नदी-जोड़ योजना: विरोध में उठते स्वर

30 Dec 2014
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राज्यों व सरकारों से प्रतिक्रिया


नदी जोड़ परियोजनाकेरल द्वारा विरोध: केरल के मुख्यमंत्री श्री एके एंटोनी ने ‘नदी-जोड़ योजना’ का विरोध करते हुए कहा कि यदि इस पर अमल होता है, तो केन्द्रीय ट्रावनकोर क्षेत्र की हजारों एकड़ वनभूमि डूब में आ जाएगी एवं कोट्टायम, अलपूझा एवं पठासीमिट्टा जिले सूखे की चपेट में आ जाएंगे। समुद्री जल के प्रवेश के मद्देनजर कुट्टनाद इलाका काफी बुरी तरह प्रभावित होगा। इस परियोजना को अमल में लाने से भूजल में कमी आने से 12 पेयजल योजनाएं भी प्रभावित होंगी।

(दि हिन्दू, 06 जुलाई 2003, डीआरपी नवम्बर-दिसम्बर 03)

केरल का नया अधिनियम नदी-जोड़ योजना के खिलाफ: केरल की नदियों के पानी को अन्य राज्यों में ले जाने से रोकने के लिए केरल में सर्वसम्मति से पारित हुए जल संरक्षण अधिनियम को अगस्त 2003 में लागू किया गया। अधिनियम अंतरराज्यीय नदी जल समझौतों को राज्य विधानसभा के अधिकार क्षेत्र में लाकर राज्य सरकार को प्रतिकूल असर पड़ने वाले प्रस्तावों को रोकने का अधिकार देता है। अधिनियम के उपखंड 30 में यह कहा गया है कि राज्य में किसी भी नदी के जल को राज्य सरकार या किसी अन्य राज्य सरकार या केन्द्र शासित प्रदेश की सरकार के बीच ऐसा कोई समझौता नहीं होता है, जिसे राज्य मंत्रिपरिषद् की मंजूरी प्राप्त हो या उससे पारित हुई हो।

(हिन्दुस्तान 24 सितम्बर 2003)

पश्चिम बंगाल ने कहा नहीं: पश्चिम बंगाल के सिंचाई मंत्री ने ‘नदी-जोड़ योजना’ को राज्य के लिए गंभीर खतरा बताते हुए केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री को लिखा है कि यदि ब्रह्मपुत्र एवं गंगा नदी को जोड़ा जाता है तो पश्चिम बंगाल बाढ़ से प्रभावित होगा। पश्चिम बंगाल गंगा नदी-घाटी के अंतिम छोर पर बसे होने के कारण यह राज्य जनवरी से मई तक जलाभाव की स्थिति में रहता है।

(द स्टेट्समैन, 23 जनवरी 2003, डी आर पी, मई-जून 2003)

महाराष्ट्र एवं केरल का विरोध: दिल्ली में जल संसाधन एवं सिंचाई मंत्रियों के 12वें राष्ट्रीय सम्मेलन में महाराष्ट्र के सिंचाई मंत्री ने कहा कि देश की नदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षी परियोजना महाराष्ट्र के लिए लाभप्रद साबित नहीं होगी। एनडब्ल्यूडीए द्वारा महाराष्ट्र का पानी दूसरे राज्यों में स्थानांतरित करने की योजना बनाने का आरोप लगाते हुए उन्होंने मांग की कि एक नयी कृष्णा नदी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया जाए। केरल के सिंचाई मंत्री ने कहा कि केरल के मामले में पश्चिमी घाट की नदियों को जोड़ना ‘अवैज्ञानिक’ है।

(दि इंडियन एक्सप्रेस, 6 फरवरी 2003)

संभव नहीं: जल संसाधन एवं सिंचाई मंत्रियों के राष्ट्रीय सम्मेलन में शामिल होने के बाद छत्तीसगढ़ के जल संसाधन मंत्री ने कहा कि उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार एवं अन्य राज्य इस परियोजना पर सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यदि सभी राज्य सहमत हो भी जाते हैं, तो इससे वन संरक्षण कानून का उल्लंघन होगा। इस तरह नदियों को आपस में जोड़ना संभव नहीं होगा।

(दैनिक भास्कर: 20 जुलाई 2003)

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने नदी-जोड़ योजना का यह कहते हुए विरोध किया कि इस योजना से राज्य को कोई लाभ नहीं होगा, जबकि इससे राज्य की जमीन, जंगल एवं लोगों पर विपरीत असर होगा।

(राजस्थान पत्रिका, 8 दिसम्बर 2003)

बिहार ने कहा नहीं: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने केन्द्र सरकार द्वारा बिहार के प्रति साजिश रचने का आरोप लगाया एवं कहा कि प्रधानमंत्री की राष्ट्रीय नदी-जोड़ परियोजना के अंतर्गत राज्य के पानी को बाहर भेजने नहीं देंगे, चाहे उसके लिए उन्हें अपनी सरकार की बलि ही क्यों न देनी पड़े, इसके लिए वे न्यायालय की अवमानना का मामला भी झेलने को तैयार हैं।

(दि हिन्दुस्तान टाइम्स 02 अप्रैल 2003, डीआरपी जुलाई-अगस्त 2003)

कर्नाटक की आशंका: कर्नाटक के जल संसाधन मंत्री ने केन्द्र सरकार द्वारा नदियों को जोड़े जाने के बारे में आशंका जतायी है। उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी परियोजना को अमल में लाने में वनों के विनाश एवं लोगों के विस्थापन के मामले में बहुत लोगों ने व्यावहारिक कठिनाइयों की आशंका जतायी है।

(दि हिन्दू, 1 मई 2003)

पंजाब के दलों ने राष्ट्रीय नदी ग्रिड का विरोध किया: पंजाब में हुई सर्वदलीय बैठक में प्रस्तावित राष्ट्रीय नदी ग्रिड का विरोध करते हुए मांग की गयी कि पंजाब द्वारा हस्ताक्षरित समस्त नदीतटीय समझौतों को रद्द किया जाए।

(दि ट्रिब्यून, 15 सितम्बर 2002)

ग्ुजरात द्वारा दमनगंगा-पिंजाल नदी-जोड़ योजना का विरोध: गुजरात के नर्मदा जल संसाधन एवं जल आपूर्ति सचिव एमएस पटेल के अनुसार राज्य सरकार ने एनडब्ल्यूडीए को एक प्रस्ताव भेजा है, जिसमें कहा गया है कि ‘दमनगंगा-पिंजाल नदी-जोड़ योजना’ राज्य को स्वीकार नहीं हैं, क्योंकि यह योजना के उद्देश्य के विपरीत है। दमनगंगा नदीघाटी में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष पानी की उपलब्धता करीब 3000 घनमीटर है, जबकि यह पिंजाल में 4000 घनमीटर है।

(इंडियन एक्सप्रेस, 19 अप्रैल 2003)

पर्यावरण मंत्रालय की चिंता: केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने नदी-जोड़ योजना पर अपनी जबरदस्त चिंता जतायी है एवं मांग की है कि पर्यावरण असर मूल्यांकन एवं जैव विविधता व पारिस्थितिकी क्षति आकलन के लिए मूल्यांकन के मानक तय किये जाने चाहिए। कार्यदल के साथ हुए संवाद में वन एवं पर्यावरण सचिव श्री केसी मिश्र ने कहा कि प्रस्ताव में रायदक एवं बक्सर बाघ रिजर्व फोरेस्ट जैसे वन एवं ‘वन्य जीव अभयारण्य’ शामिल हैं। प्रत्येक पहलू के लिए देश-विदेश के विशेषज्ञों की मदद की सलाह देते हुए उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि राष्ट्रीय पार्कों एवं अभयारण्यों में सर्वेक्षण करवाने तक के लिए भी वन्य संरक्षण कानून 1980 के तहत केंद्र से पूर्व अनुमति की आवश्यकता होगी।

(दि इकनाॅमिक टाइम्स, 5 जून 2003)

उत्तर प्रदेश द्वारा केन-बेतवा योजना का विरोध: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव ने केन-बेतवा नदी-जोड़ योजना के प्रति गंभीर आशंका जताते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है कि वर्तमान स्वरूप में केन-बेतवा नदी-जोड़ योजना अस्वीकार्य है। इस योजना ने बुन्देलखंड में निर्माणाधीन परियोजनाओं से सिंचाई व बिजली उत्पादन के कुछ क्षेत्रों को वंचित किया है।

(दि हिन्दू, 23 फरवरी 2004)

नगरिक समाज की ओर से विरोध


जोड़ने से रेत बन सकती हैं नदियां: डब्ल्यूडब्ल्यूएफ - वर्ल्ड वाइड फंड इंटरनेशनल के महानिदेशक डाॅ. क्लाॅड मार्टिन ने यह चेतावनी दी है कि पाइपलाइनों के सहारे नदियों को जोड़ने से नदियों के सूखने या इनमें मिट्टी या रेत जमा हो जाने के खतरे बढ़ जाएंगे। नदियों को जोड़ने का यह समाधान दरअसल सामान्य पानी को जोड़ने का इंजीनियरिंग समाधान है। लेकिन इसमें इस बात पर विचार नहीं किया गया है कि नदियों केवल पानी ही नहीं होतीं बल्कि वह अपने साथ जैव विविधताओं और विशेषताओं को भी साथ लेकर आगे बढ़ती है।

(राष्ट्रीय सहारा, 21 फरवरी 2003)

असम नदियों को जोड़ने की अनुमति नहीं देगा: राज्य में ‘असम गण परिषद’ एवं अन्य क्षेत्रीय पार्टियों का मानना है कि यह राज्य के लोगों को पानी के अधिकार से वंचित करने की एक साजिश है। असम गण परिषद के अध्यक्ष वृन्दावन गोस्वामी ने कहा कि, ‘जब केन्द्र ने कार्यदल का गठन किया उस समय कुछ राज्यों के सूखे को असम के सालाना विपत्ति (बाढ़) के ऊपर प्राथमिकता दे दी गयी।’ एवं अगाह किया गया कि, ‘यह जानना जरूरी है कि, इसका असम के ऊपर क्या प्रभाव पड़ेगा।’

(सेंटिनल, 30 जनवरी 2003)

गलत दिशा में कदम: असम के जाने-माने भूगोलवेत्ता एवं गुवाहाटी विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. डीसी गोस्वामी ने कहा कि नदी घाटियों को जोड़ने के प्रस्ताव में मूल दोष यह है कि इसमें तथाकथित जलाधिक्य वाली नदी घाटी की जल आवश्यकता की स्थिति का मूल्यांकन नहीं किया गया है। ब्रह्मपुत्र के कम्प्यूटर माॅडल के आधार पर उन्होंने कहा कि असम के तथाकथित जलाधिक्य वाले क्षेत्र के बारे में वास्तविकता यह है कि वहां के जल-संसाधन के इस्तेमाल को बहुत कम करके आंका गया है, जिससे जलाधिक्य की कल्पना को बढ़ावा मिल सकता है।

(असम ट्रिब्यून, 10 जनवरी 03)

असम के विशेषज्ञों द्वारा विरोध: नदी-जोड़ योजना पर असम साइंस सोसायटी द्वारा गुवाहाटी के इंस्टीट्यूशंस आॅफ इंजीनियर्स में हुई राष्ट्रीय गोष्ठी में शामिल वैज्ञानिकों, तकनीकी विशेषज्ञों सहित अन्य लोगों ने परियोजना का इस आधार पर विरोध किया कि राज्य पर परियोजना के पर्यावरणीय, भौतिकी, आर्थिक एवं सामाजिक असर को अभी तक लोगों के विचार के लिए सार्वजनिक नहीं किया गया है। लोगों का कहना था कि इस परियोजना में राज्य से पानी बाहर ले जाने के बजाय यहां की बाढ़ की समस्या पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है।

(असम ट्रिब्यून, 1 मई 2003)

पानी छीनने की साजिश: आठ छात्र-संघों के संयुक्त मंच ‘उत्तर पूर्व छात्र संगठन’ ने केंद्र सरकार को गंगा-ब्रह्मपुत्र नदियों को जोडे़ जाने के प्रति सचेत करते हुए कहा है कि इससे राज्य के लोगों को कोई लाभ नहीं होगा। संगठन का कहना है कि इस क्षेत्र से तेल, गैस, कोयला एवं इमारती लकड़ियों को पहले ही छीना जा चुका है, अब पानी भी छीनने की साजिश हो रही है।

(दि पायोनियर, 29 सितम्बर 2003)

कर्नाटक के किसानों का विरोध: दक्षिण कन्नड़ जिले के किसानों का आरोप है कि नदी-जोड़ योजना के अंतर्गत सरकार नेत्रवती को पूर्व की ओर मोड़ना एवं पश्चिमी बहाव वाली कई अन्य नदियों की दिशा बदलना चाहती है। नेत्रवती पर निर्भर किसान यह महसूस कर रहे हैं कि पूरी परियोजना उन्हें सदियों से इस क्षेत्र से होकर बहने वाली नदी के पानी से वंचित कर देगी, जो कि हजारों परिवारों की आजीविका का मुख्य साधन है।

(बिजनेस लाइन, 12 दिसम्बर 2002)

एनएपीएम द्वारा प्रस्ताव का विरोध: जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय नदी-जोड़ योजना का विरोध करेगा, एनएपीएम का मानना है कि यह निजीकरण की ओर बढ़ने के प्रति एक कदम है। परियोजना देश की अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण के लिए विनाशकारी है।

(एनएपीएम प्रेस विज्ञप्ति, 27 फरवरी 2003)

एसएएफ प्रतिनिधियों ने प्रधानमंत्री को लिखा: 6 जनवरी, 2003 को हैदाराबाद में सम्पन्न एशियाई समाज मंच में शामिल होने आये करीब 200 से ज्यादा संगठनों के 510 प्रतिनिधियों ने माननीय प्रधानमंत्री को यह निवेदन करते हुए पत्र लिखा कि नदियों को जोड़ने की प्रस्तावित योजना को वापस लिया जाए एवं इसके बदले स्थानीय जल व्यवस्था जैसे ज्यादा व्यावहारिक विकल्पों पर ध्यान केन्द्रित किया जाए।

(डीआरपी, फरवरी, 2003)

सर्व सेवा संघ द्वारा विरोध: भारत में सर्वोदय आंदोलन की सर्वोच्च संस्था सर्व सेवा संघ की कार्यसमिति की बैठक में पारित प्रस्ताव में नदी-जोड़ योजना का विरोध करते हुए कहा गया है कि पूर्व अनुभवों से स्पष्ट है कि निहित स्वार्थ के लिए पानी पर केन्द्रीय नियंत्रण द्वारा जन साधारण को जीवन की मूल आवश्यकताओं से वंचित किया गया है।

(दि हिन्दू, 13 मार्च 03)

परियोजना के कल्पनाकार कैप्टन दस्तूर की राय बदली: सत्तर के दशक में गारलैंड कैनाल की कल्पना प्रस्तुत करने वाले कैप्टन दस्तूर ने कहा कि नदियों को आपस में जोड़ने से नयी समस्याएं जन्म लेंगी। इसके लिए जलाशय बनवाने होंगे और उन जलाशयों को भरने के बाद जो अत्यधिक पानी बचेगा उसे पानी की कमी वाले इलाकों को देने के लिए कम पानी वाली नदियों की तरफ मोड़ दिया जायेगा। इसमें दिक्कत यह पेश आएगी कि कोई भी राज्य यह नहीं कहेगा कि उसके पास जरूरत से ज्यादा पानी हो गया है। इसमें प्रदूषित जल को एक इलाके से दूसरे इलाके, खासकर पठारी इलाकों में जाने से रोका नहीं जा सकेगा।

(हिन्दुस्तान, 21 अगस्त 2003)

केन-बेतवा नदी-जोड़ योजना का विरोध: केन-बेतवा नदी-जोड़ योजना का बुंदेलखंड में व्यापक स्तर पर विरोध जारी है। 23 जुलाई 2003 को ओरछा में आयोजित बुंदेलखंड जलसंसद में उपस्थित 11 जिलोें के प्रतिनिधियों ने केन-बेतवा नदी-जोड़ योजना के विरोध में प्रस्ताव पारित किया। 4 जनवरी 2004 को बांदा में आयोजित जनसंवाद में बांदा मंडल के लोगों ने परियोजना की आवश्यकता पर सवाल उठाते हुए जनजागरण करने का निर्णय लिया। जनजागरण का संयोजन स्थानीय स्तर पर सक्रिय विज्ञान शिक्षा केन्द्र के डाॅ. भारतेन्दु प्रकाश निभा रहे हैं। 14 मार्च, 2004 को बांदा में आयोजित ‘केन बचाओ सम्मेलन’ में उपस्थित बुद्धिजीवियों, विशेषज्ञों, किसानों एवं आम नागरिकों ने परियोजना की संभाव्यता को खारिज किया। सम्मेलन के बाद सभी लोगों ने केन नदी तक पदयात्रा करके नदी के प्राकृतिक स्वरूप की रक्षा करने एवं केन को बेतवा से न जुड़ने देने का संकल्प लिया।

(देशबन्धु, 15 अगस्त 2003, अमर उजाला, दैनिक जागरण, 15 मार्च 2004)

प्रधानमंत्री को पत्र: देश के प्रमुख पर्यावरणविदों एवं विशेषज्ञों ने नदी-जोड़ योजना के प्रति आशंका जताते हुए प्रधानमंत्री को हस्ताक्षर युक्त पत्र भेजा है। अपनी प्रमुख आशंकाओं के अंतर्गत विशेषज्ञों ने परियोजना की आवश्यकता, वैधानिकता, अध्ययन के तरीकों, पारिस्थितिकी, जैव विविधता, जलजमाव, मानवीय असर, विस्थापन, संवैधानिक अड़चन, अंतरराज्यीय विवाद एवं संसाधनों के विनाश के प्रति चिंता जतायी है। हस्ताक्षर करने वालों में डाॅ. आरएन अठावले, बीएस भवानीशंकर, रामास्वामी अय्यर, डाॅ. जयंत बंद्योपाध्याय, डैरिल डीमोंट, वीबी ईश्वरन, बिक्षम गुज्जा, आर राजमणि, ए वैद्यनाथन, अमिता बाविस्कर, प्रशांत भूषण, प्रो. एचएम देशरडा, श्रीपाद धर्माधिकारी, सविता गोखले, रामा गोविंदराजन, स्मितु कोठारी, राधिका गुप्ता, संजय हजारिका, जसवीन जयरथ, एस जनकराजन, नलिनी जुयाल, केजे जाॅय, महेशकान्त, आशीष कोठारी, रवि कुंचिमाचि, बेन्नी कुरूविला, डाॅ. कुंताला लाहिरी दत्त, शरद-चन्द्र लेले, अजीत मेनन, अजीत मजुमदार, हर्ष मंदर, एस परशुरामन, अरविन्दा पिल्लालामारी, रवि प्रागदा, वीएन राजगोपाल, कैप्टन जे रामाराव, टी रामचन्द्राडु, आरके राव, श्रीराम रामास्वामी, टीएस शंकरन्, सरिता, डाॅ. एनसी सक्सेना, डाॅ सुधीरेन्द्र शर्मा, विनोद शेट्टी, डाॅ. वंदना शिवा, शेखर सिंह, केसी शिवरामाकृष्णन, कमांडर सुरेश्वर सिन्हा, गिरीश श्रीनिवासन, संध्या श्रीनिवासन, हिमांशु ठक्कर, शिनी वर्गीज, एमपी वासीमलाई एवं मेजर जनरल एसजी वोम्बातकेरे है।

(डीआरपी, मई-जून 2003)

आंध्र प्रदेश में टीआरएस द्वारा विरोध: तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि नदी-जोड़ योजना एक धोखाधड़ी है। इस योजना के बनने के बाद तेलंगाना क्षेत्र को गोदावरी से 37 टीएमसी पानी मिलेगा, शेष 600 टीएमसी आंध्र क्षेत्र एवं 400 टीएमसी कावेरी नदी घाटी की ओर मोड़ दिया जाएगा।

(न्यूजटाइम, 23 अगस्त 2003)

केरल में पम्बा-अचनकोविल-वैप्पार नदी-जोड़ का विरोध: चालकूडी पूझा संरक्षण समिति एवं सैण्ड्रप द्वारा संयुक्त रूप से 12 एवं 13 जुलाई, 2003 को त्रिसुर में आयोजित कार्यशाला में प्रतिनिधियों ने नदी योजना के आवश्यकता एवं वैधानिकता पर सवाल उठाया। इस योजना में जलाधिक्य की अवधारणा को विशेषज्ञों ने तकनीकी रूप से खारिज किया। कार्यशाला में राज्य के नियोजन विभाग के सदस्य सीपी जाॅन से स्पष्ट किया कि राज्य सरकार इस योजना का विरोध करेगी। अंतरनदी घाटी जल स्थानांतरण के पूर्व विनाशकारी अनुभवों के आधार पर प्रस्तावित योजना के प्रति सचेत रहने का आह्वान किया गया। कार्यशाला में जलाधिक्य, विस्थापन, पारिस्थितिकी विनाश, वन व वन्यजीव विनाश, जल निजीकरण, संसाधनों का केन्द्रीकरण आदि मुद्दों के आधार पर नदी-जोड़ को खारिज किया गया।

