महिलाओं को कृषि प्रबंधन सिखा रही हैं राजकुमारी देवी

1 Oct 2014
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बिहार की राजकुमारी देवी ने खेती ही नहीं महिलाओं की दशा भी बदल दी है। उन्होंने उस मिथक को भी तोड़ दिया है जिसमें कहा जाता है खेती महिलाओं के वश की बात नहीं है। राजकुमारी देवी ने अपने इलाके की तमाम महिलाओं को कृषि प्रबंधन सिखाकर स्वावलंबी बना दिया है। सरकार ने उनके इस प्रयास के लिए उन्हें किसान श्री अवार्ड से सम्मानित किया है। इसके अलावा उन्हें और भी कई पुरस्कार मिल चुके हैं। राजकुमारी देवी की सक्रियता के किस्से सुन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इतने प्रभावित हुए कि खुद उनके बाग को निहारने पहुंच गए। राजकुमारी देवी ने खेती से जुड़कर सिर्फ एक किसान के रूप में ही नाम नहीं कमाया बल्कि नशामुक्ति अभियान भी चलाया। यही वजह है कि उनके इलाके की महिलाएं उन्हें प्यार से किसान चाची कहकर संबोधित करती हैं और सभी महिलाओं का यह प्यार पाकर राजकुमारी देवी प्रफुल्लित हैं।भारत में आम जन से खेती का गहरा सरोकार है। यही वजह है कि यहां खेती हमेशा चर्चा में रहती है। कभी खाद-बीज तो कभी सिंचाई, फसल कटाई को लेकर। संसद से सड़क तक हमेशा खेती का मुद्दा गूंजता रहता है। जनप्रतिनिधि हो या प्रशासक सभी खेती के मुद्दे पर सचेत रहते हैं। सरकार की ओर से बनने वाली नई योजनाओं और बजट प्रावधानों में खेती को विशेष महत्व मिलता है। आज भी ग्रामीण इलाके में हालचाल पूछते वक्त खेती का हाल जरूर पूछा जाता है क्योंकि लोगों को पता है कि खेती ही जीवन का आधार है। खेती समृद्ध एवं उन्नत रहेगी तो जीवन सुदृढ़ होगा। जब भारतीय जनजीवन सुदृढ़ रहेगा तो देश की समृद्धि अपने आप बढ़ जाएगी। शायद इसी सिद्धांत को अपनाते हुए देश के विभिन्न हिस्सों में अब महिलाओं ने भी खेती की कमान संभाल ली है।

कुछ समय पहले तक खेती पर पुरुषों का एकाधिकार समझा जाता था, लेकिन अब ऐसी बात नहीं है। देश के विभिन्न हिस्सों में तमाम ऐसी महिलाएं हैं जो खेती के जरिए नाम और पैसा दोनों कमा रही हैं। इन्हीं में से एक हैं बिहार के मुजफ्फरपुर के आनंदपुर गांव निवासी राजकुमारी देवी, जिन्हें लोग प्यार से किसान चाची के नाम से संबोधित करते हैं। यह किसान चाची आज एक साधारण महिला से नामचीन किसान बन चुकी हैं। किसान चाची के चर्चे बिहार ही नहीं पूरे देश में हो रहे हैं। स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि उन पर डाक्युमेंट्री फिल्म बन रही है और तमाम ब्लॉग पर भी उनकी चर्चा है। उन्हें बिहार सरकार ने महिला कृषक के रूप में ब्रांड अम्बेसडर का दर्जा दिया है।

राजकुमारी देवी के साधारण महिला से नामचीन किसान बनने के पीछे भी काफी रोचक कहानी है। वह शादी के बाद पति अवधेश चौधरी के साथ मुजफ्फरपुर जिले के सरैया ब्लॉक के आनंदपुर गांव में रहने लगीं। राजकुमारी देवी पहले नौकरी करना चाहती थीं। उन्होंने वर्ष 1980 में टीचर्स ट्रेनिंग कोर्स के लिए परीक्षा भी दी, लेकिन विपरीत परिस्थितियों के कारण वह नौकरी नहीं कर पाई। उस समय आनंदपुर सहित आसपास के तमाम गांवों में गांजा और तंबाकू की खेती होती थी। चूंकि इलाके में जब गांजा और तंबाकू की खेती हो रही थी तो नशाखोरी का अधिक होना स्वाभाविक था। जब लोगों को नशे की हालत में देखती तो बहुत दुख होता। पासपड़ोस में भी तमाम ऐसे लोग थे, जो नशे की हालत में अपने परिवार के सदस्यों से लड़ाई-झगड़ा करते रहते थे। महिलाओं के साथ मारपीट करते। ये घटनाएं राजकुमारी देवी को विचलित करतीं। ऐसे में वह सोचती कि क्यों न लोग नशे की चीजों के बजाय दूसरी खेती करते। राजकुमारी देवी बताती हैं कि मैंने सुन रखा था कि गांजा, तंबाकू आदि के निरंतर प्रयोग करते रहने से कैंसर सहित तमाम बीमारियां लग जाती हैं जो मनुष्य को धीरे-धीरे मरणासन्न कर देती हैं। लेकिन शायद दूसरी खेती के बारे में लोगों को पता नहीं था या यह कहा जाए कि लोग दूसरी खेती को घाटे का सौदा मानते थे।

नौकरी न कर पाने के बाद भी राजकुमारी देवी के हौंसले बुलंद थे। वह हमेशा कुछ न कुछ करने के बारे में सोचती रहती थी। उनका ध्यान खेती की तरफ गया। नौकरी न सही लेकिन खेती करके पैसा कमाया जा सकता है। उनके सामने सवाल था कि खेती भी करें तो कौन-सी। गेहूं, गांजा और तंबाकू की खेती से होने वाले फायदे और सामाजिक असर को वह अपनी आंखों के सामने देख रही थी। सो उन्होंने सोचा कि कुछ ऐसी खेती की जाए, जिसमें लागत कम लगे और फायदा अधिक हो। साथ ही इस इलाके में चल रही गांजे और तंबाकू की खेती का भी खात्मा हो जाए, जिससे नशे का शिकार हो रहे लोगों को बचाया जा सके। ऐसे में उनके मन में विचार आया कि क्यों न फलों की औद्योगिक खेती की जाए और इसकी शुरुआत अपने घर से की जाए और फिर पास-पड़ोस के किसानों को आम, केला, लीची, पपीता और सब्जी की खेती करने के लिए तैयार किया जाए।

चूंकि जब तक शुरुआत उत्साह भरी न हो और इसमें कम लागत के साथ ही अधिक मुनाफा न हो तब तक लोगों को फल एवं सब्जी की खेती के प्रति आकर्षित करना बहुत ही मुश्किल काम था। राजकुमारी देवी ने खुद सोचा कि खेत में उतरूंगी, लेकिन उस समय एक महिला का खेत में जाना साधारण बात नहीं थी। जब उन्होंने अपनी इच्छा जताई तो पहले तो किसी को विश्वास नहीं हुआ कि वह भी कुछ कर सकती हैं और फिर लोगों ने एक सिरे से नकार दिया। राजकुमारी बताती हैं कि उनके ससुर को भी यह मंजूर नहीं था कि उनके घर की औरत देहरी लांघे और खेती के बारे में सोचे। लेकिन तमाम बंदिशों और शर्तों के बाद भी हार नहीं मानी। उनके इस प्रयास में उनके पति अवधेश चौधरी ने पूरा समर्थन दिया। फलों की व्यावसायिक खेती की शुरुआत हुई और जल्द ही उन्हें कामयाबी मिलती नजर आई। उनके परिवार के पास 18 बीघा खेत हैं। जब एक बार इस खेत में केले, आम, पपीते, लीची व सूरन की खेती शुरू हुई तो आज तक चल ही रही है।

राजकुमारी देवी जब लोगों को गांजे और तंबाकू की खेती से होने वाले नुकसान के बारे में समझाया और फल एवं सब्जी की खेती में हुए मुनाफे को बताया तो लोग गांजे और तंबाकू की खेती छोड़ने के लिए तैयार होते गए। हालांकि इसमें काफी वक्त भी लगा और काफी मेहनत भी करनी पड़ी।वह बताती हैं कि जब गांव में पहली बार आम, लीची और फिर सूरन की खेती शुरू की गई तो लोग काफी असहज मानने लगे। दूसरे किसानों को यह भरोसा ही नहीं था कि इसमें कामयाबी मिल पाएगी। कुछ लोग मजाक भी उड़ाते थे, लेकिन मैंने हार नहीं मानी और पति अवधेश जी लगातार प्रोत्साहित भी करते रहे। जब भी जरूरत पड़ी, सहयोग किया। धीरे-धीरे हमारा प्रयास रंग लाने लगा। लीची की बंपर पैदावार हुई। लागत के मुताबिक अधिक मुनाफा भी हुआ। इसके बाद पहली बार लोगों का ध्यान फल और सब्जी की खेती की ओर आकर्षित हुआ। जब लोगों को गांजे और तंबाकू की खेती से होने वाले नुकसान के बारे में समझाया और फल एवं सब्जी की खेती में हुए मुनाफे को बताया तो लोग गांजे और तंबाकू की खेती छोड़ने के लिए तैयार होते गए। हालांकि इसमें काफी वक्त भी लगा और काफी मेहनत भी करनी पड़ी। क्योंकि जो खेती वर्षों से हो रही थी, उसे छोड़ने को लोग आसानी से तैयार नहीं हो रहे थे। साथ ही नई खेती को लेकर लोगों के मन में संशय भी था। किसी को घाटे का भय सता रहा था तो किसी को उपज बिक्री में आने वाली दिक्कतों का, लेकिन हमारे खेतों में लहलहाती फसलें लोगों को जल्द ही आकर्षित करने लगीं।

मेरे प्रयास को देखते हुए कृषि एवं उद्यान विभाग के अधिकारियों ने भी सकारात्मक रुख अपनाया। मेरी सक्रियता को देखते हुए वे सहयोग करने लगे। कई बार अधिकारी खुद खेत में पहुंच जाते और बताते कि किस वक्त मुझे क्या करना है। इसके अलावा विभिन्न अवसरों पर आरोपित होने वाले प्रशिक्षण में भी हिस्सा लेने का मौका मिला। इससे मेरा हौंसला बढ़ता गया। सरकार की ओर से चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं की जानकारी ली। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत चलाए जा रहे कार्यक्रमों में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। सरकारी योजनाओं का लाभ मिला और फिर उनके पांव जो एक बार आगे बढ़े तो बढ़ते ही गए।

राजकुमारी देवी ने तय किया कि दूसरे गांवों की महिलाओं को भी खेती के बारे में प्रशिक्षित किया जाए। इसके लिए वह घर का काम निबटाने के बाद खेत पर जाती और वहीं से साइकिल लेकर दूसरे गांवों में निकल जाती। पास-पड़ोस के गांवों की महिलाओं से बातें करती। उनकी समस्याएं सुनती और उन्हें खेती से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करती। वह बताती हैं कि मैंने तय किया कि क्यों न खुद की तरह दूसरी महिलाओं को भी खेती से जोड़ा जाए। विभिन्न प्रशिक्षणों में भी इसके लिए प्रोत्साहित किया गया। फिर हमने महिलाओं को एकजुट किया और महिला स्वयंसहायता समूह बना डाला। महिला स्वयंसहायता समूह के जरिए व्यावसायिक खेती को बढ़ावा मिलने लगा। फिर स्वर्ण जयंती ग्राम रोजगार योजना के तहत बैंक से लोन भी मिल गया। कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से आयोजित किसान मेले में अपने उत्पाद का स्टॉल लगाया। इस तरह मेरे काम की चर्चा दूसरे गांवों तक होने लगी। फिर मैंने तय किया कि क्यों न दूसरे गांवों की महिलाओं को भी खेती के बारे में प्रशिक्षित किया जाए। इसके लिए मैं घर का काम निबटाने के बाद खेत पर जाती और वहीं से साइकिल लेकर दूसरे गांवों में निकल जाती। खेती से जो भी समय मिलता पास-पड़ोस के गांवों की महिलाओं के बीच व्यतीत करती। महिलाओं से बातें करती। उनकी समस्याएं सुनती और उन्हें खेती से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करती। जब महिलाओं को खुद के खेती से जुड़ने और उससे होने वाले फायदे और फिर स्वयंसहायता समूह के फायदे बताए तो वे धीरे-धीरे तैयार होती गईं। कुछ ही दिनों में पिपरा, मानिकपुर, बासोचक, सरैया और करहारा सहित तमाम गांवों में महिलाओं ने राजकुमारी देवी की तकनीक को अपना लिया। अब वह पूरे इलाके में किसान चाची के नाम से मशहूर हो गईं।

आज स्थिति यह है कि अकेले सरैया ब्लॉक में तकरीबन 350 महिलाओं ने 35 स्वयंसहायता समूह बना लिए हैं। इस तरह इलाके की महिलाओं में जागरुकता आ रही है। वे एक तरफ खेती से जुड़कर कम लागत में अधिक मुनाफा कमा रही हैं तो दूसरी तरफ समूह में जुड़े होने के कारण उनकी तमाम समस्याओं का भी समाधान हो रहा है। उन्हें आर्थिक दिक्कतें होने पर किसी दूसरे के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता है। वे अपना खर्चा खुद चला रही हैं और सामाजिक एकजुटता का भी संदेश दे रही हैं। सबसे बड़ी उपलब्धि यह हुई कि फल एवं सब्जी की खेती से महिलाओं के जुड़ने के बाद इलाके में नशाखोरी कम हो गई है। महिलाओं के खेती से जुड़ने के बाद गांजे और तंबाकू के नशे में डूबे रहने वाले भी खेती में जुट गए हैं। इससे रोज-रोज परिवार में होने वाली चिकचिक खत्म हो गई है। सभी मिलजुलकर अपनी खेती को बेहतर बनाने के बारे में सोचते हैं। एक तरह से ज्यादा मुनाफा कमाने की प्रतियोगिता शुरू हो गई है। इसके बाद तो उनके सानिध्य में बनें स्वयंसहायता समूह की ओर से विभिन्न स्थानों पर आयोजित होने वाले किसान मेले में स्टॉल लगने लगे। पटना से लेकर दिल्ली तक तारीफ होने लगी।

राजकुमारी देवी की हमेशा कोशिश रहती है कि जो भी खेती की जाए, उसमें कम से कम कीटनाशक का प्रयोग किया जाए। वह बताती हैं कि सब्जियों की खेती में जैविक खादों का प्रयोग करती हैं और दूसरी महिला किसानों को भी ऐसा ही करने को कहती हैं।राजकुमारी देवी की हमेशा कोशिश रहती है कि जो भी खेती की जाए, उसमें कम से कम कीटनाशक का प्रयोग किया जाए। वह बताती हैं कि सब्जियों की खेती में जैविक खादों का प्रयोग करती हैं और दूसरी महिला किसानों को भी ऐसा ही करने को कहती हैं। फसल कुछ खराब भी हो जाए तो इसकी परवाह नहीं है, लेकिन कीटनाशक का किसी भी कीमत पर प्रयोग नहीं होना चाहिए। कीटों से बचने के लिए कीटनाशक के बजाय दूसरे तरीके अपनाती हैं, जो पूरी तरह जैविक हो। क्योंकि जिस बात को लेकर वह खेती से जुड़ी थीं, कीटनाशक का प्रयोग करने पर वही समस्या बनी रहेगी। कीटनाशक का प्रयोग करके अधिक उत्पादन तो पाया जा सकता है, लेकिन कीटनाशक की सहायता से तैयार की गई सब्जी जो भी खाएगा, उसे नुकसान उठाना पड़ेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। इसलिए वह जब भी किसानों के बीच होती हैं यही कहती हैं कि कीटनाशक और रासायनिक खादों के प्रयोग से पूरी तरह बचा जाए।

पूरा परिवार जुटा है मदद में


राजकुमारी देवी यानी किसान चाची की मदद में अब उनका पूरा परिवार जुटा है। वह बताती है कि बेटे अमरेंद्र ने कॉलेज की पढ़ाई के बाद खेती को ही अपना लिया है और उनकी मदद करता है। यही वजह है कि करीब 55 वर्ष की उम्र होने के बाद भी उनके हौंसले पहले की तरह ही बुलंद हैं। वह कहती हैं कि उन्होंने इलाके में जिस तरह से खेती के मामले में मुकाम हासिल किया है, उसी तरह से देश के हर हिस्से की महिला खेती में मुकाम हासिल करे तो उन्हें बहुत प्रसन्नता होगी। वह महिलाओं से अपील करती हैं कि महिलाएं समाज को दिखा दें कि वे सभी तरह के काम कर सकती हैं। साथ ही समाज को बदलने की कूबत भी रखती हैं। वह महिलाओं को सिखाती हैं कृषि प्रबंधन। चाची गांव-गांव तक पहुंचती है। जिस भी महिला किसान को खेती संबंधी किसी तरह की दिक्कत होती है वह तुरंत चाची से संपर्क करती हैं। किस खेती में कब पानी देना है और कब खाद, यह चाची अपने अनुभव के आधार पर समझाती हैं। वह विभिन्न गांवों में जाकर खेती से जुड़ी महिलाओं को सामूहिक प्रशिक्षण भी देती हैं। अपने अनुभवों को लोगों से बांटती हैं और आपस में मिल-बैठकर तय करती हैं कि आगे कौन-सी खेती की जाए जिसमें ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके।

सुनीता बताती है कि चाची ने हमको सिखाया कि हम अपनी जमीन का इस्तेमाल कैसे करें। पहले हमें खेती से कोई ज्यादा फायदा नहीं होता था लेकिन अब उतने ही बड़े खेत में ज्यादा फायदा होने लगा है। इससे परिवार का खर्चा भी चल जाता है और कुछ बचत भी हो जाती है, जिसके जरिए बच्चों को पढ़ा रही हूं और उनके सुनहरे भविष्य का सपना देख रही हूं। कुछ इसी तरह राधा, अनीता भी कहती हैं। इनका कहना है कि चाची ने हमें मिट्टी का मोल समझाया। खेती करने के तरीके समझाए। कम पानी और कम खाद में अधिक उत्पादन कैसे लिया जा सकता है, इसके बारे में जानकारी दी। जिसका नतीजा है कि आज हम खुद परिवार का खर्चा चला सकते हैं और अपने लिए कुछ बचत भी कर सकते हैं।

मिला किसान श्री अवार्ड


राजकुमारी देवी की ललक और सक्रियता को देखते हुए सरकार की ओर से उन्हें किसान श्री अवार्ड से सम्मानित किया गया। यह अवार्ड हासिल करने वाली राजकुमारी देवी पहली महिला किसान हैं। इसके अलावा आम, केले और सूरन की विभिन्न किस्मों की खेती करने एवं महिलाओं को खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए दर्जनभर से अधिक ब्लॉक, जिला स्तर के सम्मान दिए जा चुके हैं।

मिली ख्याति


वह बताती हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश जी खुद हमारे बाग में आए तो मुझे बहुत खुशी हुई। उन्होंने हर फल को बड़े ध्यान से देखा। खेती में किस तरह सावधानी बरतती हूं, इसके बारे में भी पूछा। एक किसान के रूप में मेरे सामने क्या समस्या है, यह भी जाना और भरोसा दिलाया कि खेती में किसी तरह की समस्या नहीं आने दी जाएगी। एक साधारण किसान के बाग में मुख्यमंत्री का पहुंचना बहुत ही गर्व की बात है। मुझे लगा कि मैं जो कुछ भी कर रही हूं उसके जरिए ही ख्याति मिल रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मेरे बाग में आने की बात पूरे राज्य में फैली। तमाम जगह से बधाइयां आती तो बहुत गर्व हुआ। मुझे संतोष हुआ कि मैंने जो मेहनत की उसने सिर्फ आर्थिक लाभ ही नहीं पहुंचाया बल्कि उससे सामाजिक ख्याति भी मिली। इससे पहले लालूजी ने भी पटना में आयोजित प्रदर्शनी में हमारे सूरन की तारीफ की थी। उस समय भी लोगों ने बहुत बधाई दी थी।

किसान चाची का सपना


राजकुमारी देवी कहती हैं कि उनका सपना है कि देश की हर महिला स्वावलंबी बने। वह दूसरों पर आश्रित न रहें। हालांकि सरकार की ओर से महिलाओं के प्रोत्साहन के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं पर वह संतोष जताती हैं और कहती हैं कि जिस तरह से देश-प्रदेश में बदलाव हो रहा है, वह सराहनीय है। पहले की अपेक्षा गरीबी कम हो रही है। महिलाओं के प्रति भी धीरे-धीरे समाज की सोच बदल रही है। फिर भी सबसे बड़ी जरूरत है कि नई पीढ़ी को भरपूर शिक्षा दी जाए। बच्चियों को पढ़ा-लिखाकर कुशल नागरिक बनाया जाए। यदि महिलाएं पढ़ी-लिखी होंगी तो खेती की उन्नत तकनीक के बारे में ज्यादा जानकारी रखेंगी और आज की अपेक्षा और बेहतर ढंग से खेती कर सकेंगी।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)
ई-मेल: sangeetayadavshivam@gmail.com

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