मोक्षदायिनी गंगा के लिए एकजुट हुए साधु संत
भारत में पवित्रता से गंदगी को दूर रखना, अमृत में जहर को न मिलने देना तथा वर्षा जल और गंदे पानी को अलग-अलग बहने के लिए नदियों को नालों से अलग रखने का विधान था। लेकिन अब लगता है, औद्योगिक घरानों, राजनेताओं तथा सरकारी संस्थानों, नगर पालिकाओं एवं नगर पंचायतों को गंदा जल गंगा में मिलाने की राज-स्वीकृति मिल गई है। गंगा आजादी के बाद गंदगी ढोने वाली गंगा बन गई। अन्न व ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के नाम पर गंगा को बांधों में बांध दिया, जिसके कारण गंगा की अपनी विलक्षण प्रदूषण नाशिनी शक्ति नष्ट हो गई। आस्था की गंगा लगातार मैली हो रही है। पवित्र गंगा मैया आंसू बहा रही है और गंगा की इस गुहार पर देशभर के तमाम साधु संत एकजुट हो गए हैं। क्योंकि गंगा का दुख अब उनसे देखा नहीं जाता।