महानदी के पानी में फैला राजनीति का रोग

19 Sep 2016
0 mins read

महानदी के पानी को राजनीति का रोग लग गया है। कावेरी के जल को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु का विवाद अभी शान्त नहीं हुआ था कि महानदी के पानी को लेकर छत्तीसगढ़ और ओड़िशा आमने-सामने आ गए। इस तरह देश में जल विवाद का मुद्दा गरमा गया। कावेरी की तरह ही महानदी जल विवाद भी अचानक सामने नहीं आया है। बल्कि यह विवाद भी काफी पुराना और अविभाजित मध्य प्रदेश के जमाने से ही है।

ताजा विवाद छत्तीसगढ़ में बन रहे 13 बाँध हैं। जो लघु सिंचाई और उद्योगों को पानी आपूर्ति के लिये है। ओड़िशा सरकार को 13 बाँधों में से 6 पर आपत्ति है। ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की आशंका है कि छत्तीसगढ़ में उन बाँधों के बन जाने के बाद ओड़िशा की तरफ आने वाले पानी को रोक लिया जाएगा। जिसको लेकर पटनायक ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर छत्तीसगढ़ में बन रहे बाँधों को तत्काल रोकने और अपने साथ न्याय करने की गुहार लगाई। इसके बाद से दोनों राज्यों में विवाद बढ़ गया।

महानदी के जल बँटवारे का विवाद आज के तैंतीस साल पहले भी एक बार प्रमुखता से उठा था। तब मध्य प्रदेश राज्य का बँटवारा नहीं हुआ था। इसलिये तब यह विवाद ओड़िशा और मध्य प्रदेश के बीच था। अब ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के बीच है। उस समय समस्या के समाधान के लिये एक बैठक हुई। जिसमें अविभाजित मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह व ओड़िशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री जेबी पटनायक के बीच 28 अप्रैल 1983 को एक समझौता हुआ।

समझौते के अनुसार दोनों राज्यों से जुड़े ऐसे मुद्दों के समाधान के लिये सर्वे, अनुसन्धान और क्रियान्वयन के उद्देश्य से एक संयुक्त नियंत्रण मण्डल के गठन का प्रस्ताव था, लेकिन अभी तक इस बोर्ड का गठन नहीं हो सका था या जरूरी नहीं समझा गया था।

तैंतीस साल बाद महानदी के जल को लेकर उठे विवाद को लेकर जब एक बार फिर केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती के साथ दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों और आला अधिकारियों के बीच बैठक हुई तो कोई सार्थक समाधान नहीं निकल सका। ले देकर विवाद को सुलझाने के लिये एक कमेटी बनाने का फैसला लिया गया है। ऐसी कमेटी बनाने के लिये दोनों राज्य तीन दशक पहले ही अपनी सहमति दे चुके हैं।

यदि पहले कमेटी बनी होती तो आज यह समस्या सुलझ गई होती। फिलहाल, केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती का कहना है कि दोनों राज्यों के बीच अच्छी बातचीत हुई है। उनके मंत्रालय ने दोनों राज्यों के बीच विवाद को सुलझाने के लिये एक कमेटी बनाने का फैसला लिया है। जो मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव अमरजीत सिंह की अध्यक्षता में गठित होगी। इस कमेटी में पर्यावरणविद भी शामिल रहेंगे।

ताजा विवाद का कारण कुछ परियोजनाएँ हैं। छत्तीसगढ़ में लघु सिंचाई परियोजना के राज्य में लगभग दस बाँध बनाए जा रहे हैं। जिसमें से अधिकांश परियोजनाएँ पूरी होने के कगार पर हैं।

ओड़िशा की मुख्य आपत्ति छत्तीसगढ़ के उन 6 बैराज को लेकर है। जो सिंचाई के लिये नहीं बल्कि उद्योगों को पानी देने के लिये बनाए गए हैं।

ओड़िशा सरकार का कहना है कि इससे नदी का बहाव रुक रहा है। इसकी अनुमति भी नहीं ली गई है। इसका परीक्षण कराया जाना चाहिए और राष्ट्रीय स्तर की एक समिति बनाई जाये। कमेटी से इसकी जब तक जाँच हो, तब तक काम बन्द रहे। ओड़िशा के आपत्तियों को खारिज करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार का कहना है कि इन 6 बैराजों की क्षमता 2 हजार हेक्टेयर से कम है। इसके लिये न तो केन्द्र और न ही ओड़िशा सरकार को जानकारी देने की जरूरत है।

बैराज लगभग 99 फीसदी बन चुके हैं। इससे आने वाले समय में 10 हजार मेगावाट बिजली पैदा होगी। इसे बन्द करने से बिजली की समस्या पैदा होगी। छत्तीसगढ़ के ज्यादातर प्रोजेक्ट 10 साल पुराने हैं। ऐसे में इन प्रोजेक्टों को रोकना उचित नहीं है।

छत्तीसगढ़ का दावा है कि वह नदी के मात्र पच्चीस फीसदी जल का ही उपयोग करता है। जबकि नदी का बहाव क्षेत्र राज्य में सबसे अधिक है। राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 55 प्रतिशत हिस्से का पानी महानदी में जाता है। यह नदी और इसकी सहायक नदियों के कुल ड्रेनेज एरिया का 53.90 प्रतिशत छत्तीसगढ़ में, 45.73 प्रतिशत ओडिशा में और 0.35 प्रतिशत अन्य राज्यों में है। हीराकुण्ड बाँध तक महानदी का जलग्रहण क्षेत्र 82 हजार 432 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से 71 हजार 424 वर्ग किलोमीटर छत्तीसगढ़ में है, जो कि इसके सम्पूर्ण जल ग्रहण क्षेत्र का 86 प्रतिशत है। छत्तीसगढ़ के प्रस्ताव का जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने भी समर्थन किया। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के प्रोजेक्ट को रोकने से ओड़िशा को भी नुकसान होगा। उमा ने साफ किया कि छत्तीसगढ़ ने महानदी के पानी का ज्यादा-से-ज्यादा इस्तेमाल को लेकर केन्द्रीय जल आयोग को कोई मास्टर प्लान नहीं दिया है। इसको लेकर भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है।

छत्तीसगढ़ का दावा है कि वह नदी के मात्र पच्चीस फीसदी जल का ही उपयोग करता है। जबकि नदी का बहाव क्षेत्र राज्य में सबसे अधिक है। राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 55 प्रतिशत हिस्से का पानी महानदी में जाता है। यह नदी और इसकी सहायक नदियों के कुल ड्रेनेज एरिया का 53.90 प्रतिशत छत्तीसगढ़ में, 45.73 प्रतिशत ओडिशा में और 0.35 प्रतिशत अन्य राज्यों में है।

हीराकुण्ड बाँध तक महानदी का जलग्रहण क्षेत्र 82 हजार 432 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से 71 हजार 424 वर्ग किलोमीटर छत्तीसगढ़ में है, जो कि इसके सम्पूर्ण जल ग्रहण क्षेत्र का 86 प्रतिशत है। हीराकुण्ड बाँध में महानदी का औसत बहाव 40 हजार 773 एमसीएम है। इसमें से 35 हजार 308 एमसीएम का योगदान छत्तीसगढ़ देता है, जबकि छत्तीसगढ़ द्वारा वर्तमान में मात्र लगभग 9000 एमसीएम पानी का उपयोग किया जा रहा है। जो कि महानदी के हीराकुण्ड तक उपलब्ध पानी का सिर्फ 25 प्रतिशत है।

छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव विवेक ढांड का कहना है कि ओड़िशा को कम जानकारी के कारण भ्रम है। जबकि सच्चाई यह है कि जिस बैराज अरपा-भैंसाझार को लेकर विरोध है उसमें जो पानी आने वाला है, वह हीराकुण्ड बाँध के स्टोरेज में गैर मानसून के पानी से मात्र 1.9 प्रतिशत अधिक है। जबकि मानसून में उससे भी कम 1.5 प्रतिशत का ही है। अरपा-भैंसाझार में डैम का 1.9 प्रतिशत ही पानी आता है। वहीं हीराकुण्ड डैम को बारिश के दिनों में 3 बार भरकर खाली किया जा सकता है। इसलिये चिन्ता का कोई कारण नहीं है।

केन्द्रीय जल संसधान मंत्रालय की कमेटी सात दिन में काम शुरू कर देगी। दोनों राज्यों की एक-एक कमेटी महानदी पर बन रहे प्रोजेक्टों को देखेगी और जानकारी जुटाएँगी। दोनों राज्यों में महानदी पर ऐसे कितने प्रोजेक्ट चल रहे हैं, जिसमें टेक्निकल एडवाइजरी कमेटी से कितने मामलों में स्वीकृति ली गई है। महानदी पर ओड़िशा की सीमा में प्रवेश करते ही सीडब्लूसी एक स्टेशन लगाएगा। जाँचा जाएगा कि छत्तीसगढ़ से कितना पानी ओड़िशा जाता है।

सप्ताह के भीतर दोनों राज्यों से आँकड़े जुटाकर देखेंगे कि बाँध निर्माण के समय नियमों का उल्लंघन हुआ या नहीं। ओड़िशा सरकार के प्रस्ताव के मुताबिक एक और समिति बनेगी। यह मानसून और गैर-मानसून अवधि के दौरान महानदी घाटी, कैचमेंट एरिया में हालात का अध्ययन करेगी। समिति कहेगी तो विवाद सुलझाने के लिये बोर्ड का गठन किया जाएगा।

छत्तीसगढ़ और ओड़िशा के बीच महानदी का जल साझा करने के विवाद ने अब धीरे-धीरे राजनीतिक रंग लेना शुरू कर दिया है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इस बात पर नाराजगी जताई कि ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने उनसे बात करने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा। रमन सिंह कहते हैं कि अच्छा होता अगर पटनायक ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखने से पहले मुझसे बात की होती। छत्तीसगढ़ के जल संसाधन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के अनुसार, बाढ़ का पानी रोकने के लिये बाँध बनाने का प्रस्ताव दिया गया है। बाढ़ का पानी बिना किसी इस्तेमाल के समुद्र में बह जाता है।’ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते हैं कि महानदी में जितना पानी उपलब्ध है, राज्य उसका 25 प्रतिशत ही इस्तेमाल करता है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading