मप्र की जीवन रेखा खतरे में

28 Jul 2011
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नरसिंहपुर जिले के झासीघाट में मैसर्स टुडे एनर्जी द्वारा 5400 करोड़ की लागत से किया जाएगा। 1200 मेगावॉट क्षमता वाले इस प्लांट के लिए 100 एकड़ जमीन की जरूरत है। इसमें से करीब 700 एकड़ जमीन सरकारी है। करीब 75 लोगों की 300 एकड़ जमीन ली जा चुकी है। इसका निर्माण 2014 तक पूरा किया जाना है। इनके लिए विदेशों से कोयला मंगाने की तैयारी की जा रही है।

मध्यप्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा अगले 10-12 सालों में जहरीली हो जाएगी। अमरकंटक से खंभात की खाड़ी तक करीब 18 थर्मल पावर प्लांट लगाने की तैयारी है। जबलपुर से होशंगाबाद तक पांच पावर प्लांट को सरकार ने मंजूरी दे दी है। इनमें सिवनी जिले के चुटका गांव में बनने वाला प्रदेश का पहला परमाणु बिजलीघर भी शामिल है। यह बरगी बांध के कैचमेंट एरिया में है। परमाणु ऊर्जा का मुख्य केंद्र रहा अमेरिका अब परमाणु कचरे का निष्पादन नहीं कर पा रहा है। इसके बावजूद भारत में इन परियोजनाओं से निकलने वाले परमाणु कचरे की निष्पादन की बात सरकारें नहीं कर रही हैं। इन परियोजनाओं के लिए नर्मदा का पानी देने का करार हुआ है। नरसिंहपुर के पास लगने वाले पावर प्लांट की जद में आने वाली जमीन एशिया की सर्वोत्ताम दलहन उत्पादक है। कोल पावर प्लांट के दुष्परिणामों का अंदाजा सारणी के आसपास जंगल और तवा नदी के नष्ट होने से लगाया जा सकता है। इतने भयंकर परिणामों के बावजूद नर्मदा समग्र अभियान वाली हमारी सरकार नर्मदा जल में जहर घोलने की तैयारी क्यों कर रही है?

दो हजार हैक्टेयर में बनने वाले चुटका परमाणु पावर प्लांट की जद में 36गांव आएंगे। इनमें से फिलहाल चुटका, कुंडा, भालीबाड़ा, पाठा और टाडीघाट गांव को हटाने की तैयारी है। निर्माण एजेंसी न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन और स्थानीय प्रशासन इस बाबत नोटिस दे चुका है। 1400 मेगावाट क्षमता के दो रिएक्टर वाले इस प्लांट में 100 क्यूसेक पानी लगेगा। एक अनुमान के मुताबिक चुटका परमाणु पावर प्लांट में जितना पानी लगेगा,उससे हजारों हैक्टेयर खेती की सिंचाई की जा सकती है। परमाणु बिजली के संयंत्र के ईंधन के रूप में यूरेनियम का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी रेडियोधर्मिता के दुष्परिणाम जन, जानवर, जल, जंगल और जमीन को स्थायी रूप से भुगतने पड़ते हैं। इसका अंदाजा रावतभाटा परमाणु संयंत्र की अध्ययन रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। जानकारों के मुताबिक परमाणु कचरे की उम्र 2.5 लाख वर्ष है। इसे नष्ट करने के लिए जमीन में गाड़ दिया जाए तो भी यह 600 वर्ष तक बना रहता है। इस दौरान भूजल प्रदूषित करता है। चुटका में प्लांट बनने से नर्मदा व सहायक नदियों के प्रदूषित होने की आशंका है। इतना ही नहीं,भूकंप की आशंका भी बढ़ जाती है। वहीं,चुटका में निर्माण एजेंसी अपनी आवासीय कॉलोनी प्लांट से करीब 14 किलोमीटर दूर बना रही है। प्लांट के लिए भूमि सर्वे और भू-अर्जन की कोशिश जारी है, लेकिन आदिवासी और मछुआरे हटने को तैयार नहीं हैं। दरअसल ये सभी बरगी से विस्थापित हैं। हालांकि कंपनी के इंजीनियर करीब 40 फीट गहरा होल करके यहां की मिट्टी और पत्थरों का अध्ययन कर चुके हैं।

राजस्थान में चंबल नदी पर बने 220 मेगावाट के रावतभाटा परमाणु बिजलीघर के 20 साल बाद आसपास के गांवों की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक परमाणु बिजलीघर से होने वाले प्रदूषण के घातक परिणाम लोगों को भुगतने पड़ रहे हैं। संपूर्ण क्रांति विद्यालय बेड़छी,सूरत की इस रिपोर्ट के मुताबिक आसपास के गांवों में जन्मजात विकलांगता के मामले बढ़े हैं। प्रजनन क्षमता प्रभावित होने से निसंतान युगलों की संख्या बढ़ी है। वही का कैंसर, मृत और विकलांग नवजात, गर्भपात और प्रथम दिवसीय नवजात की मौत के मामले तेजी से बढ़े हैं। वहीं लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी प्रभावित हुई है। जन्म और मृत्यु के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर सामने आया कि यहां औसत आयु करीब 12 वर्ष कम हो गई है। लंबे अर्से का बुखार, असाध्य त्वचा रोग,आंखों के रोग,कमजोरी और पाचन संबंधी गड़बडियां भी बढ़ी हैं। इन 20 वर्षों में बारिश के दिनों में हवा में सबसे अधिक प्रदूषण छोड़ा गया। इससे इन गांवों का पानी भी काफी प्रदूषित हो गया है।

220 मेगावाट के प्लांट से 20 सालों में यह स्थिति बनी है,जो 1400 मेगावाट के चुटका प्लांट से करीब 10 साल में निर्मित हो जाएगी। एक अन्य अध्ययन के रिपोर्ट के मुताबिक कंपनियां जितना दावा करती हैं उतना उत्पादन किसी भी पावर प्लांट से नहीं हुआ है। वहीं, इस दावे के मुताबिक जंगल और कृषि भूमि स्थायी रूप से नष्ट की जा चुकी होती है। रिपोर्ट के मुताबिक 1000 मेगावाट तक की परियोजनाओं की निगरानी केंद्र और राज्य सरकारें नहीं करती है, जिससे ये गड़बड़ियां और बढ़ जाती हैं। उक्त अध्ययन से जुड़ी पर्यावरणविद संघमित्रा देसाई का कहना है कि परमाणु बिजलीघरों में यूरेनियम और भारी पानी के इस्तेमाल से ट्रीसीयम (ट्रीटीयम) निलकता है। यह हाईड्रोजन का रूप है। यह खाली होता है तो उड़कर हवा में मिल जाता है। पानी के साथ होने पर जल प्रदूषित करता है। मानव शरीर इसे हाइड्रोजन के रूप में ही लेते हैं। इसका अधिकांश हिस्सा यूरिन के जरिए निकल जाता है,लेकिन जब यह किसी सेल में फंस जाता है तो कई घातक बीमारियां हो जाती हैं। रेडियो एक्टिविटी से पेड़ों को नुकसान होता है। परमाणु कचरे को नष्ट करना मुश्किल काम है। यह हजारों वर्ष तक बना रहता है। अमेरिका इस समस्या से जूझ रहा है।

थर्मल कोल पावर प्लांट से निकलने वाली राख से पानी इतना प्रदूषित हो जाएगा कि इसे मवेशी भी नहीं पी सकेंगे। 500 मेगावाट के सारणी स्थित सतपुड़ा थर्मल कोल पावर प्लांट से निकलने वाली राख से तवा नदी का पानी इसी तरह प्रदूषित हो चुका है। इसमें नहाने पर लोगों की चमड़ी जलती है और त्वचा रोग हो जाते हैं। इसकी राख के निस्तारण के लिए हाल ही हजारों पेड़ों की बलि चढ़ा दी गई,जबकि पहले से नष्ट किए गए जंगल की भरपाई नहीं की जा सकी है। इतने दुष्परिणामों के सामने आने के बावजूद मध्यप्रदेश में देवी स्वरूप नर्मदा के किनारे थर्मल कोल पावर प्लांट की अनुमति देना जनहित में नहीं है। नर्मदा में लाखों लोग डुबकी लगाकर पुण्य का अनुभव करते हैं। उनकी रूह भी इस पानी में नहाने के नाम से कांप उठेगी। राख से नर्मदा की गहराई पर भी असर होगा। वहीं गंगा के जहरीले होने के कारण सरकार ने हाल ही में यह निर्णय लिया है कि इसके किनारे अब ऐसा कोई निर्माण नहीं किया जाएगा, तो नर्मदा की चिंता क्यों नहीं की जा रही है?

नर्मदा के किनारे चार थर्मल पावर प्लांट को भी मंजूरी मिली है। सिवनी जिले की घनसौर तहसील के गांव झाबुआ में बनने वाले प्लांट की क्षमता 600 मेगावॉट होगी। निर्माण एजेंसी के आंकड़ों के मुताबिक इसमें प्रतिघंटा छह सौ टन कोयले की खपत होगी, जिससे 150 टन राख प्रतिघंटा निकलेगी,जबकि हकीकत यह है कि कोयले से 40 प्रतिशत राख निकलती है। इस तरह करीब 250 टन राख प्रतिघंटा निकलेगी। इसका निस्तारण जंगल और नर्मदा किनारे किया जाएगा, जिससे पर्यावरणीय संकट पैदा होना तय है। दूसरा कोल पावर प्लांट नरसिंहपुर जिले के गाडरवाड़ा तहसील के तूमड़ा गांव में एनटीपीसी द्वारा बनाया जाएगा। 3200 मेगावॉट क्षमता के इस प्लांट से नौ गांवों के किसानों की जमीन पर संकट है। इसके लिए करीब चार हजार हैक्टेयर जमीन ली जानी है, जबकि पास ही तेंदूखेड़ा ब्लाक में करीब 4500 एकड़ सरकारी जमीन खाली पड़ी है। इसका उपयोग नहीं किया जा रहा है। इस प्लांट की जद में आने वाले गांवों की जमीन एशिया में सबसे अच्छी दलहन उत्पादक है। तीसरा 1200 मेगावॉट क्षमता का थर्मल कोल पावर प्लांट जबलपुर जिले के शहपुरा भिटोनी में बनाया जाना है। इसका निर्माण एमपीईवी द्वारा किया जाएगा। इसका सर्वे किया जा चुका है। इसकी जद में करीब 800किसानों की जमीन आ रही है। चौथा थर्मल पावर प्लांट नरसिंहपुर जिले के झासीघाट में मैसर्स टुडे एनर्जी द्वारा 5400 करोड़ की लागत से किया जाएगा। 1200 मेगावॉट क्षमता वाले इस प्लांट के लिए 100 एकड़ जमीन की जरूरत है। इसमें से करीब 700 एकड़ जमीन सरकारी है। करीब 75 लोगों की 300 एकड़ जमीन ली जा चुकी है। इसका निर्माण 2014 तक पूरा किया जाना है। इनके लिए विदेशों से कोयला मंगाने की तैयारी की जा रही है।

नर्मदा को खत्म करने की तैयारीनर्मदा को खत्म करने की तैयारी
 

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