पहले विकल्प लाएंगे, फिर प्लास्टिक पर प्रतिबंध - केंद्रीय पर्यावरण सचिव

2 Nov 2019
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केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन सचिव सीके मिश्रा।
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन सचिव सीके मिश्रा।

पर्यावरण और प्रदूषण (environment and pollution) से संबंधित मुद्दे इन दिनों सबसे अधिक चर्चा में है। इस संबंध में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन सचिव सीके मिश्रा के साथ मुकेश केजरीवाल की बातचीत।

हवा इतनी जरीली हो गई है, कैसे सुधरेंगे हालात ?

सिंधु गंगा के मैदानों में नमी बढ़ती है तो प्रदूषित वायु के ऊपर उठने में समस्या आती है। मगर निपटने के लिए बहुत व्यापक प्रयास हो रहे हैं। तीन वर्षों का आंकड़ा देखेंगे तो निरंतर सुधार हो रहा है। यह प्रयास अभी कई वर्षों तक करना होगा। हर व्यक्ति को जिम्मेदारी निभानी होगी।

नागरिकों पर पाबंदियां तो खूब लग रही हैं, सरकार और अधिकारियों की जवाबदेही तय नहीं होती ?

आपको जान कर आश्चर्य होगा कि पिछले वर्ष केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने लगभग सभी फाइन सरकारी संस्थानों के ही किए। सड़क, मेट्रो, सीपीडब्ल्यूडी, एनबीसीसी सभी एजेंसियों पर... यह मंत्रालय खास कर प्रदूषण के मामले में सरकार और निजी क्षेत्र में कोई फर्क नहीं करता।

सरकार का दावा था कि इस बार ग्रीन पटाखे मिलेंगे। दिखे नहीं!

ग्रीन पटाखों (green crackers) के बाजार में आने का यह पहला वर्ष था। सच है कि पर्याप्त संख्या में नहीं आए। लेकिन खुशी की बात है कि उद्योग जगत ने इसे स्वीकार किया है। बनने शुरू हो गए हैं, अगले वर्ष और अधिक मात्रा में उपलब्ध होंगे। लेकिन इनसे प्रदूषण (pollution) लगभग 25 से 30 प्रतिशत कम होता है। महत्वपूर्ण यह भी है कि आप कितने पटाखे छोडते हैं। दिवाली मनाने के लिए कई तरीके हैं। भविष्य का ध्यान हमें ही रखना है। 

इसमें पराली की कितनी अहम भूमिका है और इसे कितना काबू किया जा सका है ?

ज्यादा या कम की बात नहीं। प्रदूषण का यह एक स्त्रोत तो है। पिछले वर्ष केंद्र ने 1200 करोड़ रुपए से इससे निपटने की योजना शुरु की। किसानों को ऐसे उपकरण दिए गए हैं, जिनसे वे इसे जलाने की बजाय मिट्टी में वापस डाल सकें। पिछले वर्षों का आंकड़ा देखें तो इसमें कमी आ रही है।

रेत माफिया अंधाधुंध खनन कर रहा है। जयपुर में रामगढ़ बांध (Ramgarh dam) जैसे जलस्त्रोत अतिक्रमण का शिकार हो रहे हैं। सरकारें क्यों लाचार हैं ?

बजरी खनन पर हमने सख्त कदम उठाए हैं। अब कैरिंग कैपेसिटी के आधार पर ही अनुमति दी जा रही है। राजस्थान सरकार ने भी इसे अपनाया है। जहां तक जल स्त्रोतों की बात है, ये पूरीे देश में अतिक्रमण का शिकार हुए हैं। सबसे पहले चुनौती बचे हुए स्त्रोतों को सजीव रखने की है। राजस्थान में इस दिशा में अच्छा काम हुआ है।

मरुस्थलीकरण रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र की सीसीडी बैठक की मेजबानी पिछले दिनों भारत ने की। इससे राजस्थान जैसे इलाकों को क्या लाभ होगा ?

यह यूएनसीसीडी (UNCCD) की सर्वाधिक सफल बैठकों में मानी जा रही है। इस दौरान मरुस्थलीकरण (Desertification) पर बहुत व्यवस्थित विमर्श हुआ। इसे कैसे रोका जाए और ऐसी भूमि को कैसे उपजाऊ बनाया जाए, इसके लिए तकनीक, जल स्त्रोतों (water sources) के संरक्षण और विभिन्न जगहों पर अपनाई गई बेस्ट प्रैक्टिसेज पर चर्चा हुई। भारत के लिए यह इसलिए अहम है क्योंकि हमारी भूमि का बड़ा हिस्सा ऐसा है।

पीएम ने कई बार कहा सिंगल यूज प्लास्टिक (single use plastic) के उपयोग को खत्म करने का समय आ गया है। क्या प्रतिबंध लग रहा है ?

प्रधानमंत्री जी ने पिछले वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर यह घोषणा की थी। इसके अलावा 15 अगस्त  के संबोधत में, यूएनसीसीडी (UNCCD) की बैठक में और जलवायु पर यूएन की विशेष बैठक में भी यह बात कही। उनकी प्ररेणा में सभी लोग इस दिशा में जुट गए हैं। लगभग 22 राज्यों में विभिन्न स्तर के प्रतिबंध लगाए हैं। प्लास्टिक ऐसा मोलिक्यूल है, जिसका बार बार उपयोग हो सकता है। जरूरी है कि उसे जमा करें और रिसाइकिल करें। कूड़ा बीनने वालों को हम औपचारिक रूप से इस काम में जोड़ने जा रहे हैं। हम घर से निकलने वाले कूड़े को अलग अलग करने और सिंगल यूज प्लास्टिक (single use plastic) का हर स्तर पर विकल्प मुहैया कराने पर ध्यान दे रहे हैं। 

यानी प्रतिबंध नहीं लगने वाला ?

अभी इस तरह का कोई प्रतिबंध हम नहीं लगा रहे हैं, लेकिन कई राज्यों ने अलग अलग स्तर का प्रतिबंध लगाया है।

पीएम ने बयान दिए, फिर मंत्रालय ने चिट्ठी लिखी। संदेश गया था कि प्रतिबंध लगेगा। क्या उद्योग जगत के दबाव में प्रतिबंध का फैसला रोका गया ?

पहले भी कई प्रतिबंध लगाए गए, पर लागू नहीं हो सके। जरूरत पहले वैकल्पिक व्यवस्था की है। हम उसकी ओर बढ़ रहे हैं। 2022 इसे हासिल करने का लक्ष्य है। एक्शन प्लान तैयार है। 50 माइक्रोन से कम के प्लास्टिक पर तो 2016 से ही रोक है।

ई-काॅमर्स कंपनियां प्लास्टिक का उपयोग बड़ी मात्रा में कर रही हैं ?

मैने उनसे दो बार बात की है। इन्होंने दो वादे किए हैं। एक, ग्राहकों से उसकी वापसी का अधिकतम प्रयास और दूसरा, वैकल्पिक पैकेजिंग के साधन तलाशना। तीन महीने के अंदर वे एक एक्शन प्लान के साथ आएंगे, जिसे अगले दो साल में पूरा करना होगा। 

दूध, शैंपू आदि की कंपनियां प्लास्टिक वापस लेने को ले कर कितना आगे आई ?

उद्योग संगठन फिक्की व सीआइआइ मिल कर एक प्लेटफार्म बना रहे हैं। कुछ ने तो 80 से 90 फीसद तक रिसाइकिल करना शुरू कर दिया है। लेकिन प्लास्टिक (plastic) की छोटी वस्तुओं में कठिनाई है।

आरे में पेड़ों की कटाई का विवाद हुआ, क्या कोई और रास्ता नहीं था ?

यह महाराष्ट्र सरकार के कार्यक्षेत्र की बात है। मूल विवाद यह है कि वह वन क्षेत्र है या नहीं। इसकी परिभाषा कानूनन बिल्कुल स्थापित और स्पष्ट है। हमारा प्रयास यही होता है कि पेड़ की कटाई कम से कम हो और विकास कार्य समानांतर रूप से चले। क्योंकि वह भी लोगों की ही आवश्यकता है।

रघुराम राजन ने कहा कि बड़े अफसर इन दिनों फैसला लेने से हिचकिचा रहे....

(हंसते हुए) इतने काम हो रहे हैं... वे बिना फैसला लिए थोड़े ही हो रहे हैं। फैसले सही स्तर पर लिए जा रहे हैं और अधिकारी उनको क्रियान्वित कर रहे हैं। 

ऐसी होगी ‘ग्रीन वाॅल ऑफ़ इंडिया’

दिल्ली से हरियाणा-राजस्थान होते हुए गुजरात तक प्रस्तावित ग्रीन वाॅल ऑफ़ इंडिया (green wall of india) पर पहली बार बोले भारत सरकार के शीर्ष अधिकारी। 1400 किलोमीटर लंबे इस हरित गलियारे से प्रदूषण रुकेगा, पानी की दूर होगी और पर्यटन व रोजगार भी पैदा होगा।

गुजरात से दिल्ली तक के इस काॅरिडोर की परिकल्पना अभी तो डिजाइन के स्तर पर ही है। हमें विश्वास है कि यह अगले कुछ वर्षों में ही साकार हो सकेगी। दुनिया की दूसरी जगहों पर ऐसे काॅरिडोर बनाए गए हैं। इसके तीन अहम पहलू हैं। यहां बड़ी संख्या में पेड़ लगाए जाएंगे। इस विशेष पट्टी से पूरी अरावली श्रृंख्ला के इलाके को फायदा होगा और दिल्ली के लिए एक दीवार का काम करेगी। प्रदूषण और धूल को रोेकेगी और पर्यावरण संरक्षण (environment protection) का लाभ तो होगा ही। जल स्त्रोत मजूबत होंगे, जीव-जंतुओं को जगह मिलेगी। यह पूरा इलाका जलाभाव से गुजर रहा है। पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी और रोजगार पैदा होंगे। इसके लिए धन की समस्या नहीं होगी। इसके कई काम कनरेगा व वन विभाग की दूसरी योजनाओं से अभी भी हो रहे हैं। हमारी परियोजना अच्छी रही तो कई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं मदद के लिए तैयार हैं। क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन (कैंपा) के तहत भी इसमें सहयोग मिलेगा।

 

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