नदियों के गैर-मानसूनी प्रवाह की बहाली 

नदियों के गैर-मानसूनी प्रवाह की बहाली 
नदियों के गैर-मानसूनी प्रवाह की बहाली 

समस्या

भारत की लगभग सभी नदियों का मानसूनी प्रवाह लगभग अप्रभावित है, पर उनके गैर-मानसूनी प्रवाह में कमी आ रही है। अर्थात समस्या केवल नदियों के गैर-मानसूनी प्रवाह के घटने की ही है। गैर-मानसूनी प्रवाह के घटने के कारण छोटी तथा मंझौली नदियाँ मौसमी बनकर रह गई हैं। यह असर व्यापक है। बरसात बाद नदियों के सूखने का खतरा लगातार बढ़ रहा है। इसलिए प्रवाह बहाली के प्रयासों का विलम्ब खतरनाक होगा। उद्देश्यों की भिन्नता और स्थिति की गंभीरता के कारण लगता है कि जलग्रहण या नदी जोड़ योजना या कैचमेंट ट्रीटमेंट योजना या मनरेगा द्वारा अब समस्या का निदान संभव नहीं लगता। 

समस्या क्यों पनपी 

अधिक अन्न उत्पादन, पेयजल और औद्योगिक क्षेत्रों में पानी का उपयोग बढ़ा। असिंचित इलाकों में भूजल के दोहन में अप्रत्याशित वृद्धि हुई और भूजल का उपयोग आवश्यकताओं की पूर्ति के भरोसेेमन्द स्रोत के तौर पर बढ़ा। परिणाम - भूजल का अतिदोहन पनपने लगा। उपर्युक्त कारणों से भूजल के कुदरती जलचक्र में समानुपातिक असन्तुलन पनपा। अतिदोहित, क्रिटिकल और सेमी-क्रिटिकल विकासखंडों की संख्या बढ़ने लगी। बरसात में भूजल की करीब-करीब बहाली तो हुई पर समानुपातिक रीचार्ज की अनदेखी और सूखे दिनों में भूजल के अतिदोहन के कारण कुएं, नलकूप और तालाब सूखे। छोटी नदियों के योगदान की मात्रा और अवधि घटी। इस कारण प्रमुख नदियों का प्रवाह घटा। जल स्रोत सूखे।

अब क्या करें

सबसे पहले नदियों के घटते गैर-मानसूनी प्रवाह और भूजल स्तर के अन्तर-सम्बन्ध को समझा जाए। उस समझ के आधार पर प्रवाह बहाली अभियान चलाया जाए। सरकार और समाज एकजुट हो, संकल्प लें कि वे -  

  • कुदरती जलचक्र का सन्तुलन कायम कर नदियों के नाॅन-मानसूनी प्रवाह की बहाली के लिए प्रयास करंेगे। 
  • नदी की प्राकृतिक जिम्मेदारियों को पूरा करने वाले कामों को सहयोग देंगे।
  • नदी की जैव विविधता की बहाली के लिए प्रयास करेंगे।  
  • नदी जल की स्वतः साफ होने वाली प्राकृतिक क्षमता लौटाने हेतु प्रयास करेंगे। 
  • नदी जल के उपयोग हेतु समाज सम्मत व्यवस्था कायम कराने हेतु प्रयास करेंगे।  
  • सुरक्षित विकास को बढ़ावा देंगे।
  • नदी जल पर निर्भर निर्धन समाज की आजीविका के लिए सहयोग देंगे।  
  • अन्य कार्य जो स्थानीय परिस्थितियों में आवश्यक हैं, को करवाने के लिए प्रयास करेंगे। 

प्रवाह बहाली की अवधारणा

प्रवाह बहाली की अवधारणा को वृक्ष के उदाहरण द्वारा आसानी से समझा जा सकता है। वृक्ष के तीन मुख्य भाग होते हैं - जड़ें, मुख्य तना और शाखाएँ। जड़ें अपने आसपास की मिट्टी से पानी और पोषक तत्वों को खींच कर वृक्ष को उपलब्ध कराती हैं। जब जड़ों के आसपास की मिट्टी का पानी खत्म हो जाता है, तो पानी की सप्लाई खत्म हो जाती है। परिणाम - वृक्ष सूख जाता है। निष्कर्ष - जड़ों का काम मिट्टी से पानी प्राप्त करना, परिवहित करना और तने और शाखाओं को उपलब्ध करा वृक्ष को जिन्दा रखना है। 

लगभग यही कहानी नदी की है। उसके भी तीन हिस्से यथा सहायक नदियाँ, मुख्य नदी और डेल्टा होते हैं। नाॅन-मानसून सीजन में सहायक नदियाँ कछार की मिट्टी की उथली परतों से भूजल को समेट कर नदी को उपलब्ध कराती हैं। मुख्य नदी उस भूजल को डेल्टा को उपलब्ध कराती है। नाॅन-मानसून सीजन में सहायक नदियों की भूमिका भूजल को परिवहित कर मुख्य नदी को सोंपने की है। नान-मानसून सीजन में जब सहायक नदियों को भूजल उपलब्ध नहीं होता तो वे सूख जाती हैं। सहायक नदियों के योगदान के कम होने से मुख्य नदी का प्रवाह कम होने लगता है। प्रवाह बहाली की असली चुनौती है कछार की उथली परतों में भूजल की साल भर पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता तथा उसका नदी में डिस्चार्ज अर्थात नान-मानसून सीजन में सहायक नदियों में प्रवाह की निरन्तरता। चट्टानी इलाकों तथा कछार इलाकों में प्रवाह बहाली की फिलाॅसफी एक जैसी है किन्तु परिस्थितियाँ अलग-अलग होती हैं। इसलिए उपचार में थोड़ा अन्तर होगा। 

निष्कर्ष 

  • मुख्य नदी में प्रवाह बहाली के काम का प्रारंभ सहायक नदियों से करना अनिवार्य। 
  • काम करने के लिए ऐसे नक्शे की आवश्यकता जो मुख्य नदी और उसकी सहायक नदियों को दर्शाता हो।  

आदर्श नक्शा 

प्रवाह बहाली के लिए वह हाइड्रोलाॅजिकल इकाई आदर्श होगी, जिसका क्षे़त्रफल प्लानिंग, क्रियान्वयन तथा प्रबन्ध की दृष्टि से आदर्श हो और जो तर्कसंगत समयावधि में परिणाम देने में सक्षम हो।

विकल्प 

  • सेन्ट्रल वाटर कमीशन के बेसिन मैप।
  • सेन्ट्रल ग्राउन्ड वाटर बोर्ड के नक्शे।
  • नेशनल वाटरशेड एटलस की उपयुक्त हाइड्रोलाॅजिकल इकाई का नक्शा।  

सेन्ट्रल वाटर कमीशन के बेसिन मैप -बाँधों और बाढ़ की पूर्व सूचना के लिए अधिक उपयुक्त। आवश्यकतानुसार उपयोग संभव।
सेन्ट्रल ग्राउन्ड वाटर बोर्ड के नक्शे - हाइड्रोलाॅजिकल प्रोजेक्ट के लिए उपयोगी। प्रवाह बहाली के लिए अनुपयुक्त।

नेशनल वाटरशेड एटलस के नक्शे - नेशनल वाटरशेड एटलस की पाँचवीं हाइड्रोलाॅजिकल इकाई (वाटरशेड-औसत क्षेत्रफल एक लाख हेक्टेयर) का नक्शा उपरोक्त शर्तों को यथासंभव पूरा करता है। अतः उसे आदर्श हाइड्रोलाॅजिकल इकाई की माना जा सकता है। आरजीएम द्वारा उनकी इकाई वार सूची (पहचान कोड सहित) जारी की जानी चाहिए। बेहतर प्लानिंग, क्रियान्वयन तथा प्रबन्ध के लिए वाटरशेड को छोटी-छोटी इकाईयों में विभाजित करना चाहिए। उप-इकाईयाँ निम्नानुसार होंगीं-

  • मिलीवाटरशेड (वाटरशेड की उप-इकाई) - औसत क्षेत्रफल 5,000 से 10,000 हेक्टेयर।
  • माइक्रो-वाटरशेड (मिली वाटरशेड की उप-इकाई) - औसत क्षे़त्रफल 500 से 1000 हेक्टेयर। 

प्रवाह बहाली की संभावना

थार मरुस्थल की परिस्थितियाँ बलुआ धरती, कम बरसात तथा प्रतिकूल मौसम के कारण, नदियों के नान-मानसून प्रवाह बहाली के लिए प्रतिकूल हैं। 

भारत के बाकी हिस्सों में पर्याप्त वर्षा और अन्य घटकों के अनुकूल होने के कारण नाॅन-मानसून प्रवाह बहाली संभव है। उसमें समय लगेगा पर प्रवाह बढ़ाया जा सकता है। कछारों में अच्छी संभावना है। बाँधों के डाउनस्ट्रीम में मूल प्रवाह की भरपाई के लिए अतिरिक्त प्रयासों की आवश्यकता होगी। वन विभाग के वर्किंग-प्लान में नदियों में प्रवाह की मात्रा और अवधि बढ़ाने वाले उपयुक्त कामों को सम्मिलित कराना होगा। परिणाम को जानने के लिए नदियों में प्रवाह की मात्रा तथा अवधि की माॅनीटरिंग करनी होगी। यही माॅनीटरिंग वन भूमि से राजस्व भूमि पर आने वाली नदियों पर करना होगा। 

भूजल रीचार्ज की वस्तुस्थिति और प्रयास

सेन्ट्रल ग्राउन्ड बोर्ड द्वारा सन 2013 में जारी कृत्रिम पुनर्भरण मास्टर प्लान के अनुसार देश में केवल 9,41,541 वर्ग किलोमीटर इलाके में सामान्य रीचार्ज कम है। उनके अनुसार इसी इलाके को कृत्रिम भूजल रीचार्ज की आवश्यकता है। वस्तुस्थिति बताती है कि बरसात में जिन क्षेत्रों में प्राकृतिक पुनर्भरण पूरा है वहाँ की नदियों पर भी गैर-मानसूनी प्रवाह का संकट है। अर्थात नदियों की आवश्यकता पूरा करने के लिए लगभग सभी जगह अतिरिक्त प्रयास आवश्यक हैं।

भारत में जल उपलब्धता की वस्तुस्थिति 

  • कुल बरसात - 4000 लाख हेक्टेयर मीटर 
  • रन-ऑफ की मात्रा-1,963 लाख हेक्टेयर मीटर
  • बांधों के लिए पानी की आवश्यकता - 690 लाख हेक्टेयर मीटर
  • अनप्रयुक्त रन-ऑफ की मात्रा - 1273 (1963-690) लाख हेक्टेयर मीटर 
  • भूजल संचय - 398 लाख हेक्टेयर मीटर 
  • मौजूदा भूजल उपयोग - 245 लाख हेक्टेयर मीटर से थोड़ा अधिक
  • सुझाव - यदि बाकी बचे रन-ऑफ (1273 लाख हेक्टेयर मीटर) के केवल 10 प्रतिशत (127 लाख हेक्टेयर मीटर ) या उससे थोड़े अधिक रन-ऑफ का उपयोग भूजल रीचार्ज के लिए कर लिया जाए, तो देश का भूजल संकट दूर हो सकता है। 127 लाख हेक्टेयर मीटर रन-ऑफ का एक साथ रीचार्ज संभव नहीं है। उसे किस्तों में करना होगा ताकि स्थिति में हर साल सुधार हो। अतः नदियों को सूखने से बचाने के लिए सभी जगह अतिरिक्त प्रयासों की आवष्यकता है। इसके लिए नदी मैनुअल और अभियान अनिवार्य है। 

रणनीति

प्रवाह को बढ़ाने वाले कामों को निम्न दो मुख्य वर्गों में बाँटा जा सकता है - 

  • वैज्ञानिक काम 
  • सामाजिक सहमति से पानी का प्रबन्ध                     

वैज्ञानिक काम 

प्रवाह पर असर ड़ालने वाले निम्नलिखित प्राकृतिक गुणों को ध्यान में रख तथा वांछित गणनाओं के बाद कदम उठाए जाना चाहिए- 

प्राकृतिक गुण                      

  • इकाई का भूविज्ञान तथा संरचनात्मक लक्षण
  • इकाई की जोनिंग
  • इकाई का ड्रेनेज पेटर्न और ड्रेनेज डेंसिटी
  • इकाई का क्षे़त्रफल
  • इकाई की आकृति
  • इकाई का ढाल
  • अन्य

अवलोकन तथा गणनाएँ

प्रवाह की बहाली के लिए मुख्यतः निम्न घटकों को ज्ञात करना आवश्यक है -

  • प्राकृतिक संकेतक 
  • सालाना औसत वर्षा
  • रन-ऑफ 
  • मानसूनी भूजल रीचार्ज 
  • नदी का गैर-मानसूनी प्रवाह और उसका भूजल स्तर की गिरावट से सम्बन्ध
  • भूजल स्तर की गिरावट के लिए जिम्मेदार घटक और उनकी मात्रा
  • प्रवाह बहाली के लिए वांछित पानी की मात्रा और अवधि तथा उपलब्धता के स्रोत
  • समानुपातिक रीचार्ज (वर्षा ऋतु तथा वर्षा ऋतु के बाद)           

कुछ व्यावहारिक सुझाव 

  • भूजल और सतही जल का मिला-जुला उपयोग - उपयोग में सन्तुलन। 
  • डिजायनें जो नदी की कुदरती जिम्मेदारियों से तालमेल बनाकर आवश्यकताओं को यथासंभव पूरा करती हैं।
  • आर्गेनिक /परम्परागत / प्राकृतिक खेती।
  • मिट्टी में नमी सहेजने वाले गुणों का विकास 
  • कम पानी में भरपूर उत्पादन देने वाले देशज बीजों का विकास तथा उपयोग।
  • जल मितव्ययता।
  • स्प्रिंकलर सिंचाई।
  • पानी की गुणवत्ता को निरापद रखने हेतु प्रयास। 

सामाजिक सहमति से पानी का प्रबन्ध

मौजूदा परिस्थितियों में केवल तकनीकी प्रयासों से प्रवाह बहाली और उसका दीर्घकालीन स्थायित्व बेहद कठिन है। अतः आवश्यक है कि समाज की सहमति से निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखकर नदी के पानी का प्रबन्ध किया जाए- 

  • मांग और पूर्ति के बीच सन्तुलन। 
  • पर्यावरणीय प्रवाह को कायम रखना। 
  • बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग।


10. संभावित उपलब्धियाँ

  • नदियों के प्रदूषण के स्तर में कमी। 
  • पानी की उपलब्धता में सुधार। 
  • जल स्वराज।
  • पर्यावरणीय प्रवाह की उपलब्धता।
  • जैव विविधता की बहाली।
  • पानी की नैसर्गिक सफाई क्षमता की वापसी।
  • जल जनित बीमारियों में कमी। स्वस्थ समाज। 
  • नदी पर निर्भर समाज को आजीविका।
  • सन्तुलित और निरापद माॅडल का विकास। 
  • तालाबों, कुओं तथा नलकूपों में पानी। 
  • जल संकट तथा जल जनित पलायन में कमी।
  • नगरों पर ग्रामीण आबादी को मूलभूत सुविधाएँ तथा रोजगार उपलब्ध कराने वाले दबाव में कमी।
  • अनेक प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष लाभ। 
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