नहीं बेरा कड़ै सै फुलुआला तालाब


12 एकड़ का तालाब अब आधा रह गया है। इसके एक बड़े हिस्से का बिजली बोर्ड के लिये सरकार ने अधिग्रहण कर लिया है। इस पर दो अच्छी बात देखने को मिली। एक कब्जे नहीं हैं, दूसरा गाँव का गन्दा पानी भी इसमें नहीं जाता है। तालाब में चोआ भी थोड़ा ऊपर दिखाई दिया। लेकिन इसके सारे घाट अब खण्डहर हैं। किसी जमाने में इस तालाब के जनाना घाट को बेरी के तालाबों में सबसे अच्छा घाट होने का गौरव हासिल था। यह अकेला तालाब था जहाँ दो जनाना घाट थे। दूसरे घाटों के भी केवल अवशेष शेष हैं। बेरी के भीतर ही बसता है बाघपुर। बेरी का छोटा भाई भी है बाघपुर। बेरी के छाज्याण पाना के एक आदमी ने बेरी के ही खेतों में बसाया था यह गाँव। और यहाँ स्थित है फुल्लु तालाब। एक जमाने में बारह एकड़ में फैला यह तालाब गाँव के साथ लगने वाले तालाबों में सबसे बड़ा था। बेरी की नई पीढ़ी नहीं जानती कि बेरी में खूबीराम सेठ का या फुल्लु वाला कोई तालाब है।

हमने यहाँ के एक स्थानीय पत्रकार से पूछा, सेठ खूबीराम का फुल्लु वाला तालाब कहाँ है, जवाब मिला, नहीं बेरा कड़ै सै खूबीराम सेठ का फुल्लु आला तालाब। आग्गे सी न्ह पूछ लिये। फिर यहीं के रहने वाले एक फोटोग्राफर से पूछा, भाई साहब फुल्लु वाले तालाब का फोटो खींच दोगो। खींच तै द्यूंगा, पर बेरा नहीं कित सै। फिर वहीं खड़े एक शिक्षक वीरेंद्र कादियान ने बताया, बिजली बोर्ड के पाच्छै सै भाई।

12 एकड़ का तालाब अब आधा रह गया है। इसके एक बड़े हिस्से का बिजली बोर्ड के लिये सरकार ने अधिग्रहण कर लिया है। इस पर दो अच्छी बात देखने को मिली। एक कब्जे नहीं हैं, दूसरा गाँव का गन्दा पानी भी इसमें नहीं जाता है। तालाब में चोआ भी थोड़ा ऊपर दिखाई दिया। लेकिन इसके सारे घाट अब खण्डहर हैं। किसी जमाने में इस तालाब के जनाना घाट को बेरी के तालाबों में सबसे अच्छा घाट होने का गौरव हासिल था।

यह अकेला तालाब था जहाँ दो जनाना घाट थे। दूसरे घाटों के भी केवल अवशेष शेष हैं। इसके किनारे स्थित पिलखन, नीम और जामुन के पेड़ों में से कोई नहीं बचा है। वहाँ मिले राजेन्द्र ने बताया, बिजली बोर्ड कहीं और भी बन सकता था, तालाब को बचाया जाना जरूरी था। तालाब गन्दा नहीं हुआ और इस पर कब्जे नहीं हुए। इसका कारण है कि इसके बनाने वालों के वंशज सेठ सज्जन लाल ऐरन का यहाँ कारोबार है और वह पूरे परिवार के साथ यहाँ रहते हैं। बेरी, झज्जर, दादरी, भिवानी, रेवाड़ी के तालाबों को समझने की अपनी यात्रा में पहली बार किसी तालाब बनाने वाले सेठ का परिवार यहाँ मिला।

