नव स्थापित उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण

1 May 2016
0 mins read

प्रदूषण नियंत्रण की व्यवस्था पर आने वाला व्यय परियोजना लागत में एक आवश्यक मद के रूप में शामिल किया जाना चाहिए एवं परियोजना का अभिन्न अंग होना चाहिए। यदि किसी तरह के ध्वनि प्रदूषण या कम्पन होने की सम्भावना है तो उसके लिये भी उचित उपाय सुझाए जाने चाहिए।

उद्योग किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का आधार होते हैं। आर्थिक समृद्धि की मंजिल औद्योगीकरण के रास्ते से होकर ही गुजरती है। भारत की भविष्य रेखा इस बात द्वारा निर्धारित होती है कि हम किस गति से उद्योगों का विकास कर पाते हैं। ‘आर्थिक उदार नीति’ इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है परन्तु औद्योगीकरण एक ओर जहाँ समृद्धि और विकास के द्वार खोल देता है वहीं पर्यावरण प्रदूषण की अनेक समस्याओं को भी साथ लेकर आता है। यदि उद्योगों की स्थापना के समय पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं का ध्यान रखा जाए तो प्रदूषण की समस्याओं को कम किया जा सकता है।

आज से दो दशक पूर्व तक उद्योगों की स्थापना का आधार कच्चे माल की निकटता तथा यातायात के साधनों की उपलब्धता होता था परन्तु पर्यावरण चेतना के साथ ही अब औद्योगिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण का ध्यान भी रखा जाता है। उद्योग की स्थापना से पूर्व ही प्रदूषण नियंत्रण की व्यवस्था वर्तमान में अपरिहार्य हो गई है क्योंकि भारी मात्रा में पूँजी निवेश और बड़ी संख्या में रोजगार को देखते हुए एक क्रियाशील उद्योग को प्रदूषण नियंत्रण उपाय अपनाने को सख्ती से बाध्य नहीं किया जा सकता और तब तक पर्यावरण को काफी क्षति हो चुकी होती है। अतः यह आवश्यक है कि उद्योग की स्थापना से पूर्व ही प्रदूषण नियंत्रण उपायों की पर्याप्तता के बारे में भी सुनिश्चित हुआ जाए।

जिला प्रशासन द्वारा अनुमति


किसी उद्योग की स्थापना से पूर्व परियोजना स्थल के बारे में जिला प्रशासन की अनुमति एक प्राथमिक औपचारिकता है। स्थानीय दशाओं को ध्यान में रखते हुए जिलाधीश कार्यालय परियोजना स्थल की जाँच करता है। प्रस्तावित परियोजना से मानव आबादी पर पड़ने वाले स्थानीय प्रभावों का मूल्यांकन जिला प्रशासन द्वारा किया जाता है। यदि परियोजना से मानव आबादी के विस्थापन आदि की समस्या होती है तो इसके पुनर्वास की व्यवस्था करना भी जिला प्रशासन का ही दायित्व है। इस तरह स्थानीय दशाओं का ध्यान रखना तथा स्वास्थ्य व सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन करना जिला प्रशासन का प्रमुख कार्य है। लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण की कीमत पर उद्योगों की स्थापना की अनुमति नहीं दी जा सकती।

पर्यावरण आंकलन समिति


परियोजना स्थल के बारे में पर्यावरणीय घटकों की जाँच राज्य के वन व पर्यावरण मंत्रालय का कार्य है। महत्त्वपूर्ण उद्योगों के सम्बन्ध में स्थान चयन हेतु राज्य स्तर पर ‘पर्यावरण आंकलन समिति’ गठित की हुई है। यह समिति उद्योगों के प्रस्तावित स्थान के बारे में विभिन्न पर्यावरण पहलुओं का अध्ययन कर उनके लिये अपनी संस्तुति प्रस्तुत करती है। इस समिति के प्रतिवेदन के आधार पर ही राज्य के पर्यावरण विभाग द्वारा स्थल की स्वीकृति दी जाती है।

ऐसी कोई भी परियोजना या उद्योग, जिसके लिये केन्द्र सरकार या किसी अन्तरराष्ट्रीय संस्था से वित्तीय सहायता ली जा रही हो तथा परियोजना की लागत 20 करोड़ रुपये से अधिक हो, तो ऐसी परियोजना के लिये स्थान निर्धारण केन्द्र सरकार की स्वीकृति के बाद ही किया जा सकता है। केन्द्र सरकार द्वारा इसके लिये पर्यावरण मन्त्रालय के अधीन ‘पर्यावरण आंकलन समिति’ का गठन किया हुआ है, जो परियोजना के पर्यावरण सम्बन्धी पहलुओं पर विचार करती है।

स्थल चयन के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश


भारत सरकार के औद्योगिक विकास विभाग ने ऐसे उद्योगों की सूची जारी की है, जिनकी स्थापना से पूर्व स्थल स्वीकृति प्राप्त आवश्यक होती है। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा इन उद्योगों के स्थान चयन के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश भी जारी किए गए हैं। नवीन औद्योगिक नीति के दस्तावेज में भी यह स्पष्ट किया गया है कि महानगरों और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना पर रोक लगाई जाएगी और पारिस्थितिकी सन्तुलन को हर कीमत पर बनाए रखा जाएगा।

पर्यावरण मन्त्रालय द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार अनुसूचित उद्योगों की स्थापना निम्न स्थानों से निश्चित दूरी पर की जानी चाहिए-

- पारिस्थितिकीय और संवेदनशील क्षेत्र से 25 किलोमीटर दूर। इसमें निम्न क्षेत्र माने जाते हैं- धार्मिक या ऐतिहासिक स्थान, पुरातत्व भवन, सुरम्य क्षेत्र, पहाड़ी क्षेत्र, समुद्री स्वास्थ्य लाभ का स्थान, मूंगे आदि के भंडार वाला समुद्र तट, विशिष्ट वस्तुओं के उत्पादन वाली समुद्री खाड़ी, बायोस्फेयर रिजर्वज, नेशनल पार्क और सैन्चुरीज, नेशनल लेक्स व स्वाम्प्स, भूकम्प प्रभावित क्षेत्र, जनजाति विस्थापन, वैज्ञानिक या भूगर्भीय महत्त्व का स्थान, सुरक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र, अन्तरराष्ट्रीय सीमा और एयरपोर्ट।
- समुद्री किनारा-ज्वारभाटा की सीमा से 1/2 किलोमीटर दूर।
- यातायात/संचार व्यवस्था-रेलवे और हाइवे से 1/2 किलोमीटर दूर।
- बाढ़ प्रभावित क्षेत्र- किसी भी नदी या बाँध के बाढ़ क्षेत्र से 1/2 किलोमीटर दूर।
- मानव आबादी (3 लाख)- यदि परियोजना स्थल से 50 किलोमीटर की सीमा में कोई महत्त्वपूर्ण मानव आबादी क्षेत्र है तो एक दशक का पूर्वानुमान लगाते हुए विचार किया जाना चाहिए और मानव आबादी से 25 किलोमीटर से कम दूरी पर परियोजना स्थल नहीं होना चाहिए।

उद्योग की स्थापना के समय निम्न तथ्यों का ध्यान रखा जाना भी आवश्यक है-

- किसी भी वन क्षेत्र को औद्योगिक प्रयोजना हेतु गैर वन भूमि में परिवर्तित नहीं किया जा सकता।
- प्राथमिक कृषि भूमि को औद्योगिक क्षेत्र में परिवर्तित नहीं किया जा सकता।
- उद्योग द्वारा अधिगृहित की गई भूमि पर्याप्त होनी चाहिए और उपचार संयन्त्र तथा पुनर्उपभोग व पुनर्चक्रण हेतु संयन्त्र लगाने को पर्याप्त मात्रा में जगह का प्रावधान करना आवश्यक है। उपचारित जल का उपयोग वृक्षों के लिये किया जाना चाहिए।
- उद्योग के चारों ओर आधा किलोमीटर की परिधि हरित पट्टी के रूप में विकसित की जानी आवश्यक है। यदि उद्योग द्वारा दुर्गन्ध की आशंका हो तो एक किलोमीटर की परिधि में वृक्षारोपण कर हरित पट्टी विकसित की जानी चाहिए।
- दो वृहद आकार के उद्योगों के मध्य एक किलोमीटर की हरित पट्टी होनी चाहिए।
- उद्योग द्वारा ठोस उच्छिष्ठ पदार्थों के निस्तारण के लिये उचित स्थान छोड़ा जाना आवश्यक है, ताकि इनके पुनर्उपभोग की व्यवस्था हो सके।
- उद्योग का निर्माण इस तरह करना चाहिए जिससे उस क्षेत्र का प्राकृतिक सौंदर्य नष्ट न हो।
- उद्योग के समीप स्थित बस्ती को प्रदूषण से बचाने के लिये उद्योग के चारों ओर प्राकृतिक दीवार की व्यवस्था होनी चाहिए। उद्योग की स्थापना उस स्थान पर की जानी चाहिए जिससे मानव आबादी और उद्योग के मध्य प्राकृतिक रूप से बचाव हो सके।
- प्रत्येक उद्योग को वातावरण में प्रदूषक पदार्थों की उपस्थिति और बढ़ोत्तरी के मापन के लिये तीन ‘एयर मोनिटरिंग केन्द्र’ स्थापित करने आवश्यक हैं। ये केन्द्र एक दूसरे से 120 डिग्री के कोण पर स्थित होने चाहिए।

