नीतिगत कोताही का नतीजा है जल संकट

अभी दिल्ली सरकार ने राजधानी में पचास वाटर एटीएम खोलने की अनुमति दी है। इसके पहले भी दिल्ली में वाटर एटीएम लगाए जा चुके हैं। इन वाटर एटीएम से आप तीस पैसे प्रति लीटर के हिसाब से पानी निकाल सकते हैं। यह कोई मामूली घटना नहीं है। इससे हमें पानी की महता और आगे आने वाले दिनों में होने वाली दिक्कतों का अंदाजा लगा सकते हैं।

ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब दिल्ली विधानसभा के चुनाव में पानी एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा था और सत्ताधारी दल को उसका उचित प्रबंधन नहीं कर पाना काफी महंगा पड़ा था। उससे भी अहम बात है कि देश की राजधानी दिल्ली के पूर्वी और दक्षिणी इलाके में पानी को लेकर हुए झगड़े में दो लोगों की हत्या हो चुकी है। यह एक बड़े खतरे की आहट है जिसे हमें समझना होगा और इसको रोकने के लिए गंभीरता से उपाय करने होंगे, नहीं तो दो हत्या एक बड़ी जंग में तब्दील हो सकती है।

जल संरक्षण के लिए लोगों को शिक्षित और जागरूक होना अनिवार्य है। उन्हें इस बात को समझना होगा कि पानी बेशकीमती है और उसे बेवजह बर्बाद करने से हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगीदरअसल, हमारे देश में जैसे-जैसे शहरों का फैलाव होता चला गया या फिर नई जगह पर नए शहरों को बसाया जाने लगा उसके परिणामस्वरूप जलस्तर लगातार नीचे जाने लगा। इस अंधाधुंध विकास की होड़ और पानी के इस्तेमाल को लेकर सख्त कानून के अभाव में दिल्ली और उसके आसपास के इलाके में प्राकृतिक संसाधनों का जमकर दोहन जारी है।

बड़ी-बड़ी इमारतों के निर्माण के दौरान भारी मात्रा में जमीन से पानी निकालने से पूरे इलाके का जलस्तर नीचे जा रहा है। जब इन इलाकों में जलस्तर काफी नीचे चला गया, तब जाकर प्रशासन की नींद टूटी और नई इमारतों के निर्माण में भूजल के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई। पाबंदी का बहुत ज्यादा असर इस वजह से नहीं दिख रहा है कि लोगों के गले यह बात ही नहीं उतर पा रही है कि पानी पर पाबंदी कैसे लग सकती है। उनको तो लगता है कि अगर पच्चीस फीट पर पानी नहीं मिल रहा तो पचास तक बोरिंग कर दो नही तो सौ फीट से निकाल लो और प्राकृतिक पानी पर तो उनका स्वाभाविक हक है। ज्यादातर लोग इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं हैं कि पानी खत्म भी हो सकती है। कहने की जरूरत नहीं कि जल संरक्षण के लिए लोगों को शिक्षित और जागरूक होना अनिवार्य है। उन्हें इस बात को समझना होगा कि पानी बेशकीमती है और उसे बेवजह बर्बाद करने से हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी।

कुछ इसी तरह के संकेत भारत के गांवों से भी मिल रहे हैं। देश के ग्रामीण इलाकों में भी जलस्तर काफी नीचे चला गया है। पेयजल तो एक बड़ी समस्या है लेकिन उससे भी बड़ा खतरा है भूजलस्तर का लगातार नीचे जाना।

कई देशों की सरकारें अपने यहां जल नीति या जल संरक्षण नीति बनाकर पानी को बचाने का काम शुरू कर चुकी हैं। हमारे देश में भी जल संरक्षण को लेकर थोड़ी बहुत जागरूकता तो आई है लेकिन वह पर्याप्त नहीं हैकई देशों की सरकारें इस समस्या को लेकर बेहद गंभीर हैं और अपने यहां जल नीति या जल संरक्षण नीति बनाकर पानी को बचाने का काम शुरू कर चुकी हैं। हमारे देश में भी जल संरक्षण को लेकर थोड़ी बहुत जागरूकता तो आई है लेकिन वह पर्याप्त नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव रहे बुतरस घाली ने तो लगभग तीन दशक पहले ही गंभीरता से यह बात रखी थी कि अगर कभी तीसरा विश्व युद्ध लड़ा गया तो वो पानी के लिए लड़ा जाएगा। उनसे भी आगे जाकर 1995 में विश्व बैंक के उपाध्यक्ष इस्माइल सेराग्लेडिन ने कहा था इस शताब्दी की लड़ाई तेल के लिए लड़ी गई है लेकिन अगली शताब्दी की लड़ाई पानी के लिए लड़ी जाएगी। अमेरिका से लेकर मध्यपूर्व और भारत से लेकर अफ्रीका के देशों में पानी की समस्या लगातार विकराल होती जू रही है। अमेरिका के वैज्ञानिक और सरकार बेहद गंभीरता से पानी की कमी की वजह और उसको दूर करने के उपायों पर काम कर रहे हैं।

