मनरेगा और पंचायती राज

मनरेगा के लागू होने के बाद पंचायती राज व्यवस्था काफी सुदृढ़ हुई है। सबसे ज्यादा फायदा यह हुआ है कि ग्रामीणों का पलायन रुका है। लोगों को घर बैठे काम मिल रहा है और निर्धारित मजदूरी भी। मजदूरों में इस बात की खुशी हैं कि उन्हें काम के साथ ही सम्मान भी मिला है। कार्यस्थल पर उनकी आधारभूत जरूरतों का भी ध्यान रखा गया। अब गाँव के हर नागरिक की जुबां पर मनरेगा का नाम सुनने में आया है। उन्हें विश्वास है कि मनरेगा के जरिए वे कम से कम दो वक्त की रोटी का इन्तजाम जरूर कर सकते हैं। उन्हें यह कहते हुए खुशी होती है कि अब गाँव-शहर एक साथ चलेगा।देश की करीब 70 फीसदी आबादी गाँवों में रहती है। ग्रामीणों का पलायन रोकने और उन्हें गाँव में ही रोजगार मुहैया कराने के लिए केन्द्र सरकार की ओर से विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं। यूपीए सरकार ने इस दिशा में दो कदम आगे बढ़ते हुए हर व्यक्ति को रोजगार मुहैया कराने की चुनौती स्वीकार की। चूँकि ग्रामीण विकास मन्त्रालय की ओर से पहली प्राथमिकता ग्रामीण क्षेत्र का विकास और ग्रामीण भारत से गरीबी और भुखमरी हटाना है। ग्रामीण क्षेत्रों में गाँव और शहर के अन्तराल को पाटने, खाद्य सुरक्षा प्रदान करने और जनता को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए सामाजिक और आर्थिक आधार पर लोगों को सुदृढ़ करना जरूरी है। इसलिए सरकार की ओर से एक नयी पहल की गई।

मनरेगा और पंचायती राज 1यूपीए सरकार ने विकसित एवं विकासशील देशों की स्थिति की समीक्षा की। तय किया कि वह देश के हर नागरिक को रोजगार उपलब्ध कराएगी। बेरोजगारी विकास में किसी न किसी रूप में बाधक बनती है। सरकार का मानना है कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम की तरह सरकार की ओर से ऐसे प्रावधान बनाए गए कि यदि किसी भी व्यक्ति को रोजगार नहीं मिलता है तो उसे बेराजगारी भत्ता देना सरकार की जिम्मेदारी होगी। इसी जिम्मेदारी की उपज है राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना (एनआरईजीए) यानी नरेगा। इस योजना का नाम बीते दो अक्टूबर से महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना कर दिया गया है। लेकिन गाँव की हर जुबां पर अभी भी नरेगा ही है।

हालांकि पूर्ववर्ती सरकारों की ओर से भी ग्रामीणों को रोजगार मुहैया कराने के लिए विभिन्न प्रयास किए जा चुके हैं। इसके तहत अब तक रूरल मैन पावर (आरएमपी) (1960-61), क्रेश स्कीम फॉर रूरल एम्प्लायमेंट (सीआरएसई) (1971-72), नमूना सघन ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (पीआईआरपी) (1972), लघु कृषक विकास एजेन्सी (एसएफडीए), सीमान्त कृषक एवं कृषि श्रमिक योजना (एमएफएएल) आदि कार्यक्रम चलाए जा चुके हैं। समय और जनता की जरूरत के हिसाब से योजनाओं को परिमार्जित कर नए रूप में लोगों के सामने पेश किया गया।

वर्ष 1977 में काम के बदले अनाज योजना शुरू की गई। अस्सी के दशक में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (एनआरईपी), ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम शुरू किए गए। इसी तरह जवाहर रोजगार योजना (जेआरवाई) (1993-94), रोजगार आश्वासन योजना को मिलाकर वर्ष 1999-2000 में जवाहर ग्राम समृद्धि योजना शुरू की गई। 2000-01 में इस कार्यक्रम को संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (एसजीआरवाई) तथा 2005 में राष्ट्रीय काम के बदले अनाज योजना कार्यक्रम में शामिल कर लिया गया। इन योजनाओं के बाद भी पूरे देश से हर व्यक्ति रोजगार से नहीं जुड़ पाया।