प्रदूषण नियंत्रण व्यवस्था


वर्तमान में अनुसूचित उद्योगों की स्थापना से पूर्व सम्बन्धित राज्य प्रदूषण नियंत्रण मण्डल से अनापत्ति प्रमाण-पत्र प्राप्त करना आवश्यक है। अनापत्ति प्रमाण-पत्र जारी करने से पूर्व सम्बन्धित प्रदूषण नियंत्रण मण्डल उद्योग द्वारा अपनाई जाने वाली प्रदूषण नियंत्रण की व्यवस्था की जाँच करता है। मण्डल का यह दायित्व है कि वह सभी सुरक्षा के उपायों के बारे में सुनिश्चित होने के बाद ही अनापत्ति प्रमाण-पत्र जारी करे।

फिजिबिलिटी रिपोर्ट


यह उद्योग द्वारा अपनाई जाने वाली प्रदूषण नियंत्रण व्यवस्था विस्तृत दस्तावेज है जो एक कुशल पर्यावरण परामर्शदाता द्वारा तैयार किया जाता है। इसमें निम्नलिखित तथ्यों का विवरण होना आवश्यक है-

- कच्चा माल, मासिक उत्पाद व सह उत्पाद।
- निर्माण प्रक्रिया की व्यापक जानकारी।
- प्रत्येक इकाई में जल व मैटेरियल बैलेंस का अध्ययन।
- प्रतिदिन, उपभोग किए जाने वाले जल की मात्रा और कच्चे माल की प्रकृति।
- अवशिष्ट जल की दैनिक मात्रा और प्रकृति।
- अवशिष्ट जल के प्रवाहित करने वाले स्रोत और उसकी प्रकृति।
- अवशिष्ट जल के उपचारित करने के विभिन्न विकल्प और अन्तिम निस्तारण का तरीका।
- उपचारित करने की प्रक्रिया और इंजिनियरिंग डिजाइन।
- निस्रावित पदार्थों के निरंतर मापन और उपचार से पूर्व और बाढ़ में किए गए नमूनों की जाँच का प्रावधान।
- उपचार संयन्त्रों का कुशल निष्पादन।
- पूँजी तथा रख-रखाव की लागत, प्रदूषण नियंत्रण व्यवस्था के लिये धन की उपलब्धता।
- योजना को क्रियान्वित करने का समयबद्ध कार्यक्रम।
- घरेलू प्रयोजन हेतु उपयोग जल की मात्रा, निस्रावित जल की मात्रा और उसके उपचार की व्यवस्था का ब्यौरा।
- औद्योगिक व घरेलू उपयोग हेतु जलापूर्ति का स्रोत।
- विसर्जित गैसों की प्रकृति और मात्रा। वायु प्रदूषण के नियंत्रण की योजना।
- ठोस अवशिष्ट पदार्थों की प्रकृति और मात्रा, निस्तारण का तरीका तथा प्रयुक्त भूमि।

पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन


इसका उद्देश्य परियोजना के सम्भावित लाभ और हानियों का पर्यावरण के सन्दर्भ में मूल्यांकन करना है। परियोजना से प्राप्त होने वाले परिणामों का सम्भावित दुष्प्रभावों की तुलना में विश्लेषण करना है। यह विश्लेषण सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक पर्यावरण के सन्दर्भ में किया जाता है। यह अध्ययन परियोजना के प्रथम चरण में ही किया जाना चाहिए जिससे कि उचित परियोजना स्थल और उत्पादन तकनीक का चुनाव किया जा सके तथा पर्यावरण सुरक्षा हेतु आवश्यक उपाय काम में लिये जा सकें। सामान्यतः निम्न प्रकृति के उद्योगों को इस तरह के अध्ययन की परम आवश्यकता होती है-

- ऐसे उद्योग जिनसे उस क्षेत्र की भूमि की प्रकृति में बदलाव आने की आशंका हो या खनन और वन्य उत्पादों की आपूर्ति, जिससे भू-संरचना में परिवर्तन होने की सम्भावना हो।
- खतरनाक पदार्थों के उपयोग, उत्पादन या आपूर्ति की गतिविधियों में लिप्त उद्योग।
- ऐसे उद्योग जो शहरी आबादी, पहाड़ी क्षेत्र, ऐतिहासिक भवन, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्त्व के स्थान जैसे- संवेदनशील और पर्यावरणीय महत्त्व के क्षेत्र के समीप स्थित हैं।
- ऐसे औद्योगिक क्षेत्र जहाँ विभिन्न प्रकार की औद्योगिक इकाइयाँ कार्यरत हैं और इनके सामूहिक प्रभाव से पर्यावरण को महत्त्वपूर्ण क्षति हो सकती है।
पर्यावरणीय प्रभाव और आकलन एक अनुभवी और कुशल पर्यावरण परामर्शदाता द्वारा किया जाना चाहिए। इसमें वर्तमान प्रदूषण की स्थिति दर्शाते हुए सम्भावित प्रभावों की जानकारी हो जानी चाहिए। प्रस्तावित परियोजना से वातावरण में सल्फरडाइ आॅक्साइड, नाईट्रोजन आॅक्साइड, कार्बन मोनो आॅक्साइड और सस्पैण्डेड पार्टिकुलेट मैटर की छोड़े जाने वाली मात्रा और उसके प्रभाव का विश्लेषण किया जाना चाहिए। इसके लिये परियोजना स्थल और 10 किलोमीटर के दायरे में 120 डिग्री के कोण पर तीन एयर मोनिटरिंग स्टेशन स्थापित किये जाने चाहिए। इसमें जल की प्रकृति और समीप में स्थित संवेदनशील केन्द्रों पर पड़ने वाले प्रभाव का भी विश्लेषण किया जाना चाहिए। कच्चे माल की ढुलाई, भण्डारण और आवागमन के तरीकों और उसे सम्भावित प्रभाव तथा दुष्प्रभावों को रोकने की व्यवस्था भी प्रस्तुत की जानी चाहिए। इन सबके अलावा ठोस और तरल अवशिष्ट के उपचार की व्यवस्था और प्रयुक्त उपकरणों का विवरण भी इसका एक अपरिहार्य भाग होता है। प्रदूषण नियंत्रण की व्यवस्था पर आने वाला व्यय परियोजना लागत में एक आवश्यक मद के रूप में शामिल किया जाना चाहिए एवं परियोजना का अभिन्न अंग होना चाहिए। यदि किसी तरह के ध्वनि प्रदूषण या कम्पन होने की सम्भावना है तो उसके लिये भी उचित उपाय सुझाए जाने चाहिए।

आपात प्रबंध योजना


इस तरह के उद्योगों के लिये आपात प्रबंध योजना बनाना आवश्यक है जिनमें खतरनाक वस्तुओं का उत्पादन, भण्डारण या आपूर्ति से सम्बन्धित गतिविधियाँ संचालित की जाती हैं या औद्योगिक दुर्घटना से होने वाले प्रदूषण का प्रभाव घातक होने की आशंका है। यह योजना एक विशेषज्ञ द्वारा तैयार की जानी चाहिए। इसमें उद्योग की प्रकृति और अन्य विवरण दिया जाता है। मुख्य रूप से उत्पादन प्रक्रिया, प्रयुक्त पदार्थों का प्रभाव क्षेत्र, दुर्घटना के सम्भावित दुष्प्रभाव तथा दुर्घटना रोकने के लिये अपनाए गए सुरक्षा उपायों की जानकारी शामिल होती है। इसमें दुर्घटना की रोकथाम हेतु नियुक्त व्यक्तियों का विवरण और दुर्घटना के लिये उत्तरदायी कार्मिकों का विवरण भी दिया जाना चाहिए जिससे दुर्घटना के लिये उत्तरदायी व्यक्तियों को जवाबदेय ठहराया जा सके।

3-अरविन्द पार्क, टोंक फाटक, जयपुर

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading