गंगा और संतों के देश में गंगा के लिए कब तक बलिदान देंगे संत

8 Aug 2020
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गंगा और संतों के देश में गंगा के लिए कब तक बलिदान देंगे संत
गंगा और संतों के देश में गंगा के लिए कब तक बलिदान देंगे संत

गंगा दुनिया की सबसे महान और पवित्र नदियों में से एक है। हिंदू धर्म का अभिन्न अंग और करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र होने के कारण भारत को ‘गंगा’ का देश भी कहा जाता है, लेकिन जितनी अगाध आस्था भारतीयों में गंगा के प्रति है, उतना ही खिलवाड़ गंगा की स्वच्छता और अस्तित्व के साथ किया जाता है। परिणामतः अमृत समान जल ज़हर बनता जा रहा है। बांध और अवैध खनन ने नदी के प्राकृतिक स्वरूप को ही बदल दिया है। कई संस्थान और व्यक्ति गंगा को बचाने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन गंगा की रक्षा के लिए हरिद्वार स्थित मातृसदन संस्था का योगदान अनुकरणीय है। मातृसदन के तीन संत गंगा की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे चुके हैं, जबकि इसी संस्था के कई अन्य संत भी बलिदान की ओर अग्रसर हैं। स्वामी शिवानंद सरस्वती तो हरिद्वार में पुनः गंगा के लिए अनशन पर बैठ गए हैं। 

वर्ष 1998 में हरिद्वार के कनखल में स्थित जगजीतपुर में मातृसदन की स्थापना स्वामी शिवानंद सरस्वती द्वारा की गई थी। गंगा की रक्षा के लिए इन 23 वर्षों के सफर में तीन संतों स्वामी गोकुलानंद (2003), स्वामी निगमानंद (2011) और प्रख्यात वैज्ञानिक प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (2018) ने बलिदान दिया था। मातृसदन के विभिन्न संतों द्वारा गंगा के लिए अभी तक 62 बार अनशन किया जा चुका है। सबसे लंबा अनशन ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद ने स्वामी सानंद की मांगों के समर्थन में 194 दिनों (24 अक्टूबर 2018 से 4 मई 2019) तक किया था। नेशनल मिशन फाॅर क्लीन गंगा के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा के लिखित आश्वासन के बाद आत्मबोधानंद ने अनशन को विराम दिया था, लेकिन ये आदेश भी फाइलों तक ही सीमित रहा।

स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद और स्वामी निगमानंद।

इस बीच धरातल पर कोई काम न होता देख 15 दिसंबर 2019 को साध्वी पद्मावती मातृसदन में ही अनशन पर बैठी थीं। 30 जनवरी को उन्हें जबरन उठाकर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल में की गई जांच में स्वस्थ पाए जाने पर उन्हें वापिस मातृसदन भेज दिया गया। इसके बाद 17 फरवरी को प्रशासन ने उन्हें पुनः उठाकर हरिद्वार के ही रामकृष्ण मिशन अस्पताल में भर्ती कराया। जहां डाॅक्टरों ने न्यूरोलाॅजिकल प्राॅब्लम बताकर उन्हें दिल्ली एम्स रेफर कर दिया। दिल्ली पहुंचने के बाद भी साध्वी ने अपना अनशन समाप्त नहीं किया और उनके स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आने लगी। उन्हें आईसीयू में भर्ती कराया गया और फिर वे अचेतन अवस्था में चली गई। कई दिनों बाद उन्हें होश आया और सभी ने राहत की सांस ली। एक तरह से वे मौत के मुंह से वापिस लौटी। इसके बाद उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। वे 27 मार्च की सुबह करीब 1 बजे मातृसदन पहुंची थी।

पद्मावती को मातृसदन से उठाकर ले जाने के बाद ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद भी अनशन पर बैठ गए थे। 19 फरवरी 2020 को आत्मबोधानंद ने जल का त्याग कर दिया था। जल त्याग के करीब चार दिन बाद जिला प्रशासन ने उन्हें भी जबरन उठाकर दिल्ली एम्स में भर्ती कराया। यहां उनका नियमित रूप से उपचार चला, लेकिन आत्मबोधानंद ने अस्पताल में भी न तो अन्न ग्रहण किया और न ही जल। उनका अनशन यहां भी जारी रहा। डाॅक्टरों ने ड्रिप के माध्यम से उन्हें फीडिंग की। पांच मार्च को डाॅक्टरों ने उन्हें डिस्चार्ज कर दिया। इसके बाद जिस प्रशासन का दायित्व उन्हें सकुशल मातृसदन तक पहुंचाना था, उसने उनकी सुध तक नहीं ली। वे एम्स में वार्ड के बाहर चादर बिछाकर बैठे रहे। यहीं ठंड में उन्होंने रात गुजारी। मातृसदन के अनुयायी उन्हें आश्रम लेकर आए। इस विकट समस्या को देखते हुए स्वामी शिवानंद सरस्वती ने आत्मबोधानंद के अनशन को विराम दिलवाने का निर्णय लिया और होली की सुबह व खुद अनशन पर बैठ गए। कोरोनाकाल के दौरान उन्होंने लोगों के निवेदन पर 29 मार्च को अनशन को विराम दिया था, लेकिन उन्होंने तीन अगस्त तक मांग पूरी न होने पर फिर से अनशन करने की चेतावनी दी थी। इस बारे में उन्होंने प्रधानमंत्री, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को पत्र भी लिखा था, लेकिन मांग न मानने पर स्वामी शिवानंद 3 अगस्त से फिर अनशन पर बैठ गए हैं। 

अनशन पर बैठे स्वामी शिवानंद

दरअसल, सरकारों ने गंगा को लेकर कई वादे और घोषणाएं की। करोड़ों रुपयों की योजनाओं को लागू किया गया। 2014 में तो गंगा मंत्रालय तक बना दिया, लेकिन करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद जब धरातल पर परिणाम नहीं दिखा तो मंत्रालय का नाम ही बदल दिया। अब पानी से जुड़े काम ‘जलशक्ति मंत्रालय’ देख रहा है, किंतु सभी योजनाएं और घोषणाएं ढाक के तीन पात साबित हुई हैं। क्योंकि गंगा वोटबैंक नहीं है। यदि गंगा वोटबैंक होती तो गंगा की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे संतों की अहमियत होती, लेकिन यहां तो ये लोग सरकारों को खटक रहे हैं। खटकना लाजमी भी है, क्योंकि ठेकदरों को ये संत या इस प्रकार के पर्यावरणप्रेमी बड़े बांध, सड़कों का चौड़ीकरण और पर्यावरण को ताक पर रखकर किए जा रहे विकास कार्यों में रोडा लगते हैं। मातृसदन को लेकर सरकारें भी हमेशा असहज रहती हैं। क्योंकि ये सभी खनन माफियाओं और निर्माण कंपनियों के लिए बाधा बने हुए हैं। फिर भी मातृसदन के तप और दृढ़ता के कारण उनके आंदोलन का सरकार पर हमेशा दबाव बना रहता है। जिस कारण सरकार न तो उनकी मांगों को खारिज कर पाती है और न ही किसी प्रकार का ठोस आश्वासन दे पाती है। 

मातृसदन के आंदोलन को खत्म करने के लिए उनपर कई आरोप लगाए गए। यहां तक कि साध्वी पद्मावती के दरवाजे पर भी शासन और प्रशासन के आरोपों ने दस्तक दे दी, लेकिन मातृसदन न तो डिगा और न ही परेशान हुआ। पुख्ता प्रमाणों को साथ और आत्मबल के साथ आगे आया। लेकिन गंगा पर करोड़ों रुपया खर्च करने वाली केंद्र और राज्य सरकारें स्वामी सानंद की मौत के बाद कटघरे में हैं। समय-समय गंगा की रक्षा के लिए हुई संतों की मौत, लगातार हो रहे आंदोलन और गंगा में बढ़ते प्रदूषण के कारण गंगा की स्वच्छता के लिए अब तक चलाई गई सभी योजनाओं सहित नमामि गंगे परियोजना पर भी सवाल उठना जरूरी है और सवाल उठने भी लगे हैं। लेकिन एक सवाल हमेशा बना रहेगा कि संतों और गंगा के देश में आखिर कब तक गंगा के लिए संतों को बलिदान देना पड़ेगा ?

स्वामी शिवानंद का कहना है "हमें उम्मीद है कि यदि प्रधानमंत्री मोदी के संज्ञान में आएगा तो वे करेंगे, लेकिन हमें लगता है कि हमारा पत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास नहीं गया है। यदि उनके पास पत्र नहीं गया है तो ये बड़ी विडंबना है, लेकिन यदि पत्र जाने के बाद भी प्रधानमंत्री छुप बैठे हैं, तो ये और भी गंभीर बात है। जिसका परिणाम आने वाले समय में प्राकृतिक कोप के रूप में देश को देखना पड़ सकता है।

वास्तव में सरकार और प्रशासन के कार्यों को देखकर प्रतीत होता है कि गंगा के उद्धार से सरकारों को कुछ लेनादेना नहीं है। यदि वास्तव में सरकारें उद्धार चाहती हैं, तो गंगा का संरक्षण उसके उद्गम क्षेत्र से किया जाना चाहिए, लेकिन सरकार हिमालय से लेकर मैदान तक गंगा को समान नजर से देख रही है। गंगा संरक्षण का नारा केवल घाटों की सफाई तक ही सीमित है। नमामि गंगे के अंतर्गत गंगा का साफ करने के बजाए करोड़ों रुपये के घाटों का निर्माण किया जा रहा है। सरकारों को समझना होगा कि यदि गंगा को अविरल और निर्मल बनाना है, तो प्रस्तावित जलविद्युत परियोजनों को रोकना होगा और गंगा की सहायक नदियों के संरक्षण को भी प्रमुखता देने की जरूरत है। 

ये हैं इस बार की प्रमुख मांग

  • स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद के समय से चली आ रही मांग गंगा और गंगा की सहायक नदियों पर उत्तराखंड में प्रस्तावित एवं निर्माणाधीन समस्त जल विद्युत परियोजनाओं को निरस्त करना।
  • हरिद्वार में गंगा एवं सहायक नदियों में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना और गंगा से पांच किलोमीटर की दूरी के अंदर संचालित समस्त स्टोनक्रशरों को हटाना/तत्काल बंद करना तथा इस आशय की अधिसूचना केंद्र सरकार द्वारा जारी करना।
  • एनएमसीजी के नौ अक्टूबर 2019 के आदेश और इस आदेश को अंतिम रूप देकर प्रधानमंत्री को दिनांक एक अक्टूबर 2019 को सूचित करने के बाद जिन व्यक्तियों के द्वारा इसके विपरीत कार्य किया गया, उनके क्रियाकलापों पर एक उच्च स्तरीय जांच बैठे।
  • गंगा के लिए स्वामी सानंद के द्वारा प्रस्तावित एक्त लागू किया जाए और गंगा भक्त नामक एक स्वायत संस्था बने जिसमें गंगा के प्रति समर्पित व्यक्ति ही रहें। यह इसलिए भी आवश्यक हो गया है क्योंकि केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गुप्त तरीके से क्रियान्वित मांग को निरस्त कर दिया है....

हिमांशु भट्ट (8057170025)

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