नदियों को बचाने के लिए परंपराओं को फिर से अपनाना होगा

6 Jun 2020
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नदियों को बचाने के लिए परंपराओं को फिर से अपनाना होगा
नदियों को बचाने के लिए परंपराओं को फिर से अपनाना होगा

पटना । पानी रे पानी अभियान के तहत पर्यावरण दिवस से नदी दिवस तक नदी चेतना यात्रा की शुरूआत पर्यावरण दिवस से की गई। राज्य की नदियों के प्रति इस अभियान के अंतर्गत 5 जून से 27 सितम्बर के बीच यह यात्रा की जाएगी। नदी चेतना यात्रा के पहले चरण के दौरान मिथिलांचल की कमला नदी, शाहाबाद की काव नदी, सीमांचल की सौरा नदी और चम्पारण की धनौती नदी का अध्ययन किया जाएगा। इस दौरान इन नदियों में हो रहे परिवर्तनों को चिन्हित करते हुए यह जानने का प्रयास किया जाएगा कि नदियों को जिन्दा करने के लिए क्या किया जाना आवश्यक है। इस अभियान से जुड़े सामाजिक संगठन और कार्यकर्ताओं ने गंगा दशहरा से लेकर पर्यावरण दिवस तक राज्य की नदियों कमला नदी (नेपाल), सौरा नदी (पुर्णिया), धनौती नदी (चम्पारण), अजय नदी (देवघर), प्रेमा नदी (पुर्णिया) और काव नदी (रोहतास) के तट पर वृक्षारोपण कार्यक्रम और पर्यावरण के प्रति जागरुकता के लिये चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया। अभियान के संयोजक पंकज मालवीय ने बताया कि नदी के प्रति सामाजिक चेतना जगाने के लिये इस यात्रा का आयोजन किया गया है।

गंगा आंदोलन में सक्रिय रहे सन्यासी और द्वारिका के आदरणीय शंकराचार्य के प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के सम्बोधन से इस यात्रा की शुरुआत गंगा दशहरा के दिन से हुई। इस मौके पर आयोजित वेबिनार में मुख्य अतिथि के तौर अपने सम्बोधन स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि ‘नदियों आदि प्राकृतिक संसाधनों को लेकर बिहार हमेशा गम्भीर रहा है। उन्होंने गंगा नदी के हालत की चर्चा करते हुये कहा कि यदि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विरोध नहीं किया होता तो गंगा नदी तालाब में बदल दी गई होती। केंद्रीय योजना के तहत इलाहाबाद से हल्दिया तक जल मार्ग विकसित करने के क्रम में केंद्र की मोदी सरकार ने गंगा को 16 छोटे तालाबों में बदल दिया होता। गंगा नदी की धारा को लेकर सरकार की किसी योजना में गम्भीरता नहीं दिखती है, लेकिन नदी के किनारे को चमकाया जा रहा है। उन्होंनें गंगा की अविरलता के मसले पर मुख्यमंत्री की गम्भीरता की तारीफ करते हुए कहा कि यह व्यक्ति देश का एकमात्र राजनेता है, जो गंगा जी की समस्या को समझकर उसके निदान के लिये हमेशा सक्रिय है।

वरिष्ठ पर्यावरणविद पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी जी ने कहा कि ‘अभी जो हालात हैं, प्रकृति ने हमें लॉकडाउन में रख दिया है। हवा-पानी अपेक्षाकृत स्वच्छ हुए हैं, इस बदलाव के पीछे अन्य जो भी कारण हों, लेकिन यह स्पष्ट हो गया है कि मनुष्य भी एक महत्वपूर्ण कारण है। उन्होंने अपनी साइकिल यात्रा के क्रम में बिहार का संस्मरण सुनाते हुये कहा कि बिहार के लोग प्रतिभावान हैं और मैं उनका सम्मान करता हूं। प्रकृति से बिहार के जुड़ाव की चर्चा करते हुये जोशी ने कहा कि जहां बिहार की धरती पर सूर्य देव की अराधना जैसे महान पर्व को मनाया जाना, इसका प्रमाण है। यहां के लोग बहुत ही जमीनी स्तर से जुड़े हुए हैं और अगर प्रकृति को लेकर थोड़े गंभीर हो जाएं तो प्रकृति की रक्षा में अमूल्य योगदान दे सकते हैं। इसके लिये बस हमें अपनी परंपराओं को फिर से अपनाना होगा। उन्होंने कहा कि अवसर मिला तो मेरी कोशिश होगी कि हिमालय के लोग बिहार से जुड़ें और बिहार के लोग हिमालय से जुड़ें, तब पानी रे पानी अभियान जैसे कार्यक्रम को बहुत आगे तक ले जा सकते हैं।

कार्यक्रम में भोपाल के भू-वैज्ञानिक केजी व्यास ने कहा कि यह पहला अवसर है जब नदियों की मूल समस्या को जानने का प्रयास हो रहा है। पानी रे पानी अभियान का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले साल भागलपुर जिले की चम्पा नदी के लिये अभियान के क्रम मे बिहार की नदियों को देखने का अवसर मिला था। कैमूर की पहाड़ियों से निकलने वाली काव नदी की यात्रा भी की थी। यात्रा में गंगा की सहायक, इन नदियों के अविरल प्रवाह और बढ़ते प्रदूषण की बेहद दर्दनाक और चिंताजनक तस्वीर देखी थी। उस स्थिति को देखकर प्रश्न उठता है कि नदियों की यह दुर्दशा उस संस्कारित समाज की आंखों के सामने है, जो आदिकाल से नदियों को देवी मानकर पूजता रहा है। नदियों की यह दुर्दशा सरकार के लिए भी चुनौती है। इस अवसर पर इंडिया वाटर पोर्टल के संपादक केसर सिंह, वर्ल्ड वाटर काउंसिल के सदस्य डा. जगदीश चौधरी, यमुना रीवरकीपर मीनाक्षी अरोड़ा, मोख्तारूल हक ने पर्यावरण संरक्षण में समाज की सक्रियता के महत्व पर अपने विचार रखे। भारत सरकार के उपक्रम गेल इंडिया और नमामी गंगे के सहयोग से आयोजित सम्वाद कार्यक्रम का संचालन पानी रे पानी अभियान के संयोजक एवं सामाजिक कार्यकर्ता पंकज मालवीय ने किया।


 

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