पेयजल एवं स्वच्छता पर ‘‘सारंगाखेड़ी’’ के बाल पत्रकार

21 Oct 2013
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स्वैच्छिक संस्था समर्थन द्वारा सेव द चिल्ड्रेन एवं वाटर एड के सहयोग से सीहोर जिले के बच्चों को बाल पत्रकारिता का प्रशिक्षण दिया गया। सारंगाखेड़ी गांव के बाल पत्रकारों द्वारा पानी एवं स्वच्छता के मुद्दे पर लिखी गईं रिपोर्ट्स -

गांव में नहीं बना रहे शौचालय - प्रियंका, 8वीं


हमारे गांव वाले ऐसा बोलते हैं कि पहले पैसे दो, फिर हम शौचालय बनाएंगे। यदि पंचायत गांव वालों को पैसा पहले दे-दे तो वो फिजूल खर्चा कर सकते हैं इसलिए पंचायत ने बोला कि पहले शौचालय बनवाओ, फिर पैसे देंगे। तो ये गांव वालों को मंजूर नहीं रहा। फिर भी कुछ लोगों ने आधी शौचालय बनवा दी। तब भी पैसे नहीं मिले इसलिए गांव वाले शौचालय पूरा नहीं कर रहे हैं।

खुले में शौच नहीं करना चाहिए, क्योंकि फिर बाद में उस पर मक्खी मच्छर बैठते हैं, फिर वो ही मच्छर हमारे भोजन पर आकर बैठते हैं। तो फिर हमें उल्टी-दस्त मलेरिया आदि हो सकते हैं। इसलिए हमें खुले में शौच नहीं करना चाहिए। चाहे छोटा बच्चा हो या बड़ा, सबको शौचालय में ही जाना चाहिए। जो गांव वाले नदी में जाते थे, तो उनको नदी और खुले में शौच नहीं जाना चाहिए, क्योंकि उस नदी में जब हम गांव वाले बड़े व बच्चे सब नहाते हैं तो हमे कई तरह की बीमारियाँ हो जाती हैं और वो ही पानी हैंडपंप में भी आ सकता है। इसलिए ये गलत बात है। हमें खुले में शौच नहीं करना चाहिए।

‘आशा’ है गांव की आशा - प्रीति, 7वीं


हमारे गांव की आशा कार्यकर्ता का नाम मानकुंवर मालवीय हैं। हमारे गांव की आशा बहुत अच्छी है और हमें हर मीटिंग में आयरन की गोली देती है। हमारे गांव में माह के हर दूसरे शुक्रवार को टीकाकरण होता है। आशा कार्यकर्ता हर घर जाकर 0 से 5 वर्ष तक के सभी बच्चों का टीकाकरण करवाने के लिए बुला कर लाती हैं, उनके माता-पिता को समझाती हैं कि अगर पूरा टीकाकरण नहीं होगा, तो बच्चों को अनेक बीमारियाँ होती है। गर्भवती माताओं को टीके लगवाने, उनका वजन करवाने के साथ साथ सभी जांचें करवाती हैं। उन्हें आयरन की गोली खाने की सलाह देती हैं और गर्भवती माताओं को साफ-सफाई रखना, स्वच्छ खाना खाने को कहती हैं ताकि उसके और उसके बच्चे को कोई बीमारी न हो। वह स्वस्थ्य रहे। प्रसव के दौरान माता को अस्पताल ले जाने के लिए जननी एक्सप्रेस को फोन लगाकर बुलाती हैं एवं उसे अस्पताल ले जाती हैं।

बच्चे के जन्म के बाद बच्चे का वजन होता है। यदि उसका वजन कम होता है तो उसे एन.आई.सी.यू. में भर्ती करवाती है। उसे डी.पी.टी. का टीका लगवाती है। आशा बच्चे के जन्म के बाद उसकी मां को सलाह देती है कि इसे 6 माह तक सिर्फ मां का दूध ही पिलाना, उसे शहद पानी न पिलाएं और बच्चे के पास साफ-सफाई बनाए रखें। हमारे गांव में आशा हर माह किशोरी बालिकाओं को मंगल दिवस पर साफ सफाई, स्वच्छता, एड्स संक्रमण रोग आदि बीमारियों के बारे में जानकारी देती हैं। घर-घर जाकर जिनके 2 बच्चे हैं, उन्हें ऑपरेशन के लिए समझाती है। वह कहती है कि ज्यादा बच्चे पैदा करने से हम उनकी देखरेख नहीं कर सकते। इससे बच्चों का पोषण नहीं हो सकता।

हमारे गांव की आाशा कार्यकर्ता ग्राम सभा स्वस्थ ग्राम तदर्थ समिति की अध्यक्ष है। इस समिति में महिला पंच, हैंडपंप मैकेनिक, सरपंच, सचिव, ए.एन.एम., एम.पी.डब्ल्यु., आंगनवाड़ी कार्यकर्ता आदि होते हैं। इसमें जो पैसा आता हैं, उसका उपयोग हैंडपंप के पास सोख्ता गड्ढा बनवाना, मच्छरों को मारने की दवाई का छिड़काव, साफ-सफाई, गांव में कूड़ेदान का उपयोग आदि कार्य में किया जाता है। बारिश के दिनों में पानी गंदा आता है, जिससे बीमारियाँ होती है, इसलिए बारिश में पानी उबालकर, छानकर पीना चाहिए। उसमें क्लोरीन की गोलियां डालने से पानी स्व्च्छ रहेगा।

कभी-कभी हमारे गांव की आशा को महिलाओं के प्रसव के दौरान अस्पताल में रहना पड़ता है, उससे उनके बच्चों को परेशानी होती है। उन्हें रात को अकेले रहना पड़ता है। घर का काम और बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

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