पानी के बिना कैसी जिन्दगानी

27 Mar 2015
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वर्षा जल संग्रहण पानी की उपलब्धता को बढ़ाता है, भूमिगत जल-स्तर को नीचे जाने से रोकता है, फ्लोराइड और नाइट्रेट्स जैसे प्रदूषकों को कम करके भूमिगत जल की गुणवत्ता बढ़ाता है, मृदा अपरदन और बाढ़ को रोकता है। पानी रे पानी तेरा रंग कैसा, जिसमें मिलाएँ लगे उस जैसा...। यह गाना आज भी उतना ही प्रासंगिक है, परन्तु अपने नकारात्मक अर्थ में। अब पानी का एक ही रंग बचा है और वो है बदरंग। वो पानी जो कहीं कम्पनियों के प्रदूषण से पीला पड़ चुका है तो कहीं नालों के मिल जाने से काला। कभी रहीम ने कहा था, रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून और आज ये दुनिया सच में धीरे-धीरे बिना पानी के सूनी नजर आने लगी है। बिना पानी के सबकुछ सूख जाएगा- पेड़ पौधे भी, नदियाँ-तालाब भी और हमारा जीवन भी। भला हम बिना पानी के जिन्दा रहने की कल्पना भी कैसे कर सकते हैं?

पिछले ही दिनों जल दिवस की पूर्व संध्या पर जारी संयुक्त राष्ट्र संघ की जल विकास रिपोर्ट 2015 में इस बात के लिए आगाह किया गया कि अगर पानी को लेकर हमारा यही लापरवाह रवैया जारी रहा तो आने वाले पन्द्रह वर्षों में पानी की जरूरत के मुकाबले इसकी आपूर्ति चालीस फीसदी कम हो जाएगी। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2050 तक पानी की माँग पचपन फीसदी बढ़ जाएगी और खाद्यान्न आपूर्ति की माँग साठ फीसदी बढ़ेगी जब कि विकासशील देशों के लिए तो यह माँग सौ फीसदी के आसपास होगी। मैनूफैक्चरिंग के क्षेत्र में पानी की माँग वर्ष 2000 के मुकाबले 400 फीसदी अधिक बढ़ जाएगी। ऐसे में जब धरती के गर्भ में पानी ही नहीं बचेगा तो भला हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं दुनिया यूँ ही हरी-भरी बनी रहेगी और ये तमाम जरूरतें पूरी हो सकेंगी।

अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा। यह कयास लगता है कहीं सच न साबित हो जाए। आए दिन पानी को लेकर ऐसे तमाम छोटे-मोटे युद्ध हम अपने गली मुहल्लों में देखते ही रहते हैं, जहाँ प्यासी आँखें लम्बी लाइनों में लगकर पानी का इन्तजार करती हैं फिर भी उनको पानी मिल ही जाएगा, इस बात की कोई गारण्टी नहीं। दूर-दराज के वो गाँव जहाँ कोसों दूर जाने पर भी पानी नसीब नहीं होता, उनके बारे में तो सोच कर ही रूह काँप जाती है कि भला वो अपना गुजर बसर कैसे करते हैं। क्योंकि पानी महज पीने के ही काम नहीं आता बल्कि खाना बनाने, कपड़ा धोने, नहाने से लेकर ऐसे सैकड़ों कार्य हैं, जिनसे हमारा दैनिक जीवन संचालित होता है।

गंगा में प्रतिदिन 12000 मिलियन लीटर से भी अधिक सीवरेज उत्पन्न होता है, जबकि इसकी शोधन क्षमता महज चार हजार मिलियन लीटर की ही है।दुनिया के एक अरब से भी अधिक लोग स्वच्छ जल से महरूम हैं। देश के ज्यादातर जल स्रोत प्रदूषित हैं। सीपीसीबी के एक आँकड़े के मुताबिक देश की नदियों में छब्बीस अरब लीटर से भी अधिक प्रदूषित जल प्रतिदिन प्रवाहित होता है और पाँच लाख से भी अधिक मौतें प्रदूषित जल के कारण ही प्रतिवर्ष होती हैं। गंगा में प्रतिदिन 12000 मिलियन लीटर से भी अधिक सीवरेज उत्पन्न होता है, जबकि इसकी शोधन क्षमता महज चार हजार मिलियन लीटर की ही है। और वहीं जल में बढ़ते प्रदूषण का आलम यह है कि अब नदियों और तालाबों की बजाय जल की शुद्धता की विश्वसनीयता बोतल बन्द पानी में आ टिकी है। परन्तु यह बात हमें समझ क्यों नहीं आती कि जब धरती के गर्भ में ही पानी नहीं बचेगा तो भला कहाँ से ये तमाम कम्पनियाँ बोतल बन्द शुद्ध पानी हमें दे सकेंगी।

भले ही कोई खुले तौर पर न कहे लेकिन जब भारत और पाकिस्तान के बीच जंग हुई थी तो ये बात उठी थी कि पाकिस्तान की ओर जो नदियाँ बहती हैं, उनका पानी रोक लेना चाहिए। अभी दिल्ली और हरियाणा के मध्य होने वाले जल विवाद को हम देख ही रहे हैं। एक ही देश में विभिन्न राज्यों के बीच आए दिन ऐसे जल विवाद सामान्य हो चले हैं। जब एक देश के भीतर यह हाल है तो दो अलग देशों का क्या कहना। सच्चाई यही है कि पानी को लेकर युद्ध शुरू हो चुके हैं।

जल संरक्षण को लेकर बने जल अधिनियम 1974 प्रदूषण का निवारण-नियन्त्रण और पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986 अब तक प्रभावपूर्ण ढंग से कार्यान्वित नहीं हो पा रहे हैं। आखिर गाँवों और शहरों में बारिश का कितना जल बर्बाद होकर गन्दी नालियों में बह जाता है। गाँवों में जल संरक्षण के लिए तालाब ही नहीं बचे हैं और शहरों में घरों से छत ही खत्म हो गई है।

देश में एक वर्ष में वर्षा से प्राप्त कुल जल की मात्रा लगभग 4000 घन कि.मी. होती है। धरातलीय जल और पुन: पूर्तियोग भूमि जल की उपलब्ध मात्रा 1869 घन कि.मी. है। इसमें से केवल साठ फीसदी जल का लाभदायक उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार देश में कुल उपयोगी जल संसाधन लगभग 1122 घन कि.मी. होता है। इसका उपयोग भूमिगत जलभृतों के पुनर्भरण के लिए भी किया जाता है। यह एक कम मूल्य और पारिस्थितिकी अनुकूल विधा है, जिसके द्वारा पानी की प्रत्येक बूँद संरक्षित करने के लिए वर्षा जल को नलकूपों, गड्ढों और कुओं में एकत्र किया जाता है। वर्षा जल संग्रहण पानी की उपलब्धता को बढ़ाता है, भूमिगत जल-स्तर को नीचे जाने से रोकता है, फ्लोराइड और नाइट्रेट्स जैसे प्रदूषकों को कम करके भूमिगत जल की गुणवत्ता बढ़ाता है, मृदा अपरदन और बाढ़ को रोकता है। इस तरह अगर बेहतर वाटर हार्वेस्टिंग के तरीकों को लेकर लोगों को जागरूक किया जाए तो आने वाले जल संकट से काफी हद तक बचा जा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ की जल विकास रिपोर्ट 2015 में इस बात के लिए आगाह किया गया कि अगर पानी को लेकर हमारा यही लापरवाह रवैया जारी रहा तो आने वाले पन्द्रह वर्षों में पानी की जरूरत के मुकाबले इसकी आपूर्ति चालीस फीसदी कम हो जाएगी। जल की हर बूँद बचाना जरूरी है कितना जल यूँ ही जाने अनजाने हम बर्बाद कर देते हैं, नल को यूँ ही खुला छोड़ देते हैं नालियों में बह जाने के लिए। हमें यह याद रखना होगा बिना भोजन के तो शायद कुछ दिनों तक हम जिन्दा भी रह लें, परन्तु बिना जल के जिन्दगी की कल्पना भी नामुमकिन सी लगती है। जल ही जीवन है, इस बात को गाँठ बाँध लेना होगा।

