नदियों का अस्तित्व बना रहे

13 Jan 2015
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अभिभाषण


श्रीमती राबड़ी देवी, मुख्यमन्त्री बिहार
पाँचवीं बैठक: राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद 1 अप्रैल, 2002

माननीय प्रधानमन्त्री जी,


.राष्ट्रीय जल नीति प्रारूप, 2002 पर विचार-विमर्श हेतु आहूत राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद की इस पाँचवीं बैठक में अपने राज्य की ओर से दो शब्द प्रस्तुत करने का सुअवसर प्रदान करने हेतु मैं आपकी आभारी हूँ।

मैं परिषद का धन्यवाद ज्ञापन करना चाहती हूँ, जिसने बिहार को कोर-ग्रुप का सदस्य बनाकर इस नीति-प्रारूप के कतिपय बिन्दुओं पर सर्वसम्मति स्थापित करने में इसे सक्रिय और सकरात्मक भूमिका निभाने का अवसर प्रदान किया।

इस बैठक की कार्यवली टिप्पणी पर बिहार सरकार की मदवार सहमति अलग से प्रस्तुत की जा रही है। किन्तु, इस विशेष अवसर का लाभ उठाकर मैं आपका निजी ध्यान बिहार राज्य की आर्थिक दुःस्थिति की ओर आकृष्ट करना चाहूँगी। आप अवगत् हैं कि किस प्रकार राज्य के पुनर्गठन के पश्चात् उत्तरवर्ती बिहार की अर्थव्यवस्था पूर्णतया कृषि पर आश्रित हो गई है। प्राकृतिक खनिज सम्पदा और उद्योगविहीन किन्तु अत्यन्त उर्वर भूमि और पर्याप्त जल संसाधन से सम्पन्न देश के लगभग सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाले राज्यों में एक, उत्तरवर्ती बिहार राज्य की आर्थिक विपन्नता की स्थिति सर्वविदित है। मैं आशा करती हूँ कि आपकी निजी दिलचस्पी और सकारात्मक हस्तक्षेप से बिहार राज्य भी अन्य विकसित राज्यों की तरह प्रगति पर राष्ट्रीय मुख्यधारा में समकक्ष स्थान प्राप्त कर सके।

2. अध्यक्ष महोदय, हम आशान्वित हैं कि राष्ट्रीय जल नीति प्रारूप, 2002 को, जो कि पूर्व परिचारित राष्ट्रीय जल नीति का परिष्कृत रूप है, इस बैठक में परिषद की स्वीकृति मिल जाएगी और इसे लागू होने का मार्ग प्रशस्त होगा। राष्ट्रीय जल नीति प्रारूप, 2002 के उस दृष्टिकोण का मैं विशेष रूप से स्वागत करती हूँ, जिसमें योजनाओं के आयोजन एवं प्रबन्धन में लाभान्वितों और विशेषकर महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने का प्रावधान है।

निश्चय ही यह प्रावधान न सिर्फ योजना के लाभान्वितों और महिलाओं की जल प्रबन्धन में भूमिका आश्वस्त कराएगा, बल्कि आयोजन में उनकी भागीदारी योजना में उनकी अपेक्षाओं के यथासम्भव समावेश में भी सहायक होगी।

इसी प्रकार प्रस्तुत प्रारूप की कण्डिका 6.6 में जल निस्सरण को सिंचाई परियोजना के एक अभिन्न रूप में प्रतिष्ठापित किया जाना एक सकारात्मक नीति है, जो कृषि उत्पादकता में वृद्धि की सिंचाई योजनाओं के मूल उद्देश्य की प्राप्ति की दृष्टि से आवश्यक है। यह प्रावधान निश्चय ही स्वागत योग्य है।

3. राष्ट्रीय जल नीति प्रारूप, 2002 का वर्तमान स्वरूप विभिन्न मंचों, यथा राष्ट्रीय जल पार्षद, राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद, कार्यकारी दल तथा कोर-ग्रुप में काफी विचार-विमर्श के बाद प्राप्त किया जा सका है। निश्चय ही इस प्रक्रिया में सर्वसम्मति स्थापित करने के हित में बिहार सहित कई राज्यों को अलग-अलग बिन्दुओं पर अपने दृष्टिकोणों को शामिल करना पड़ा है। इससे इस नीति को शीघ्र लागू किए जाने के प्रति हमारी उत्सुकता स्पष्ट है। किन्तु, जीवनदायिनी नदी के खुद के अस्तित्व की रक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए, यह विवाद का विषय नहीं हो सकता है। पर्यावरण सुरक्षा और परिस्थितिकी सन्तुलन बनाए रखना हमारी जल नीति की प्राथमिकता होनी चाहिए। ऊपरी तटीय क्षेत्रों में अन्धाधुन्ध बढ़े जा रहे जल के उपयोग से घाटी के निचले हिस्सों में नदियों का अस्तित्व संकट में पड़ता जा रहा है तथा कहीं-कहीं तो इसके विलीन होने की आशंका पैदा हो गई है। अतः यह उपयुक्त होगा कि अन्तरराज्यीय नदियों में न्यूनतम जलस्राव प्रवाहित करने देने की बाध्यता स्थापित करते हुए सभी तटीय राज्यों को इसके लिए उत्तरदायी ठहराया जाय। मेरे विचार से पारिस्थितिकी (इकोलोजी) हेतु जलस्राव के आबण्टन के प्रावधान की प्राथमिकता पेयजल के ठीक नीचे होनी चाहिए, साथ ही, बाध्यता भी सन्निहित हो कि जल की गुणवत्ता स्नान योग्य सुनिश्चित की जाय।

4. अपनी बात समाप्त करने से पहले मैं अध्यक्ष महोदय का निजी ध्यान उत्तर-बिहार की बाढ़ की विकराल समस्या और इसके अन्तरराष्ट्रीय आयामों की ओर आकृष्ट करना चाहूँगी। इस परिषद के माध्यम से मेरा यह अनुरोध है कि उत्तर बिहार की बाढ़ समस्या के स्थायी निदान हेतु अन्तरराष्ट्रीय नदियों पर शीघ्रातिशीघ्र जलाशयों के निर्माण हेतु सहघाटी पड़ोसी देश नेपाल से समझौता किया जाए तथा इस अन्तराल में अन्य अल्पकालीन बाढ़ सुरक्षात्मक कार्यों पर होने वाले व्यय का भार केन्द्र सरकार द्वारा वहन किया जाय।

मुझे आशा ही नहीं, अपितु पूर्ण विश्वास है कि माननीय प्रधानमन्त्री जी के कुशल नेतृत्व में पुनर्प्रारूपित राष्ट्रीय जल नीति, 2002 बदलते समय के परिवेश में जल संसाधन प्रक्षेत्र के समक्ष आने वाली चुनौतियों का सामना करते हुए हमारी सामाजिक-आर्थिक वृहत्तर नीतियों के परिप्रेक्ष्य में देश के जल संसाधन के इष्टतम उपयोग के उद्देश्य की प्राप्ति में सक्षम होगी।

3. मै आप सभी का धन्यवाद ज्ञापन करती हूँ कि आपने हमारी बातों को ध्यानपूर्वक सुना।

जय हिन्द!

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