नर्मदा बचाओ आंदोलन की महत्वपूर्ण विजय

इंदौर। नर्मदा बचाओ आंदोलन के जल सत्याग्रह के 17वें दिन अंततः मध्यप्रदेश सरकार को झुकना पड़ा एवं जल सत्याग्रहियों की दो प्रमुख मांगों बांध के जल स्तर को घटाकर 189 मीटर पर लाने एवं जमीन के बदले जमीन देने की पुनर्वास नीति के अंतर्गत समाहित शर्त को पूरा किए जाने पर अपनी सहमति भी जतानी पड़ी। गौरतलब है कि खंडवा जिले के घोघलगांव में आंदोलन की प्रमुख कार्यकर्ता चित्तरूपा पालित एवं 50 अन्य सक्रिय कार्यकर्ता लगातार 17 दिनों तक पानी में जल सत्याग्रह करते रहे। इससे उनके शरीर को काफी नुकसान पहुंचा है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से जारी विज्ञप्ति में आलोक अग्रवाल ने बताया है कि नकद मुआवजा देना पुनर्वास नीति एवं सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की अवहेलना है। साथ ही बांध का जलस्तर बढ़ाना भी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की खुली अवहेलना है। सरकार ने नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा उठाई गई मांगों के संबंध में एक पांच सदस्यीय समिति के गठन की घोषणा की है, जिसमें उद्योगमंत्री, आदिवासी एवं अनुसूचित जाति मंत्री, नर्मदा घाटी विकास मंत्री, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष एवं राजस्व आयुक्त इंदौर संभाग शामिल होंगे। जल सत्याग्रह की गूंज राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के माध्यम से विश्वभर में मानवाधिकार के हित चिंतकों एवं संगठनों तक पहुंची और इससे विस्थापितों के पक्ष में वैश्विक वातावरण भी तैयार हुआ है। साथ ही इस ऐतिहासिक जीत ने भारत के विभिन्न अंचलों में चह रहे अहिंसक जनआंदोलनों को भी नई ऊर्जा प्रदान की है।

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