महानदी के जल-बँटवारे पर विवाद

19 Sep 2016
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अभी कावेरी नदी का जल-विवाद थमने भी नहीं पाया है कि महानदी के जल-बँटवारे पर विवाद खड़ा हो गया। छत्तीसगढ़ और ओड़िशा राज्यों के बीच चल रहा यह विवाद भी 33 साल पुराना है। महानदी के जल-बँटवारे को लेकर पहला समझौता अविभाजित मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और ओड़िशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री जेबी पटनायक के बीच 28 अप्रैल 1983 को हुआ था।

इसमें तय किया गया था कि नदी पर बाँध निर्माण सम्बन्धी कोई विवाद सामने आता है तो उसका निराकरण अन्तरराज्यीय परिषद करेगी। फिलहाल जल-संसाधन मंत्री उमा भारती के साथ ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के साथ बैठक हो चुकी है, लेकिन परिणाम शून्य रहा है।

दरअसल सामने आये जल-बँटवारे के विवाद को सुलझाने से पहले नवीन पटनायक चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ क्षेत्र में महानदी पर जो भी निर्माणाधीन बाँध परियोजनाएँ हैं, उन पर पहले काम बन्द किया जाये, फिर समझौते की बातचीत को आगे बढ़ाया जाये। जबकि रमन सिंह लगभग पूरे हो चुके कामों को रोकने के लिये तैयार नहीं हैं। इस कारण यह विवाद दो राज्यों का विवाद न रहकर अब बीजू जनता दल और भारतीय जनता पार्टी, मसलन दो दलों के बीच गहराते विवाद का रूप लेने लगा है।

हालांकि छत्तीसगढ़ और ओड़िशा के बीच चल रहे विवाद के लिये संयुक्त नियंत्रण बोर्ड गठित होगा। इस पर छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव विवेक ढांड ने तत्काल सहमति भी जता दी, लेकिन ओड़िशा के मुख्य सचिव एपी पाढ़ी ने राज्य सरकार से चर्चा के बाद राय देने की बात कही है। इस बातचीत में केन्द्रीय जल-संसाधन मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डॉ अमरजीत सिंह भी शामिल थे। बोर्ड को अब दोनों राज्य अपने अधिकार क्षेत्र में महानदी पर जो भी निर्माणाधीन परियोजनाएँ हैं, उनकी जानकारियाँ परस्पर साझा करेंगे।

छत्तीसगढ़ और ओड़िशा भू-क्षेत्र की महानदी सबसे बड़ी नदी है। रामायण और महाभारत काल में भी इस नदी का अस्तित्व मौजूद था। तब इसे चित्रोत्पला, महानंदा और नीलोत्पला नामों से जाना जाता था। इसका उद्गम स्थल छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत शृंखलाएँ हैं।

महानदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की और सिहावा से निकलकर राजिम में पहुँचता है, तब इसमें पैरी और सोंदुर नदियाँ भी मिल जाती हैं। इन नदियों का जल विलय होने के साथ ही यह नदी विशाल रूप धारण कर लेती है। इसके बाद ऐतिहासिक नगर आरंग और सिरपुर से बहती हुई जब शिवरी नारायण में पहुँचती है तो अपने नाम के अनुरूप महानदी का स्वरूप ग्रहण कर लेती है।

महानदी के तट पर ही धमतरी, कांकेर, चारामा, राजिम और चम्पारण बसे हैं। शिवरी नारायण एक धार्मिक नगरी है। यहीं से यह नदी दक्षिण से उत्तर की ओर न बहकर पूर्व दिशा में बहने लग जाती है। सम्भलपुर में प्रवेश करने के साथ ओड़िशा में बहने लगती है। इसके प्रवाह का आधे से अधिक भाग छत्तीसगढ़ में है। सम्भलपुर के आगे बलांगीर और कटक से निकलकर महानदी 811 किमी की लम्बी यात्रा कर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इस बीच इसमें पैरी और सोंदुर के अलावा शिवना, हंसदेव, अरपा, जोंक और तेल नदियाँ भी मिलती हैं।

कटक से लगभग 12 किमी पहले महानदी कई धाराओं में बँटकर बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती हैं। इस पर हीराकुण्ड, रुद्री और गंगरेल जैसे प्रमुख बाँध बंधे हैं। महानदी ही पूर्वी मध्य प्रदेश और ओड़िशा की सीमाओं को निर्धारित करती है। गिब्सन नामक अंग्रेज ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि सम्भलपुर के निकट हीराकुण्ड का जो द्वीप क्षेत्र है, यहाँ एक समय हीरा मिला करते थे।

जिनकी खपत रोम में होती थी। महानदी में हीराकुण्ड बाँध बनने से पहले तक रोम के सिक्के मिल जाया करते थे, इसी तथ्य को गिब्सन ने इस क्षेत्र में हीरे की खदानें होने से जोड़ा है। चीनी यात्री व्हेनसांग ने अपनी यात्रा कथा में लिखा है कि मध्य प्रदेश से हीरों का व्यापार ओड़िशा के कलिंग में होता था। इन विवरणों से पता चलता है कि महानदी और हीराकुण्ड क्षेत्र में कभी हीरे की खदानें रही हैं।


छत्तीसगढ़ क्षेत्र में महानदी पर 9 छोटे-बड़े बाँध निर्माणाधीन हैं। इन पर पिछले 10 साल से काम चल रहा है और लगभग 95 प्रतिशत काम पूरे भी हो चुके हैं। इनमें से एक अद्भूत और विशिष्ट वास्तुशिल्प से सात मंजिला बाँध का निर्माण किया जा रहा है। इस बाँध को लेकर ही ताजा विवाद गहराया है, क्योंकि इस बाँध की जल ग्रहण क्षमता अत्यधिक तो है ही, इससे जल निकासी के उपाय भी विलक्षण हैं। यह बाँध ऐसे अनूठे शिल्प के आधार पर बनाया जा रहा है कि इसके अधिकतम पानी का उपयोग सिंचाई और पेयजल के लिये होगा ही, छत्तीसगढ़ के बड़े भू-भाग में कुएँ और नलकूपों का जलस्तर भी यह बाँध बनाए रखेगा। छत्तीसगढ़ के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 55 प्रतिशत हिस्से का पानी महानदी में जमा होता है। यह नदी और इसकी सहायक नदियों के ड्रेनेज एरिया का 53.90 फीसदी हिस्सा छत्तीसगढ़ में हैं। इसका 45.73 प्रतिशत ड्रेनेज एरिया ओड़िशा और 0.35 प्रतिशत अन्य राज्यों में हैं। हीराकुण्ड बाँध तक महानदी का जल ग्रहण क्षेत्र 82,432 वर्ग किमी हैं, जिसमें से 71,424 वर्ग किमी क्षेत्र छत्तीसगढ़ में हैं, जो कि इसके सम्पूर्ण जल ग्रहण क्षेत्र का 86 प्रतिशत हैं।

हीराकुण्ड बाँध में महानदी का बहाव 40,773 एमसीएम है, इसमें से 35,308 एमसीएम का योगदान छत्तीसगढ़ देता है। जबकि इस समय छत्तीसगढ़ केवल 9000 एमसीएम पानी का उपयोग कर रहा है, जो कि महानदी के हीराकुण्ड में उपलब्ध पानी का महज 25 प्रतिशत है। हालांकि रमन सिंह का तो यह दावा है कि छत्तीसगढ़ केवल 15 प्रतिशत पानी का उपयोग करता है।

छत्तीसगढ़ क्षेत्र में महानदी पर 9 छोटे-बड़े बाँध निर्माणाधीन हैं। इन पर पिछले 10 साल से काम चल रहा है और लगभग 95 प्रतिशत काम पूरे भी हो चुके हैं। इनमें से एक अद्भूत और विशिष्ट वास्तुशिल्प से सात मंजिला बाँध का निर्माण किया जा रहा है। इस बाँध को लेकर ही ताजा विवाद गहराया है, क्योंकि इस बाँध की जल ग्रहण क्षमता अत्यधिक तो है ही, इससे जल निकासी के उपाय भी विलक्षण हैं।

यह बाँध ऐसे अनूठे शिल्प के आधार पर बनाया जा रहा है कि इसके अधिकतम पानी का उपयोग सिंचाई और पेयजल के लिये होगा ही, छत्तीसगढ़ के बड़े भू-भाग में कुएँ और नलकूपों का जलस्तर भी यह बाँध बनाए रखेगा।

इस तकनीक के कारण ही यह कहा जा रहा है कि इस बाँध में भरे पानी की एक-एक बूँद का सार्थक उपयोग होगा। इसी को लेकर ओड़िशा को चिन्ता है कि इस बाँध के पूरा हो जाने पर हीराकुण्ड को कम पानी मिलेगा। नवीन पटनायक की यह आशंका कितनी सच साबित होती है, इसका पता तो बाँध का निर्माण पूरा होने और उसके भरने के बाद ही पता चलेगा।

दरअसल छत्तीसगढ़, ओड़िशा में जितनी भी परियोजनाएँ लम्बित हैं, उनमें से ज्यादातर का तकनीकी परीक्षण नहीं कराया गया है। जबकि तकनीकी परामर्श जरूरी है। इसीलिये अब समिति इन परियोजनाओं की परख करेगी। इसीलिये पटनायक चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार जब तक तकनीकी अध्ययन की रिपोर्ट न आ जाये तब तक सात मंजिला बाँध का निर्माण रोक दें। हालांकि जलवायु परिवर्तन के चलते पूरे देश में बारिश की जिस तरह से कमी आई है और वर्षाचक्र जिस तरह से बिगड़ा है, उस परिप्रेक्ष्य में यह जरूरी नहीं कि यह सात मंजिला बाँध हमेशा ही भरा रहे?

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