महाराष्ट्र सरकार का कारनामाः अब प्यासे मरेंगे अमरावती के किसान

9 May 2011
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बिजली बनानी हो तो किसानों-आदिवासियों की कुर्बानी ली जाती है। सड़क बनानी हो तो किसानों की जमीन छीन लो, एसईजेड बनाना हो तो किसानों की जमीन हड़प लो, शहरीकरण करना हो, मॉल्स बनाने हों या फिर आवासीय कालोनी बनानी हो तो किसानों की जमीन का अधिग्रहण कर लो। फिर होता यह है कि हर परियोजना भ्रष्टाचार के घेरे में आ जाती है। जिन उद्देश्यों को लेकर परियोजनाएं शुरू होती हैं, वे कभी पूरे नहीं हो पाते हैं। बेचारा किसान सरकार और विकास के सपने के बीच ऐसा फंस जाता है कि जमीन न छोड़े तो विकास विरोधी कहलाता है और जमीन छोड़ दे तो भिखारी बन जाता है।

नागपुर से 150 किलोमीटर दूर अमरावती जिले का माजरी गांव बंजर है। राजस्थान के खेतों में यहां से ज्यादा हरियाली है। गांव वाले बताते हैं कि यहां की खेती भगवान भरोसे है। वैसे अमरावती जिले के इस इलाके में अपर वर्धा डैम का पानी पहुंचता है, लेकिन माजरी जैसे कई गांव हैं, जहां नहर का पानी नहीं पहुंचता। सरकार ने कुछ साल पहले ऐसे गांवों को नहर से जोड़ने की योजना बनाई थी। अपर ब्रिज की तरह नहर बनाने की घोषणा भी की थी, लेकिन चार साल बीत गए, काम शुरू नहीं हुआ है। यहां के किसान खेती छोड़कर शहरों में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। अमरावती के किसानों का दूसरा चेहरा माजरी से करीब दस किलोमीटर दूर जाफरापुर गांव में देखने को मिलता है। यहां के खेतों में हरियाली है, लेकिन किसानों के चेहरे पर खौफ है। इस गांव के किसान पक्के मकानों में रहते हैं, कुछ के पास गाड़ियां हैं। इस गांव के किसान गरीब नहीं हैं, लेकिन भविष्य को लेकर चिंतित हैं। पहले यहां के किसान खेती के लिए मानसून पर निर्भर थे। सरकार ने अपर वर्धा डैम बनाकर यहां के किसानों की जिंदगी बदल दी। अब हालत यह है कि डैम से सही मात्रा में पानी नहीं छोड़ा जा रहा है। यही वजह है कि यहां के किसान आंदोलन कर रहे हैं। पिछले साल गेहूं की फसल खराब हो गई। इलाके के किसान कहते हैं कि गेहूं को 8 बार पानी की जरूरत पड़ती है।

पिछले साल बारिश भी पूरी हुई थी, इसके बावजूद डैम से सिर्फ 6 बार ही पानी छोड़ा गया। आखिरी दो बार के पानी के लिए किसान इंतजार करते रह गए, लेकिन पानी का एक कतरा भी डैम से नहीं छोड़ा गया। गांव वाले बताते हैं कि 2009 में एक बार भी पानी नहीं छोड़ा गया। तो सवाल यह है कि डैम का पानी आखिर जाता कहां है? इसे किसके लिए बचाया जाता है? सरकार ने इस इलाके में सोफिया विद्युत परियोजना शुरू की है। डैम का पानी वहां भेजा जा रहा है। समझने वाली बात यह है कि अपर वर्धा डैम का निर्माण सिर्फ सिंचाई के लिए किया गया था। इसके पानी पर किसानों का अधिकार है। समझ में नहीं आता है कि आखिर सरकार किसानों की दुश्मन क्यों बन गई है? सच्चाई यह है कि विदर्भ में नेताओं, अधिकारियों एवं पूंजीपतियों ने मिलजुल कर ऐसा तांडव मचाया है कि अमरावती के लाखों किसानों की जिंदगी अधर में लटक गई है।