वर्ष 2005 में यूपीए सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम पारित किया। इसे 2 फरवरी, 2006 को लागू किया गया। इस अधिनियम के तहत ही राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना (एनआरईजीएस) का संचालन हो रहा है। जबकि स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के जरिए स्वरोजगार प्रदान किया जा रहा है।

एनआरईजीए यानी जिसे ज्यादातर इलाके में नरेगा के नाम से प्रसिद्ध मिली है, इस कानून को 7 सितंबर, 2005 को अधिसूचित किया गया। इसमें व्यवस्था की गई कि रोजगार माँगने वालों के लिए रोजगार की व्यवस्था करना सरकार की कानूनी जिम्मेदारी है। अगर सरकार रोजगार नहीं मुहैया करा सकती है तो उसे बेरोजगारी भत्ता देना होगा। इस तरह देखा जाए तो इस अधिनियम के बाद देश के हर नागरिक को रोजगार की गारण्टी मिल गई। इस योजना में किसी प्रकार की खामियां न रहने पाए, इसलिए इसे चरणवार लागू किया गया।

पहले देश के दो सौ जिलों में इसे लागू कर स्थितियों एवं भविष्य में सामने आने वाली अड़चनों को दूर किया गया। योजना अपने उद्देश्य में सफल होती दिखी तो इसे अलग-अलग चरणों में पूरे देश में लागू किया गया है। यूपीए सरकार मनरेगा में समय के अनुसार विभिन्न योजनाओं को शामिल करती जा रही है। इससे योजना अपने उद्देश्य में पूरी होती नजर आ रही है।

वर्ष 2006-07 में 6204.09 करोड़ वेतन दिया गया। जबकि करीब 90.50 करोड़ मानव दिवस रोजगार उपलब्ध कराए गए। इस योजना के तहत करीब 8 लाख ऐसे कार्य हाथ में लिए गए जिनका लक्ष्य टिकाऊ सम्पदा का निर्माण करना था और इनमें 54 फीसदी कार्यों का सम्बन्ध जल संरक्षण और वाटर हार्वेस्टिंग से है। इस योजना में सबसे अधिक फायदा यह हुआ कि अनुसूचित जाति, जनजाति, लघु एवं सीमान्त किसानों को फायदा मिला। न्यूनतम मजदूरी मिल सकी।

फिलहाल ताजा आंकड़ें बताते हैं कि बीते वित्तीय वर्ष में 39100 करोड़ का आवण्टन किया जा चुका है। करीब 4.19 करोड़ ग्रामीण परिवारों को काम मिला है। इस तरह देश के 619 जिलों में 33 लाख से अधिक रोजगार सृजित किए गए।

मनरेगा का मूल उद्देश्य


महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (एनआरईजीए) का उद्देश्य है कि देश के हर नागरिक को आजीविका का साधन मिले। पंचायतें ज्यादा से ज्यादा सशक्त हों। जिस परिवार के सदस्य शारीरिक श्रम करने को तैयार हो, उन्हें हर हाल में एक साल के अंदर सौ दिन का रोजगार मुहैया कराया जाए। इतना ही नहीं इस अधिनियम के स्थायी संपदाओं के संरक्षण के क्षेत्र में अहम कार्य हो रहा है। स्थायी गरीबी को जन्म देने वाले सूखा, वन विनाश, मृदाक्षरण आदि स्थितियों से निबटना भी मनरेगा का उद्देश्य है।

एक तरह से इस अधिनियम ने राज्य सरकारों को भी उनकी जिम्मेदारी का आभास कराया है कि हर व्यक्ति को रोजगार देना उनकी जिम्मेदारी है। रोजगार की 90 फीसदी लागत केन्द्र सरकार वहन कर रही है, लेकिन राज्य सरकारों को इस बात के लिए जवाबदेह बनाया गया है कि यदि वे रोजगार नहीं मुहैया करा पाती है तो उन्हें बेरोजगारी से होने वाले नुकसानों के साथ ही बेरोजगारी भत्ता का भी भुगतान करना होगा।

अधिनियम में क्या खास है


राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम में ग्रामीण इलाकों को विशेष रूप से तवज्जो दिया गया है। हालांकि बाद में कुछ शहरी कार्यों को भी इस योजना में शामिल कर लिया गया है। हर ग्रामीण परिवार को सरकार से सौ दिन का काम माँगने का अधिकार मिल गया है। इसका दूसरा फायदा यह होगा कि ग्राम पंचायतों की भागीदारी भी बढ़ेगी। महिलाओं को भी रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे।