(डीआरपी, जुलाई-अगस्त 2003)

नदी-जोड़ योजना से ऋण संकट बढ़ेगा: कांचीपुरम में 29 एवं 30 मई 2003 को आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय जल-सम्मेलन में नदी-जोड़ योजना को यह कहते हुए खारिज किया गया कि इससे देश पर ऋण का बोझ बढ़ेगा। सम्मेलन में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि नदी-जोड़ योजना से व्यापक विस्थापन एवं नदियों की पारिस्थितिकी व वनों पर अपरिवर्तनीय असर होगा।

(दि हिन्दू, 31 मई 2003)

राज्यों व पड़ोसी राष्ट्रों के बीच विवाद बढ़ेगा: भारतीय नदी घाटी नेटवर्क के राष्ट्रीय संयोजक कुमार कलानन्द मणि ने आगाह किया है कि सरकार की नदी-जोड़ योजना से राज्यों के बीच विवाद बढ़ेगा। यदि यह योजना अमल में लायी जाती है तो देश का संघीय ढांचा चरमरा जाएगा। साथ ही, इससे पड़ोसी देशों से भी संबंध बिगड़ सकते हैं।

(दि हिन्दू, 25 जून 2003)

अंतरराष्ट्रीय प्रतिरोध


बांग्लादेश की आशंका: बांग्लादेश के जल संसाधन मंत्री श्री हफीज अहमद ने कहा कि गंगा एवं ब्रह्मपुत्र नदी से पानी के डाइवर्जन से बांग्लादेश में डाउनस्ट्रीम के करीब 10 करोड़ लोगों का जीवन संकट में पड़ जाएगा। 1976 में भारत द्वारा गंगा नदी पर बांध बना दिये जाने के बाद उत्तरी बांग्लादेश पहले ही सूखाग्रस्त हो चुका है। बांग्लादेशी वैज्ञानिकों के आकलन के अनुसार गंगा नदी के प्रवाह में 10 से 20 प्रतिशत तक की कमी से ही देश के अधिकांश भाग साल के ज्यादातर समय सूखे की चपेट में आ सकते हैं।

(डेक्कन क्राॅनिकल, 25 जुलाई 2003)

बांग्लादेश के विशेषज्ञ डाॅ. एफएम मनीरूज्जमां का कहना है कि बांग्लादेश सिंचाई एवं जलापूर्ति के लिए मुख्य रूप से भारत की ओर से प्रवेश करने वाली नदियों के स्वच्छ पानी पर निर्भर है। गंगा, ब्रह्मपुत्र एवं मेघना नदी के 17.2 लाख वर्ग किलोमीटर के कुल इलाके में से 8 प्रतिशत क्षेत्र बांग्लादेश की सीमा में पड़ता है। इसलिए इन नदियों के पानी को भारत, नेपाल, भूटान एवं चीन में कहीं और मोड़ना निश्चित तौर पर बांग्लादेश के लिए विभीषिका साबित होगी।

(डेली एक्सेलसियर 18 अक्टूबर 2003)

बांग्लादेश के जल संसाधन मंत्री ने कहा है कि नदी-जोड़ योजना पर बांग्लादेश की आशंका को यदि नजरअंदाज किया जाता है तो इस मुद्दे को वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाएगा। उन्होंने कहा कि उनका देश अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों, कोष एजेंसियों एवं अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस मुद्दे पर भारत पर दबाव बनाने को कहेगा।

(दि हिन्दू व राष्ट्रीय सहारा, 18 अगस्त 2003)

नेपाल के विशेषज्ञों ने उठाया सवाल: नेपाल के जल संसाधन विशेषज्ञों एवं नागरिक समाज ने नेपाल सरकार से राष्ट्रीय ग्रिड, ऊर्जा व्यापार एवं ऊपरी पड़ोसी राज्य के बारे में अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करने की मांग की है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि भारत नदियों को जोड़ता है तो निश्चित तौर पर भारत नेपाल की बड़ी नदियों महाकाली, करनाली, कोसी एवं गंडकी का इस्तेमाल करेगा, जिससे नेपाल के निचले इलाकों को बरसात के मौसम में बाढ़ का सामना करना पड़ेगा।

(राइजिंग नेपाल, 20 जनवरी 2003)

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