मिट्टी के गणेश की मुहिम तेज

3 Sep 2016
0 mins read

पीओपी की परत जलस्रोतों की तली में जाकर इसे उथला करती हैं, वहीं पानी को धरती में रजने से भी रोकता है। यह तली में सीमेंट की तरह जम जाता है और पानी को रिसने से रोक देता है। पीओपी की प्रतिमा पर हानिकारक रासायनिक रंग लगाए जाते हैं, ये जब पानी में घुलते हैं तो इनके विषाक्त प्रभाव से पानी में रहने वाले जलीय जन्तुओं और मछलियों के लिये घातक असर छोड़ते हैं। इससे हमारी नदियाँ, तालाब और अन्य जलस्रोत भी प्रदूषित होते हैं और उनका पानी उपयोग के काबिल नहीं रह जाता है। स्वस्थ पर्यावरण के लिये जरूरी है कि हमारे जलस्रोत निर्मल बने रहें। लेकिन हर साल गणेशोत्सव और दुर्गा पूजा के अवसर पर देश भर में लाखों प्रतिमाएँ और निर्माल्य (पूजा सामग्री) नदियों, तालाबों या अन्य जलस्रोतों में विसर्जित की जाती है। इससे बड़े पैमाने पर प्रदूषण बढ़ता है और इनका पानी उपयोग के लायक नहीं बचता। बीते साल मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने इसके खिलाफ कड़े कदम उठाने और पीओपी (प्लास्टर ऑफ पेरिस) से बनी प्रतिमाओं की बिक्री पर पाबन्दी लगा दी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में भी देश को इस चिन्ता से अवगत कराते हुए अपील की थी कि देश के लोग ज्यादा-से-ज्यादा मिट्टी की प्रतिमाओं की ही स्थापना करें ताकि पर्यावरण को किसी तरह से नुकसान नहीं हो।

अब गणेशोत्सव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे मध्य प्रदेश में प्रतिमा स्थापना में मिट्टी की गणेश प्रतिमाएँ स्थापित किये जाने पर जोर दिया जा रहा है। प्रशासन, पर्यावरण से जुड़े संगठन और सामाजिक संस्थाएँ इस पर खासा फोकस कर रही हैं। हालांकि इन सब प्रयासों के बावजूद अब भी बाजारों में पीओपी की प्रतिमाएँ देखी जा रही हैं।

मन की बात में प्रधानमंत्री के आग्रह का असर देश के लोगों पर हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बच्चों व युवाओं का आह्वान किया कि वे गणेश और दुर्गा की मूर्तियाँ बनाने के लिये मिट्टी का उपयोग करें। उन्होंने रेडियो पर प्रसारित 'मन की बात' कार्यक्रम में अपने सम्बोधन में कहा कि पीओपी के स्थान पर मिट्टी की मूर्तियाँ बनाकर हमें अपने पुरानी परम्परा वापिस लानी चाहिए और पर्यावरण, नदी-तालाबों की रक्षा के साथ होने वाले प्रदूषण से पानी के छोटे-छोटे जीवों की रक्षा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पर्यावरण के अनुकूल गणेशोत्सव भी समाज सेवा का काम है।

उनके इस आग्रह से पहले ही इस दिशा में काम कर रहे संगठनों और संस्थाओं को प्राण वायु मिली है और वे दुगने उत्साह से इस काम को अब आगे बढ़ा रहे हैं। प्रधानमंत्री के आह्वान पर देश में अनेक स्थानों पर गणेश की मूर्तियों का निर्माण मिट्टी से हो रहा है। ऐसी ही एक पहल भोपाल में 'नर्मदा समग्र' द्वारा नर्मदा नदी के क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर 'आओ बनाएँ अपने हाथों अपने गणेश की मूर्ति' कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है।

नर्मदा समग्र इससे पहले भी नर्मदा के किनारों पर स्थित गाँवों और कस्बों-शहरों में मिट्टी और पेपर से प्रतिमाएँ बनाने के काम में जुटी रही हैं लेकिन इस बार रंगों की जगह प्रतिमाओं के साज सज्जा के लिये भी रंगों की जगह खाद्य पदार्थों के उपयोग को शुरू किया जा रहा है। ताकि जलीय जीवों को खाद्य पदार्थ मिल सके। इसमें तरह-तरह की दाल, अनाज, बीज और मछलियों का खाना सहित अन्य खाद्य पदार्थ शामिल होंगे।

भोपाल में नर्मदा समग्र द्वारा आयोजित कार्यशाला में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अनिल माधव दवे ने बच्चों और युवाओं को मिट्टी से मूर्ति बनाने की प्रेरणा दी। इसमें मिट्टी की प्रतिमाओं पर रासायनिक रंगों की जगह खाद्य पदार्थ और सूखे फल आदि से उन्हें सजाया जाएगा ताकि विसर्जन करने पर ये पानी के जीवों के लिये खाद्यान्न के काम आ सके।

उन्होंने कहा कि प्रेरणा प्रधानमंत्री की, प्रयत्न हमारा, आओ बचाएँ पानी और पर्यावरण। यह कार्यशाला भोपाल में 4 सितम्बर तक चलेगी। अभी तक यह प्रशिक्षण अमरकंटक से भरूच तक हजारों बच्चों को दिया जा चुका है।

राज्य सरकार ने भी पीओपी की प्रतिमाओं की बिक्री रोकने तथा लोगों को मिट्टी की प्रतिमाएँ स्थापित करने के लिये प्रेरित करने की दिशा में कई कदम उठाए हैं। इसे धार्मिक आस्था के साथ भी जोड़ा जा रहा है। धार्मिक आस्था के मुताबिक पार्थिव पूजा मिट्टी की प्रतिमाओं की पूजा को ही शास्त्र और धर्म सम्मत बताया गया है।

पर्यावरण विभाग के आयुक्त अनुपम राजन बताते हैं कि शास्त्रों में विसर्जित करने वाली प्रतिमाओं को मिट्टी, गाय के गोबर, हल्दी, सुपारी और गोमूत्र से बनाए जाते रहे हैं, ये सभी पदार्थ जलस्रोतों के पानी में अच्छी तरह से घुल जाते हैं और किसी तरह का इनका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है। नदी-तालाब की तलछट को प्रदूषित भी नहीं करती वहीं पीओपी अघुलनशील, तलछट के लिये हानिकारक और रासायनिक रंग पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिये दुष्प्रभावी हैं। यह सन्देश लोगों के बीच ले जाया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि पीओपी प्रतिमाओं को एक दिन या एक आदेश से ही बिक्री पर पाबन्दी सम्भव नहीं है। क्योंकि लोगों को आसानी से इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमाएँ मिल नहीं पातीं, इसलिये लोग पीओपी की प्रतिमाएँ खरीदते हैं। फिर भी हर जिले में प्रशासन इस पर नजर बनाए हुए है। पाबन्दी से पहले इसके दुष्प्रभावों से लोगों को आगाह करना और मिट्टी के गणेश बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जाना जरूरी है। अब धीरे-धीरे लोग समझने लगे हैं।

उन्होंने बताया कि पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन (एप्को) इसके लिये विशेष प्रयास कर रहा है। भोपाल में 1 से 3 सितम्बर तक मिट्टी की इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमाएँ निशुल्क मिलेंगी। तीन स्थानों पर लगाए गए एप्को के स्टॉल से लोग अपनी पसन्द की गणेश प्रतिमा घर ले जा सकेंगे। इसके अलावा विभिन्न स्कूलों में एप्को के वाहन पहुँचेंगे। दरअसल, यहाँ लोगों को अपने हाथ से मिट्टी की गणेश प्रतिमा बनाना सिखाया जाएगा। मिट्टी भी यहीं से मिलेगी। एप्को के कारीगरों के निर्देशन में हाथों हाथ अपनी पसन्दीदा गणेश प्रतिमा बनाकर अपने घर ला सकते हैं।

