पानी बरसा

4 Oct 2014
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ओ पिया, पानी बरसा
घास रही हुलसानी
मानिक के झूमर-सी झूमी मधु-मालती
झर पड़े जीते पीत अमलतास
चातकी की वेदना बिरानी
बादलों का हाशिया है आसपास-
बीच लिखी पांत काली बिजली की-
कूंजों की डार, कि असाढ़ की निशानी
ओ पिया, पानी
मेरा जिया हरसा

खड़खड़ कर उठे पात, फड़क उठे गात
देखने को आंखें घेरने को बांहें
पुरानी कहानी
ओठ को ओठ, वक्ष को वक्ष
ओ पिया, पानी
मेरा हिया तरसा

ओ पिया, पानी बरसा

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