मीठे गाजर लगाओ खरपतवार भगाओ

भारतीय किसानों ने एक बार पुनः सिद्ध कर दिया है कि खेती के प्रयोग वातानुकूलित बंद कमरों में नहीं किए जा सकते। खेतों में खरपतवार नष्ट करने के लिए बजाए रासायनिक पदार्थों के गाजर का इस्तेमाल भारतीय किसानों की विशेषज्ञता को सिद्ध करता है। विश्वविद्यालय का कहना है कि वह 15 वर्ष पूर्व ऐसा सफल परीक्षण कर चुका है। उनका यह कथन आंशिक रूप से सही पर यह सिद्ध करता है कि भारतीय कृषि वैज्ञानिक बड़ी कंपनियों से संचालित हैं। वरना वे अपने सफल प्रयोग पर जमी धूल को डेढ़ दशक तक झाड़ क्यों नहीं पाए?

खरपतवार की वजह से भारत के किसानों को प्रतिवर्ष 52,000 करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ता है। इन्हें हाथ से उखाड़ने और रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से लागत भी बढ़ती है। वहीं कीटनाशक तो इसका कोई हल ही नहीं क्योंकि कुछ ही समय में खरपतवार इसकी आदी हो जाती है। इस दौरान महाराष्ट्र के किसानों ने प्रयोगों के माध्यम से यह पाया कि खेत में गाजर लगाने से खरपतवार समाप्त हो जाती है। चूंकि इनकी पत्तियां बहुत घनी होती हैं अतएव सूर्य की रोशनी जमीन तक नहीं पहुंचती, परिणामस्वरूप खरपतवार नष्ट हो जाती है। मराठवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं कि खरपतवार को खेत से बाहर करने हेतु गाजर एक अच्छा माध्यम है।

शोलापुर और बीड़ जिले के किसानों का कहना है कि गाजर लगाने के अगले वर्ष भी खरपतवार कम उगती है। दो हेक्टेयर में टमाटर की खेती करने वाले सोलापुर के मोडनिंब गांव के प्रकाश मलिक पिछले लगभग 10 वर्षों से खरपतवार से परेशान हैं। वह अपने खेतों में उगने वाली गाजरघास (पार्थेनियम) एवं हरेली से छुटकारा पाने के लिए ट्रैक्टर से गहरी खुदाई, हाथ से खरपतवार उखाड़ना और खरपतवारनाशकों तक का इस्तेमाल कर चुके हैं। उनका कहना है ‘खरपतवार टमाटर के पौधों से भी बड़ी हो जाती हैं और उनको नुकसान पहुंचाती हैं। मुझे एक एकड़ में 5 टन का नुकसान सहना पड़ रहा था।’

उन्हें इससे छुटकारा तब मिला जब उनके पड़ौसी महादेव मनाले ने यह बताया कि पिछले साल उन्होंने गाजर लगाई थी और इस वर्ष उनके खेत में खरपतवार नहीं है। पड़ौसी की सलाह पर मलिक ने आधा एकड़ में गाजर लगाई और नतीजों ने उसे चौंका दिया। मलिक का कहना है गाजर तेजी से बढ़कर सारी जमीन पर छा जाती है, जिससे खरपतवार को पनपने का मौका ही नहीं मिलता। दो माह के अंदर 6 टन फसल से उन्हें 30 हजार रुपए की आमदनी हुई, उनके तीन पशुओं को दो महीने का हरा चारा भी मिल गया और इसके अलावा उन्हें 6 हजार रुपए की अतिरिक्त बचत खरपतवारनाशक, इसे उखाड़ने, कीटनाशक व सिंचाई में खर्च न करने की वजह से हुई।

बीड़ जिले के नलवाड़ी गांव के आसाराम काले ने महज फसल आवृत्ति के अभ्यास के रूप में 2008 में इसी भूमि पर सोयाबीन लगाई और इस पर खरपतवार का प्रभाव बहुत कम रहा। मलिक ने पहले जहां गाजर लगाई थीं वहां पर अब गंवारफली और धनिया की बुआई करी है। मलिक जिनके पास का खेत हराली से अटा पड़ा है, का कहना है ‘मेरे खेत में हराली का नामोनिशान नहीं है। साथ ही बहुत छोटी गाजरघास नजर आ रही है।’ वह इस वर्ष इस खेत में भी गाजर बोना चाह रहे हैं।

विश्वविद्यालय में कृषि विज्ञान के सह प्राध्यापक आनंद गोरे का कहना है कि ‘चूंकि गाजर की जड़ें मिट्टी में गहरी जाती हैं और इसे मुलायम भी करती हैं अतएव फसल उखाड़ते समय गाजर के साथ खरपतवार की जड़ें व अन्य कंद भी बाहर आ जाते हैं।’ उनका यह भी कहना है कि एक मौसम में गाजर बो देने से अगले मौसम में भी खरपतवार कम उगती है। गोरे पंद्रह वर्ष पूर्व हुए उस प्रयोग में शामिल थे, जिसमें गन्ने के साथ गाजर को बोया गया था। इसके बहुत अच्छे परिणाम सामने आए थे। उनका कहना है कि ‘हमारा उस समय का यह अनुभव रहा था कि खेत में खरपतवार की मात्रा में कमी आई थी।’

विश्वविद्यालय ने उस समय इसकी अधिक सुध नहीं ली क्योंकि तब तक खरपतवार महामारी नहीं बनी थी और गाजर छोटी-मोटी फसल थी। परंतु अब उनका कहना है ‘अब हम गाजर के प्रयोग की सफलता की कहानियां सुन रहे हैं। हम इसका अध्ययन करेंगे और कोशिश करेंगे कि अधिक विश्लेषणात्मक आकलन कर सकें।’ वहीं अध्यापक अब अनौपचारिक तौर पर किसानों को गाजर संबंधी जानकारियां दे रहे हैं।

वैसे तो किसान इस प्रयोग से प्रसन्न हैं परंतु वे सचेत रहने की सलाह भी दे रहे हैं। मनाले का कहना है, ‘अभी यह प्रयोग इसलिए सफल है क्योंकि गाजर का बाजार भाव अच्छा है। अगर सभी किसान गाजर लगाने लग जाएंगे तो बाजार में भाव गिर जाएंगे।’ वह अब रतालू लगाकर नया प्रयोग करने जा रहा है। क्योंकि रतालू भी तेजी से बढ़ता है और इसकी बेल जमीन पर छा भी जाती है। इस प्रकार यह खरपतवार से निपटाने का एक और विकल्प हो सकता है। वहीं गोरे का कहना है ‘सब्जियों एवं पत्तियों की अन्य किस्मों को लेकर भी ऐसे प्रयोग किए जाने जरुरी हैं, जिससे किसान विविधता कायम रख सकें और लाभ भी अर्जित कर सकें। साथ ही फसलों के बीच में दूसरी फसल लगाने की संभावनाओं का भी परीक्षण करना चाहिए। (सप्रेस/सीएसई, डाउन टू अर्थ फीचर्स)

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