नलकूप खुदाई - बच्चों को एक्सीडेंट से बचाने के प्रयास

KG Vyas
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सकारात्मक प्रयासों के बावजूद यदा-कदा बच्चों के कुओं में गिरने तथा दुर्घटनाग्रस्त होने की घटनाएँ हो रही हैं। इन घटनाओं का सीधा संकेत है, हर स्तर पर जागरुकता। सन्देश को देश के कोने-कोने में लगातार पहुँचाना। सबसे अधिक आवश्यकता है मार्गदर्शिका के सन्देश और हिदायतों को उन ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में पहुँचाने की जहाँ नलकूप की मशीन पहुँचते ही बच्चों की भीड़ जमा हो जाती है। ऐसे इलाकों में सभी को सतर्कता बरतने और नलकूप खोदने वाली ऐजेंसी के कर्मचारियों के और सतर्क होकर काम करने की है।

कभी-कभी अखबारों में छपता है तो कभी दूरदर्शन पर प्रसारण होता है कि छोटा बच्चा खेलते-खेलते अचानक निर्माणाधीन नलकूप में गिर गया। इस प्रकार की घटनाएँ सामान्यतः उस समय होती हैं जब खुदाई की साइट पर लोग नहीं होते। दुर्घटना घटते ही लोग हरकत में आ जाते हैं। भागदौड़ होती है। अफरा-तफरी मचती है। बच्चे की सलामती के लिये परिवार और समाज भगवान से प्रार्थना करते हैं। प्रशासन हरकत में आता है।

इस प्रकार की घटनाओं में कई बार बच्चा बचा लिया जाता है तो कई बार प्रयास असफल हो जाता है। लोग इस प्रकार की घटनाओं की निन्दा करते हैं। लापरवाही के लिये जिम्मेदारी तय करने की माँग करते हैं और उनको रोकने की माँग उठती है। इस प्रकार की दुर्घटनाओं के शिकार अक्सर मजदूरों के या गरीब परिवार के बच्चे होते हैं।

सामान्यतः लोगों को नलकूप खुदाई के समय अपनाई जाने वाली सावधानी या उन्हें नियम कायदों की जानकारी नहीं होती। पीड़ित परिवार को कोर्ट के फैसलों की जानकारी नहीं होती। अज्ञानता या अस्पष्टता के कारण कुछ समय बाद बात आई-गई हो जाती है। बहुत कम लोगों को जानकारी है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नलकूप खनन के दौरान छोटे बच्चों को होने वाली गम्भीर दुर्घटनाओं से बचाने के लिये 6 अगस्त सन 2010 को आदेश पारित किया है।

सर्वोच्च न्यायालय के 2010 के आदेश के अनुसार -

1. जिस जमीन पर नलकूप खोदा जाना है उसके मालिक को नलकूप की खुदाई प्रारम्भ कराने के पहले अपने इलाके के सम्बन्धित सक्षम अधिकारी अर्थात जिला कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट/ग्राम पंचायत के सरपंच/अन्य वैधानिक अधिकारी/भूजल संगठन/लोक स्वास्थ्य विभाग को लिखित सूचना देना होता है।
2. नलकूप की खुदाई करने वाली सरकारी संस्था, अर्ध-सरकारी संस्था या ठेकेदार का पंजीयन जिला प्रशासन या सम्बन्धित सक्षम अधिकारी के कार्यालय में होना चाहिए। यह पंजीयन लाजिमी है।
3. जिस स्थान पर नलकूप की खुदाई की जा रही है, उस स्थान पर साइन बोर्ड लगाया जाना चाहिए। साइन बोर्ड में नलकूप खोदने या उसके पुनर्वास करने वाली ऐजेंसी का पूरा पता और नलकूप के मालिक या उसे काम में लाने वाली ऐजेंसी का विवरण दर्ज होगा।
4. नलकुप की खुदाई के दौरान उसके आसपास कंटीले तारों की फेंसिंग या अन्य उपयुक्त व्यवस्था की जानी चाहिए। इसका उद्देश्य बच्चों को अप्रत्याशित दुर्घटना से बचाना है।
5. नलकूप के बनने के बाद उसके केसिंग पाइप के चारों तरफ सीमेंट/कंक्रीट का प्लेटफार्म बनाया जाएगा। इस प्लेटफार्म का आकार 0.50x0.50x0.60 होगा। उसे धरती से 0.30 मीटर ऊँचा बनाया जाएगा। वह प्लेटफार्म धरती में 0.30 मीटर गहराई तक बनाना होगा।
6. केसिंग पाइप के मुँह के ऊपर स्टील की प्लेट वेल्ड की जाएगी या नट-बोल्ट से अच्छी तरह कसा जाएगा। इस व्यवस्था का उद्देश्य नलकूप के मुँह के खुले रहने के कारण होने वाले सम्भावित खतरों से बच्चों को बचाना है।
7. पम्प रिपेयर के समय नलकूप के मुँह को बन्द रखा जाएगा। यह व्यवस्था बच्चों को अप्रत्याशित खतरों से बचाने के लिये अपनाई जाएगी।
8. नलकूप की खुदाई पूरी होने के बाद खोदे गए गड्ढे और पानी वाले मार्ग को समतल बनाया जाएगा। इस व्यवस्था का उद्देश्य खनन स्थल की जमीन को समतल बनाना है।
9. यदि किसी कारणवश नलकूप को अधूरा छोड़ना पड़े या परित्यक्त किया जाता है तो उसे मिट्टी, रेत, बजरी, बोल्डर या खुदाई में बाहर निकले चट्टानों के बारीक टुकड़ों से पूरी तरह जमीन की सतह तक भरा जाना चाहिए। इसका उद्देश्य खनन स्थल की जमीन को समतल बनाना है।
10. नलकूप की खुदाई पूरी होने के बाद नलकूप साइट की जगह की पुरानी स्थिति को बहाल किया जाना चाहिए।
11. उपरोक्त मार्गदर्शिका के पालन कराने की जिम्मेदारी जिला कलेक्टर को सौंपनी होगी। वे सुनिश्चित करेंगे कि केन्द्रीय या राज्य की ऐजेंसी द्वारा एतदअर्थ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी मार्गदर्शिका का सही तरीके से पालन किया जा रहा है।
12. नलकूपों की फेहरिस्त बनाई जानी चाहिए। इस फेहरिस्त में जिला स्तर, विकासखण्ड स्तर और ग्राम स्तर पर खोदे गए नलकूपों के विवरण दर्ज किये जाएँ। ये विवरण उपयोग में आ रहे नलकूप, परित्यक्त नलकूप, निरीक्षण के दौरान खुले पाये नलकूप, सही तरीके से सतह तक बन्द किये परित्यक्त नलकूप और ऐसे खुले नलकूप जिन्हें सतह तक भरा जाना बाकी है, के बारे में होंगे। यह फेहरिस्त जिला स्तर पर संधारित की जाएगी।
ग्रामीण इलाकों में उपरोक्त श्रेणी के नलकूपों की मानीटरिंग सम्बन्धित सरपंच एवं कृषि विभाग के एक्जीक्यूटिव द्वारा की जाएगी। नगरीय इलाकों में मानीटरिंग का काम कनिष्ठ इंजीनियर और भूजल संगठन, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग तथा नगरीय निकाय के एक्जीक्यूटिव द्वारा की जाएगी।
13. यदि खुदाई के दौरान किसी स्तर पर कोई नलकूप खराब हो जाता है और उस खराबी के कारण उसे परित्यक्त करना आवश्यक हो जाता है तो सम्बन्धित निर्माणकर्ता ऐजेंसी को सम्बन्धित विभाग से एतदअर्थ प्रमाणपत्र प्राप्त करना होगा। प्रमाण पत्र में सत्यापित किया जाएगा कि नलकूप को सुरक्षा के लिये निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार सतह तक अच्छी तरह बन्द कर दिया गया है। इसे सुनिश्चित करने के लिये सम्बन्धित ऐजेंसी/विभाग के एक्जीक्यूटिव द्वारा औचक निरीक्षण किये जाना चाहिए। जिला कलेक्टर और विकासखण्ड अधिकारी के कार्यालय में सभी जानकारी और आँकड़े संधारित किये जाना चाहिए।

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति एस.एच. कापड़िया और न्यायमूर्ति के. एस. राधाकृष्णन तथा न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट में दायर रिट पिटिशन पर उक्त फैसला 6 अगस्त 2010 को सुनाया था। उक्त फैसला पूरे देश में लागू है। उच्चतम न्यायालय में बताया गया था कि 11 फरवरी 2010 के आदेश के परिपालन में फैसले के बारे सर्वसाधारण को अवगत कराया जा चुका है।

सारे सकारात्मक प्रयासों के बावजूद यदा-कदा बच्चों के कुओं में गिरने तथा दुर्घटनाग्रस्त होने की घटनाएँ हो रही हैं। इन घटनाओं का सीधा संकेत है, हर स्तर पर जागरुकता। सन्देश को देश के कोने-कोने में लगातार पहुँचाना। सबसे अधिक आवश्यकता है मार्गदर्शिका के सन्देश और हिदायतों को उन ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में पहुँचाने की जहाँ नलकूप की मशीन पहुँचते ही बच्चों की भीड़ जमा हो जाती है। ऐसे इलाकों में सभी को सतर्कता बरतने और नलकूप खोदने वाली ऐजेंसी के कर्मचारियों के और सतर्क होकर काम करने की है। यही वह रास्ता है जिसे अपनाने से नलकूपों की खुदाई के दौरान घटने वाली दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है।

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