नरक जीते देवसरगाँव के बुजुर्ग बताते हैं, 1880 के आस-पास घोर अकाल पड़ गया। तब तत्कालीन अंग्रेज गवर्नर ने बेरी के सेठों को लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने का आदेश दिया। उस वक्त सेठ खूबीराम के पुत्रों मुसद्दी लाल और जयलाल ने तालाब बनाने का निर्णय लिया। और यह तालाब अपने पिता खूबीराम की स्मृति में बनवाया। एक किंवदन्ती के अनुसार एक दिन जब एक संत ने शौच शुद्धि के लिये इस तालाब का उपयोग करना चाहा तो ग्रामीणों ने उसे ऐसा करने से रोक दिया, उसके साथ दुर्व्यवहार किया और अपशब्द भी कह दिये। सन्त इससे रुष्ट हो गया और श्राप दे दिया कि इसमें 100 साल तक पानी नहीं भरेगा। तालाब कुछ ही दिनों में सूख गया। ग्रामीण बताते हैं कि उसके बाद इसमें ग्रामीणों के बार-बार के प्रयासों के बावजूद तालाब में पानी नहीं ठहरा। अब श्रापावधि समाप्त होने के बाद इसमें पानी ठहरने लगा है।

इसके किनारे स्थित एक कुएँ को लेकर भी ग्रामीण एक किस्सा सुनाते हैं। तालाब बनने के कुछ समय बाद यहाँ एक कुआँ खुदवाया गया। इसमें खारा पानी था। इस कारण लोगों ने इसे मिट्टी से पाट दिया। कुछ समय बाद यहाँ आये एक सन्यासी ने सम्प्रदाय की परम्परा के मुताबिक कुएँ का पानी पीने का आग्रह किया। ग्रामीणों ने सन्यासी को कुएँ के पानी के खारा होने की कहानी बताई। सन्यासी नहीं माना और वहीं भूखे-प्यासे जम गए। तब ग्रामीणों ने पुनः कुआँ खोदा तो मीठा पानी मिल गया। हालांकि खूबीराम के प्रपौत्र सज्जन ऐरन के मुताबिक तालाब के किनारे बने दोनों कुओं का पानी खारा था।

इधर, सरकार ने बड़े-बड़े कारपोरेट घरानों को अपने लाभ का एक निश्चित हिस्सा कारपोरेट सोशल रेसपांसिबलिटी (सीएसआर) के नाम पर समाज कार्यों में लगाने का कानून बनाया है। लेकिन अपना पहले का व्यापारिक और व्यावसायिक गतिविधियाँ चलाने वाला वर्ग समाज के प्रति कितना संवेदनशील था। सरकार ने यह सब नहीं सिखाया, यह स्वः प्रेरित होता था और इसे हासिल था सबसे अच्छा जनाना घाट होने का गर्व। आज इस घाट के सिर्फ अवशेष बचे हैं।

 

नरक जीते देवसर

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें)

क्रम

अध्याय

1

भूमिका - नरक जीते देवसर

2

अरै किसा कुलदे, निरा कूड़दे सै भाई

3

पहल्यां होया करते फोड़े-फुणसी खत्म, जै आज नहावैं त होज्यां करड़े बीमार

4

और दम तोड़ दिया जानकीदास तालाब ने

5

और गंगासर बन गया अब गंदासर

6

नहीं बेरा कड़ै सै फुलुआला तालाब

7

. . .और अब न रहा नैनसुख, न बचा मीठिया

8

ओ बाब्बू कीत्तै ब्याह दे, पाऊँगी रामाणी की पाल पै

9

और रोक दिये वर्षाजल के सारे रास्ते

10

जमीन बिक्री से रुपयों में घाटा बना अमीरपुर, पानी में गरीब

11

जिब जमीन की कीमत माँ-बाप तै घणी होगी तो किसे तालाब, किसे कुएँ

12

के डले विकास है, पाणी नहीं तो विकास किसा

13

. . . और टूट गया पानी का गढ़

14

सदानीरा के साथ टूट गया पनघट का जमघट

15

बोहड़ा में थी भीमगौड़ा सी जलधारा, अब पानी का संकट

16

सबमर्सिबल के लिए मना किया तो बुढ़ापे म्ह रोटियां का खलल पड़ ज्यागो

17

किसा बाग्गां आला जुआं, जिब नहर ए पक्की कर दी तै

18

अपने पर रोता दादरी का श्यामसर तालाब

19

खापों के लोकतंत्र में मोल का पानी पीता दुजाना

20

पाणी का के तोड़ा सै,पहल्लां मोटर बंद कर द्यूं, बिजली का बिल घणो आ ज्यागो

21

देवीसर - आस्था को मुँह चिढ़ाता गन्दगी का तालाब

22

लोग बागां की आंख्यां का पाणी भी उतर गया

 

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