहीं दे पाता, तो आपको सूचना निःशुल्क मिलना चाहिए।44

सूचना उपलब्ध कराने के लिये केन्द्र व सभी राज्य सरकारों ने अलग-अलग शुल्क निर्धारित किये हैं (विवरणों के लिये देखें परिशिष्ट 2)। लोक सूचना अधिकारी द्वारा भेजे गये नोटिस में इस बात को भी बताया जाना चाहिए कि शुल्क की गणना किस प्रकार की गई है।45 उदाहरण के लिये, अगर आपने कोई ऐसी सूचना मांगी है जो ए4 आकार के 1,000 पृष्ठों में है और सम्बन्धित सरकार के शुल्क के नियमों में ए4 आकार का एक पृष्ठ उपलब्ध कराने की लागत 2 रू. प्रति पृष्ठ तय की गई है, तो लोक सूचना अधिकारी को दर्शाना होगा कि कुल लागतः 1,000 X 2 = 2,000 रु.। अगर सम्बन्धित सरकार के शुल्क के नियमों में पहले से उल्लेखित नहीं है तो लोक सूचना अधिकारी के पास सूचना को खोजने, एकत्रित करने या प्रोसेस करने के लिये आपसे अतिरिक्त शुल्क लेने की शक्ति नहीं होगी।

आपको भेजे गये निर्णय के नोटिस में लोक सूचना अधिकारी आपसे निर्धारित शुल्क अदा करने के लिये कहेगा ताकि सूचना आपको भेजी जा सके। महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में डाक द्वारा सूचना भेजे जाने की लागत को हिसाब लगा कर शुल्क में ही शामिल कर लिया जाता है। लेकिन, अगर आपके लिये स्वयं जा कर सूचना लेना संभव है, तो ऐसा करने के कोई भी कानूनी बाधा नहीं है। याद रखें की किसी दस्तावेज की प्रतियाँ हासिल करने से पहले, आपको शुल्क देकर (केन्द्र सरकार के शुल्क नियमों47 के अनुसार 5 रू. प्रति घंटा) सूचना का निरीक्षण करने का भी अधिकार है। दस्तावेजों का निरीक्षण कर आप सूचना पाने की लागत घटा सकते हैं क्योंकि निरीक्षण के दौरान आप तय कर सकते हैं कि आपको वास्तव में कौन से दस्तावेज की जरूरत है। नोटिस भेजे जाने और अतिरिक्त शुल्क के भुगतान के बीच के समय को सूचना प्रदान करने के लिये तय 30 दिनों की अवधि से निकाल दिया जाता है।

दुर्भाग्यवश, कुछ राज्य सरकारों ने भारी-भरकम अतिरिक्त शुल्क लगा दिये हैं। अगर आपको लगता है कि सूचना के लिये मांगा जा रहा अतिरिक्त शुल्क बहुत ज्यादा है, तो आप विभाग के अपील प्राधिकरण या सम्बन्धित सूचना आयोग से शिकायत कर सकते हैं (विस्तृत विवरणों के लिये देखें भाग 8)। अगर आपके द्वारा अपने गरीबी रेखा से नीचे होने का प्रमाण देने के बावजूद लोक सूचना अधिकारी आपसे सूचना प्रदान करने के लिये पैसा लेता है, तो आपको सम्बन्धित सूचना आयोग के पास शिकायत भेजने का अधिकार है।

 

वांछित रूप में सूचना पाने का अधिकार49

 

सूचना अधिकार अधिनियम में विशिष्ट रूप से कहा गया है कि आपको सूचना उसी रूप में प्रदान की जाएगी जिस रूप में आपने उसे पाने का निवेदन किया है, बशर्ते उससे लोक प्राधिकरण के संसाधनों का बहुत ज्यादा मात्रा में व्यय न होता हो या उससे अभिलेख के नष्ट होने की आशंका न हो।50 दुर्भाग्यवश, कुछ विभाग इस प्रावधान का इस्तेमाल नागरिकों को सूचनाएँ प्रदान करने से इंकार करने के लिये कर रहे हैं। इस बारे में केन्द्रीय सूचना आयोग में एक शिकायत की गई थी। श्री सरबजीत रॉय ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) से दिल्ली के मास्टर प्लान में संशोधन से सम्बन्धित सूचना पाने के लिये आवेदन किया था। उन्होंने विशेषकर निगम द्वारा मास्टर प्लान पर प्राप्त की गई जन प्रतिक्रियाओं के दस्तावेजों की प्रतियाँ माँगी थी। डीडीए ने कई आधारों पर सूचना देने से इंकार कर दिया। इसमें यह कारण भी शामिल था कि सूचना देने में डीडीए के संसाधनों का बड़ी मात्रा में व्यय होगा। श्री रॉय और डीडीए के पक्ष को सुनने के बाद केन्द्रीय सूचना आयोग ने कहा कि अधिनियम किसी लोक प्राधिकरण को यह अधिकार नहीं देता कि वह सूचना के भारी-भरकम होने के कारण देने से इंकार कर दे। अधिनियम प्राधिकरण को मात्र इस बात की इजाजत देता है कि वह सूचना को किसी अन्य आसान और कम खर्चीले रूप में उपलब्ध कराए। केन्द्रीय सूचना आयोग ने डीडीए को निर्देश दिया है कि वह श्री रॉय को जन प्रतिक्रियाओं के दस्तावेजों का निरीक्षण करने का अवसर दे तथा उनके द्वारा पहचानी गई प्रतिक्रियाओं की प्रतियाँ उन्हें उपलब्ध कराए।

 

छूट प्राप्त सूचनाओं पर ‘जन हित की सर्वोच्चता’ का सिद्धान्त लागू करना

 

अधिनियम की धारा 8(2) प्रावधान कहती है कि भले ही मांगी गयी सूचना छूटों के दायरे में आती हो तब भी कोई लोक प्राधिकरण सूचना का खुलासा कर सकता है अगर उसे गोपनीय रखने के मुकाबले उसे प्रकट करना ज्यादा जनहित में हो। अधिनियम में ‘जनहित’ को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है और यह सही भी है क्योंकि जनहित की परिभाषा समय के साथ बदलने वाली है और साथ ही यह अलग-अलग मामलों के विशिष्ट हालात/संदर्भ पर निर्भर करेगी। इस कारण लोक प्राधिकरणों – विशेषकर लोक सूचना अधिकारियों व विभाग के अपील प्राधिकरण – और साथ ही सूचना आयोगों को भी हर मामले के गुण-दोष के आधार पर तय करने की जरूरत होगी। उन्हें तय करना होगा कि क्या छूट लागू होती है और अगर हाँ, तो क्या उस मामले में जन हित अधिक महत्त्वपूर्ण है, जैसे सार्वजनिक जवाबदेही को बढ़ावा देने की जरूरत, मानवाधिकारों की रक्षा करने की अनिवार्यता, या यह तथ्य कि सूचना के खुलासे से कोई पर्यावरणीय या स्वास्थ्य और सुरक्षा जोखिम सामने आएगा।

 

अगर लोक सूचना अधिकारी मेरे आवेदन को रद्द कर दे, तो क्या करना होगा?


लोक सूचना अधिकारी केवल तब आपके आवेदन को रद्द कर सकता है जब आपके द्वारा निवेदित सूचना अधिनियम के द्वारा छूट प्राप्त श्रेणी के तहत आती हो (विवरणों के लिये देखें भाग 4) और साथ ही लोक सूचना अधिकारी यह फैसला करे कि उस सूचना को जारी करने में जनहित की सर्वोच्चता का प्रश्न प्रासंगिक नहीं है। इसके अलावा अधिनियम में किसी सूचना को देने से इंकार करने का कोई अन्य औचित्य नहीं है। उदाहरण के लिये, यह कहना भर काफी नहीं है कि सूचना से सरकार या किसी अधिकारी को परेशानी होगी या आपने सूचना चाहने के लिये कोई पर्याप्त सही कारण नहीं बताया है। अब आपके पास सूचना पाने का कानूनी अधिकार है और वस्तुतः गोपनीयता का औचित्य साबित करना उस लोक प्राधिकरण की जिम्मेदारी है।

लोक सूचना अधिकारी को 30 दिन की समयावधि के भीतर आपके आवेदन को रद्द करने के फैसले का लिखित नोटिस आपको देना होगा।51 फैसले के नोटिस में निम्न बातें बताना जरूरी हैः

(क) आवेदन को रद्द किये जाने के कारण, जिनमें छूट की जिस श्रेणी को आधार बनाया जा रहा है, उसके बारे में सूचना तथा लोक सूचना अधिकारी ने फैसला करते वक्त जिन तथ्यों को प्रासंगिक माना, उनके बारे में जानकारी शामिल हैं;

(ख) वह समयावधि जिसके भीतर आप अपील कर सकते हैं; और

(ग) उस अपील प्राधिकरण का नाम/पता और अन्य सम्पर्क विवरण जिसके यहाँ आप अपील कर सकते हैं।

अगर लोक सूचना अधिकारी आपको निर्णय का नोटिस नहीं देता, तो उसे आपके आवेदन को रद्द मानना यानी “डीम्ड रेफ्यूजल” कहा जायेगा। तब आप विभाग के अपील प्राधिकरण में अपील कर सकते हैं या सम्बन्धित सूचना आयोग को शिकायत भेज सकते हैं (विवरणों के लिये देखें भाग 8)।

 

आपको “आंशिक” सूचना भी मिल सकती है53

 

कभी-कभी किसी दस्तावेज में दोनों तरह की सूचनाएँ हो सकती हैं- वे संवेदनशील सूचनाएँ भी जो छूट की श्रेणी में आती हों और वे भी जिन्हें किसी को नुकसान पहुँचाए बिना ही सार्वजनिक किया जा सकता है। ऐसे मामलों में आपको उन सूचनाओं तक पहुँच प्रदान की जा सकती है जो संवेदनशील नहीं है। इसे ‘आंशिक खुलासा’ कहते हैं। व्यवहार में, इसका अर्थ है कि लोक सूचना अधिकारी किसी दस्तावेज के कुछ हिस्सों - कुछ पंक्तियों या पैराओं – को काला कर देगा या निवेदित दस्तावेजों में से कुछ पन्ने को उपलब्ध कराएगा और बाकी हिस्सों को गोपनीय रखेगा। अगर कोई लोक सूचना अधिकारी सूचनाओं का आंशिक खुलासा करने का फैसला लेता है, तो वह आपको अधिसूचित करेगा कि आप द्वारा मांगी गई सूचना का केवल आंशिक खुलासा ही किया जा सकता है, निर्णय के कारण बताएगा, जिस अधिकारी ने निर्णय लिया उसका विवरण देगा, आपके द्वारा अदा किये जाने वाले शुल्क तथा फैसले की समीक्षा कराने के आपके अधिकार की सूचना देगा। साथ ही अपीलीय प्राधिकरण के विवरण व पता भी सूचित करेगा।

 

Flow chart40धारा 11(1)
41धारा 11(2)
42धारा 11(3)
43धारा 7(3)
44धारा 7(6)
45धारा 7(3)(ए)
46धारा 4, महाराष्ट्र के सूचना अधिकार नियम 2005
47धारा 2, केन्द्रीय सूचना अधिकार (शुल्क व लागत नियमन) (संशोधन) नियम 2005
48धारा 7(3)(ए)
49केन्द्रीय सूचना आयोग (2006) अपील नं. 10/1/2005 सीआईसी, 25 फरवरी www.cic.gov.in मार्च 20, 2006
50धारा 7(9)
51धारा 7(8)
52धारा 7(2)
53धारा 10

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