इस वर्ष के शुरुआत में वहां के वैज्ञानिकों ने नासा के उपग्रहों की तस्वीरों के आधार पर पूरी दुनिया खासकर अमेरिका के जलस्तर के बारे में वैज्ञानिक विश्लेषण किया तो पता चला कि कैलिफोर्निया सरकार ने जनता से बीस फीसदी पानी कम खर्च करने की अपील की। नासा की तस्वीरों के विश्लेषण के बाद विशेषज्ञों ने दुनिया में कम होते जलस्तर की वजहों की पड़ताल शुरू की तो मुख्यतः चार तथ्य सामने आए- बढ़ती जनसंख्या की वजह से पानी की बढ़ती खपत, खेती के लिए पानी की बढ़ती मांग, ऊर्जा उत्पादन और ग्लोबल वार्मिग।

उत्तरीअमेरिका, मध्यपूर्व के देशों तथा दक्षिण एशिया में पानी की समस्या की एक बड़ी वजह गलत और लापरवाह प्रबंधन भी हैविशेषज्ञों ने यह भी बताया कि उत्तरी अमेरिका, मध्यपूर्व के देशों और दक्षिण एशिया में पानी की समस्या की एक और बड़ी वजह गलत और लापरवाह प्रबंधन भी है। पानी को लेकर इन देशों की लापरवाही और कोई ठोस नीति आने वाले दिनों में विकराल रूप धारण कर सकती है। हमारे देश में भी यहां की नगरपालिकाएं पानी के संरक्षण और उसको रीसाइकल करने के काम में लापरवाही बरतती हैं।

अगर हम सिर्फ दिल्ली की ही बात करें तो यहां की पाइपलाइन दशकों पुरानी हो चुकी हैं जो आए दिन फटती रहती हैं। पंपों के फटने से लाखों गैलन पानी बर्बाद होता है। देश की राजधानी और महानगरों में पानी को लेकर कोई ठेस नीति नहीं है तो दूर-दराज के गांवों में और छोटे नगरपालिकाओं में क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

पानी की कमी को लेकर संघर्ष के बढ़ते खतरे और उसको लेकर कमजोर कानून जिम्मेदार हैं। इसके अलावा जिस बात की ऊपर चर्चा की जा चुकी है वह है- जल के भंडार पर बढ़ता दबाव। सिंचाई की वजह से पानी की कमी और परमाणु ऊर्जा से पानी पर बढ़ रहा खतरा आने वाले दिनों में इस समस्या को और विकराल रूप प्रदान कर सकता है।

पानी की वैश्विक समस्या को केंद्र में रखकर ब्रह्मा जेलानी की नई किताब आई है- वाटर, पीस एंड वार, कंफ्रंटिंग द ग्लोबल वाटर क्राइसिस। इस किताब में लेखक कहते हैं- कच्चे तेल की कीमत में लगातार बढ़ोतरी के बावजूद अपने स्रोत पर उसकी कीमत खुदरा बोतलबंद पानी की कीमत से कम। चेलानी की यह टिप्पणी पानी की कमी के वैश्विक खतरे को दर्शाती है।

चेलानी ने पानी को नए तेल की तरह से परखते हुए उसकी महत्ता को सामने लाने की कोशिश की है। चेलानी ने अपनी किताब के माध्यम से पानी के इस गहराते संकट के लिए विश्व के कई देशों के बीच हुई संधि को परखा है। भारत और चीन के बीच पानी को लेकर हुए समझौते और चीन के आश्वासन को भी कसौटी पर कसा गया है।

भारत-चीन सीमा पर चीन की ओर से बनाए जाने वाले डैम और ऊर्जा उत्पादन की कोशिशों को भी पानी की समस्या से जोड़कर देखा गया है। इससे पानी की समस्या को समझने की एक नई दृष्टि मिलती है। जल संरक्षण के लिए दिए गए सुझावों पर सरकारों को गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।

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