पादप व्युत्पन्न धूम्र जल द्वारा बीज उपचार से मक्के की पौध में अधिक वृद्धि (Seed treatment with plant derived smoke water for enhancing the seedling growth in maize)


सारांशः


विभिन्न रसायनों एवं पादप संवर्धकों द्वारा अंकुरण, पौध वृद्धि एवं पौध प्रबलता को बढ़ाया जा सकता है। ऐेसे ही कुछ जैव सक्रिय रसायन धुएँ में पाए जाते हैं। प्राप्य उच्च कोटि के शोध साहित्य से यह इंगित होता है कि धुएँ द्वारा पौधों के अंकुरण में वृद्धि की खोज डी लेंज एवं बाउशर द्वारा सन 1990 में की गई। लेकिन धुएँ के इस प्रभाव की खोज का मूल श्रेय भारतीय वैज्ञानिकों (पी.परीजा, पी.डी. दीक्षित एवं जी.वी.चल्लम) को जाना चाहिए जिन्होंने सन 1940 में (डी लेंज एवं बाउशर से भी 50 वर्ष पूर्व) धान के बीजों की प्रसुप्ति को हटाकर अंकुरण में वृद्धि का वर्णन किया था (प्रोसिडिंग्स ट्वेन्टी सेवेन्थ इण्डियन साइंस कांग्रेस पेज III -228) पादप व्युत्पन्न धूम्र जल में पादप वृद्धि को बढ़ाने की अनुक्रिया के मुख्य कारक हैं ब्यूटीनोलाइड या (कैरीकिन) एवं सायनोहाइड्रिन। प्रस्तुत शोध कार्य में मक्के के बीजों को गेहूँ के पौधों से व्युपन्न धूम्र जल की विभिन्न सान्द्रताओं से अंतःशोषित किया गया। पादप वृद्धि के प्रेक्षण के लिये 21 दिन की अवस्था पर आँकड़े लिये गए। जल की अपेक्षा तनु धूम्र जल (200x) के उपचार से अधिक वृद्धि हुई जो इस प्रकार हैं पौध की ऊँचाई (12.2 प्रतिशत), जड़ों की अधिकतम गहराई (44.3%) प्रति पौधे में पत्तियों का क्षेत्रफल (30.4%), प्रति पत्ती क्षेत्रफल (26.6%), जड़ों की कुल लम्बाई प्रति पौध (106.3%), जड़ों का वनज प्रति पौध (37.5%) प्ररोह (तना+पत्ती) का वजन प्रति पौध (19.3%) पत्तियों का वजन प्रति पौध (30%) एवं कुल वजन (23.5%) सबसे सार्थक बढ़ोत्तरी जड़ो की वृद्धि में पाई गई। धूम्र जल रूपी पादप संवर्धक के कई लाभ हैं, जैसे कि आसानी से उपलब्धता, अत्यन्त कम मात्रा कम लागत एवं पर्यावरण तथा स्वास्थ्य के लिये सुरक्षित। अधिक शोध कार्य एवं मानकीकरण द्वारा धूम्र जल उपचार को विभिन्न फसलों के सुचारू प्रबंध के लिये एक उपयोगी तकनीकी के रूप में विकसित किया जा सकता है।

Abstract


Various chemicals and growth regulators can improve seed germination seedlings growth and vigour. Such biologically active compounds are also present in smoke. Available research literature from the most reputed source indicates that the discovery of role of smoke in enhancing germination was done by De Lange and Bowsher in 1990. but, in fact, credit of this discovery should be given to Indian scientists (P. Parija, PD Dixit and GV Challan) who found in 1940 (50 years earlier that De Lange and Bowsher) that dormancy in paddy can be broken by smoking the seeds. The growth promoting response due to smoke treatment is due to the presence of butenolides (or karrikins) and cyanohydrins. In the present study, maize seeds were imbibed in different dilutions of smoke water derived from wheat plants and the seedling growth was measured at 21 days after showing. The diluted smoke water (200x) treatment lead to enhancement in growth as compared to control. It was as follows seedlings height (12.2%), maximum root depth (44.3%), leaf area per plant (30.4%), leaf area per leaf (26.6%), total root length per plant (106.3%), root weight per plant (37.5%) shoot weight per plant (19.3%), leaf weight per plant (30%), leaf weight per leaf (27%) and total dry matter per plant (23.6%). The most significant increase was observed in terms of root growth. Such smoke based treatments also have several potential advantages in terms of simplicity, cost-effectiveness and no risk to environment and health. Further research studies and standardization can make smoke water treatment a useful technology for better management of different crops.

प्रस्तावना


पौध की उचित वृद्धि एवं प्रबलता फसल की स्थापना एवं पैदावार के लिये अनिवार्य गुण है। विभिन्न प्रकार के रसायनों द्वारा अंकुरण, पौध वृद्धि एवं पौध प्रबलता को बढ़ाया जा सकता है। ऐसे ही कुछ जैव सक्रिय रसायन धुएँ में पाये जाते हैं जो पादप संवर्धक के रूप में सामने आ रहे हैं। धूम्र जल के उपचार से अंकुरण एवं पौध की प्रबलता में वृद्धि देखी गई है। शोध साहित्य में पादप व्युत्पन्न धुएँ द्वारा पौधों के अंकुरण में वृद्धि की खोज का श्रेय डी लेंज एवं बाउशर को दिया जाता है जिन्होंने सन 1990 में दक्षिणी अफ्रीकी वनस्पति ओडोनिया कैपिटाटा के बीजों पर यह परिणाम प्राप्त किए थे। लेकिन धुएँ के इस प्रभाव की खोज का मूल श्रेय भारतीय वैज्ञानिकों को जाना चाहिए (पी.परीजा, पी.डी. दीक्षित एवं जी.वी. चल्लम 1940) जिन्होंने डी लेंज से भी 50 वर्ष पूर्व (सन 1940 में) धान के बीजों की प्रसुप्ति हटाकर अंकुरण में वृद्धि का वर्णन किया था। उन्होंने पाया कि धुएँ के उपचार से धान के बीजों की प्रसुप्ति हटाकर अंकुरण में वृद्धि की जा सकती है। परीजा, दीक्षित एवं चल्लम (कटक, उड़ीसा) ने वर्णन किया था कि शीत मौसमी धान में कटाई के शीघ्र उपरांत अंकुरण नहीं हो पाता। उन्हें कुछ समय तक रखना पड़ता है। इस प्रसुप्ति को कम करने के लिये उन्होंने धान के बीज का धुएँ द्वारा 2-3 घण्टे प्रतिदिन 2 से 3 दिन तक उपचार कारगर पाया। इस प्रकार धुएँ का वैज्ञानिक अन्वेषण एवं प्रसुप्त बीज के अंकुरण को बढ़ाने की प्रथम रिपोर्ट एवं शोध कार्य का श्रेय एस. परीजा, पी.डी. दीक्षित एवं जी.वी. चल्लम (1940) को जाना चाहिए।

शोध साहित्य से यह इंगित होता है कि पादप व्युत्पन्न धूम्र जल द्वारा पादप वृद्धि को बढ़ाने की अनुक्रिया के लिये धूम्र जल में पाए जाने वाले कुछ मुख्य कारक रसायन हैं- जैसे ब्यूटीनोलाइड या (कैरीकिन) एवं सायनोहाइड्रिन। पादप व्युत्पन्न धूम्र जल में लगभग 5000 यौगिक पाए गए हैं। केरिकिन्स पूर्णतया सेल्यूलोज के ज्वलन से बन सकते हैं। लेकिन पादप व्युत्पन्न धूम्र जल में अन्य अंकुरण उद्दीपक भी होते हैं, जैसे सायनोहाइड्रिन्स। कैरीकिनोलाइड अत्यन्त कम सान्द्रता (जैसे 10-10M) में कार्यशील होते हैं। इन्हें के.ए.आर. 1 (कैरिकिन) का नाम भी दिया गया है तथा इनकी उत्पत्ति पाइरानोस शर्करा से होती है। अब तक अभिनिर्धारित केरिकिन्स के यौगिक छोटे अणु हैं जो सात से नौ कार्बन युक्त होते हैं। केरिकन 1 यौगिक इस प्रकार है, 3-मिथाइल-2 एच-फ्यूरो (2,3-C) पाइरान -2-ओन।

इस प्रकार यह विदित है कि धुएँ में कुछ वाष्पशील यौगिक अंकुरण वृद्धि के लिये अत्यंत कारगर और संवर्धक है। प्रस्तुत शोध कार्य में यह जानने की कोशिश की गई है कि धूम्र जल द्वारा मक्के के बीजों को उपचारित करने पर कितनी वृद्धि बढ़ाती हैं?

सामग्री एवं विधि


धूम्र जल बनाने के लिये गेहूँ के हरे पौधों को काटकर 10 दिनों तक सामान्य ढंग से सुखाया गया। सूख जाने पर इन्हें जलाकर धुआँ उत्पन्न किया गया। इस धुएँ को निर्वात पम्प द्वारा इकट्ठा करके आधे घण्टे तक जल में मिलाया गया। धूम्र जल बनाने का यह सरल तरीका है पादप व्युत्पन्न धुएँ को जल में प्रवाह करना। इस प्रकार से तैयार धूम्र जल को लेकर विभिन्न सान्द्रता के धूम्र घोल तैयार किए गए (जैसे 5 गुना सान्द्र, 25 गुना सान्द्र, 100 गुना सान्द्र, 200 गुना सान्द्र एवं 500 गुना सान्द्र)। इन विभिन्न सान्द्रता वाले धूम्र घोलों से मक्का के बीजों को उपचारित (अंतःशोषित) किया गया। बाद में इन बीजों को कमरे में भलीभाँति सामान्य तापमान पर सुखा लिया गया। चार दिन बाद इन उपचारित बीजों को छोटे गमलों में बोया गया। 21 दिन पश्चात पौधों को गमलों से निकालकर इनकी वृद्धि के आँकड़े लिये गए एवं शुष्क भार ज्ञात करने हेतु ओवन में सुखाया गया। विभिन्न आँकड़े इस प्रकार लिये गए पौधे की ऊँचाई, जड़ों की अधिकतम गहराई, प्रति पौधे में पत्तियों का क्षेत्रफल, प्रति पत्ती क्षेत्रफल, जड़ों की कुल लम्बाई प्रति पौध, जड़ों का वजन प्रति पौधे प्ररोह का शुष्क भार, पत्तियों का शुष्क भार एवं कुल शुष्क भार।

परिणाम एवं विवेचना


विभिन्न सान्द्रतायुक्त धूम्र जल (जैसे 5 गुना सान्द्र, 25 गुना सान्द्र, 100 गुना सान्द्र, 200 गुना सान्द्र, एवं 500 गुना सान्द्र) एवं केवल जल से मक्के के बीजों का उपचार करने पर यह पाया गया कि 200 गुना सान्द्र, धूम्र जल पादप वृद्धि में सबसे अधिक सहायक रहा। इस उपचार को जल उपचार (सामान्य स्थिति) के सापेक्ष चित्र 1 में दर्शाया गया है। साथ ही सारणी 1 में पादप वृद्धि के विभिन्न आँकड़े प्रदर्शित किए गए हैं। पादप वृद्धि के प्रेक्षण के लिये 21 दिन की अवस्था पर आँकड़े लिये गए। पौधों के विभिन्न भागों के प्रेक्षण से यह पाया गया कि तनु धूम्र जल के उपचार से वृद्धि अधिक हुई। जल की अपेक्षा धूम्र जल द्वारा उपचार से वृद्धि इस प्रकार बढ़ी पौध की ऊँचाई (12.2%), जड़ों की अधिकतम गहराई (44.3%), प्रति पौधे में पत्तियों का क्षेत्रफल (30.4%), प्रति पत्ती क्षेत्रफल (26.6%), जड़ों की कुल लम्बाई प्रति पौध (106.3%), जड़ों का वजन प्रति पौध (37.5%), प्ररोह (तना+पत्ती) का वजन प्रति पौध (19.3%), पत्तियों का वजन प्रति पौध (30%) एवं कुल वजन (23.5%)। सबसे सार्थक बढ़ोत्तरी जड़ों की वृद्धि में पाई गई। इससे यह प्रदर्शित होता है कि धूम्र जल उपचार से पौध की वृद्धि बढ़ी।

.इस शोध कार्य से यह प्रमाणित होता है कि मक्का के बीजों का धूम्र जल से उपचार करने पर मक्का पौध की वृद्धि बढ़ाई जा सकती हैं पादप व्युत्पन्न धूम्र जल द्वारा उपचार से बीच की प्रसुप्ति में कमी एवं अंकुरण में वृद्धि का वर्णन किया गया। कई पौधों जैसे - धान, मक्का, भिण्डी, सेलरी, टमाटर, बीन, बैंगन, खरपतवार (सोरगम हेलीपेन्स) आदि में पादप वृद्धि भी देखी गई हैं। अंकुरण में वृद्धि एवं पौध की प्रबलता में वृद्धि के लिये तापमान की आवश्यकता होती हैं। ऐसा देखा गया है कि धूम्र जल उपचार द्वारा टमाटर के अंकुरण में इष्टतम तापमान (25-300C) से अत्यंत कम (10) या ज्यादा तापमान (400C) पर भी अंकुरण में वृद्धि हुई। इसी प्रकार टमाटर की पौध में अधिक वृद्धि (जड़ एवं तना दोनों में) देखी गई।

सारणीधूम्र जल द्वारा पादप वृद्धि बढ़ाने की प्रक्रिया को समझाने हेतु अभी सीमित शोध कार्य हुआ है। धूम्र जल किस प्रकार बीज की जल ग्रहण गतिकी, बीज के जल विभव, कोशिकीय वृद्धि, बीज के भण्डारित पदाथों के चयापचय, पत्तियों एवं जड़ों की वृद्धि बढ़ाता है? इन सभी प्रक्रियाओं पर अधिक शोध कार्य की आवश्यकता है। बीज प्रसुप्ति एवं अंकुरण जटिल प्रक्रियाएं होती हैं। इसलिये केरिकिन्स द्वारा इन प्रक्रियाओं पर होने वाले प्रभाव को अभी समझना कठिन है। पादप संवर्धक जिब्रेलिन (जी.ए.) भी बीज अंकुरण की वृद्धि करते हैं इसी प्रकार केरिकिन्स द्वारा भी जी.ए.3 ऑक्सीडेस (GA3ox) जीन की अभिव्यक्ति अधिक होती है। लेकिन इस उपचार से जी.ए. एवं ए.बी.ए. नामक पादप संवर्धकों की मात्रा पर असर नहीं पड़ा। आणविक आधार पर केरिकिन्स एवं स्ट्राइगोलेक्टोन नामक पादप संवर्धकों की प्रभावन प्रक्रिया में कुछ समानताएं हैं किन्तु पौधे इन दोनों में भिन्नता को महसूस कर सकते हैं तथा केरिकिन्स स्ट्राइगोलेक्टोन्स की अपेक्षा अधिक कारगर होते हैं।

इस तकनीकी के सटीक प्रयोग के लिये कई बातों का ध्यान रखना भी आवश्यक है ऐसा देखा गया है कि बीज का धुएँ से उपचार, धूम्र जल से उपचार या केरिकिन्स द्वारा उपचार एक समान नतीजे नहीं देता साथ ही धूम्र जल के बनाने की विधि धुआँ बनाने के लिये पादप सामग्री, धूम्र जल की सान्द्रता, बीज प्रसुप्ति की विभिन्न अवस्थाएं आदि भी अंकुरण को प्रभावित करते हैं। इसलिये इस उपचार का प्रमाणीकरण एवं मानकीकरण विभिन्न फसलों पर किया जाना चाहिए।

धूम्र जल रूपी पादप संवर्धक के कई लाभ हैं, जैसे कि आसानी से उपलब्धि, अत्यन्त कम मात्रा, कम लागत एवं पर्यावरण तथा स्वास्थ्य के लिये सुरक्षित। केरीकिन की मात्रा अति निम्न सान्द्रता पर कार्यशील रहती है। इसकी 2-5 ग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा ही पर्याप्त होगी जोकि अन्य रसायनों से काफी कम है। विभिन्न पक्षों पर शोध कार्य एवं मानकीकरण द्वारा धूम्र जल उपचार को विभिन्न फसलों के सुचारू प्रबंध के लिये एक उपयोगी तकनीकी के रूप में विकसित किया जा सकता है।

संदर्भ
1. राज्जौ एल, डुवाल एम, गैलारडो के, कैटुस्से जे, बैली जे, जोब सी एवं जोब डी, सीड जर्मिनेशन एण्ड विगर, एनुअल रिव्यू ऑफ प्लांट बायोलॉजी, 63 (2012) 507-534.

2. नेल्सन डी सी, फ्लीमेट्टी जी आर, घिसालबर्टी इ एल, डिक्सन के डब्ल्यू एवं स्मिथ एस एम, रेग्यूलेशन ऑफ सीड जर्मिनेशन एण्ड सीडलिंग ग्रोथ बाइ केमिकल सिग्नल्स फ्रॉम बरनिंग वेजीटेशन, एनुअल रिव्यू ऑफ प्लांट बायोलॉजी, 63 (2012) 107-130.

3. डी लेंज, जे एच एवं बाउशर सी, आटो इकोलॉजिकल स्टडीज ऑन ओडोनिया कैपिटाटा (ब्रूनिएसी) I. प्लांट डिराइव्ड स्मोक एज ए सीड जर्मिनेशन क्यू, साउथ अफ्रीकन जर्नल ऑफ बॉटनी, 56 (1990) 700-703.

4. परीजा एस, दीक्षित पी डी एवं चल्लम जी वी, ब्रेक्रिंग ऑफ डोरमेन्सी इन विन्टर पेडी, प्रोसिडिंग्स ऑफ द ट्वेन्टी सेवेन्थ इण्डियन साइंस कांग्रेस, (1940) III: 228.

5. कुलकर्णी एम जी, लाइट एम ई एवं वेन स्टेडन, प्लांट डिराइव्ड स्मोकः ओल्ड टेक्नोलॉजी विद पोसिबिलिटीज फॉर इकोनॉमिक एप्लीकेशन इन एग्रीकल्चर एण्ड हार्टीकल्चर, साउथ अफ्रीकन जर्नल ऑफ बॉटनी, 77 (2011) 972-979.

सम्पर्क


राकेश पाण्डे एवं विजय पाल, (Rakesh Pandey & Vijay Paul)
पादप कार्यिकी संभाग, भारतीय कृषि अनुंसधान संस्थान, नई दिल्ली 110012 (Division of Plant Physiology, Indian Agricultural Research Institute, New Delhi 110012)


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