पानी की कमी का असर इन किसानों पर होना शुरू हो गया है। गेहूं, चना और सोया की खेती की जगह वे कपास की खेती करने को मजबूर हैं। सोफिया को पानी दिए जाने के खिलाफ गांव वाले आंदोलन कर रहे हैं। वे कहते हैं कि अपनी जान दे देंगे, लेकिन पानी के लिए लड़ेंगे। इस इलाके में इस आंदोलन से जुड़े संजय देशमुख बताते हैं कि सरकार सोफिया परियोजना पर इतनी मेहरबान है कि सारे नियम-कानूनों को ताख पर रख दिया गया है। सोफिया परियोजना के पीछे किन-किन उद्योगपतियों और नेताओं का हाथ है, इसे लेकर कई अफवाहें हैं। दिल्ली और मुंबई के कई बड़े-बड़े लोगों के नाम इसमें लिए जा रहे हैं, लेकिन गांव के लोगों ने हार नहीं मानी है। मामला कोर्ट में भी पहुंच गया है, लेकिन अमरवती में आए दिन कुछ न कुछ जरूर होता रहता है। हाल ही में गांव के लोगों ने सोफिया जा रहे बालू से लदे ट्रकों को रोका। सोफिया में इस्तेमाल हो रही बालू गैर कानूनी तरीके से लाई जा रही है। रात के अंधेरे में ट्रकों की आवाजाही गांव वालों ने रोकी तो ट्रकों ने अब रास्ता बदल दिया है। आज की स्थिति यह है कि सोफिया कंपनी और इलाकाई लोगों के बीच आर-पार की लड़ाई है। कानून की धज्जियां उड़ाती इस कंपनी को गांव वालों का आंदोलन महंगा पड़ सकता है। जाफराबाद की संगीता दशरथ राव कहती हैं कि सोफिया में पानी गया तो कटोरा लेकर भीख मांगकर खाना पड़ेगा, इसलिए मरते दम तक लड़ूंगी।

सरकार की यह आदत सी बन गई है कि वह गरीब किसानों का हक छीनकर किसी निजी कंपनी या किसी औद्योगिक समूह को लाभ पहुंचाती है। महाराष्ट्र के अमरावती जिले में बन रही ताप विद्युत परियोजना सोफिया पावर का मामला भी ऐसा ही है। सोफिया ताप विद्युत परियोजना के पीछे इंडिया बुल्स नामक कंपनी है। इस परियोजना को लेकर तो हो-हल्ला हो ही रहा है, लेकिन विरोध का स्वर धीमा करने के लिए एक अधिकारी नियुक्त कर दिया गया है, जो मीडिया से लेकर सामाजिक कार्यकर्ता तक, हर विरोधी और समर्थक की पूरी जानकारी अपने पास रखता है। सवाल यह है कि विदर्भ में वैसे ही पानी की कमी है, फिर ऐसे में उस परियोजना को अनुमति कैसे दी जा सकती है, जिसमें भारी मात्रा में पानी की जरूरत होती है। वैसे सरकार ने बड़ी चालाकी से यह काम किया है। सरकार ने इस कंपनी को महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल डेवलेपमेंट कॉरपोरेशन की जमीन दी है। नियम और कानून की नजर से तो यह परियोजना वैध है, लेकिन किसानों को जब पानी नहीं मिलता है तो इसका असर सीधे पेट पर पड़ता है। यही वजह है कि जनता ने सरकार पर हमला बोल दिया है। स्थानीय नेताओं ने अपनी भौंहें चौड़ी कर दीं। विधायक बच्चू कडू ने तो इसके विरोध में विधानसभा में अपनी कमीज तक उतार दी। राज्य विधानसभा के इतिहास में यह पहला मौका था, जब किसी विधायक ने सदन के भीतर अपनी कमीज निकाली हो। रही-सही कसर सोफिया हटाओ संघर्ष समिति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करके पूरी कर दी।

एक तरफ गांव वालों का आंदोलन चल रहा है, दूसरी तरफ इस परियोजना का निर्माण कार्य तेजी से जारी है। सरकार की दलील है कि इस परियोजना से राज्य को बिजली मिलेगी। अपर वर्धा सिंचाई परियोजना में 24.735 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी एमआईडीसी के लिए सुरक्षित रखा गया है। लेकिन सोफिया हटाओ संघर्ष समिति को एतराज इस बात पर है कि इस पानी के संपूर्ण औद्योगिक कोटे का सिर्फ सोफिया के लिए इस्तेमाल करना हानिकारक सिद्ध हो सकता है, क्योंकि इसके बाद 2347 हेक्टेयर में फैले नंदगांव पेठ औद्योगिक क्षेत्र की औद्योगिक इकाइयों के लिए पानी बचेगा ही नहीं। हालात यह हैं कि अमरावती जिले में अभी भी 2,43,440 हेक्टेयर कृषि भूमि में सिंचाई की व्यवस्था नहीं है। इस परियोजना को अगर पानी दिया जाता है तो 23,219 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि असिंचित हो जाएगी। सरकारी आंकड़े भी यही कहते हैं, लेकिन सिंचाई विभाग का कहना है कि पानी की कमी उक्त क्षेत्रफल में चरणबद्ध रूप से होगी। यानी पूरी तरह जमीनें असिंचित नहीं रहेंगी। फिलहाल अपर वर्धा परियोजना से 75,080 हेक्टेयर में सिंचाई की सुविधा है।

विदर्भ में ताप विद्युत परियोजनाओं का विरोध कर रही समूह आंदोलन समिति के विवेकानंद माथने का कहना है कि विदर्भ अभी भी अपनी खपत से अधिक विद्युत का उत्पादन करता है, इसलिए सोफिया की जरूरत ही नहीं है। जब पानी के मुद्दे पर राजनीति गहराई तो एक नया शिगूफा भी छोड़ा गया और कहा गया कि सीवेज के पानी को सोफिया के लिए इस्तेमाल में लाया जाएगा। इसके बाद असंतोष और तेजी से बढ़ा, क्योंकि इसमें तथ्य छुपाए गए थे। एक विधायक (जो सोफिया के पक्ष में हैं) की मानें तो 2640 मेगावाट की निर्माणाधीन परियोजना के प्रथम चरण में 87.60 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की आवश्यकता है। जबकि अमरावती के सीवेज से अधिकतम 2.4 करोड़ लीटर पानी ही निकलता है, इसलिए सोफिया को काउडन्यापुर बांध से पानी की आपूर्ति होगी। यहां गौर करने वाली बात यह है कि बांध अभी बनना शुरू भी नहीं हुआ है, जबकि सोफिया प्रकल्प 6 माह में शुरू हो जाएगा। अब सीवेज का पानी मिले या न मिले, मगर यह साफ है कि अब गंदे पानी पर भी दावेदारी शुरू हो गई है, जो भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। वैसे अमरावती में गंदे पानी को रिसाइकिल करने की परियोजना का मामला भी ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। नगरपालिका ने इस परियोजना के लिए जमीन भी अधिग्रहीत कर ली है। शहर में बहने वाले अंबा नाले का उपयोग गंदे पानी की निकासी के लिए किया जाता है। इसके पानी से 400 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई होती है। मजे की बात यह है कि नाले से बहकर जो पानी पेडी नदी में मिलता है, उस पर भी बांध बनाने की परियोजना प्रस्तावित है, जो 500 करोड़ रुपये की है। पेडी नदी में अंबा नाले के पानी की हिस्सेदारी 40 फीसदी है। फिर भी इस परियोजना को सही ठहराया जा रहा है।

