नदी को समझिए तो सही

18 Aug 2015
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polluted ganga
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सफाई अभियान का पहला चरण अगले साल अक्टूबर तक समाप्त हो जाएगा। लेकिन यहाँ ध्यान रखना होगा कि सभी जगह सफाई की एक ही नीति और एक ही तरीका काम नहीं करेगा। स्थानीय लोगों को जोड़कर उसे ज्यादा व्यावहारिक बनाना होगा। सरकार की योजना निर्मल गंगा कार्यक्रम को 1619 ग्राम पंचायतों में लागू करने की है। अगले तीन माह में 100 गाँवों में कार्यक्रम शुरू होगा। लेकिन ये प्रयास नाकाफी हैं। भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी का यह बयान तर्कसंगत नहीं है कि गंगा को बाँट कर नहीं देखा जा सकता, उसकी सफाई के लिये पूरी गंगा में एक साथ और एकीकृत प्रयास करना होगा। दरअसल गंगा सफाई के लिये उसे मुख्य तौर पर चार हिस्सों में बाँट कर देखना होगा। पहला भाग होगा उद्गम से ऋषिकेश तक, दूसरा हिस्सा होगा हरिद्वार से कानपुर तक, तीसरा हिस्सा होगा कानपुर के आगे इलाहाबाद, वाराणसी और गाजीपुर तक और अन्तिम ध्यान देने वाला हिस्सा होना चाहिए बक्सर से कोलकाता तक।

अब थोड़ा विस्तार में जाते हैं। उद्गम से ऋषिकेश तक गंगा पहाड़ों में बहती है और बाँध योजनाओं और विकास का शिकार होकर विनाशकारी बाढ़ का सबब बन रही है। ‘रन ऑफ द रिवर’ के नाम पर सुरंग में बह रही नदी आस्था और पर्यावरण दोनों को चोट पहुँचा रही है।

सरकार को चाहिए कि गंगा के ऊपरी पथ पर नए बाँध ना बनाएँ और इको सेंसेटिव एरिया को 135 किलोमीटर यानी उत्तरकाशी से आगे बढ़ाकर देवप्रयाग तक लाना चाहिए, हालाँकि सरकार के अब तक के कदम बताते हैं कि वो इस 135 किलोमीटर को भी कम करना चाहती है। दूसरे हिस्से में हरिद्वार से कानपुर तक गंगा सबसे ज्यादा प्रदूषित होती है। गंगा को अपना ‘डस्टबिन’ समझने वाली 80 फीसद फैक्ट्रियाँ गंगा के इसी पथ पर हैं।

यहाँ जीरो टालरेंस की नीति पर चलते हुए फ़ैक्टरियों को हटाना चाहिए और सरकारी नालों का वैकल्पिक इन्तजाम होना चाहिए। गंगा का 90 फीसद पानी इसी क्षेत्र से सिंचाई के लिये निकाल लिया जाता है और बदले में दिया जाता है ढेर सारा काला-भूरा पानी।

तीसरे क्षेत्र में गंगा को सबसे ज्यादा पूजा जाता है, इस मैदानी पथ पर आस्था का चरम है और इसी इलाके में गंगा पानी के लिये तरस रही है। सबसे ज्यादा योजनाएँ भी इसी क्षेत्र को लेकर बन रही हैं। ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम के तहत 2100 करोड़ वाराणसी और 1700 करोड़ रुपए इलाहाबाद में गंगा की सफाई के लिये आवंटित किये गए हैं।

कानपुर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और एफ्लूएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) लगाने के लिये 1000 करोड़ रुपए की स्वीकृति दी गई है। इनका निर्माण 2018 तक पूरा हो जाएगा। इसका पहला चरण 2016 में पूरा होगा और इसके लिये 1000 करोड़ खर्च किये जाएँगे। कुल मिलाकर गंगा के किनारों को विकसित करने की पूरी कोशिश की जा रही है लेकिन गंगा को पानी कहाँ से मिलेगा इस पर सब चुप हैं।

मुरली मनोहर जोशी का कार्यक्षेत्र भी यही रहा है, उन्हें निश्चित तौर पर पता होगा कि गंगा का यह हिस्सा सबसे ज्यादा त्राहिमाम कर रहा है। चौथे और अन्तिम हिस्से में प्रदूषण की नहीं कटाव की समस्या है। गंगा का डेल्टा तेजी से बढ़ रहा है। फरक्का डैम बनने के बाद से उसकी गाद सफाई को लेकर गम्भीर प्रयास नहीं हुए हैं।

नेपाल से उतरने वाली हर नदी तेज बहाव को गंगा अपने में समा लेती है, नतीजतन गाजीपुर, बलिया से लेकर मालदा तक हजारों गाँव लगातार गंगा में समाते जा रहे हैं। इसलिये सफाई की जो कोशिशें पहाड़ पर होंगी वे बंगाल और झारखण्ड में सफल नहीं हो सकती। बेशक गंगा हमारी माँ है और उसे सम्पूर्णता में देखना चाहिए लेकिन हमने उसके अलग-अलग अंगों पर अलग-अलग जगह चोट पहुँचाई है तो इलाज भी उसी तरह करना होगा।

हाल ही में सरकार ने केन्द्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) को यह निर्देश दिया गया है कि वह वैसी बाँध परियोजनाओं की इजाजत नहीं दे जो नदियों के प्राकृतिक बहाव में बाधक हों। यह अच्छा प्रयास है। गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने 11 शहरों की सूची तैयार की हैं जिन पर 2016 तक सफाई का काम होना है। इनमें ऋषिकेश, हरिद्वार, इलाहाबाद, वाराणसी, गढ़मुक्तेश्वर, कानपुर, पटना, साहिबगंज, कोलकाता और नवद्वीप शामिल हैं।

इस सफाई अभियान का पहला चरण अगले साल अक्टूबर तक समाप्त हो जाएगा। लेकिन यहाँ ध्यान रखना होगा कि सभी जगह सफाई की एक ही नीति और एक ही तरीका काम नहीं करेगा। स्थानीय लोगों को जोड़कर उसे ज्यादा व्यावहारिक बनाना होगा। सरकार की योजना निर्मल गंगा कार्यक्रम को 1619 ग्राम पंचायतों में लागू करने की है। अगले तीन माह में 100 गाँवों में कार्यक्रम शुरू होगा। लेकिन ये प्रयास नाकाफी हैं। गंगा के हर दर की सफाई उसकी स्थानीयता को ध्यान में रखकर करनी होगी और आगे बढ़ना होगा बिना इस बात की चिन्ता किये कि मुरली मनोहर जोशी क्या कहते हैं।

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