पहाड़ टूट रहे हैं पेड़ों पर

29 Dec 2017
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केदारनाथ मार्ग पर काकड़ा गाड़ से लेकर मौजूदा सेमी-गुप्तकाशी तक के मार्ग को बदलने के लिये 10 किमी से अधिक सिंगोली के घने जंगलों के बीच से नया इलाईमेंट लोहारा होकर गुप्तकाशी किया जा रहा है। इसी तरह फाटा बाजार को छोड़कर मैखंडा से खड़िया गाँव होते हुए नई रोड का निर्माण किया जाना है। फाटा और सेमी के लोग इससे बहुत आहत हैं। यदि ऐसा होता है तो इन गाँवों के लोगों का व्यापार और सड़क सुविधा बाधित होगी। इसके साथ ही पौराणिक मन्दिर, जलस्रोत भी समाप्त हो जाएँगे। आज कल चारधाम-गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ मार्गों पर हजारों वन प्रजातियों के ऊपर पहाड़ टूटने लगे हैं। ऋषिकेश से आगे देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, अगस्त मुनि, गुप्तकाशी, फाटा, त्रिजुगीनारायण, गौचर, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग, चमोली, पीपल कोटी, हेंलग से बद्रीनाथ तक हजारों पड़ों का सफाया हो गया है।

उत्तराखण्ड सरकार का दावा है कि वे ऑल वेदर रोड के नाम पर 43 हजार पेड़ काट रहे हैं। लेकिन सवाल खड़ा होता है कि 10-12 मीटर सड़क विस्तारीकरण के लिये 24 मीटर तक पेड़ों का कटान क्यों किया जा रहा है? और यह नहीं भूलना चाहिए कि एक पेड़ गिराने का अर्थ है दस अन्य पेड़ खतरे में आना इस तरह लाखों की संख्या में वन प्रजातियों का सफाया हो जाएगा।

सड़क चौड़ीकरण के नाम पर देवदार के अतिरिक्त बांज, बुरांस, तुन, सीरस, उत्तीस, चीड़, पीपल आदि के पेड़ भी वन निगम काट रहा है। जो वन निगम केवल ‘वनों को काटो और बेचो’ की छवि पर खड़ा है, उससे ये आशा नहीं की जा सकती है कि वह पेड़ों को बचाने का विकल्प दे दें। यहाँ एक तरफ तो सड़क चौड़ीकरण है और दूसरी तरफ वन निगम की कमाई का साधन एक बार फिर उछाल पर है।

मध्य हिमालय के इस भू-भाग में विकास का यह नया प्रारूप स्थानीय पर्यावरण, पारिस्थितिकी और जनजीवन पर भारी पड़ रहा है। सड़क निर्माण, सड़क चौड़ीकरण, बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं व सुरंगों का निर्माण इस भूकम्प प्रभावित क्षेत्र की अस्थिरता को बढ़ा रहा है। भारी व अनियोजित निर्माण कार्याें का असर जनजीवन पर भी पड़ रहा है। इन बड़ी परियोजनाओं से भूस्खलन, भू-कटाव, बाढ़, विस्थापन आदि की समस्या लगातार बढ़ रही है।

पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं की टीम राधा भट्ट और लेखक ने वन कटान से प्रभावित इन धामों में प्रस्तावित लगभग 750 किलोमीटर सड़क और इसके आसपास निवास करने वाले लोगों के बीच भ्रमण कर एक रिपोर्ट भी प्रधानमंत्री को सौंपने के लिये तैयार की है। कई स्थानों पर सड़क चौड़ीकरण के नए इलाईमेंट करने से लोगों की आजीविका, रोजगार, जंगल समाप्त हो रहे हैं।

यहाँ केदारनाथ मार्ग पर काकड़ा गाड़ से लेकर मौजूदा सेमी-गुप्तकाशी तक के मार्ग को बदलने के लिये 10 किमी से अधिक सिंगोली के घने जंगलों के बीच से नया इलाईमेंट लोहारा होकर गुप्तकाशी किया जा रहा है। इसी तरह फाटा बाजार को छोड़कर मैखंडा से खड़िया गाँव होते हुए नई रोड का निर्माण किया जाना है। फाटा और सेमी के लोग इससे बहुत आहत हैं।

यदि ऐसा होता है तो इन गाँवों के लोगों का व्यापार और सड़क सुविधा बाधित होगी। इसके साथ ही पौराणिक मन्दिर, जलस्रोत भी समाप्त हो जाएँगे। यहाँ लोगों का कहना है कि जिस रोड पर वाहन चल रहे हैं, वहीं सुविधा मजबूत की जानी चाहिए। नई जमीन का इस्तेमाल होने से लम्बी दूरी तो बढ़ेगी ही साथ ही चौड़ी पत्ती के जंगल कट रहे हैं।

