पहल से मिलता है समाधान

30 Oct 2018
0 mins read
प्लास्टिक कचरे से पट रही है धरती
प्लास्टिक कचरे से पट रही है धरती

समीर, कुणाल और कार्तिक को कक्षा की तरफ से ‘प्लास्टिक के उपयोग और दुरुपयोग’ विषय पर एक प्रोजेक्ट तैयार कर क्लास टीचर के पास जमा करने के लिये कहा गया। मेहनती छात्र होने के नाते उन तीनों ने गहराई से अध्ययन कर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की और विवरण के नतीजों से हैरान हो गए। कुणाल और कार्तिक के साथ चर्चा करते हुए समीर बोला, “हे भगवान! प्लास्टिक के पाँच खरब टुकड़े हमारे समुद्र में तैर रहे हैं!” यही नहीं, उन्हें यह भी पता चला कि हर साल तकरीबन 3.6 खरब से 9 खरब किलो कचरा समुद्र में फेंका जाता है।

यह काफी चिन्ताजनक बात थी। इस रिपोर्ट में जो अगली बात थी, वह यह कि यह सब हुआ कैसे? प्लास्टिक पर हमारी निर्भरता बेहद आश्चर्यजनक है। सुबह जगने से लेकर स्कूल जाने तक हम प्लास्टिक की चीजें इस्तेमाल करते हैं, जैसे- टूथब्रश, प्लास्टिक लंच बॉक्स, प्लास्टिक वाटर बॉटल, कपड़े टांगने का हैंगर, सामान ले जाने का थैला आदि। वे इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि इंसान ने प्लास्टिक ईजाद होने के महज सौ सालों के अन्दर ही इतना अधिक नुकसान कर लिया। कुणाल ने पूछा, “क्या तुम जानते हो कि पूरी दुनिया में हर दिन दस लाख से अधिक प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल होता है। इतना ही नहीं, हर दिन लगभग 500 खरब प्लास्टिक बैग बनाए जाते हैं!” उनकी रिपोर्ट के अनुसार, “हम एक टाइम बम पर बैठे हैं।” तब उन तीनों ने आपस में विचार किया और बुद्धिमत्तापूर्ण योजना बनाकर उस पर अमल भी शुरू कर दिया :

1. हर हफ्ते सभी छात्र अपने घर पर अखबारों से कागज के दस बैग बनाएँगे। इसके लिये उन्होंने बैग बनाने का तरीका सीखा और फिर ‘कैसे बनाएँ’ शीर्षक से एक वीडियो बनाकर फेसबुक पर डाल दिया। यह वाट्सएप पर जल्द ही वायरल हो गया। इस तरह वे 2000 छात्र हर महीने हजारों बैग बनाने लगे!

2. उन्होंने अपने प्रिंसिपल से अनुरोध किया कि उन्हें स्कूल की कैंटीन में एक दुकान खोलने दें और बिना किसी लाभ के ये बैग इस नारे के साथ बेचने दें “प्लास्टिक को खत्म करें, इससे पहले कि यह आपको खत्म कर दे।” बस फिर क्या था, अभिभावक तो जैसे बैग खरीदने के लिये उमड़ पड़े और छात्र कागज के बैग खरीदकर घर ले जाने लगे। उनका अगला कदम महीने में 8 लाख बैग बनाने के साथ ही अपने अभियान से अध्यापकों, अभिभावकों और गैर-शैक्षणिक स्टाफ को स्वयंसेवक के रूप में जोड़ना था, जिसे उन्होंने तीन महीने के अन्दर कर लिया। यह तकनीक नेटवर्क और समूह की ताकत थी।

3. उनका अगला कदम पुराने कपड़े इकट्ठा करना और उससे थैले बनाना था। उन्होंने फेसबुक पर एक अनुरोध किया, “आप में से कौन कपड़ों के साधारण बैग बना सकता है?” इसके उत्तर में लोगों का उत्साह देख वे हैरत में पड़ गए। ढेर सारी लड़कियाँ स्वयं सेवा के लिये सामने आईं। कई छात्रों ने आगे बढ़कर इस काम में हिस्सा लिया और अपने घरों से पुराने कपड़े लाकर दिये, जिनसे सुन्दर रंगीन थैला बनाया गया और फिर उन्हें लोगों को बेच दिया गया।

4. यह खबर सारे अभिभावकों तक पहुँची और उनमें से एक अभिभावक एक अनोखी मदद लेकर हाजिर हुए वह सिलाई मशीन बनाने वाली एक कम्पनी के महाप्रबन्धक थे। उन्होंने 6 सिलाई मशीनें उपहार में दी! उसके बाद तो सिलाई सीखने के लिये छात्रों में उत्साह की जैसे बाढ़ सी आ गई। यह काफी आश्चर्यजनक रहा कि बहुत से लड़कों ने भी सिलाई की कक्षा में प्रवेश ले लिया।

5. उनमें से कुछ छात्र ऐसे भी थे, जो फैशन डिजाइनिंग को अपना करियर बनाना चाहते थे। उन्हें एक मौका मिला कि वे अपने नये डिजाइन के बैग बना सकें, वह भी फटे पुराने कपड़ों से!

6. कुछ सृजनशील किशोरों ने प्लास्टिक को त्याग दिया और अपने लिखे पोस्टर और बैनर लेकर आए। हर दिन एक नई उक्ति का जन्म होता और बहुत ही जल्द उन्होंने स्कूल को प्लास्टिक मुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया। छात्र स्टील की बोतलों में पानी और दोपहर का खाना या तो गत्ते के डिब्बों में या फिर काँच के डिब्बों में लाने लगे।

7. उनकी अगली मुहिम थी- माटी से जुड़ो। वे सब घरों और स्कूल में पानी रखने और ठंडा करने के लिये मटका और सुराही का इस्तेमाल करने लगे। समीर, कुणाल और कार्तिक ने जब एक एनजीओ से मिट्टी के विकल्प के बारे में सहायता माँगी, तो हैरान रह गये कि इस दिशा में बहुत सारा काम हो चुका है।

8. उन्होंने एक रोड-शो भी किया और लोगों से कहा कि वे अपने फटे-पुराने कपड़े दें और स्कूल के सामने के एक जगह उन्होंने ऐसे सामान इकट्ठा करने के लिये संग्रह-काउंटर बना दिया, जिस पर उन्हें भरपूर समर्थन मिला।

उन तीनों ने अब यह तय किया कि उन्हें अपने इस बिजनेस मॉडल पर अपनी एक छोटी-सी व्यापार कम्पनी खोल लेनी चाहिये, जो ऐसे समान का उत्पादन करे, जो धीरे-धीरे प्लास्टिक की जगह ले सके। उन्हें इस बात का एहसास हो गया था कि किसी वस्तु पर प्रतिबन्ध लगाना आसान है, पर लोगों को उसके बदले में विकल्प मिलना भी जरूरी है। कक्षा के एक प्रोजेक्ट ने क्रान्ति की शुरुआत कर दी थी। कई रेडियो चैनलों ने उन तीनों का साक्षात्कार लिया। अखबारों में भी वे छपे। देखिए कैसे एक युक्ति क्रान्ति ला सकती है, बशर्ते अपने लक्ष्य को पाने के लिये उसके पीछे कड़ी मेहनत की जाए। -लेखक लाइफ विद वैल्यूज के लेखक हैं।
Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading