नदी विज्ञान की कसौटी पर ललितपुर जिले की ओडी नदी के पुनर्जीवन की कहानी

नदी विज्ञान की कसौटी पर ललितपुर जिले की ओडी नदी के पुनर्जीवन की कहानी
नदी विज्ञान की कसौटी पर ललितपुर जिले की ओडी नदी के पुनर्जीवन की कहानी

ओडी एक छोटी सी गुमनाम नदी है। इसका उदगम, बुन्देलखंड अंचल के ललितपुर जिले की दक्षिणी सीमा के पास स्थित मदनपुर ग्राम के निकट, दसवीं सदी में निर्मित चन्देलाकालीन मदनसागर तालाब से है। जामनी बांध बनने के पहले, यह नदी अपने उदगम अर्थात मदनसागर तालाब से पानी ले बुन्देलखंड के मदनपुर, दारुतला, डिडोनिया, पहारीखुर्द, हसोरा, गोराखुर्द, आगरा और पहाडीकला इत्यादि ग्रामों की प्यास बुझाती आगे बढ़ती थी पर जामनी बांध बनने के कारण पहाडीकला ग्राम के पास उसकी यात्रा यात्रा समाप्त हो गई और वह जामनी जलाशय में समा गई। बदली परिस्थितियों में, दो जलाशयों को कुदरती जलमार्ग से जोडकर बहने वाली इस नदी की कुल लम्बाई 20 किलोमीटर है। 

डाउन टू अर्थ (अंग्रेजी, दिनांक 1-15 जून, 2021, पेज 22 से 24) में प्रकाशित विवरण के अनुसार सन 1990 के पहले ओडी नदी में लगभग पांच माह तक पर्याप्त पानी बहता था। सन 1990 के बाद नदी पर 10 चेकडेम बने। उनके बनने के बाद गाद जमाव और नदी के सूखने की कहानी प्रारंभ हुई। सन 2000 के आते-आते उसकी तली में गाद का जमाव 1.5 मीटर से लेकर दो मीटर तक हो गया। परिणामस्वरुप नदी उथली हो गई, गहराई काफी हद घट गई और कालान्तर में नदी पूरी तरह सूख गई। 

ओडी नदी की कहानी के उपर्युक्त मोड पर उससे जुडी कुछ प्रमुख बातों का उल्लेख आवश्यक है। पहला है गाद का जमाव। ज्ञातव्य है कि चेकडेम के निर्माण के कारण नदी के जलप्रवाह की गति टूटती है, अवरोध उत्पन्न होता है, परिणामस्वरुप नदी की तली में अवरोध के पीछे गाद का जमाव होता है। यही ओडी नदी के मामले में हुआ है। दूसरे नदी का उदगम दसवीं सदी में निर्मित चन्देलाकालीन मदनसागर तालाब से है। गौरतलब है कि इस क्षेत्र की औसत सालाना बरसात 800 मिलीमीटर है। अर्थात इलाके में पानी का टोटा नहीं है। सब कुछ ठीक-ठाक हो तो ओडी नदी को लगभग बारहमासी होना चाहिए लेकिन यदि गूगल पर ओडी के स्त्रोत अर्थात मदनसागर तालाब का को देखा जाए तो उसकी पाल तो आसानी से दिखाई देती है पर जल भराव ठीक से नजर नहीं आता। यह उसके उथले होने के कारण हो सकता है वहीं गूगल मेप पर जामनी जलाशय में जल भराव स्पष्ट नजर आता है। 

समय ने करवट बदली और सन 2017 में नदी के पुनर्जीवन की कहानी का आगाज हुआ। जिला प्रशासन के दखल के बाद नदी का सघन सर्वेक्षण हुआ। सर्वेक्षण के आधार पर तीन फैसले लिए गए। पहले फैसले के कारण चेकडेमों के पीछे जमा गाद को हटाया गया। दूसरे फैसले के कारण 20 किलोमीटर लम्बे नदी मार्ग में मदनपुर, डिडोनिया, हसेरा और पहाडी कला में 42 स्थानों पर नदी की तली की गहराई को बढ़ाया गया। तेंतीस स्थानों पर यह काम सन 2018 और बाकी नौ स्थानों पर यह काम सन 2019 में सम्पन्न हुआ। इसके अलावा, पांच अतिरिक्त स्थानों पर नदी तल की गहराई में अलग से बढ़ोत्तरी की गई। संक्षेप में 20 किलोमीटर के नदी मार्ग में कुल 47 स्थानों पर नदी तल को गहरा किया गया। तीसरे फैसले के अनुपालन में नदी से निकाली गाद की मदद से तटबन्धों (Embankments) का निर्माण किया गया और उन पर लगभग 25,000 पौधे रोपित किए गए। 

ओडी नदी के पुनर्जीवन पर 87 लाख रुपये खर्च किए गए। इस राशि में पंचायत का योगदान 23 लाख रुपये था। बाकी राशि मनरेगा मद से जुटाई गई। सन 2019 की बरसात के बाद उदगम के निकट ऊँचाई पर स्थित मदनपुर और दारुटोला ग्रामों को छोडकर बाकी के नदी मार्ग में नदी लबालब भर गई और सदानीरा हो गई। लगभग 250 कुओं की क्षमता में वृद्धि हुई। ओडी नदी के पुनर्जीवन से लगभग 3500 परिवार लाभान्वित हुए। उनकी सालाना आय 40,200 से बढ़कर 68,000 हो गई। ओडी नदी का लगभग 2428 हैक्टर रकबा दो फसली हो गया। गाद हटाना, नदी की तली को गहरा करना और तटबन्धों पर वृक्षारोपण ने नई इबारत लिख दी। प्रयोग को सराहा गया और वह सम्मानित भी हुआ। लोगों में सन्देश गया कि यह प्रयास लाभदायक है और उसे दोहराया जा सकता है। इस अनुक्रम में उपरोक्त प्रयास को नदी विज्ञान, जल उपलब्धता की निरन्तरता और गाद जमाव से मुक्ति के नजरिए से परखा जाना चाहिए। सबसे पहले बात नदी विज्ञान के नजरिए से प्रयास की। 

नदी विज्ञान की नजर से प्रयास

नदी विज्ञान के अनुसार नदी वह है जिसके मार्ग, ढ़ाल और प्रवाह का निर्घारण प्राकृतिक शक्तिओं ने किया हो। उसका प्रवाह अविरल हो। वह प्रकृति द्वारा सौंपे दायित्वों का पालन करती हो। मानवीय हस्तक्षेप से मुक्त एक जीवन्त इकोसिस्टम हो। इस कसौटी पर उक्त प्रयास खरा नहीं उतरता। उक्त प्रयास के अन्तर्गत नदी मार्ग पर चेकडेम बनाकर दस स्थानों पर गाद के कुदरती निपटान को बाधित और नदी की इकोलाजी (Ecology of flowing water) को तालाब की इकोलाजी (Ecology of stagnant water ) में परिवर्तित किया गया है। इसके अतिरिक्त, 47 स्थानों पर नदी मार्ग में हुई खुदाई बेस लाईन आफ इरोजन के विपरीत है। तटबन्ध बनाकर बरसाती पानी के कुदरती मार्ग बाधित किए गए हैं। वह मदनसागर और जामनी जलाशय को जोडने वाली चेनल बन गई हैं। संक्षेप में नदी विज्ञान की नजर से उपरोक्त प्रयास अवैज्ञानिक है। कालान्तर में वह टिकाऊ सिद्ध नहीं होगा। 

जल उपलब्धता की निरन्तरता

ओडी नदी का उदगम दसवीं सदी में निर्मित चन्देलाकालीन मदनसागर तालाब से है। अनुमान है कि दसवीं सदी और इक्कीसवीं सदी की बरसात की मात्रा में भले ही अन्तर नहीं आया हो लेकिन कैचमेंट में अनेकानेक बदलावों तथा बरसात के चऱित्र में आए बदलावों के कारण कैचमेंट ईल्ड में अन्तर आना संभव है। अनुमान है कि दसवीं सदी में ओडी नदी, मौसमी नहीं अपितु काफी हद तक बारहमासी रही होगी। उसकी जल उपलब्धता का आधार मदनसागर से कुदरती तौर बाहर आता सतही जल और कछार का भूजल रहा होगा। मौजूदा जल उपलब्धता के पीछे जामनी बांध का योगदान हो सकता है। यह नदी तल की अपेक्षित गहराई तक खुदाई का परिणाम हो सकता है। इसका परीक्षण होना चाहिए। 

ओडी नदी का सूखना दो कारण से हो सकता है। पहला कारण है मानसून के बाद मदनसागर से सतही जल की आपूर्ति में बाधा। दूसरा कारण है भूजल स्तर का नदी तल के नीचे उतरना। इन दोनों कारणों को समग्रता में समझने के लिए उन पर शोध होना चाहिए। शोध के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए और हस्तक्षेपों का रोडमेप तय होना चाहिए। कुदरत से बिना तालमेल बिठाए किए हस्तक्षेप अकसर अस्थायी होते हैं।   
     
गाद जमाव से मुक्ति

ओडी नदी के 20 किलोमीटर लम्बे मार्ग में दस चेकडेम स्थापित किए गए हैं। नदी का जल प्रवाह, जब उनकी पाल से टकराता है तो गति बाधित हो कम हो जाती है। गति के कम होने के कारण पाल के अपस्ट्रीम में गाद का जमाव प्रारंभ हो जाता है। यह चेकडेमों के निर्माण के समय हो रहा है।

गाद जमाव से मुक्ति के लिए ओडी के 20 किलोमीटर लम्बे मार्ग को व्यवधान रहित बनाना होगा ताकि सारी गाद जामनी जलाशय में जमा हो। इसके लिए चेकडेमों को हटाना आवश्यक है। उन्हें हटाने से कुदरती व्यवस्था कायम होगी और नदी मार्ग के पानी की मात्रा पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नही पडेगा। 

अन्त में, इस प्रकार के प्रयासों को अकसर नवाचार कहा जाता है। ओडी नदी पर अजमाए प्रयास को भी कुछ लोगों द्वारा नवाचार कहा जा सकता है लेकिन ओडी नदी में पानी की निरन्तरता को बनाए रखने के लिए मदनसागर के मूल स्वरुप को लौटाने की आवश्यकता है। उसके मूल स्वरुप में लौटते ही नदी के प्रवाह में सुधार होगा। भूजल रीचार्ज बढ़ाने के लिए अनेक परकोलेशन-सह-जल संचय तालाब बनाना होगा। पिछले दो तीन सालों में हुए कामों को टिकाऊ बनाए रखने के लिए गाद की सफाई आवश्यक होगी। इसके अतिरिक्त, जामनी जलाशय के बैक-वाटर को कैचमेंट में ले जाने के लिए अनेक नालिओं का निर्माण किया जा सकता है तथा बैक वाटर क्षेत्र में सोलर पम्प लगाकर पानी को, वांछित स्थान तक ऊपर चढ़ाया जा सकता है। कुदरत के तालमेल से अनेक नवाचारों को  अमलीजामा पहनाया जा सकता है। लोगों को खुशहाल बनाया जा सकता है। 

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