पंचायत की जिम्मेदारी बढ़ी


नरेगा के लिए परिवार का कोई भी वयस्क सदस्य आवेदन कर सकता है। इसके लिए उसे लिखित अथवा मौखिक तौर पर स्थानीय ग्राम पंचायत में अपना पंजीकरण कराना होता है। ये पंजीयन पाँच साल के लिए होता है। समुचित जाँच के बाद आवेदन करने वाले का जॉब कार्ड मिलता है। जॉब कार्ड में परिवार के सभी वयस्क सदस्यों के फोटो लगे होते हैं। एक फोटोयुक्त जॉब कार्ड आवेदक को निःशुल्क दिया जाता है। इसके लिए किसी भी प्रकार की फीस जमा नहीं करनी पड़ती। आवेदक को मात्र सात दिन में कार्ड मिल जाता है।

जॉब कार्ड मिलने के बाद ग्राम पंचायत से लिखित अथवा मौखिक में कार्य के लिए आवेदन किया जा सकता है। आवेदक को यह बताना होता है कि उसे कब और किस अवधि में रोजगार चाहिए। एक बार के आवेदन में उसे न्यूनतम 15 दिन का रोजगार जरूर दिया जाता है। ग्राम पंचायत की यह जिम्मेदारी है कि वह काम के लिए आवेदन मिलने पर आवेदक को तारीख सहित पावती रसीद जारी करे। क्योंकि रसीद पर अंकित तिथि के अनुरूप ही उसे 15 दिन के बाद रोजगार मुहैया कराया जाता है। 15 दिन के अन्दर आवेदक को रोजगार नहीं मिलता है तो उसे दैनिक मजदूरी के हिसाब से बेरोजगारी भत्ता देना होगा।

बेरोजगारी का हिसाब सम्बन्धित राज्य में निर्धारित न्यूनतम (न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948) पर आधारित है। यह भी व्यवस्था दी गई कि यदि केन्द्र सरकार कोई दर निर्धारित करती है तो वही लागू होगी जो किसी भी हाल में 60 रुपये प्रतिदिन से कम नहीं होगी। इस योजना में सामूहिक रूप से भी आवेदन किया जा सकता है। इस तरह देखा जाए तो रोजगार उपलब्ध कराने की प्रमुख जिम्मेदारी ग्राम पंचायत की है। यानी ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी बढ़ गई है। वह पहले से ज्यादा सशक्त हो गई है। अब उसे अपने गाँव के मजदूरों को काम दिलाने के लिए दूसरों का मुंह नहीं ताकना पड़ता। साथ ही यह भी फायदा हुआ कि ग्राम पंचायत प्रस्ताव पारित करके ज्यादा से ज्यादा विकास कार्य कर सकती है।

मजदूरी भुगतान प्रक्रिया


मजदूरी का भुगतान साप्ताहिक आधार पर किया जाता है। किसी भी काम के लिए अधिकतम 15 दिन के भीतर मजदूरी भुगतान करना अनिवार्य है। नियोजक और क्रियान्वयन में पंचायती राज संस्थाओं की केन्द्रीय भूमिका है। अधिनियम में पहले यह व्यवस्था दी गई थी कि काम शुरू होते वक्त मजदूरों की संख्या कम से कम 50 होनी चाहिए, लेकिन अब इसे परिवर्तित कर 10 कर दिया गया है। मजदूरी का भुगतान मेट की ओर से तैयार की गई मास्टर रोल के हिसाब से किया जाएगा। इसके लिए जॉब कार्डधारी का पोस्ट ऑफिस अथवा बैंक में खाता खोला गया है।

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कौन से काम होंगे


जिला स्तर पर एक सूची तैयार की जाएगी कि रोजगार मुहैया कराए जाने के लिए कौन-सी परियोजना शुरू की जाए। इसमें—

1. जल संरक्षण
2. सूखे की रोकथाम के तहत वृक्षारोपण
3. बाढ़ नियंत्रण
4. भूमि विकास
5. विभिन्न तरह के आवास निर्माण
6. लघु सिंचाई
7. बागवानी
8. ग्रामीण सम्पर्क मार्ग निर्माण
9. कोई भी ऐसा कार्य जिसे केन्द्र सरकार राज्य सरकारों से सलाह लेकर अधिसूचित करें।

