मिट्टी का सत्व

यह लुटेरा पानी के साथ-साथ मिट्टी को भी लूट रहा है पर मामले में भी बहस जारी है। कर्नाटक सरकार की सलाहकार समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि संकर सफेदे के कारण मिट्टी का सत्व बढ़ता है या नहीं, इस बात पर निर्भर है कि संकर सफेदा कैसी मिट्टी में बोया जाता है और कितना घना बोया जाता है। उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों को हटाकर लगाया गया सफेदा वर्षावनों की तुलना में कम पोषक तत्व लौटाता है। लेकिन अगर वह कमजोर खेतों में या वृक्षहीन या बंजर जमीन में बोया जाता है तो मिट्टी को ज्यादा पोषक तत्व देता है।

“संकर सफेदे का मिट्टी पर प्रभाव इस बात पर भी निर्भर है कि सफेदे के पेड़ कितने सघन लगाए जाते हैं। प्रति हेक्टेयर 10,000 से ज्यादा पेड़ लगाए जाएं तो संभव है नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी हो जाए। कर्नाटक में ये 3,000 प्रति हेक्टेयर लगाए जा रहे हैं, इसलिए इतनी छितरी बुआई के कारण मिट्टी की ऊपरी सतह में पोषक तत्व बढ़ते हैं क्योंकि वह मिट्टी के नीचे से पोषक तत्वों को खींचकर ऊपरी सतह में जमा करता है। कुल मिलाकर जंगलों को खत्म करके उनकी जगह सिर्फ संकर सफेदा लगाना ठीक नहीं है, फिर भी यह कहने का भी कोई कारण नहीं है कि सीमांत खेतों और बंजर जमीन में सफेदा लगाना अनुचित है।”

जल्दी-जल्दी सफेदे को ही बार-बार उगाते रहने का असर मिट्टी के सत्व पर जरूर पड़ता है। यूकोलिप्टस फॉर फार्मिंग नामक अपनी पुस्तक में श्री चतुर्वेदी लिखते हैं, “कई जगह देखा गया है कि दूसरे चक्र में खराबी आने लगती है। सफेदा तेजी से बढ़ता है और व्यापारिक खेती में जल्दी-जल्दी काटा जाता है। इसलिए उसमें पानी और पोषक तत्व दोनों ज्यादा लगते हैं। ऐसे में, जिस मात्रा में फसल ली जाती है उसी अनुपात में मिट्टी में पोषक तत्व वापस नहीं हो पाते। इसलिए सफेदे के साथ दूसरे ऐसे पेड़ भी लगाना ठीक होगा जो नाइट्रोजन बढ़ाते हों, जिनकी जड़े कम गहरी जाती हों और पत्ते और टहनियां ज्यादा हों। ऐसे पेड़ों के बारे में और उनके लगाने के चक्र के बारे में शोध होने चाहिए।”

पेड़ में पोषक तत्वों के पुनरावर्तन की अच्छी क्षमता उनकी पूरी बढ़त के बाद आती है। लेकिन आर्थिक लाभ कमाने के लिए सफेदा 8-10 साल के पहले ही काट लिया जाता है। कोलार जिले में तो किसान तीन या पांच साल में ही उसका दूसरा चक्र शुरू कर देते हैं। श्री चतुर्वेदी कहते हैं कि तेजी से बढ़ने वाले पेड़ो को कम अवधि में ही काट लेने से निश्चित ही मिट्टी के सूक्ष्म पोषक तत्व घटते हैं। उनके घटने की मात्रा मिट्टी की गहराई के अनुसार अलग-अलग होती है। ठीक ध्यान न देने पर मिट्टी का उपजाऊपन भी समाप्त हो जाता है। तब चार-पांच बार फूट आना असंभव होता है। हरियाणा, पंजाब और तराई क्षेत्र में तो दूसरी फूट के समय ही उपजाऊपन में कमी देखी गई है। संक्षेप में, सफेदे के पेड़ स्थाई जंगल का काम नहीं दे सकते। कीमतें गिरने पर या किन्हीं दूसरें कारणों से जब किसानों को सफेदे की खेती को वापस अनाज की खेती में बदलना पड़ेगा तो वे पाएंगे कि मिट्टी बिलकुल बेजान हो चुकी है।

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