सोफिया का विरोध कर रहे लोगों की मांग है कि अमरावती जिले में पेयजल व्यवस्था, संपूर्ण महाराष्ट्र की सिंचाई, सरकारी नियमानुसार उद्योगों के लिए 10 प्रतिशत जल और कृषि आधारित उद्योगों को आवश्यक जलापूर्ति सुनिश्चित करने के लिए अमरावती जिले में तहसीलवार पानी का ऑडिट किया जाना चाहिए। वर्तमान में अमरावती में अपर वर्धा, शहानूर, चंद्रभागा, चारगढ़, पूर्णा और अन्य छोटे-मोटे तालाबों से 112.75 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी दिया जा रहा है, फिर भी गांवों में लोगों को पानी नहीं मिल पा रहा है। जिले के 472 गांवों में पानी की किल्लत है। इनमें से 25 गांवों में तो ग्रीष्मकाल में टैंकरों द्वारा पानी पहुंचाना पड़ता है। जल संसाधन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक बनाए गए जल प्रकल्पों से जून 2009 तक पश्चिम महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 230.22 प्रतिशत, सांगली में 107.35 प्रतिशत, पुणे में 76.99 प्रतिशत, सतारा में 82.57 प्रतिशत और सोलापुर में 66.88 प्रतिशत सिंचाई क्षमता निर्मित की गई है। जबकि अमरावती संभाग के किसी भी जिले में यह क्षमता 25 फीसदी का आंकड़ा भी नहीं छू सकी है। यवतमाल जिले में जरूर 35.32 फीसदी सिंचाई क्षमता विकसित करने का सरकारी दावा है। महाराष्ट्र की अनुमानित औसत सिंचाई क्षमता 56.14 फीसदी है। अमरावती जिले का सिंचाई बैकलाग वैसे भी पूरे राज्य में सबसे अधिक है। यहां जून 2009 तक की जानकारी के अनुसार, 2,43,440 हेक्टेयर में अभी भी सिंचाई की व्यवस्था नहीं है। इसके बावजूद अमरावती में सिंचाई की जगह पानी उद्योगों को देना सवालिया निशान ही खड़ा करता है।
 

सोफिया परियोजना से कई सवाल उठ रहे हैं। इस परियोजना का विदर्भ में क्या काम, जबकि विदर्भ अपनी जरूरत से ज्यादा बिजली पहले से बना रहा है? विदर्भ में पानी की कमी है, फिर भी पानी पर चलने वाली बिजली परियोजना को वहां लगाने का क्या मकसद है?

सोफिया बिजली परियोजना से किसानों को पानी की किल्लत तो हो ही रही है, इसकी मार इलाके के पर्यावरण पर भी जबरदस्त पड़ने वाली है। छत्तीसगढ़ के कोरबा, अमरावती के नजदीक चंद्रपुर में ताप विद्युत परियोजनाओं का अनुभव अच्छा नहीं है। यहां चिमनियों से उड़ती राख पूरे क्षेत्र को ही अपने आगोश में ले लेती है। यही कारण है कि कोरबा, चंद्रपुर जैसे शहर देश के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक हैं। निसर्ग संरक्षण संस्था के अध्यक्ष निशिकांत काले की सलाह है कि इंडिया बुल्स को यहां पावर प्रोजेक्ट स्थापित करने के लिए अपारंपरिक ऊर्जा स्रोत का इस्तेमाल करना चाहिए। ताप विद्युत परियोजना से अमरावती सहित तिवसा, मोर्शी तहसीलों की फसलों पर भी विपरीत असर पड़ेगा। सरकार का कहना है कि राज्य में बिजली की कमी को देखते हुए सोफिया ताप विद्युत प्रकल्प रद्द नहीं किया जा सकता। साथ ही इसका निर्माण कार्य काफी हो चुका है। सरकार ने इस परियोजना के कारण सिंचाई से प्रभावित होने वाली 23,219 हेक्टेयर जमीन के संबंध में व्यापक अध्ययन करने के भी आदेश दिए हैं, जिससे इस जमीन पर सिंचाई क्षमता में कमी न आए। गत वर्ष 17 जून को जल संसाधन मंत्री, उद्योग मंत्री, अमरावती जिले के पालक मंत्री, जिले के सभी विधायकों, सांसद, सोफिया समर्थकों और विरोधियों की बैठक बुलाई गई थी। इसमें 10 विधायक एवं एक सांसद उपस्थित थे। बैठक में सरकार की ओर से जो निर्देश जारी किए गए, उनमें यह भी शामिल था कि सोफिया प्रकल्प पूरा होने के बाद राज्य की नीति के अनुसार अमरावती जिले को लोडशेडिंग से मुक्त कर दिया जाएगा। कभी विकास के नाम पर तो कभी बिजली के नाम पर, क्या हर बार गरीब किसानों का हक ही छीना जाएगा?