जिला स्तर पर बनने वाली परियोजनाओं की सूची को अन्तिम रूप ग्राम सभा की ओर से तैयार की गई प्राथमिकता के आधार पर दिया जाएगा। कम से कम 50 फीसदी कामों के क्रियान्वयन का जिम्मा ग्राम पंचायतों का होगा।

मशीनरी का प्रयोग वर्जित इस योजना में किसी भी कीमत पर ठेकेदारों अथवा श्रम विस्थापन मशीनरी का इस्तेमाल नहीं होगा।

कार्यस्थल पर सुविधाएं



इस अधिनियम के तहत कार्यस्थल पर श्रमिकों को सुविधाएं देने का प्रावधान किया गया है। यदि कार्यस्थल पर कोई भी श्रमिक घायल हो जाता है तो उसके इलाज के लिए फर्स्ट एड रखा रहेगा। यदि किसी श्रमिक की मौत हो जाती है अथवा वह स्थायी तौर पर विकलांग हो जाता है तो उसे मुआवजा दिया जाएगा। घायल मजदूर का इलाज कराने की जिम्मेदारी सरकार की होगी। कार्य के दौरान मौत होने पर 25 हजार रुपये अनुग्रह राशि दी जाएगी। स्थायी तौर पर विकलांग होने वाले को भी 25 हजार रुपये दिए जाते हैं।

महिलाओं को विशेष तवज्जो



इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई है कि ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी होगी कि वह काम में कम से कम एक तिहाई महिलाओं को रोजगार दे। कार्यस्थल पर उनके बच्चों के लिए पालना आदि की भी व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। पुरुष के बराबर ही महिलाओं को भी मजदूरी प्रदान की जाएगी। यदि कार्यस्थल पर महिलाएँ अपने साथ छह वर्ष से कम उम्र के बच्चे लेकर आती हैं और उनकी संख्या पाँच या उससे अधिक है तो एक महिला बच्चों की देखरेख में लगेगी। लेकिन उसे मजदूरी पूरी मिलेगी। कार्यस्थल पर पेयजल का इन्तजाम हो, काम करने वाले मजदूरों के नाम रजिस्टर में दर्ज होंगे और कार्यस्थल निरीक्षण के लिए खुले रहते हैं। श्रमिक को उसके मूल स्थान से अधिकतम पाँच किलोमीटर के दायरे में काम दिया जाता है।

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कहाँ से आता है पैसा



अधिनियम में केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार की जिम्मेदारी अलग-अलग तय की गई है। इस योजना में होने वाले खर्च में कुल मिलाकर 90 फीसदी केन्द्र सरकार देगी बाकी 10 फीसदी धन राज्य सरकार लगाएगी। इसमें केन्द्र सरकार के जिम्मे अकुशल शारीरिक श्रमिक के वेतन की पूरी लागत, सामग्री लागत, कुशल एवं अर्धकुशल मजदूरों के वेतन का 75 प्रतिशत, केन्द्र सरकार की ओर से निर्धारित प्रशासकीय व्यय कार्यक्रम अधिकारी सहित इस कार्य की निगरानी में लगे अन्य कर्मचारियों के वेतन भत्ते तथा कार्यस्थल की सुविधाओं का लागत खर्च होगा। जबकि राज्य सरकार के जिम्मे सामग्री की लागत, मजदूरों के वेतन 25 फीसदी, बेरोजगारी भत्ते का भुगतान, राज्य रोजगार गारण्टी परिषद के प्रशासकीय खर्चे। इतना ही नहीं सभी जिला मुख्यालय पर मनरेगा के लिए अलग से खाते खोले गए हैं।

योजना का संचालन



पहले चरण में दो सौ जिलों में यह योजना शुरू की गई, जबकि दूसरे चरण में इसे 113 जिलों में लागू किया गया।

पहले चरण में शामिल 200 जिले (2006-07) : आन्ध्र प्रदेश-13, अरुणाचल प्रदेश-1, असम-7, बिहार-23, छत्तीसगढ़-11, झारखण्ड-20, गुजरात-6, कर्नाटक-5, केरल-2, मध्य प्रदेश-17, उत्तर प्रदेश-23, हरियाणा-2, हिमाचल प्रदेश-2, महाराष्ट्र-12, मणिपुर-1, मेघालय-2, मिजोरम-2, नागालैंड-1, उड़ीसा-18, पंजाब-1, सिक्किम-1, तमिलनाडु-6, त्रिपुरा-1, जम्मू-कश्मीर-3, उत्तराखण्ड-3, पश्चिम बंगाल-10 राजस्थान-6

