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ओज़ोन

ओज़ोन विशेष प्रकार की गंधयुक्त गैस है। अल्प मात्रा में ओज़ोन हवा में पाया जाता है। समुद्र की सतह पर की हवा में धरती की अपेक्षा यह कुछ अधिक रहता है, यद्यपि सदैव नहीं। साधारणत: धरातल से ऊँचाई पर इसकी मात्रा अधिक होती है। कहीं-कहीं झरनों के पानी में ओज़ोन का पता लगा है।

एम. फ्ऱान मारम ने 1785 में ज्ञात किया कि क्रियाशील विद्युत्‌ मशीनों के आसपास एक विशेष गंध पाई जाती है। अम्लीय पानी के विद्युतविश्लेषण के समय धनाग्र (ऐनोड) के समीप भी कुछ ऐसी ही गंध का डब्ल्यू. क्रुकशैंक ने पता लगाया। 1839 में सी.एफ़. शेनबाइन ने बताया कि यह गंध एक निश्चित वस्तु के बनने के कारण ही होती है जिसका नाम उन्होंने ओज़ोन रखा। बिजली गिरने पर तथा तर हवा में फ़ास्फ़रस के समीप भी ऐसी गंध आती है, जो ओज़ोन के कारण ही रहती है।

इन क्रियाओं में ऑक्सिजन के संमिलन से ओज़ोन प्राप्त होता है, 3O2=2O3 –O8.2 कलरी। अत: ओज़ोन के निर्माण में शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। जिन विधियों से ओज़ोन प्राप्त होता है उन्हें दो भागों में विभक्त किया जा सकता है : पहली भौतिक तथा दूसरी रासयनिक।

गर्मी का प्रभाव- ओज़ोन साधारण ताप पर बहुत कुछ स्थायी है, परंतु गर्म करने या देर तक रखने पर ऑक्सिजन में विघटित हो जाता है। वैसे तो अधिक ताप ओज़ोन के निर्माण के लिए अनुकूल होता है, परंतु विघटन से बचाने के लिए तुरंत ही इसे ठंढा करना पड़ता है। गर्म प्लैटिनम के तार को द्रव हवा में डुबाने से भी थोड़ा ओज़ोन प्राप्त होता है।

रेडियम, पोलोनियम आदि के ऐल्फ़ा किरण के प्रभाव से भी ऑक्सिजन से ओज़ोन बनता है। ऑक्सिजन से भरे बर्तन में, जिसमें कुछ रेडियम भी रखा हो, थोड़ा भाग ओज़ोन का प्राप्त होता है। इसी प्रकार पराबैंगनी किरणें भी ओज़ोन बनाने में उपयोगी होती हैं।

पानी के विद्युतविश्लेषण में धनाग्र (ऐनोड) पर ऑक्सिजन प्राप्त होता है, जिसमें कुछ भाग ओज़ोन का रहता है। इस गैसीय मिश्रण में ओज़ोन का अनुपात कई बातों पर निर्भर रहता है, जैसे विद्युतग्र (इलेक्ट्रोड) की प्रकृति तथा उसका विस्तार, विद्युतद्विश्लेष्य (इलेक्ट्रोलाइट) की प्रकृति और विद्युतधारा की मात्रा। पतला प्लैटिनम विद्युतग्र (इलेक्ट्रोड) का प्रयोग करके, जो भीतर से बर्फ जमानेवाले हिम-लवण-मिश्रण के प्रवाह द्वारा ठंढा भी होता रहे, और पर्याप्त विद्युत घनत्व लगाकर गंधक का अम्ल मिले पानी का विद्युतद्विश्लेषण करने पर, अधिक ओज़ोन मिलता है। यह विधि वैसे तो खर्चीली है, परंतु ऐसा प्राप्त ओज़ोन नाइट्रोजन से अपेक्षाकृत दूषित नहीं होता तथा हाइड्रोजन भी उपजात के रूप में प्राप्त होता है।

ऑक्सिजन गैस में विद्युतद्विसर्जन (डिस्चार्ज) करने से ओज़ोन बनता है। ओज़ोन बनाने के उपयुक्त इस प्रकार के उपकरण को ओज़ोनाइज़र कहते हैं, जैसे सीमेंस या ब्राडी का ओज़ोनाइज़र। यह एक शीशे की नली होती है जिसमें दो विद्युतग्र (इलेक्ट्रोड) लगे रहते हैं। इन विद्युतग्रों के बीच इंडक्शन क्वायल या ट्रान्सफार्मर (ट्रैंसफ़ॉर्मर) की सहायता से उच्च वारंवारता की प्रत्यावर्ती (ए.सी.) विद्युतधारा प्रवाहित की जाती है। साथ ही शुद्ध ऑक्सिजन गैस ओज़ोनाइज़र की नली में धीरे-धीरे प्रवाहित की जाती है। ओज़ोनाइज़र या तो हवा में ही ठंढा होता रहता है या इसे ठंढे में डुबाकर रखते हैं। बाहर निकलती हुई गैस में ओज़ोन की पर्याप्त मात्रा रहती है। साधारणतया ओज़ोन प्राप्त करने के लिए इसी विधि का उपयोग होता है।

बहुत सी ऐसी उष्माक्षेपक (एक्सोथर्मिक) रासायनिक क्रियाओं में, जो कम ताप पर होती हैं, अथवा ऑक्सीकरण की ऐसी क्रियाओं में, जो धीरे-धीरे होती हैं, कुछ ओज़ोन, ऑक्सिजन के साथ, प्राप्त होता है। अम्ल की उपस्थिति में हाइड्रोजन पराक्साइड के विघटन से तथा इसी प्रकार कई ऑक्साइड (जैसे BaO2, Na2O2 इत्यादि) पर अम्ल की क्रिया से कुछ ओज़ोन मिलता है। परसल्फ़्यूरिक अम्ल, परकारबोनिक अम्ल अथवा परसल्फ़ेट तथा परबोरेट भी इस संबंध में उपयोगी हैं। फ़्लोरीन गैस पर पानी की क्रिया से, अथवा हाइड्रोफ़्लोरिक अम्ल के विलयन के विशेषत: कम ताप पर विद्युतविश्लेषण (इलेक्ट्रोलिसिस) द्वारा ऑक्सिजन के साथ ओज़ोन प्राप्त होता है। फ़ास्फ़रस के ऑक्सीकरण में ओज़ोन भी बनता है।

साधारण ताप पर ओज़ोन हल्के नीले रंग की गैस है, जो हवा में बहुत अल्प मात्रा में रहने पर भी अपनी विशेष गंध से पहचानी जा सकती है। अधिक मात्रा में रहने पर भी अपनी विशेष गंध से पहचानी जा सकती है। अधिक मात्रावाली ओज़ोन की हवा को सूँघने से सिर दर्द होता है; यदि मात्रा अधिक हो, या देर तक गैस में रहे तो मृत्यु भी हो सकती है। ओज़ोन गैस का घनत्व (00 सें., 750 मिलीमीटर दाब पर), 2.144 ग्राम/ लिटर है। गाढ़े नीले रंग के द्रव ओज़ोन का घनत्व (1830सें.पर) 1.71 ग्राम/ सेंटीमीटर3 है।

ओज़ोन द्रव ऑक्सिजन तथा द्रव नाइट्रोजन में विलेय है। पानी में इसकी बहुत कम मात्रा घुलती है; गंधक के अम्ल के विलयन में इसकी घुलनेवाली मात्रा अम्ल की शक्ति पर निर्भर है। उदासीन लवण के विलयन में ओज़ोन का विलयन अधिक स्थायी होता है, परंतु क्षारीय विलयन में इसकी विलेयता कम होती है। कई प्रकार के तेल, जैसे तारपीन, दारचीनी या कुछ वसाएँ ओज़ोन की पर्याप्त मात्रा सोख लेती हैं। ऐसीटिक अम्ल, एथिल ऐसीटेट, क्लोरोफ़ार्म तथा कार्बन टेट्रा-क्लोराइड में ओज़ोन का विलयन नीले रंग का होता है।

साधारण ताप पर ओज़ोन धीरे-धीरे विघटित होता है। गर्म करने पर या बहुत सी वस्तुओं (जैसे लोहा, चाँदी, मैंगनीज़, सीसा, निकल तथा पारा के ऑक्साइड अथवा चाँदी, प्लैटिनम आदि धातु) की उपस्थिति में ओज़ोन का विघटन शीघ्र होता है। इस क्रिया में ऑक्सिजन प्राप्त होता है। अधिक ताप पर विघटन में कुछ प्रकाश भी निकलता है। यह अवदीप्ति (ल्यूमिनिसेंस) टोंटी के पानी में या ऐल्कोहल, बेंजीन इत्यादि कार्बनिक यौगिकों में ओज़ोन तथा ऑक्सिजन का गैसीय मिश्रण प्रवाहित करने पर भी प्राप्त होता है।

ओज़ोन अति शक्तिशाली ऑक्सीकारक है। यह पोटैशियम आयोडाइड से आयोडीन को स्वतंत्र कर देता है। इसीलिए गीले पोटैशियम आयोडाइड तथा स्टार्च के कागज का रंग ओज़ोन में नीला हो जाता है। इस प्रकार का ऑक्सीकरण कई दूसरी वस्तुएँ भी करती हैं। ओज़ोन में बहुत सी धातुओं, जैसे चाँदी, ताँबा, निकेल, राँगा, सीसा आदि, का ऑक्सीकरण होता है। कुछ में तो अधिक उष्मा की आवश्यकता पड़ती है, परंतु अन्य में यह क्रिया सरलता से होती है। इन क्रियाओं में पानी की उपस्थिति, चाहे थोड़ी मात्रा में हो, आवश्यक है।

ओज़ोन के संपर्क में पारा के गुणों में बहुत अंतर आ जाता है और वह काच की सतह पर चिपकने लगता है। इसमें पानी डालने से पुन: पारा का मूल रूप प्राप्त हो जाता है। ओज़ोन द्वारा बहुत से लवणों का ऑक्सीकरण होता है, जैसे मरक्यूरस, फ़ेरिक तथा स्टैनिक क्लोराइड प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार लेड तथा मैंगनस लवण से तत्संबंधी ऑक्साइड प्राप्त होते हैं। काले लेड सल्फ़ाइड से सफेद लेड सल्फ़ेट मिलता है। सल्फ़र डाइऑक्साइड तथा कार्बन मॉनोक्साइड से क्रमानुसार गंधक ट्राइऑक्साइड तथा कार्बन डाइऑक्साइड प्राप्त होते हैं।

अधातुओं से भी ओज़ोन संयोग करता है। आयोडीन से अयोडीन के ऊँचे ऑक्साइड तथा फ़ास्फ़रस से फ़ास्फ़रिक पेंटॉक्साइड बनते हैं। ओज़ोन से हाइड्रोजन क्लोराइड तथा हाइड्रोजन आयोडाइड का विघटन होता है। बेरियम पराक्साइड तथा हाइड्रोजन पराक्साइड से क्रमश: बेरियम ऑक्साइड तथा पानी प्राप्त होते हैं; इन क्रियाओं में ओज़ोन अवकारक रहता है।

रबर तथा बहुत से कार्बनिक यौगिकों से ओज़ोन क्रिया करता है। यदि ओज़ोन की मात्रा अधिक हो तो रबर की नली या डाट को यह खा जाता है। ओज़ोन की क्रिया द्वारा मिथेन से फारमैल्डिहाइड और फ़ारमिक अम्ल तथा एथिल ऐल्कोहल से ऐल्डिहाइड और ऐसीटिक अम्ल बनते हैं। नाइट्रोग्लिसरोल, नाइट्रोजन क्लोराइड तथा आयोडाइड ओज़ोन में विस्फोटक हैं। बहुत से वानस्पतिक रंग ओज़ोन के संयोग से नष्ट हो जाते हैं, जैसे नील तथा रुधिर का रंग।

ओज़ोन से कीटाणुओं का तथा अन्य गंदी कार्बनिक वस्तुओं का ऑक्सीकरण होता है। इसलिए पीने का पानी शुद्ध करने तथा उससे दुर्गध दूर करने के लिए ओज़ोन का उपयोग होता है। कागज, तेल अथवा ऐसी ही अन्य औद्योगिक वस्तुओं को रंगहीन बनाने में ओज़ोन उपयोगी है।

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