निर्मल भारत अभियान

29 Sep 2012
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nirmal_bharat_abhiyan
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स्वच्छता की दिशा में एनबीए एक नया अध्याय है जो 2022 तक भारत में खुले में शौच पर पूरी तरह रोक लगाने में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान में मददगार साबित होगा। इस दिशा में कुछ राज्यों ने तेजी से प्रगति की है। सिक्किम भारत का सबसे पहला खुले में शौच मुक्त प्रदेश बन गया है और नवम्बर, 2012 तक केरल भी इस लक्ष्य को हासिल कर लेगा। संभवतः 2013 के मध्य तक हिमाचल प्रदेश भी यह चमत्कार कर दिखाएगा। विश्व में खुले में शौच करने वाले लोगों में 60 फीसदी भारतीय हैं। इस सबसे पूरे विश्व में भारत की गंदी तस्वीर उभरती है। यह अब सिद्ध हो चुका है कि गंदे शौचालयों के कारण स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान होता है। भारत में हर साल 5 साल से छोटे 4-5 लाख बच्चे मौत के मुंह में समा जाते हैं और इसका प्रमुख कारण है गंदगी के कारण फैलने वाला हैजा तथा अन्य संक्रामक रोग। नये साक्ष्य सामने आये हैं कि साफ-सफाई न होने के कारण भारतीय बच्चों की लम्बाई कम होती जा रही है और उनकी आर्थिक उत्पादकता में कमी आ रही है। चिकित्सा अनुसंधानों से साफ हो गया है कि कुपोषण, जिसे प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय शर्म कहा है, का सीधा संबंध साफ-सफाई की खराब व्यवस्था और गंदे वातावरण से है। खुले में मल त्याग महिलाओं का अपमान है और उनके स्वाभिमान पर खुली चोट है। इससे पता चलता है कि साफ-सफाई केवल स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा ही नहीं है, बल्कि यह जीवन, जीविकोपार्जन और इन सबसे ऊपर मानवीय गरिमा को भी प्रभावित करता है।

इस समस्या के समाधान के लिए सरकार सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान चला रही है। इसके तहत घरों, स्कूलों आदि में शौचालयों का निर्माण कराया जाता है साथ ही गावों में मल व्ययन एवं कचरा प्रबंधन भी किया जाता है इस कार्यक्रम को आंशिक सफलता ही मिली है। अब भी भारत में अस्वच्छता, खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में, गंभीर चुनौती बनी हुई है। भारत की कुल ढाई लाख ग्राम पंचायतों में से महज 28,000 ही निर्मल ग्राम बन पाई है। निर्मल ग्राम से आशय ऐसे गांव से है जहां खुले में शौच पूरी तरह से बंद हो गया है। 2011 की जनगणना के अनुसार, केवल 32.7 फीसदी घरों में ही शौचालयों की सुविधा उपलब्ध है। अगर हमें इस दिशा में सफलता हासिल करनी है तो अधिक तेजी से अधिक काम करना होगा। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, निर्मल भारत अभियान (एनबीए) शुरू किया गया है। स्वच्छता की दिशा में एनबीए एक नया अध्याय है जो 2022 तक भारत में खुले में शौच पर पूरी तरह रोक लगाने में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान में मददगार साबित होगा। इस दिशा में कुछ राज्यों ने तेजी से प्रगति की है। सिक्किम भारत का सबसे पहला खुले में शौच मुक्त प्रदेश बन गया है और नवम्बर, 2012 तक केरल भी इस लक्ष्य को हासिल कर लेगा। संभवतः 2013 के मध्य तक हिमाचल प्रदेश भी यह चमत्कार कर दिखाएगा। हरियाणा में करीब 25 फीसदी तथा महाराष्ट्र में एक तिहाई ग्राम पंचायतें निर्मल ग्राम पंचायतों का दर्जा हासिल कर चुकी हैं।

निर्मल ग्राम अभियान में नया क्या है? सर्वप्रथम इस साल साफ-सफाई के लिए, बजट प्रावधान करीब दो गुना कर दिया गया है। इस साल इस मद के लिए 3500 करोड़ रु. का प्रावधान रखा गया है। 12वीं योजना (2012-17) में इसे चार गुना करने का प्रस्ताव है। नए वित्तीय प्रावधानों से इस चुनौती से निपटने के लिए नए संकल्प का संकेत मिलता है। अच्छी किस्म के शौचालयों के निर्माण को प्रोत्साहन देने के लिए घरेलू शौचालयों के निर्माण में अनुदान की राशि 3200 रु. से बढ़ाकर 10,000 रु. कर दी गई है। इसमें 4500 रु. तक की वह अतिरिक्त राशि भी शामिल है जो मनरेगा के तहत प्रदान की जाती है।

दूसरे, निर्मल भारत अभियान से पुरानी नीति की खामी दूर कर दी गई है जिसमें किसी पंचायत में कुछ चुनिंदा घरों को ही अनुदान दिया जाता था। निर्मल भारत अभियान में पूरी पंचायत को ही स्वच्छता की राह पर मोड़ दिया गया है। यानी चुनी हुई पंचायत में समस्त घरों में शौचालय सुनिश्चित किए जाएंगे और इनकी निगरानी का काम पंचायतों को सौंप दिया जाएगा।

तीसरे, निर्मल भारत अभियान में शौचालयों के निर्माण के साथ-साथ लोगों को इनका सही ढंग से इस्तेमाल करने के बारे में बताया जाएगा। एक स्वतंत्र शोध से पता चलता है कि लोगों को आधुनिक शौचालयों के इस्तेमाल के लिए तैयार करना भी टेढ़ी खीर है। निर्मल भारत अभियान की सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) रणनीति के पीछे प्रेरक तत्व यह है कि यह अभियान सरकार द्वारा संचालित योजना के बजाए जनता का अभियान बन जाए। इसीलिए, शौचालयों के निर्माण के पीछे जागरुकता और उपयोगिता का पहलू प्रमुख है। इस कार्यक्रम के लिए एनबीए बजट का दो फीसदी प्रावधान किया गया है। यह राशि पंचायतों की क्षमता निर्माण और जमीनी कार्यकर्ताओं व कर्मचारियों पर खर्च की जाएगी। जागरुकता के लिए स्वच्छता दूत, आशा वर्कर, आंगनवाड़ी और स्कूल टीचरों का सहयोग लिया जाएगा। सिक्किम, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा की तर्ज पर व्यवहार में बदलाव के सफल तरीकों को लक्षित क्षेत्रों में लागू किया जाएगा।

निर्मल भारत अभियान की चौथी खूबी यह है कि इसमें प्रोत्साहन आधारित उपायों पर जोर दिया गया है, जो पंचायतें निर्मल ग्राम पंचायत का दर्जा हासिल कर लेती हैं, उन्हें ग्राम पुरस्कार के रूप में नकद राशि दी जाती है। अभियान की सफलता में इस पहलू की अहम भूमिका रही है। जो पंचायतें कम से कम 6 माह तक निर्मल ग्राम पंचायत का दर्जा बनाए रखती हैं, उन्हें पुरस्कार की दूसरी किस्त का भुगतान किया जाता है। यह प्रावधान भी रखा गया है कि लक्ष्य में चूकने वाली पंचायतों से पुरस्कार वापस ले लिया जाएगा। एनबीए में पांचवी नवीनता यह है कि इसमें जल, शौच, स्वच्छता की एकीकृत योजना बनी गई है। बेहतर परिणामों के लिए इन तीनों को आपस में जोड़ना बेहद जरूरी था। निर्मल ग्राम के रूप में चिन्हित पंचायतों को राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत जलापूर्ति में वरीयता दी जाएगी। इसके अतिरिक्त, जिन पंचायतों में तमाम लोगों के लिए जल की उपलब्धता है उन्हें निर्मल ग्राम के रूप में चुनने में वरीयता मिलेगी। एनबीए में सतत निगरानी और मूल्यांकन की व्यवस्था भी सुनिश्चित की गई है। इसके आधार पर जमीनी हालात की सही सूचना हासिल की जा सकती है। हर दूसरे वर्ष स्वतंत्र मूल्यांकन अनिवार्य बनाया गया है। राष्ट्रीय स्तर के निगरानीकर्ताओं द्वारा वास्तविक मूल्यांकन और इसके परिणामों को ऑनलाइन जारी करने का भी प्रस्ताव है।

इसका यह मतलब नहीं है कि हम जीत की घोषणा कर रहे हैं। सफलता के लिए बहुत सी परम्पराओं और कुरीतियों को तोड़ना होगा। विभिन्न समुदायों की भागीदारी बढ़ानी होगी और सरकार को हर स्तर पर गंभीर प्रयास करने होंगे। महात्मा गांधी ने कहा था, जन सुविधाएं स्वतंत्रता से भी महत्वपूर्ण हैं। यह महात्मा गांधी के स्वप्न को साकार करने का समय है। तभी हम खुले में शौच करने की शर्मिंदगी से मुक्त होकर भारत को सही अर्थ में स्वतंत्रता की ओर ले जाएंगे।

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