दूसरे चरण में शामिल 130 जिले (2007-08) : आन्ध्र प्रदेश-6, अरुणाचल प्रदेश-2, असम-6, बिहार-15, छत्तीसगढ़-4, झारखण्ड-2, गुजरात-3, कर्नाटक-6, केरल-2-, मध्य प्रदेश-13, उत्तर प्रदेश-17, हरियाणा-2 महाराष्ट्र-6, मणिपुर-2, मेघालय-3, मिजोरम-2, नागालैंड-4, उड़ीसा-5, पंजाब-3, सिक्किम-2, तमिलनाडु-4, त्रिपुरा-2, उत्तराखंड-2, पश्चिम बंगाल-7, राजस्थान-6

तीसरे चरण में पहले एवं दूसरे चरण में शामिल होने के बाद बचे शेष अन्य सभी 265 जिलों को शामिल किया गया। इस प्रक्रिया को एक अप्रैल 2008 को अन्तिम रूप दिया गया।

क्रियान्वयन की तरकीब


ग्राम पंचायत की भूमिका : योजना के तहत कार्य का प्रस्ताव ग्राम सभा तैयार करती है। ग्राम पंचायत की यह जिम्मेदारी होगी कि वह यह सुनिश्चित करें कि जिस व्यक्ति को कार्य दिया जा रहा है वह वयस्क है या नहीं। जॉब कार्ड जारी करने की भी जिम्मेदारी ग्राम पंचायत की है। आवेदकों के बीच रोजगार बांटने, उन्हें मजदूरी भुगतान करने आदि की निगरानी की जिम्मेदारी ग्राम पंचायत की होगी।

क्षेत्र पंचायत की भूमिका : ग्राम पंचायत स्तर से आने वाले प्रस्ताव का क्षेत्र पंचायत अनुमोदन करेगी। इसके बाद यह प्रस्ताव जिला पंचायत को भेजा जाएगा। जिला पंचायत की ओर से स्वीकृति मिलते ही काम शुरू होगा। क्षेत्र पंचायत अपने इलाके में हो रहे कार्यों की मॉनीटरिंग करेगी।

जिला पंचायत की भूमिका : सभी परियोजनाओं को अन्तिम रूप देने का जिम्मा जिला पंचायत का है। परियोजना की निगरानी की जिम्मेदारी ग्राम पंचयत, क्षेत्र पंचायत के साथ ही जिला पंचायत की भी है।

प्रशासकीय ढांचा


क्षेत्र पंचायत : ब्लॉक स्तर पर योजना की निगरानी के लिए एक अधिकारी की नियुक्ति की गई है, जो बीडीओ स्तर का है। इसे कार्यक्रम अधिकारी कहा जाता है। श्रमिक किसी भी प्रकार की समस्या होने पर कार्यक्रम अधिकारी से शिकायत कर सकते हैं। कार्यक्रम अधिकारी ही ग्राम पंचायत से ब्लॉक तक आने वाली परियोजनाओं को तैयार करता है। रोजगार की डिमाण्ड, रोजगार के अवसर को लेकर समन्वय की जिम्मेदारी कार्यक्रम अधिकारी की है। इसके साथ ही यदि किसी व्यक्ति को रोजगार नहीं मिल पाता है तो उसे बेरोजगारी भत्ता देने की जिम्मेदारी इसी कार्यक्रम अधिकारी की है। वह परियोजनाओं की निगरानी, शिकायतों का निबटारा, नियमित तौर पर सामाजिक लेखा परीक्षा आदि के लिए जिम्मेदार है।

जिला पंचायत स्तर : हर जिले में जिला स्तर पर भी एक अधिकारी नियुक्त किया गया है जिसे जिला समन्वयक कहा जाता है। इस पद की जिम्मेदारी राज्य सरकार सुनिश्चित करती है। जिला पंचायत के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला कलेक्टर अथवा इस रैंक के किसी भी अधिकारी को जिला कार्यक्रम समन्वयक की जिम्मेदारी देने का प्रावधान है। जिला कार्यक्रम समन्वयक की जिम्मेदारी है कि वह योजना में होने वाली किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान करे।

वह इस कार्यक्रम में शामिल विभिन्न एजेंसियों में समन्वय स्थापित करता है। ब्लॉक स्तर से आने वाली शिकायतों के निस्तारण के लिए भी वह जिम्मेदार है। विभिन्न स्थानों पर होने वाले कार्यों की निगरानी की भी जिम्मेदारी जिला कार्यक्रम समन्वयक की होगी। इसके अलावा अब ब्लॉक एवं ग्राम पंचायत स्तर पर भी विभिन्न तरह की व्यवस्था बनाई गई है। निगरानी के लिए अलग-अलग लोगों को जिम्मेदारी सौंपी गई है।

योजना का असर


राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के लागू होने के बाद ग्रामीण इलाके में मजदूरों को सबसे अधिक फायदा हुआ है। उन्हें निर्धारित मजदूरी मिलने लगी है। नरेगा के कार्यान्वयन के बाद कृषि मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी भी बढ़ी है। महाराष्ट्र में यह 47 से बढ़कर 72, उत्तर प्रदेश में 58 से 100, बिहार में 68 से 81, पश्चिम बंगाल में 64 से 75, मध्य प्रदेश में 58 से 85, छत्तीसगढ़ में 58 से 72 इसी तरह अन्य स्थानों पर भी मजदूरी बढ़ी है। इसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरी औसतन 2006-07 में रुपये 65 थी जो 2008-09 में 84 कर दी गई है।

राष्ट्रीय हेल्पलाइन का प्रावधान



केन्द्र सरकार की ओर से यह व्यवस्था की गई है कि कहीं भी किसी प्रकार की शिकायत होने पर कोई भी व्यक्ति सीधे शिकायत कर सकता है। साथ ही इस योजना के सम्बन्ध में आवश्यक पूछताछ कर सकता है। यह पूरी तरह से टोल फ्री है (1800110707)। उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गोवा, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में भी अलग से हेल्पलाइन शुरू की गई है।

सूचना का अधिकार



मनरेगा एक्ट के सेक्शन चार में यह प्रावधान किया गया है कि इस पर भी सूचना के अधिकार लागू होंगे। किसी भी स्तर पर सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी जा सकती है। यह भी प्रावधान किया गया है कि ग्रामीणों को मनरेगा के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाए। समय-समय पर प्रशिक्षण का भी प्रावधान किया गया है। ग्राम पंचायत की ओर से जारी होने वाले जॉब कार्ड, पैसे की प्राप्ति, भुगतान आदि के सम्बन्ध में क्षेत्र पंचायत से जिला पंचायत और राज्य से केन्द्र स्तर पर सूचना दी जाती है। खर्चे का ब्यौरा और कार्य एवं श्रमिकों की संख्या सम्बन्धित जानकारी ग्राम पंचायत से लेकर ग्रामीण विकास मन्त्रालय तक अपडेट की जाती है। इसके लिए बाकायदा मनरेगा की वेबसाइट बनाई गई है।

निष्कर्ष


इस तरह देखा जाए तो नरेगा के जरिए पंचायती राज व्यवस्था और मजबूत हुई है। इस योजना के जरिए तीनों स्तर पर जिम्मेदारी भी बांटी गई है और काम भी। पंचायतों को विभिन्न तरह से विकास कार्य कराने के लिए किसी दूसरे मद से पैसे का इन्तजाम नहीं करना पड़ रहा है। उन्हें भरपूर पैसा भी मिल रहा है और गाँवों में विकास भी हो रहा है। चूँकि यह योजना पूरी तरह से पंचायती राज पर केंद्रित है, इसलिए एक तरफ योजना का क्रियान्वयन सफलतापूर्वक हो सका है तो दूसरी तरफ पंचायती राज व्यवस्था को नया आयाम मिला है।

अब गाँव के हर नागरिक की जुबां पर मनरेगा का नाम सुनने में आता है। उन्हें विश्वास है कि मनरेगा के जरिए वे कम से कम दो वक्त की रोटी का इन्तजाम जरूर कर सकते हैं। मनरेगा में मजदूरी निर्धारित हो जाने से पंचायत स्तर पर चलने वाले लघु उद्योग, दिहाड़ी मजदूरी एवं पंचायती राज व्यवस्था के तहत दूसरी योजनाओं में चलने वाले कामों में भी लोगों को वाजिब मजदूरी मिल रही है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
ई-मेल : chandrabhan0502@gmail.com

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