नर्मदा के आसपास :विस्थापन

19 Feb 2014
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डूब में आते हुए
हलके,इलाके, नदी पोखर,
हो सकूँगा समूचा में
इन्हें खोकर ?

बड़ी मछली के लिए
बाकायदा
छोटी समर्पित हों !
युगों की लम्बी पुरानी
कथा –यात्राएँ विसर्जित हो !
मुनादी हम सुन रहे चुप
चीख हा-हाकार होकर,
सुन रही गोचर जमीनें,
डूँगंरी डाँगें अगोचर,

बाढ़, सूखे, महामारी
कर नही पाए जिन्हें नि:शेष
शास्ताओं ने सहज ही आज
उनको दे दिए परदेस !

जन्म से शोषित उपेक्षित -
पियें कब तक चरण धोकर
अजूबा है
यह समूहन चराचर का
मंच मीलोमील
बेखबर अपनी नियत से
तीर,
तर्कश,
आदिवासी भील !

एक प्रान्तर के महाप्रस्थान का क्षण,
तथागत कोई नही -
जो चले उनका बोझ ढोकर
हो सकूँगा क्या
कभी भी मैं इन्हें खोकर ?
डूब में आते हुए
हलके,इलाके,
नदी पोखर,
हो सकूँगा समूचा क्या ?

संकलन/टायपिंग/प्रूफ –नीलम श्रीवास्तव ,महोबा

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