केदारनाथ मार्ग पर रुद्रप्रयाग, अगस्त मुनि, तिलवाड़ा ऐसे स्थान हैं जहाँ पर लोग सड़क चौड़ीकरण नहीं चाहते हैं। यदि यहाँ ऑल वेदर रोड नये स्थान से बनाई गई तो वनों का बड़े पैमाने पर कटान होगा और यहाँ का बाजार सुनसान हो जाएगा। प्रभावितों का कहना है कि सरकार केवल डेंजर जोन का ट्रीटमेंट कर दें तो सड़कें ऑल वेदर हो जाएगी। चार धामों में भूस्खलन व डेंजर जोन निर्माण एवं खनन कार्यों से पैदा हुए हैं।

उत्तराखण्ड के लोगों ने अपने गाँवों तक गाड़ी पहुँचाने के लिये न्यूनतम पेड़ों को काटकर सड़क बनवाई है। वहीं ऑल वेदर रोड के नाम पर बेहिचक सैकड़ों पेड़ कट रहे हैं। बद्रीनाथ हाईवे के दोनों ओर कई ऐसे दूरस्थ गाँव है जहाँ बीच में कुछ पेड़ों के आने से मोटर सड़क नहीं बन पा रही है।

कई गाँवों की सड़कें आपदा के बाद नहीं सुधारी जा सकी हैं इस पर भी लोग सरकार का ध्यानाकर्षित कर रहे हैं। चमोली के पत्रकारों ने उत्तराखण्ड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से ऑल वेदर रोड के बारे में पूछा है कि जोशीमठ को छोड़कर हेंलग-मरवाड़ी बाई पास क्यों बनवाया जा रहा है। इससे जोशीमठ अलग-थलग पड़ जाएगा। इस पर मंत्री महोदय ने जवाब दिया कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है। अतः इससे जाहिर होता है कि उतराखण्ड की सरकार भूमि अधिग्रहण के लिये जितनी सक्रिय हुई है उतना उन्हें प्रभावित क्षेत्र की पीड़ा को समझने का मौका नहीं मिला है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने ऑल वेदर रोड बनाने की घोषणा उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव के ऐन वक्त में की थी तब से अब तक यह चर्चा रही है कि पहाड़ों के दूरस्थ गाँव तक सड़क पहुँचाना अभी बाकी है। सीमान्त जनपद चमोली उर्गम घाटी के लोग सन 2001 से सुरक्षित मोटर सड़क की माँग कर रहे हैं। यहाँ कल्प क्षेत्र विकास आन्दोलन के कारण सलना आदि गाँवों तक जो सड़क बनी है उस पर गुजरने वाले वाहन मौत के साये में चलते हैं। यहाँ चार धामों मे रहने वाले लोगों की यदि सुनी जाये तो मौजूदा सड़क को ऑल वेदर बनाने के लिये यात्रा काल में बाधित करने वाले डेंजर जोन का आधुनिक तकनीकी से ट्रीटमेंट किया जाय।

सड़क के दोनों ओर 24 मीटर के स्थान पर 10 मीटर तक ही भूमि का अधिग्रहण होना चाहिए। क्योंकि यहाँ छोटे और सीमान्त किसानों के पास बहुत ही छोटी-छोटी जोत है उसी में उनके गाँव, कस्बे और सड़क किनारे आजीविका के साधन मौजूद हैं, जिसे पलायन और रोजगार की दृष्टि से बचाना चाहिए। चारों धामों से आ रही अलकनंदा, मंदाकनी, यमुना, भागीरथी के किनारों से गुजरने वाले मौजूदा सड़क मार्गों में पर्याप्त स्थान की कमी है। जिसमें 10 मीटर चौड़ी सड़क बनाना भी जोखिमपूर्ण है।

यदि बाढ़, भूकम्प, भूस्खलन जैसी समस्याओं को ध्यान में रखा जाये तो यहाँ के पहाड़ों को कितना काटा जा सकता है यह पर्यावरणीय न्याय ध्यान में रखना जरूरी है। जहाँ घने जंगल हैं, वहाँ पेड़ों को नुकसान पहुँचाए बिना सड़क बननी चाहिए। सड़क चौड़ीकरण का टिकाऊ डिजाइन भूगर्भविदों व विशेषज्ञों से बनाना चाहिए। निर्माण से निकलने वाला मलबा नदियों में सीधे न फेंककर सड़क के दोनों ओर सुरक्षा दीवार के बीच डालकर वृक्षारोपण हो।

श्री सुरेश भाई लेखक, एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं एवं उत्तराखण्ड नदी बचाओ अभियान से जुड़े हैं। वर्तमान में उत्तराखण्ड सर्वोदय मण्डल के अध्यक्ष हैं।

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