आयुक्त अनुपम राजन ने बताया कि पीओपी से होने वाली हानियों से जन-सामान्य को अवगत कराने और इको फ्रेंडली गणेश मूर्ति के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये विभिन्न स्थान पर प्रशिक्षण का आयोजन किया जा रहा है।

प्राय: घरों में स्थापित की जाने वाली मूर्तियाँ पीओपी और रासायनिक रंगों से बनी होती हैं, जो विसर्जन पर पर्यावरण समस्याओं को जन्म देती हैं। प्रशिक्षण वाहन में कच्ची मिट्टी से आसान और रोचक तरीके से मूर्ति बनाना सिखाया जाएगा। लोग मात्र 5 मिनट में ही अपने खुद के गणेश जी बना लेंगे। विसर्जन भी घरों में ही पानी के किसी भी पात्र में आसानी से हो जाएगा।

कुछ संगठन और संस्थाएँ अपने तईं इस प्रयास में जुटी हैं। भोपाल में ही संस्था माटी के गणेश पर्यावरण और जलस्रोतों को बचाने की मुहिम से जुड़ी है। यहाँ इको फ्रेंडली प्रतिमाएँ बनाकर इन्हें संस्था की वेबसाइट पर ऑनलाइन उपलब्ध कराए जाते हैं। बीते साल इन्होंने 500 गणेश प्रतिमाएँ बनाई थीं और इस बार 11 हजार प्रतिमाओं का लक्ष्य रखा गया है।

हालांकि लगातार बारिश की वजह से अब तक केवल 3 हजार प्रतिमाएँ ही बन सकी हैं। इससे बेरोजगार युवाओं तथा गृहिणियों को भी जोड़ा गया है। 40 से ज्यादा महिलाएँ इसमें जुड़ी हैं।

यहाँ प्रतिमाएँ बनाने के लिये चाक मिट्टी या मुल्तानी मिट्टी, कागज की रद्दी, गोंद, गंगाजल, गाय का गोबर, गोमूत्र, शहद, रोली, हल्दी का उपयोग किया जाता है। मूर्तियाँ बनाते समय म्युजिक सिस्टम पर मंत्रों का उच्चारण जारी रहता है।

मिट्‌टी में सामग्री मिलाकर उसे आटे की तरह गूँथते हैं, फिर साँचे में 2 गोले बनाकर साँचों के पल्लों में मिट्‌टी भरने के बाद उन्हें जोड़ देते हैं। कुछ देर बाद साँचे को हटाकर सूंड और हाथ गोंद की मदद से चिपका देते हैं। अब रंग भरकर सूखने के लिये रख देते हैं। इस तरह इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा तैयार हो जाती है। 12 प्रकार की 4 से 14 इंच ऊँचाई की इन प्रतिमाओं की कीमत 101 रु. से लेकर 4501 रु. तक होती है।

संस्था के प्रबन्ध निदेशक सृजन वर्मा उत्साहित होकर बताते हैं कि जल प्रदूषण को कम करना और इसके बुरे असर से लोगों को आगाह करना ही इनका मकसद है। इन्हें किसी नदी-तालाब में विसर्जित करने की जरूरत नहीं है, आप अपने घर में ही एक बाल्टी पानी में विसर्जित कर सकते हैं। ये 8-10 घंटे में ही पानी में घुल जाती है। इस पानी को बगीचे या किसी पौधे में डाल सकते हैं।

