निजी हाथों में होगी पेयजल व्यवस्था!

राजस्थान के गांवों और शहरों में पेयजल उपलब्ध करवाना यहां की सरकारों के लिए सबसे महत्तवपूर्ण चुनौती और चिंता का विषय है। इससे निपटने के लिए सरकार निजी-सार्वजनिक हिस्सेदारी (पीपीपी) मॉडल अपनाने पर विचार कर रही है। राजस्थान देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का 10.4 प्रतिशत क्षेत्र समाहित करता है और देश की 5.5 फीसदी आबादी व 18.70 प्रतिशत मवेशियों को पालता है, लेकिन यहां देश में उपलब्ध कुल सतह जल का केवल 1.16 प्रतिशत जल ही उपलब्ध है। वर्तमान सरकार भी राज्य में पेयजल व्यवस्था को सुधारने के काम को प्राथमिकता के आधार पर ले रही है और इसी के तहत पेयजल व्यवस्थाओं में त्वरित सुधार के लिए इन्हें पीपीपी मॉडल के अंदर लाया जा रहा है।

सूत्रों के मुताबिक इस की पहल उदयपुर जिले से हो रही है। उदयपुर में पेयजल व्यवस्था में सुधार के लिए मुंबई की एक फर्म से 64 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के 48 गांवों और कॉलोनियों को पेयजल उपलब्ध करवाने के लिए पीपीपी परियोजना की फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार करवाई गई है। फर्म ने यह रिपोर्ट तैयार करके जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग को सौंप दी है। अब विभागीय स्तर पर इस रिपोर्ट की जांच-पड़ताल चल रही है और निजी सहभागिता से जलापूर्ति प्रबंध, ठेके की शर्तों व संचालन संबंधी मापदण्डों को तय किया जा रहा है। जांच के बाद रिपोर्ट को अंतिम रूप देकर राज्य सरकार को सौंप दिया जाएगा।

सूत्रों ने बताया राज्य सरकार की इस रिपोर्ट पर मंजूरी मिलने के बाद विभाग परियोजना के लिए निजी फर्मों से टेंडर आमंत्रित करेगा। परियोजना के तहत पुरानी पाइपलाइनों को बदलने, 20 वर्ष से अधिक पुराने पंप बदलकर स्टार रेटेड पंप लगाने, न्यूनतम भूमि पर अधिकतम क्षमता के पेयजल प्रबंध और संसाधन विकसित किए जाने के काम भी हाथ में लिए जाएंगे।

इस परियोजना के तहत उदयपुर की दूर-दराज की नई कॉलोनियों में भी पेयजल उपलब्ध हो जाएगा। उदयपुर में वर्तमान पेयजल संसाधनों की क्षमता वर्ष 2001 तक की थी। अब जनसंख्या बढऩे के साथ ही पेयजल आपूर्ति की क्षमता घटकर आधी रह गई है। गत दशक से शहर के दूर-दराज में विकसित हुए नए आबादी इलाकों में पेयजल की पाइप लाइनें नहीं है। यहां के लोगों को भूजल पर निर्भर रहना पड़ रहा है।

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