अब सवाल उठ रहा है कि उद्योगों और बिजली परियोजनाओं को पानी देने का अधिकार किसे है? सिर्फ अमरावती का ही मामला नहीं है, यह प्रश्न पूरे देश के लिए है। महाराष्ट्र के लिए यह ज्वलंत मुद्दा बनता जा रहा है। वैसे भी गर्मी के दिनों में पूरे राज्य में जल संकट गहरा जाता है। औरंगाबाद में साल भर दो दिनों में एक बार पानी की आपूर्ति की जाती है। पानी के इस्तेमाल में सुधार के लिए सरकार ने 2005 में बाकायदा कानून बनाकर महाराष्ट्र जल संपदा नियमन प्राधिकरण की स्थापना की। अलग-अलग उपयोग के लिए पानी की दरें निर्धारित करने का अधिकार इस प्राधिकरण को दिया गया। हालांकि सरकार ने पानी के उपयोग पर अपनी बादशाहत कायम रखी। इस कारण पानी पर जन भागीदारी बढ़ाने के मिशन पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है। प्राधिकरण की स्थापना का मूल उद्देश्य ही यह था कि पानी का समान वितरण हो, पानी की बर्बादी रुके, इसे प्रदूषण मुक्त रखा जाए। पानी देने का अधिकार इस प्राधिकरण के पास जरूर है, परंतु निर्णय शासन की उच्चाधिकार समिति करती है। इसी उच्चाधिकार समिति ने 21 फरवरी, 2008 को सोफिया पावर कंपनी को 549.98 करोड़ रुपये के एवज में 87.60 मिलियन क्यूबिक मीटर (दस लाख घन मीटर) पानी देने और 29 अप्रैल, 2008 को अमरावती थर्मल पावर कंपनी को 95.20 करोड़ रुपये के एवज में 35.92 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी बेचने का निर्णय ले लिया।

सोफिया परियोजना से कई सवाल उठ रहे हैं। इस परियोजना का विदर्भ में क्या काम, जबकि विदर्भ अपनी जरूरत से ज्यादा बिजली पहले से बना रहा है? विदर्भ में पानी की कमी है, फिर भी पानी पर चलने वाली बिजली परियोजना को वहां लगाने का क्या मकसद है? सोफिया परियोजना में किन-किन लोगों का हाथ है? इंडिया बुल्स कंपनी में किन-किन लोगों का पैसा लगा है? सरकार पर इस परियोजना को पास करने के लिए कहां-कहां से दबाव पड़ा? जो नेता कल तक इसके विरोध में थे, आज उनके सोफिया के पक्ष में खड़े होने के लिए क्या और किससे डील हुई? इस परियोजना को लेकर मीडिया भी शक के घेरे से बाहर नहीं है। कल तक सच बताने वाला मीडिया आज गरीब किसानों के पक्ष में क्यों नहीं खड़ा है? इन सवालों के जवाब सरकार और जांच एजेंसियों को देने चाहिए। अगर इन सवालों के जवाब नहीं मिलेंगे तो जनता का विश्वास खत्म हो जाएगा, क्योंकि राजनीतिक दलों, नेताओं एवं अधिकारियों ने प्रजातंत्र को विकृत कर दिया है। बिजली बनानी हो तो किसानों-आदिवासियों की कुर्बानी ली जाती है। सड़क बनानी हो तो किसानों की जमीन छीन लो, एसईजेड बनाना हो तो किसानों की जमीन हड़प लो, शहरीकरण करना हो, मॉल्स बनाने हों या फिर आवासीय कालोनी बनानी हो तो किसानों की जमीन का अधिग्रहण कर लो। फिर होता यह है कि हर परियोजना भ्रष्टाचार के घेरे में आ जाती है। जिन उद्देश्यों को लेकर परियोजनाएं शुरू होती हैं, वे कभी पूरे नहीं हो पाते हैं। इन परियोजनाओं से अधिकारियों, नेताओं और दलालों की जेबें जरूर गरम हो जाती हैं। बेचारा किसान सरकार और विकास के सपने के बीच ऐसा फंस जाता है कि जमीन न छोड़े तो विकास विरोधी कहलाता है और जमीन छोड़ दे तो भिखारी बन जाता है।
 

क्या है इंडिया बुल्स


इंडिया बुल्स देश की सबसे चर्चित कंपनी मानी जाती है। इंडिया बुल्स समूह के मुख्य प्रवर्तक समीर गहलौत, राजीव रतन और सौरभ मित्तल आईआईटी, दिल्ली के ग्रेजुएट हैं। यह कंपनी 1999 के मध्य में स्थापित की गई और शुरुआती दौर में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की सदस्यता लेने के बाद इसने शेयर की ब्रोकरेज सेवा प्रदान करनी शुरू की। कांग्रेस के कई बड़े नेताओं की इस कंपनी में रुचि बताई जाती है। बताते हैं कि इंडिया बुल्स समूह को सरकारी महकमे से बड़ी-बड़ी मंजूरियां आसानी से मिल जाती हैं। यह समूह रीयल इस्टेट, बिजली एवं रिटेल से लेकर विभिन्न वित्तीय सेवाओं में सक्रिय है। इंडिया बुल्स फाइनेंशियल सर्विसेज की प्रस्तावित जीवन बीमा कंपनी में रिजर्व बैंक की तरफ से 74 फीसदी निवेश की इजाजत मिलने पर भी आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है।

 

 

इंडिया बुल्स और विवाद


इंडिया बुल्स का नाम भले ही एक सफल कंपनी के रूप में लिया जाता है, लेकिन विवादों से भी इसका पुराना नाता रहा है। ग्राहकों को इस कंपनी के बारे में एक आम शिकायत हमेशा रहती है। मसलन, अधिक वसूली, भुगतान में देरी और निवेशकर्ताओं के एकाउंट से गैर कानूनी ढंग से पैसा निकाल लेना। खुद इंडिया बुल्स के कर्मचारी अपनी ही कंपनी पर प्रोविडेंट फंड को लेकर आरोप लगा चुके हैं। 2007 में फ्यूचर एंड ऑप्शन (एफ एंड ओ) मार्केट से संबंधित मामले में इंडिया बुल्स द्वारा बेईमानी एवं गलत रास्ता अपनाने के आरोप की जांच करने के बाद सेबी ने इस पर 15 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था। 2008 में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस कंपनी के कुछ आला अधिकारियों के खिलाफ एक गंभीर आरोप पर चल रही जांच पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। इन अधिकारियों पर गैर कानूनी रूप से अपने ग्राहकों के एकाउंट से पैसा निकालने के आरोप थे।

E-mail:- pravinmahajan@chauthiduniya।com

 

 

 

 

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