पड़ोस तक आ पहुंचा विनाश

2 Feb 2014
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भारत के निकटतम पड़ोसी देश बांग्लादेश द्वारा बी.टी. बैंगन के व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति प्रदान करने से पूरे अंचल में बैंगन की पारंपरिक फसलों को खतरा पैदा हो गया है। इसके जहरीले कण पर्यावरण में फैलकर भारत में बैंगन की फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। मोन्सेंटो जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी की चालाकी अंततः भारत को भी महंगी पड़ सकती है। किसानों, देशज समुदायों, उपभोक्ताओं, महिलाओं एवं या सुस्थिर विकास एवं जैव सुरक्षा का प्रतिनिधित्व करने वाले सौ नागरिक संगठनों ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को पत्र लिखकर जीनांतरित (जीएम) बैंगन को बांग्लादेश में व्यावसायिक उपयोग की अनुमति दिए जाने का विरोध किया है।

स्थानीय तौर पर बीटी बैंगन के नाम से प्रसिद्ध इस पौधे में सिंथेटिक जहरीला कीटनाशक क्राय 1 एसी पाया जाता है तथा यह मिट्टी में पाए जाने वाले बेसिलस थुरिंगीनिसिस (बीटी) जैसा ही होता है। इसका लक्ष्य फल एवं तने में छेद करने वाले कीटाणुओं को नष्ट करना है। बीटी के जहरीलेपन से मित्र कीड़ों, जानवरों एवं मानव कोशिकाओं पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव जग जाहिर हैं।

बांग्लादेश में व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति पाने वाला बीटी बैंगन मूलतः तो महिको-मान्सेंटो द्वारा तैयार किया गया है, लेकिन इसकी जिन किस्मों को यहां अनुमति दी गई है उन्हें बांग्लादेश के वैज्ञानिकों ने ही विकसित किया है।

वैसे इसी कंपनी ने कई वर्षों पूर्व भारत में बीटी बैंगन के व्यावसायिकरण का प्रयास किया था, लेकिन वह इसमें असफल रही थी। यहां कंपनी द्वारा प्रेषित दस्तावेजों में अनिवार्य जोखिम आंकलन संबंधी प्रपत्र प्रस्तुत नहीं किए गए थे। यह बात भी तब प्रकाश में आई थी जबकि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कंपनी को अपने अपरिष्कृत आंकड़े जारी करने का निर्देश दिया था।

पत्र में बात की ओर इशारा किया गया है कि बांग्लादेश में बैंगन की बहुत सारी स्थानीय किस्में पहले से ही मौजूद हैं। चूंकि बैंगन में मुख्यतः खुला परागण होता है ऐसे में जीनांतरित संदूषण से बहुत खतरा पैदा हो सकता है।

29 सितंबर 2013 को बांग्लादेश उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि स्वास्थ्य जोखिम का आंकलन किए बिना बीटी बैंगन बाजार में जारी न करें और बांग्लादेश कृषि शोध संस्थान, कृषि सचिव तथा स्वास्थ्य सचिव को आदेश दिया है कि कांडेक्स अलिमेंटारियस द्वारा तय किए गए मानकों के अनुरूप स्वतंत्र रूप से स्वास्थ्य सुरक्षा पर शोध कर तीन महीनों में रिपोर्ट दाखिल करें।

विशिष्ट अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों द्वारा किया गया स्वतंत्र विश्लेषण, जिसे प्रधानमंत्री को भेजा गया था, में निष्कर्ष निकाला गया है कि “बीटी बैंगन से बहुत कम लाभ प्राप्त होंगे, लेकिन इससे मानव स्वास्थ्य के सम्मुख बहुत सारे खतरे पैदा हो जाएंगे।’’

बीटी बैंगन को खाद्य श्रंखला में प्रवेश देने से बांग्लादेश को जबरदस्त हानि पहुंचेगी। जहरीले बीटी जीन को बैंगन के जीनोम में प्रविष्ठ कराने के बाद चार प्रकार से हानि पहुंच सकती है। इसमें शामिल है।

(1) पौधे के डीएनए में अचानक बीटी जीन कोंडाल देने के परिणामस्वरूप अवांछित परिणाम सामने आ सकते हैं।
(2) फसल के जीवनचक्र में बीटी प्रोटीन डालने के परिणामस्वरूप सामने आए परिवर्तनों से अवांछित और जहरीले उत्पाद पैदा हो सकते हैं।
(3) बीटी प्रोटीन से सीधा जहरीलापन फैल सकता है
(4) बीटी प्रोटीन से उत्पन्न प्रतिरोधकता संबंधी समस्याएं।

बांग्लादेश के नागरिक संगठनों ने जहरीलेपन के परीक्षण के साथ ही साथ जैव सुरक्षा समिति को दिए गए पोषण संयोजन विश्लेषण को भी प्रकाशित किए जाने की मांग की थी।

लेकिन इस पर भी ध्यान नहीं दिया गया। इतना ही नहीं जीएम फसलों के व्यावसायिकरण के पूर्व किसी भी तरह का सार्वजनिक विचार-विमर्श नहीं हुआ। बीटी बैंगन की वैसे तो इस अंचल में काफी बदनामी हो चुकी है।

जन सुनवाईयों एवं विमर्शों की श्रृंखला के पश्चात भारत में इस पर रोक लगा दी गई थी। भारत के तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा था, “यह मेरा कर्तव्य है कि मैं एक सावधानी भरा और एहतियात भरा सिद्धांत आधारित रास्ता अपनाऊं और बीटी बैंगन के जारी होने पर तब तक के लिए रोक लगा दूं, जब तक कि स्वतंत्र वैज्ञानिक अध्ययन सामान्य नागरिकों और विशेषज्ञों को इस उत्पाद के मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण पर पड़ने वाले दीर्घावधि प्रभावों के बारे में स्थिति स्पष्ट न कर दें व इसी के साथ ही इस अध्ययन में हमारे देश में बैंगन की समृद्ध जीन संपदा को भी शामिल करना होगा।’’

फिलिपींस में इसे बीटी टलोंग (पंजा) के नाम से जाना जाता है और वहां के अपील न्यायालय ने 20 सितंबर 2013 को अपने पूर्व के निर्णय (17 मई 2013) को कायम रखते हुए देश में खेतों में इसके परीक्षण पर इस आधार पर प्रतिबंध लगाया कि पारिस्थितिकी को संतुलित एवं स्वस्थ बनाए रखना संवैधानिक अधिकार है।

बांग्लादेश में बीटी बैंगन को व्यावसायिक अनुमति दिए जाने के खिलाफ कोलकाता के 20 से अधिक भारतीय संगठनों ने विरोध दर्ज कराया है। तुषार चक्रवर्ती जो कि स्वयं जीवविज्ञानी है, ने भारत भर के 250 वैज्ञानिकों के साथ मिलकर भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर अपील की है कि वह जीनांतरित फसलों के खुली हवा में छोड़ने पर रोक लगाएं।

चक्रवर्ती का कहना है बांग्लादेश में जारी हुई यह फसल “भारत के लिए खतरा’’ है, क्योंकि यह भारत में भी बैंगन की फसलों को संदूषित कर देगी।

बीटी बैंगन को इस अंचल से बाहर रखना इसलिए भी अनिवार्य है क्योंकि यह अंचल बैंगन के उद्गम और जैव विविधता का केंद्र है। इतना ही नहीं, यह स्थानीय भोजन का एक प्रमुख घटक भी है।

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