पानी के दोहन से फट रही है जमीन
1 September 2009
बुंदेलखंड क्षेत्र एवं उत्तर प्रदेश के कुछ अन्य जिलों में बारिश के शुरुआती दौर में ही जमीन फटने की कई वारदातें हुई हैं। इससे काफी पहले हमीरपुर जिले के जिगनी गांव में जमीन फटने की घटना बेहद चर्चित हुई थी। वहां जाकर देखने पर पता चला कि जमीन काफी दूर तक फटी है। यहां के लोगों ने इतने बड़े और भारी ओले गिरने की बात भी कही थी, जितने बड़े ओले उन्होंने जीवन भर में कभी नहीं देखे थे।

दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में जमीन धंसने व बिना भूकंप के जमीन अस्थिर होने की जो घटनाएं हुई हैं, उनसे ये संकेत अवश्य मिलता है कि इस संदर्भ में किन सावधानियों की जरूरत है। ऐसी अनेक वारदातों में मानव निर्मित कारणों का भी हाथ देखा गया है। ये कारण मुख्य रूप से दो तरह के थे। भूजल का अत्यधिक दोहन व अंधाधुंध अवैज्ञानिक खनन। चूंकि इन दोनों मामलों में बुंदेलखंड की स्थिति वैसे ही चिंताजनक है, इसलिए यह उचित होगा कि इस संदर्भ में जरूरी सावधानियों को अपनाया जाए।

पानी की फिजूलखर्ची रोक ने पर पूरा ध्यान दिया जाए व पानी के रिचार्ज का अधिकतम प्रयास किया जाए। खनन कार्य पर पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से नजदीकी ध्यान देना चाहिए व जहां इस कारण आसपास का पर्यावरण बुरी तरह उजड़ रहा हो, वहां इस पर रोक लगनी चाहिए। आसपास के उजड़े पर्यावरण को संभालने में बेरोजगार हुए मजदूरों को रोजगार मिलना चाहिए।

इस समय यहां प्रस्तावित सबसे बड़ी जल परियोजना केन-बेतवा लिंक की है। इसके पर्यावरण पर प्रतिकूल असर के बारे में पहले ही कई बार चेतावनी दी जा चुकी है। इसमें लगने वाले करोड़ों रुपये के बजट का उपयोग यदि तालाबों व कुओं के सुधार व रखरखाव में खर्च हो तो कहीं बेहतर परिणाम मिलेंगे।

धरती फटने की इन घटनाओं से दिल्ली जैसे महानगरों को भी सबक लेना चाहिए। दिल्ली में जमीन के अंदर से पानी बहुत तेजी से निकाला गया है। जमीन पर बहुमंजिली इमारतों, भारी पिलर, फ्लाईओवर, ट्रैफिक व पार्किंग का बोझ बहुत तेजी से बढ़ा है। कई बड़े भवनों का निर्माण अपेक्षाकृत कमजोर व भुरभुरे क्षेत्रों में भी हुआ है। निर्माण ढहने के कई मामलों में नींव ठीक न होने की शिकायतें मिली हैं। यदि इन सब कारणों से जमीन धंसान न हो, तो भी जमीन में ऐसी अस्थिरता तो पैदा होती ही है जो कभी भूकंप आने पर भारी तबाही का कारण बन सकती है। अत: इस कोई बड़ा हादसा होने से पहले ही सावधानी बरतना उचित है।

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