इसके अलावा पूरे प्रदेश में बड़े पैमाने पर प्रयास किये जा रहे हैं। इंदौर के अहिल्या विश्वविद्यालय में लाइफ लोंग लर्निंग डिपार्टमेंट ने युवाओं के लिये कार्यशाला में दर्जनों विद्यार्थियों ने मिट्टी की प्रतिमा के बनाने के गुर सीखे। यहाँ पेपरमेसी क्ले से भी प्रतिमा बन रही है और इन्हें बिक्री के लिये भी रखा गया है।

सागर जिले में बीते साल की तुलना में दुगनी 40 हजार मिट्टी की प्रतिमाएँ बन रही हैं। खंडवा में रोट्रेक्ट क्लब सहित कुछ संस्थाएँ मात्र 11 रुपए में इन्हें बाँट रही हैं। विदिशा के गंजबासौदा में बेतवा और अन्य सहायक नदियों में प्रदूषण से बचने के लिये विशेष प्रयास किये जा रहे हैं। यहाँ नगरपालिका अध्यक्ष मधुलिका अग्रवाल ने बताया कि हर साल 8 हजार से ज्यादा प्रतिमाएँ बनती हैं इस बार मिट्टी से प्रतिमाएँ बनाने वाले कलाकारों का सम्मान किया जाएगा।

छिंदवाड़ा के बच्चे भी इस मुहिम में आगे आये हैं। उन्होंने स्कूलों में प्रतिमाएँ बनाना सीखा और प्रदूषण के खिलाफ इसे लोगों तक पहुँचाने का संकल्प भी लिया है। इसी तरह का संकल्प और जज्बा शाजापुर के विद्यार्थियों का भी है। यहाँ बच्चे खुद तो मिट्टी के गणेश बना ही रहे हैं, वे लोगों को इसका सन्देश भी दे रहे हैं। यहाँ महिलाएँ भी अब आगे आकर मिट्टी की प्रतिमाएँ बनाना सीख रही हैं। स्थानीय गायत्री शक्तिपीठ पर अब तक 50 मिट्टी और 50 सुपारी के गणेश लोगों ने लिये हैं। छत्तीसगढ़ के रायपुर में कैदियों के हाथों बने मिट्टी के गणेश भी अब बाजार में आ चुके हैं। यहाँ माटी कला बोर्ड भी इस काम में जुटा है।

देवास में प्रशासन ने पीओपी की प्रतिमाओं पर रोक लगाने के साथ ही करीब सवा सौ साल पुराने रियासतकालीन मीठा तालाब और क्षिप्रा नदी में विसर्जन पर रोक लगाई है। ग्वालियर, हरदा, होशंगाबाद, धार, उज्जैन, मंदसौर, खरगोन जिलों में भी लोग जुटे हैं।

कुछ सालों पहले तक इस अवसर पर पीओपी से बनी प्रतिमाओं को ही धड़ल्ले से स्थापित कर इन्हें पूजा के बाद नदियों, तालाबों और अन्य जलस्रोतों में प्रवाहित कर दिया जाता रहा है। लेकिन इससे जलस्रोतों को बड़े पैमाने पर प्रदूषण बढ़ता है और जलीय जन्तुओं को भी बहुत नुकसान होता रहा है।

पीओपी की परत जलस्रोतों की तली में जाकर इसे उथला करती हैं, वहीं पानी को धरती में रजने से भी रोकता है। यह तली में सीमेंट की तरह जम जाता है और पानी को रिसने से रोक देता है। पीओपी की प्रतिमा पर हानिकारक रासायनिक रंग लगाए जाते हैं, ये जब पानी में घुलते हैं तो इनके विषाक्त प्रभाव से पानी में रहने वाले जलीय जन्तुओं और मछलियों के लिये घातक असर छोड़ते हैं। इससे हमारी नदियाँ, तालाब और अन्य जलस्रोत भी प्रदूषित होते हैं और उनका पानी उपयोग के काबिल नहीं रह जाता है।

यह बदलाव सुखद है, धीरे-धीरे ही सही... बदलाव अब नजर आने लगा तो है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading