मिटा दिए गए ताल-पोखर के लिए

पानी के बैरी या
प्यास का दुश्मन ही कहा जाएगा उन्हें
मिटा दिया जिन्होंने पोखर-तालाब

कितनी पुलक से-पुण्याकांक्षा से भी
खुदबाए गए होंगे ये पोखर-ताल
औचक लील गए जिन्हें
मूढ़ता, कटुता और स्वार्थ

पूर्वजों की थाती
बेरहमी-बेअक्ली से
कर दी गयी मटियामेट
तालाब नष्ट करना
पानी के साथ पसीने का अपमान है
और कुल की साधुता की हत्या

पोखर-ताल मिटाने से
केवल पोखर-तालाब नष्ट नहीं होते
नष्ट होते हैं बोली-बानी के गीत, तीज-त्योहार
कितने गाय-गोरू, पाखियों की जगह नष्ट होती है
नष्ट होती है कितने फूलों, बाग-बगीचों की सुगंध
और कितने घाटों की हँसी-खुशी

पोखर-तालाब मिटाने से
केवल पोखर-तालाब नष्ट नहीं होते
एक पूरी जीवन संस्कृति नष्ट होती है!
बक्सी तालाब

बक्सी तालाब: बनवाया जिसे हमारे पूर्वज
बाबा बक्सी ने
महात्मा पुरुष थे और परहित में समर्पित था पुरुषार्थ
मेरी आँख ने ताल-पोखर चीन्हा
बक्सी ताल के ही गुन
हमारे गाँव गौरी का दक्षिणांचल आबाद करता
बक्सी तालाब

अपने उत्तर-पूर्व के भीट पर शोभित है
आमों के बाग से
सिन्दूरिया, मिठौंहा, चिर्रिहा, चपटिया, रोरी, खिरौहाँ, नरियरा, बिसैंधा, पतरगोहिया, दाई क कड़वा,
बबा क कड़वा, भकम्मा, शंखा, सन्नहमा, सुग्गा, गड़वा, बम्बईवाला,गंधइला आदि-आदि

कितने तो हैं आमों के नाम
फिर भी कुछ नाम हैं सह-नाम
इनमें से कुछ अपने रूप-रंग, मिठास और
सुगन्ध के लिए विख्यात
तो कुछ अपनी खटास के लिए चर्चित

तालाब के पूर्वी भीट के टीले पर गौरी-शंकर का प्राचीन मन्दिर
(जो तालाब की ही उमर का है)
तीज-त्योहारों, विवाह प्रयोजनों पर धड़कता रहता है
हँसी-खुशी और गीत-संगीत से

राहगीर अमराई की छाँव के साथ
तालाब के पानी को निहार बाबा बक्सी के प्रति
होता है श्रद्धावनत्

पूरे जनपद की जुबान पर
बक्सी तालाब पाता है बहुत मान
अपनी इस थाती को सुकुल खानदान
रखता है प्राणों से ऊपर

बड़ी झील! तुमसे बोलते-बतियाते याद आता रहा
मुझे बक्सी तालाब
जिसमें हमारे पूर्वज बाबा बक्सी की कीर्ति लहराती है
और जिसके कुमुदिनी के फूल खिलना सिखाते हैं तारों को!

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading