नदियों के प्रदूषण का जीवन पर प्रभाव

2 Apr 2014
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कुछ समय पूर्व तक जनमानस की यह धारणा थी कि गंगाजल कभी खराब नहीं होता है और ना ही इससे छूत रोग होने का खतरा रहता है। पर शव पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार अब पवित्र गंगा मैया स्नान के उपयुक्त नहीं रह गई हैं क्योंकि इसमें नहाने से चर्मरोग होने की सम्भावनाएं हैं और इसका प्रमाण है गंगा शुद्धि अभियान क्योंकि इस शब्द के चेतना में आते ही गंगा जल के प्रदूषित होने तथा सम्भाव्य खतरों की कहानी स्पष्ट होती है।राष्ट्रीय जल प्रवाह पद्धति में प्रदूषण खतरे के निशान के ऊपर पहुंच गया है। राष्ट्रीय परिवेश अभियांत्रिकी शोध संस्थान (नीरी) के वैज्ञानिकों द्वारा शोध सर्वेक्षण से पता चलता है कि देश का लगभग 70% भूगर्भीय जल मानवीय उपयोग के लिए अनुपयुक्त हो चुका है।

एक सर्वेक्षण के अनुसार बंबई महानगर के उपनगर अम्बरनाथ और उल्हास नगर के बीचों-बीच होकर जो कालू नदी बहती है उसमें भारी धातुओं का जमाव पाया गया है। इस नदी के किनारे पाए जाने वाले पायक्रस पौधे की पत्तियों में पारा मिला हुआ है। जो दुधारू जानवर इसका सेवन करते हैं उनके दूध में पारा मिला हुआ पाया गया और यही दूध जब बच्चे पीते हैं तो यह पारा उनके शरीर में पहुंच जाता है।

बिहार की शोक नदी के नाम से मशहूर दामोदर नदी बोकारो और राऊरकेला लौह व इस्पात संयंत्रों के बीच स्थित है विभिन्न कोयला धुलाई संयंत्र से प्रतिमाह 82,000 टन कोयला साफ किया जाता है और इस सफाई के दौरान 1800 टन कोयला इस नदी में बह जाता है।

एक अध्ययन के अनुसार इस नदी में अवशिष्ट ठोस पदार्थों की मात्रा 1,00,000 मिली ग्राम प्रति लीटर पाई गई है। जबकि जल की अधिकतम सहनीय क्षमता 100 मिली ग्राम प्रति लीटर मानी जाती है। इतना ही सिंदरी खाद कारखाने से 10 से 15 टन सल्फेरिक एसिड दुर्गापुर केमिकल्स से 25 से 10 टन दूषित पदार्थ आकर मिलते हैं एक और अध्ययन के अनुसार दुर्गापुर के निकट 08 औद्योगिक ईकाइयां हैं। जो लगभग 1.59 लाख घनमीटर अवशिष्ट पदार्थ दामोदर नदी में प्रतिदिन डालती हैं।

बिहार में सोन नदी की स्थिति और भी बदतर है वहां मिर्जापुर के समीप स्थिति कागज और रसायन उद्योग की इकाइयों से उत्पन्न खतरनाक अवशिष्ट इतना अधिक है, जिसके कारण क्लोरीन अंश रिहंद जलाशय के समीप 62 पी.पी.एम. हो जाता है, जबकि इसकी घुलनशील ऑक्सीजन का स्तर नदी में गिरकर 0.2-1-2 किग्रा प्रति लीटर न्यूनतम आ जाता है। जिससे जल जीवाणुओं का अस्तित्व खतरे में आ जाता है।

पश्चिमी बंगाल की हुगली नदी उर्जा संयंत्रों के गर्म पानी तथा अन्य उपयुक्त औद्योगिक अवशिष्टों के कारण इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि नदी की मछलियों और उनके अंडों तक का विनाश होना प्रारंभ हो चुका है। इस नदी के किनारे स्थित कागज की लुगदी उद्योग से लगभग 114 लाख तरल अवशिष्ट नदी में जाकर समाहित हो जाता है इसके अतिरिक्त कलकत्ता महानगर का समस्त मलमूत्र भी इस नदी में आकर मिलता है।

तमिलनाडु की कावेरी इस समय की सबसे अधिक प्रदूषित नही है। क्योंकि यह भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बी.एच.ए.एल.) द्वारा छोड़े गए रसायनों की शरणस्थली बन चुकी है।

केरल की चालियार नदी का जल अवशिष्ट पदार्थों के कारण भूरा पड़ गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस नदी के समीप स्थित रेयन फैक्ट्री द्वारा फेंके गए उच्चस्तरीय पारे के कारण नदी की मछलियों तक के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है।

इसी प्रकार का पारा विष (मरकरी) उड़ीसा की रसकुल्या तथा महाराष्ट्र की थाने क्रीक नदी में भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाने के प्रमाण मिले हैं।

दूषित पदार्थों के अलावा कई उच्च तापमानीय जल नदियों में डालते हैं जिससे जल के निचले भाग में रहने वाले जीव-जंतुओं का अस्तित्व संकट में पड़ जाता है, ऐसा माना जाता है कि जल में पाए जाने वाले जीवाणुओं के लिए 25% से 30% तापमान अनुकूल नहीं होता और 30% से 35% का तापमान जैविक मरुस्थल माना जाता है जिसमें यह वहां जीवित नहीं रह सकते।

इस प्रदूषण की सर्वाधिक मात्रा देश के पवित्रतम नगर बनारस में पाई जाती हैं जहां गंगा के किनारे शव जलाए जाते हैं या अनंनत जल धारा को समर्पित किए जाते हैं।

कुछ समय पूर्व तक जनमानस की यह धारणा थी कि गंगाजल कभी खराब नहीं होता है और ना ही इससे छूत रोग होने का खतरा रहता है। पर शव पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार अब पवित्र गंगा मैया स्नान के उपयुक्त नहीं रह गई हैं क्योंकि इसमें नहाने से चर्मरोग होने की सम्भावनाएं हैं और इसका प्रमाण है गंगा शुद्धि अभियान क्योंकि इस शब्द के चेतना में आते ही गंगा जल के प्रदूषित होने तथा सम्भाव्य खतरों की कहानी स्पष्ट होती है।

चंबल का पानी भी धीरे-धीरे पीने के लिए अनुपयुक्त होता जा रहा है कई स्थानों पर इसके पानी से भूगर्भीय जल के विषाक्त होने का खतरा पैदा हो गया है इसका कारण चंबल के किनारे बसा औद्योगिक शहर कोटा जो अपना पूरा योगदान इसे प्रदूषित करने में दे रहा है। उज्जैन के समीप शिप्रा नदी की भी लगभग यही स्थिति है।

जल प्रदूषण की यह समस्या राष्ट्रीय समस्या है। लेकिन सरकार तब तक कुछ कर सकने में समर्थ नहीं हो सकती जब तक सामान्य जन-जागृति न हो। भारत सरकार ने 1981-90 में पेयजल और सेनिटेशन अंतरराष्ट्रीय घोषणा पत्र पर दस्तखत कर सराहनीय कार्य किया जिसका मुख्य उद्देश्य विश्व के तमाम लोगों को स्वच्छ और सुरक्षित जल एवं सेनिटेशन प्रदान करना है। लेकिन घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने से दायित्व की इतिश्री नहीं हो जाती इसके लिए भारत सरकार और हम सबको मिलकर देश के पानी के स्रोतों को स्वच्छ और शुद्ध रखना होगा इस दिशा में सामाजिक चेतना जागृत करने का कार्य सेमिनार और संगोष्ठियां आयोजित कर किया जा सकता है।

अंत में मेरी समाज से यही अपील है कि पानी की बर्बाद करने से खुद को तथा अपने से संबंधित लोगों को बचाएं, तथा समाज के हर व्यक्ति को यह बताने का प्रयास करें कि पानी को लहू की तरह सुरक्षित रखिए क्योंकि दोनों के बिना जीवन की कल्पना नहीं है। क्योंकि-

दिन में मोमबत्ती जला कर खुश होता है, जो कोई
जरूरत पड़ने पर न मिलेगी रात को रोशनी उसे।


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