पृथ्वी का लगभग 71 फीसदी सतह जल से आच्छादित है, जो अधिकतर महासागरों और अन्य बड़े जल निकायों का हिस्सा होता है। खारे जल के महासागरों में पृथ्वी का कुल 97 फीसदी, हिमनदों और ध्रवीय बर्फ चोटियों में 2.4 फीसदी और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों में 0.6 फीसदी जल पाया जाता है। भारत में विश्व की 18 फीसदी से अधिक आबादी है जबकि विश्व का केवल चार फीसदी नवीकरणीय जल संसाधन भारत के पास है। भारत में उपयोगी जल की मात्रा बहुत सीमित है। इसके अलावा देश के किसी न किसी हिस्से में प्राय: बाढ़ और सूखे की चुनौतियों का भी सामना करना ही पड़ता है। इसलिए जरूरी है कि जल की बर्बादी को रोका जाए, जल के पुन: उपयोग के तरीकों को विकसित किया जाए- जैसे कि नहाने, कपड़े धोने में इस्तेमाल होने वाले जल का प्रयोग बागवानी आदि कार्यों के लिए किया जाए, वैक्यूम टॉयलेट्स के निर्माण को बढ़ावा दिया जाए, विभिन्न नदियों में नागरिकों तथा कम्पनियों द्वारा फैलाए जाने वाले प्रदूषण पर रोक लगाई जाए। जल के शुद्धिकरण के तरीकों को अधिक से अधिक बढ़ावा दिया जाए।

हालांकि जल संरक्षण को लेकर हमारी वर्तमान सरकार गम्भीर भी नजर आती है, जिसकी नमामि गंगे मिशन परियोजना तथा नदी जोड़ो जैसी परियोजनाएँ इस दिशा में गम्भीर कदम हैं, परन्तु प्रावधान बनाने से ज्यादा जल संरक्षण के लिए जन जागरुकता को बढ़ावा देना जरूरी है। अगर हम देश में प्रति व्यक्ति जल भण्डारण क्षमता की बात करें तो यह महज 209 क्यूबिक मीटर है, जबकि अमेरिका में यह प्रति व्यक्ति के हिसाब से 2192 क्यूबिक मीटर है और ब्राजील में यह आँकड़ा 4632 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति है।

सिंचाई, पेयजल तथा औद्योगिक जरूरतें जनसंख्या के बढ़ने के साथ ही दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं, पर उसके मुकाबले जल-स्तर समृद्ध नहीं हो पा रहा है, बल्कि निरन्तर गिरता जा रहा है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले एक दशक में छप्पन फीसदी कुओं के जल-स्तर में गिरावट दर्ज की गई है, जो कि बहुत ही चिन्ताजनक है। धीरे-धीरे यह जल संकट गहराता ही जा रहा है, जो कि हमारी बढ़ती ऊर्जा, सिंचाई और पेयजल की जरूरतों के लिहाज से भी चिन्तनीय है। जल है तभी कल है, यह बात अब इस पूरी दुनिया को समझ लेनी होगी, नहीं तो परमाणु ऊर्जा की बढ़ती प्यास जीवन की तमाम सम्भावनाओं को सोख लेगी। हमारी भारतीय संस्कृति में तो जल को देवता माना गया है, फिर जल में प्रदूषण फैलाकर यह अपमान कैसा?

लेखक का ई-मेल : prabhansukmc@gmail.com

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